अमृता के ख़त हो या उसकी नज्म ..पढ़ते जाओ तो एक इबादत बनती जाती है ..इस किताब खिड़कियों में जैसे जैसे मैं अमृता के खतों को पढ़ती गई ..वैसे वैसे ख़ुद को एक बच्ची समझती गई जैसे अमृता ने यह ख़त मुझे लिखे हों ...:) हर ख़त अपने में एक कहानी कहता है और नई बातो को सामने खोल के रख देता है ...पिछली पोस्ट पर आए आपके कॉमेंट्स भी कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे हैं ..कि आपको भी उनके लिखे यह ख़त अपने दिल के करीब महसूस हुए ..इसी से उत्साहित हो कर मैं कुछ कड़ियों में उनके लिखे कुछ ख़ास ख़त लिखना चाहूंगी ..अंदाज उनका ,भाव उनका और साथ आपका होगा तो मेरी कलम भी सहजता से उनकी बात कह जायेगी ....वह अपने बच्चो के बहुतकरीब थी ,एक अच्छी माँ की झलक उनके लेखन में कई जगह साफ़ साफ़ दिखी है ...
यह ख़त उन्होंने लिखा है फरगाना घाटी {उज्बेकिस्तान से }
वह लिखती है ..मेरे प्यारे बच्चों ,
तुमने बचपन में कहानी सुनी होगी कि एक थी शाहजादी उसको किसी दुरात्मा का शाप लगा और वह सौ बरस तक सोयी रही .फ़िर दूर देश से एक शहजादा आया और उसने जादू की छड़ी से उस शहजादी को जगा लिया .मैं तुम्हें आज जिस घाटी से पत्र लिख रही हूँ इस घाटी की कहानी भी उस परी की कहानी जैसी है .इसका पहले नाम होता था खाबीदा हसीना ...खाबीदा हसीना का भाव है सोयी हुई सुंदरी .. बादशाह और जागीरदारों ने इसको श्राप दिया और यह बरसों सोयी रही| फ़िर एक दिन शहजादा आया और उसने कामों की छड़ी से इसको छू लिया ।यह जाग गई ,अब इसका नाम है फरगाना घाटी
पंजाब की लडकियां दूर दराज के रेशम का गीत गाती थी ''तेरे पैरां नूं देवां मखमल दी जुत्ती ते अतलस दा जामा सुझावां ''यह फरगाना घाटी वह रेशम कातती है |
लोग कहते हैं कि एक बरस में यह घाटी जितना रेशम कातती है उसका एक कोना अगर धरती पर रखे तो दूसरा कोना चाँद तक पहुँच जाता है
कल पहली मई का जश्न होगा ,इसलिए आज हर एक चेहरे पर जश्न का चाव झलक रहा है अतलस के कारखाने देखते हुए मैंने अतलस बुनने वाली लड़कियों को एक छोटी सी नज्म में पहली मई की मुबारक दी है
रेशम बुनती हुई सुंदरी
मई का महीना
तेरी लाख मुरादें
पूरी करने को आया है
सपने बुनती हुई लड़की
तू अपनी पिटारी में
मेरी लाख दुआएं रख ले
अतलस के इन दोनों बड़े कारखानो की निर्देशक औरतें हैं ,फरगाना जिले की डिप्टी भी औरते हैं और म्यूनिस्पेलिटी की प्रधान भी औरते ही है ॥..यह एक गौरवमयी बात है कि सारे उज्बेक्सितान गणतंत्र की प्रधान भी औरत है | अभी अभी फरगाना के सयुंक्त फ्राम की प्रधान ऐना खान से मिल कर आई हूँ जिसने पिछले पचास सालों में चार एकड़ शहर को आबाद किए है ......एक हजार छह सौ एकड़ में कपास ,छह सौ एकड़ में चारा ,घास साढे चार सौ एकड़ में मक्का ,साढे तीन सौ एकड़ में खुमानियाँ ग्लास और सेबों के पेडों और डेढ़ सौ एकड़ में शहतूत लगें हैं ...
