अमृता की कवितायेँ खुद में एक कहानी है ,एक एक लफ्ज़ अपनी बात इस तरह से कहता है जैसे ज़िन्दगी का एक सच मुकम्मल रूप से सच है ..और हर बार उनका लिखा कोई न कोई नया अर्थ दे जाता है ...आज इसी श्रृंखला में उनकी एक और कविता ..डेढ़ घंटे की मुलाकात ..जैसे ज़िन्दगी इसी लिखे में पूरी गुजर गयी हो ..और एक नया अर्थ दे गयी हो ....
डेढ़ घंटे की मुलाक़ात
जैसे बादल का एक टुकडा
आज सूरज के साथ टांका ,
उधेड़ हारी हूँ
पर कुछ नहीं बनता
और लगता है
कि सूरज के लाल कुरते में
यह बादल किसी ने बुन दिया है |
डेढ़ धंटे की मुलाक़ात
सामने उस चौक में
एक संतरी कि तरह खड़ी
और मेरी सोचों का गुजरना
उसने हाथ दे कर रोक दिया
खुदा जाने मैंने क्या कहा था
और जाने खुदा
तूने क्या सुन लिया |
डेढ़ घंटे की मुलाक़ात
सोचती हूँ
आदिवासी औरत की तरह
मैं एक चिलम सुलगा लूँ
और डेढ़ घंटे का तम्बाकू
इस आग में रख कर पी लूँ
इस से पहले
कि मेरी सोच घबरा जाए
और गलत मोड़ मुड जाए
इस से पहले
कि बादल को उतारते
यह सूरज टूट जाए
इस से पहले कि
मुलाक़ात की याद
एक नफरत में बदल जाए
डेढ़ धंटे का धुंआ
कुछ मैं पी लूँ
कुछ पवन पी ले
इस से पहले
कि इसका लफ्ज़
मेरी या तेरी जुबान पर आये
इससे पहले
कि मेरा या तेरा कान
इस जिक्र को सुने
और इस से पहले की मर्द
औरत जात की तौहीन बन जाए
और इस से पहले कि औरत
मर्द जात की ताक का का कारण बने
इस से पहले ......इस से पहले ........!!!!!!
डेढ़ घंटे की मुलाक़ात
जैसे बादल का एक टुकडा
आज सूरज के साथ टांका ,
उधेड़ हारी हूँ
पर कुछ नहीं बनता
और लगता है
कि सूरज के लाल कुरते में
यह बादल किसी ने बुन दिया है |
डेढ़ धंटे की मुलाक़ात
सामने उस चौक में
एक संतरी कि तरह खड़ी
और मेरी सोचों का गुजरना
उसने हाथ दे कर रोक दिया
खुदा जाने मैंने क्या कहा था
और जाने खुदा
तूने क्या सुन लिया |
डेढ़ घंटे की मुलाक़ात
सोचती हूँ
आदिवासी औरत की तरह
मैं एक चिलम सुलगा लूँ
और डेढ़ घंटे का तम्बाकू
इस आग में रख कर पी लूँ
इस से पहले
कि मेरी सोच घबरा जाए
और गलत मोड़ मुड जाए
इस से पहले
कि बादल को उतारते
यह सूरज टूट जाए
इस से पहले कि
मुलाक़ात की याद
एक नफरत में बदल जाए
डेढ़ धंटे का धुंआ
कुछ मैं पी लूँ
कुछ पवन पी ले
इस से पहले
कि इसका लफ्ज़
मेरी या तेरी जुबान पर आये
इससे पहले
कि मेरा या तेरा कान
इस जिक्र को सुने
और इस से पहले की मर्द
औरत जात की तौहीन बन जाए
और इस से पहले कि औरत
मर्द जात की ताक का का कारण बने
इस से पहले ......इस से पहले ........!!!!!!
9 comments:
इस से पहले और इस से पहले
और Amrita Pritam ki dhadkanon ne ise jubaan de dee. adbhut
aur isase pahale... :) :)
arsh
डेढ़ घंटे की मुलाक़ात
सोचती हूँ
आदिवासी औरत की तरह
मैं एक चिलम सुलगा लूँ
और डेढ़ घंटे का तम्बाकू
इस आग में रख कर पी लूँ
उनका लिखा पढना स्तब्ध भी कर जाता है जैसे जादू कर दिया हो.
रामराम.
सोचती हूँ
आदिवासी औरत की तरह
मैं एक चिलम सुलगा लूँ
और डेढ़ घंटे का तम्बाकू
इस आग में रख कर पी लूँ
... क्या ख्वाहिश है... सुभानाल्लाह
और इस से पहले की मर्द
औरत जात की तौहीन बन जाए
और इस से पहले कि औरत
मर्द जात की ताक का का कारण बने
इस से पहले ......इस से पहले ........!!!!!!
इससे पहले संभल जाना चाहिए।
bahut hi gahan...........hamesha ki tarah........padhwane ka shukriya.
और डेढ़ घंटे का तम्बाकू
इस आग में रख कर पी लूँ
अमृता जी की लिखी हर पंक्ति अपने आपमें अनमोल है और आपके पास वह अनमोल खजाना है, जिन्हें आप हम सब के बीच बांटती है, इस रचना के लिये भी और आगामी अन्य रचनाओं के लिये भी आभार ।
डेढ़ घंटे की मुलाक़ात
जैसे बादल का एक टुकडा
आज सूरज के साथ टांका ,
उधेड़ हारी हूँ
पर कुछ नहीं बनता
और लगता है
कि सूरज के लाल कुरते में
यह बादल किसी ने बुन दिया है |
लाजवाब.....रंजू जी बहुत कुछ सिखने को मिला अमृता की इस नज़्म से .....चौथी पंक्ति को देखें क्या 'हारी' शब्द ही है ....??
इस से पहले
कि मेरी सोच घबरा जाए
और गलत मोड़ मुड जाए
इस से पहले
कि बादल को उतारते
यह सूरज टूट जाए
इस से पहले कि
मुलाक़ात की याद
एक नफरत में बदल जाए.....बहुत बढिया कविता ढूँढ कर लाई हो कभी- कभी मन कुछ भी पढने का नहीं करता ...और लग रहा है कुछ लिखूं ...भोपाल में आज हलकी बूंदा-बांदी है मौसम में ठंडक और माहौल में रूमानियत ....तुम कैसी हो बहुत दिनों बाद तुम्हे पढ़ रही हूँ ...आमीन
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