""इश्क समतल सपाट भूमि का नाम है न ही घटना रहित जीवन का सूचक जब यह भूमि होता है तब इसके अपने मरुस्थल भी होते हैं जब यह पर्वत होता है तब इसके अपने ज्वालामुखी भी होते हैं जब यह दरिया होता है तब इसके अपने भंवर भी होते हैं जब यह आसमान होता है तो इसकी अपने और अपनी बिजीलियाँ भी होतीं है यह खुदा को मोहब्बत करने वाले की हालत होती है ...जिसमें खुदा के आशिक को अपने बल पर विद्रोह करने का भी हक भी होता है और इनकार करने का भी पर यह ऐसे हैं जैसे कि खुले आकाश के नीचे जब कोई छत डालता है वह असल आकाश को नकारता नही है .""
...यह बात अमृता ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान तब कही जब उनसे पूछा गया कि कभी आपने लिखा था ..मेरी उम्र से भी लम्बी है मेरी वफ़ा की लकीरें और शब्दों की दौलत के बिना भी वफ़ा है अमीर या मोमबत्ती यह प्राणों की रात भर जलती रही ..पर आपकी इस अवस्था को क्या कहूँ जब आपने लिखा की इश्क का बदन ठिठुर रहा है ,गीत का कुरता कैसे सियूँ ख्यालों का धागा टूट गया है .कलम सुई की नोक टूट गई है और सारी बात खो गई है ..
अपने १.२.६३ को बम्बई से लिखे ख़त में अमृता ने इमरोज़ को लिखा ...
राही !!
तुम मुझे संध्या के समय क्यूँ मिले ! जिंदगी का सफर ख़त्म होने को है तुम्हे यदि मिलना ही था तो जिंदगी की दोपहर में मिलते उस दोपहर का सेंक तो देख लेते.. काठमांडू में किसी ने यह हिन्दी कविता पढ़ी थी कई बार कई लोगो की पीड़ा कितनी एक जैसी होती है मेरी जिंदगी के खत्म हो रहे सफर में अब मुझे सिर्फ़ तुम्हारे खतों का इन्तज़ार है
मेरा यह इन्तजार तुम्हारे इस शहर की जालिम दीवारों से टकरा कर हमेशा ज़ख्मी होता रहा है .पहले भी चौदह बरस राम बनवास जितने बीते बाकी रहते बरस भी लगता है अपनी पंक्ति में जा मिलेंगे ..आज तक तुम्हारा एक ही ख़त आया है शायद तुम्हे काठमांडू का पता भूल गया हो ..रोज़ वहां तुम्हारे एक अक्षर का इन्तजार करती रही वहां मेरे लिए लोगों के पास बहुत शब्द थे दिल को छु जाने वाले पर उन्होंने इन्तजार की चिंगारी को और सुलगा दिया और जला दिया मुझसे उसका सेंक सहा नही गया तीन दिन के इन्तजार के बाद मुझे बुखार हो गया ..कल वापस आई ..रास्ते में हवाई जहाज बदल कर सीधे सफर की सीट नही मिली रात को सवा नौ बजे पहुँची ....न तुम्हारे लफ्जों ने इतनी कंजूसी क्यूँ कर ली है आज की डाक भी आ चुकी है सवाल का जवाब बनने वाले मुझे इस चुप का अर्थ समझा जाना !!
काया की हकीकत से लेकर
काया की आबरू तक "मैं "थी ,
काया के हुस्न से लेकर ---
काया के इश्क तक "तू "था
यह "मैं "अक्षर का इल्म था
जिसने "मैं "को इखलाक दिया
यह "तू "अक्षर का जश्न था
जिसने "वह "को पहचाना लिया
भय मुक्त "मैं "की हस्ती
और भय मुक्त तू की "वह "की
मनु की स्मृति
तो बहुत बाद की बात है
Thursday, June 26, 2008
सवाल का जवाब बनने वाले मुझे इस चुप का अर्थ समझा जाना !!
अमृता प्रीतम amrita preetam ..imroz ..sahir
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
13 comments:
यह "मैं "अक्षर का इल्म था
जिसने "मैं "को इखलाक दिया
यह "तू "अक्षर का जश्न था
जिसने "वह "को पहचाना लिया
भय मुक्त "मैं "की हस्ती
और भय मुक्त तू की "वह "की
wah bahut hi sundar,aur interview ke samay ki unki panktiyan dil mein bas gayi.jitni unki shaili pyar mein sarabor,utani hi zindagi ke falsafe samajhti aur samjhati bhi,awesome.
बहुत अच्छी प्रस्तुति चल रही है... धन्यवाद. जारी रखें.
यह "मैं "अक्षर का इल्म था
जिसने "मैं "को इखलाक दिया
क्या बात है! एक और बार शुक्रिया रंजू जी ये ब्लॉग शुरू करने के लिए
khamosh hun....aor bas padhta hun...aisi mohabbat ke liye deevanapan chahiye..
यह "मैं "अक्षर का इल्म था
जिसने "मैं "को इखलाक दिया
यह "तू "अक्षर का जश्न था
जिसने "वह "को पहचाना लिया
भय मुक्त "मैं "की हस्ती
और भय मुक्त तू की "वह "की
bas aisee hi bhuul bhulayya hai ye jeevan...
bahut achchee prastuti.
क्या बात है :
मनु की स्मृति
तो बहुत बाद की बात है
रंजू जी मैं आपका किन शब्दों में शुक्रिया अदा करूं। ये पत्र मेरे लिए बहुत अनमोल हैं। इनका एक-एक लफ़्ज़ शरीर में ख़ून की तरह दौड़ता है मेरे अंदर जब मैं इन्हें पढ़ता हूं। बहुत-2 शुक्रिया आपका। बस यूं ही पढ़ाते रहें और दोबारा यादों को ताज़ा करवाते रहें।
शुभकामनाएं।
जैसे कि खुले आकाश के नीचे जब कोई छत डालता है वह असल आकाश को नकारता नही है .""
बस यही जीना है.
==============
शुक्रिया
डा.चन्द्रकुमार जैन
बहुत सुन्दर लिखते रहिये...
अमृता प्रीतम जी के मन के गहन भावों को प्रस्तुत किया है ..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बेहतरीन।
सादर
अमृता जी को हमेशा पढना एक अलग अनुभव की दुनिया मे ले जाता है…………जैसे हमारे ही दिल की कोई बात उन्होने कह दी हो।
अमृता जी की इस प्रस्तुति के लिये आभार ।
Post a Comment