इस ऐना खान के साथ मिल कर डेढ़ हजार श्रमिक काम करते हैं इन श्रमिकों के लिए फार्म में चौबीस शीपान है शीपान का मतलब यहाँ आरामगाह से है ..हर आराम गाह में अखबारें .किताबें .रेडियो और टेलीविजन है ....ऐना खान की छाती पर सोने के दो तमगे लगे हुए हैं और उसका सादा किसान चेहरा मेहनत की लालिमा से दमक रहा है ..
इस पत्र के साथ ही उन्होंने कुछ कविताएं भी जो उस वक्त उज्बेकिस्तान के सबसे बड़े कवि माने जाते थे जैसे गफूर गुलाम .आईबेक .जुल्फिया हमीद गुलाम और असकड़ मुख्तार .उनकी कुछ कविताओं का अनुवाद मैं तुम्हे भेजतीरहूंगी ...इस बार पढ़े गफूर गुलाम की एक कविता
सलाम
दुनिया में किस्मत अजमाई एक बार
उम्र एक माला नहीं
कि जिनके मनके बार बार फेर लें
आसमान में चमकती बिजली का एतबार एक बार
मैं पूर्व का कवि हूँ
मेरी कल्पना का क्षितिज
कुरील से ले कर अफ्रीका तक
अरब के किसानों और मजदूरों की आरजू
यह सब परछाई इयाँ मेरी कलम में हिलती है
बाद्शाओं के ताज की जीनत :लोगों के धन की चोरी
पाँच सौ साल की गुलामी
जैसे कोई हाथी खुजली का मारा हो
मैं तो एक घोडे का बच्चा
रेगिस्तान में घूमता हूँ
कंटीली झाडियाँ चरता हूँ
आजादी की सलामती मांगता हूँ !!!
फरगाना घाटी
उज्बेकिस्तान
३० अप्रैल १९६१
15 comments:
हर बार की तरह इस बार भी अच्छा लगा अमृता जी को पढना। आगे के खतों का इंतजार रहेगा। वैसे उनके खत भी एक अलग कहानी कहते है।
बेहद सुंदर ......दिल के करीब।
बड़ा जीवंत चित्रण है.
बेहद सुंदर .....उनके खत भी एक अलग कहानी कहते है।
सुन्दर आलेख
आपके मकर संक्रन्ति पर्व की बहुत बहुत शुभ कामनाऍं
अमृता जी का हर प्रसंग ही निराला होता है, कुछ कहता हुवा, कुछ सिखाता हुवा. आप खूबसूरत अंदाज से उसे उतारती हैं. शुक्रिया
रंजू जी बहुत लम्बे वक़्त से आपके ब्लॉग को पढ़ती आ रही हूँ लेकिन कभी कमेन्ट नहीं कर पाई क्यूंकि एक तो अमृता जी की बात और उस पर आप जिस तरह उसे पेश करती हैं हमेश तारीफ के लिए लफ्जों की कमी हो जाती है ,,, लेकिन आज खुद को आपकी पोस्ट पढने के बाद रोक नहीं पाई और आपका शुक्रिया करने की हिम्मत कर ही लिए ...
अमृता जी के लिए तो बस यही कह सकते हैं ..
"'महदूद है मेरी फ़िक्र-ओ- नज़र महदूद है मेरे शाम-ओ-सहर सच्चे हैं तेरे लफ्जों के गोहर सच्ची है तेरी दुनिया सैयां "
Bahut sunder
bahut achcha laga yah aalekh bhi..
अमृता के ख़त हो या उसकी नज्म ..पढ़ते जाओ तो एक इबादत बनती जाती है -sach lag raha hai
shukriya khaton ke is silsile ke liye. nayi batein pata chal rahin hain
bouth he aacha post good going
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ranjna ji, amrita ko khubsurti se aapne apnaya hai. is apnane ko salam. ---amrita khab men li gai nind ka nam hai.
heh,
Nice blog,
वाह.....बहुत खूब........
वाह.....बहुत खूब........
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