दो फूल
जब कोई कबीर होता है
कोई वारिस शाह सा फ़कीर होता है
कहीं मोहब्बत का फूल खिलता है
कोई अफसाना -ए हीर होता है
तब .वक़्त अमीर होता है ...
मोहब्बत
इबादत
और अकीदत
ये वक़्त की दौलत हैं
जब यह फूल खिलते हैं
फ़िज़ा महकती है
वक़्त मुस्कराता है
कुछ गुनगुनाता है
अपनी किस्मत पे इठलाता है
आज वक़्त अमीर हुआ है
क्या कोई फिर से
कबीर हुआ है ?
कहीं अकीदत का फूल खिला है
मोहब्बत का सिलसिला है
या वक़्त को
इबादत का मोती मिला है ?
नहीं
सूरज की सातवीं किरण मिली है
इस बार हमारे वक़्त को
एक कबिरन मिली है |
मोहब्बत ,इबादत ,अकीदत की कलियाँ
उसकी ज़िन्दगी में खिली हैं ....
वह कबिरन
अपनी काया की रुई को
चिन्तन की धुनकी पर
धुनती है
अक्षरों के फूल
चुनती है
अपनी कलम की पूनी से
कहानियों के ताने कातती है
नज्मों की चुनर बुनती है
और अनहद नाद
सुनती है
उसकी इबादत
कुछ यूँ होती है
उसकी खुद से
गुफ्तगुं होती है ...
बुद्धि के शिखर पर
खड़ी हो कर भी
कहती है जज्बाती हूँ ,
मैं कबिरन हुई जाती हूँ
मैं कबिरन हुई जाती हूँ ....
देखा है उसने ज़िन्दगी को
बेहद निकट से
इसकी कुछ झलक मिलती है
रसीदी टिकट से
उसकी चेतना में
कोई पीर है
या कोई फ़रिश्ता
कि वह ढूंढ़ लेती है
कभी लाल धागे का रिश्ता
कभी हरे धागे का रिश्ता
उसकी बातें होती हैं
बात से आगे
और नजर देख पाती है जब कोई कबीर होता है
कोई वारिस शाह सा फ़कीर होता है
कहीं मोहब्बत का फूल खिलता है
कोई अफसाना -ए हीर होता है
तब .वक़्त अमीर होता है ...
मोहब्बत
इबादत
और अकीदत
ये वक़्त की दौलत हैं
जब यह फूल खिलते हैं
फ़िज़ा महकती है
वक़्त मुस्कराता है
कुछ गुनगुनाता है
अपनी किस्मत पे इठलाता है
आज वक़्त अमीर हुआ है
क्या कोई फिर से
कबीर हुआ है ?
कहीं अकीदत का फूल खिला है
मोहब्बत का सिलसिला है
या वक़्त को
इबादत का मोती मिला है ?
नहीं
सूरज की सातवीं किरण मिली है
इस बार हमारे वक़्त को
एक कबिरन मिली है |
मोहब्बत ,इबादत ,अकीदत की कलियाँ
उसकी ज़िन्दगी में खिली हैं ....
वह कबिरन
अपनी काया की रुई को
चिन्तन की धुनकी पर
धुनती है
अक्षरों के फूल
चुनती है
अपनी कलम की पूनी से
कहानियों के ताने कातती है
नज्मों की चुनर बुनती है
और अनहद नाद
सुनती है
उसकी इबादत
कुछ यूँ होती है
उसकी खुद से
गुफ्तगुं होती है ...
बुद्धि के शिखर पर
खड़ी हो कर भी
कहती है जज्बाती हूँ ,
मैं कबिरन हुई जाती हूँ
मैं कबिरन हुई जाती हूँ ....
देखा है उसने ज़िन्दगी को
बेहद निकट से
इसकी कुछ झलक मिलती है
रसीदी टिकट से
उसकी चेतना में
कोई पीर है
या कोई फ़रिश्ता
कि वह ढूंढ़ लेती है
कभी लाल धागे का रिश्ता
कभी हरे धागे का रिश्ता
उसकी बातें होती हैं
बात से आगे
कायनात से आगे
अपनी कलम की पूनी से
इस कबिरन ने
अदब की झीनी झीनी
चदरिया बुनी है
उसने
अक्षरों की अंतर्ध्वनि सुनी है
न ताप न योग न प्रणायाम
उसने जपा है बस
इश्क सहस्त्रनाम
और एक रंग साज है
जो तितलियों के पंखों से
फूलों की पंखुड़ियों से
सूर्य किरण की लड़ियों से
बिजली की चमक से
पारिजात की महक से
रंग लाता है
मुस्काराता है
एक जादू सा कर देता है
और कबिरन की चुनर में
रंग भर देता है
वह रंगोली बनाता है
कहानियों के आंगन में
और श्रृंगार करता है
काया के दामन में
कबिरन हाथों में रचाती है
दरवेशों की मेहँदी
चेहरे हो जाते हैं गुलाबी
महक उठता है
दिल का चमन
हवा में गूंजता है संगीत सा
मोहब्बत दोस्ती और अमन
यह फूल रोज़ खिलते नहीं है
रोज़ रोज़
यह खुशकिस्मत है वक़्त की
कि हमें मिले हैं
अमृता और इमरोज़ !
साक्षी चेतना से अमृता जी के जन्मदिन पर लिखी गयी यह पंक्तियाँ
16 comments:
अमृता जी की बढ़िया रचना और अमृता जी को जन्मदिन पर बधाई ....
अमृता जी को जन्मदिन पर ये तोहफ़ा बेहद खूबसूरत है………………गज़ब की रचना ………………सीधे दिल मे उतर गयीं। हार्दिक बधाई अमृता के जन्मदिन की।
इसे किसने लिखा है रंजना जी ? बहुत सुन्दर , हम सदियों से वही मांगते हैं । समंदर की स्याही भी कम पड़ जाये जिसे लिखने में , वही बात तो हम तलाशते हैं ।
@ शारदा जी मुझे अमृता जी के बारे में जो भी कुछ मिलता है वह मैं अपनी डायरी में नोट कर लेती हूँ ...और कुछ अधूरा सा लगे तो कुछ लफ्ज़ खुद से जोड़ देती हूँ ..यह भी उन्ही में से एक है..जो साक्षी चेतना नाम किताब से लिखा हुआ है ..पर जिसने भी लिखा है वाकई खूब लिखा है ..
main to bas kayal hoon......unko janmdim par bahut bahut shubhkamnayen!
अमृता जी को जन्मदिन पर बधाई !
amrita jee ke janamdin pe bahut bahut badhai.....:)
rachna to sadabahar hai.....
amrita jee ke janamdin pe bahut bahut badhai.....:)
rachna to sadabahar hai.....
अफसोस कि हम जिंदगी की भाग दौड़ में अमृता जी का जन्मदिन भूल गए। खैर आपकी पोस्ट ने याद दिलाया। एक प्यारी रचना में अमृता जी की लिखी किताबों को कितनी खूबसूरती से पिरोया है। मन को छू गई ये रचना।
यह फूल रोज़ खिलते नहीं है
रोज़ रोज़
यह खुशकिस्मत है वक़्त की
कि हमें मिले हैं
अमृता और इमरोज़ ..
जैसे कोई सपनो की दुनिया में घूम रहा हूँ ... शुरुआत से ही जैसे अमृता जी को पढ़ रहा हूँ ....
आज उनका जनम दिन है ... बहुत बहुत बधाई ...
अमृता जी को जन्मदिन पर स्मरण.
उसकी इबादत
कुछ यूँ होती है
उसकी खुद से
गुफ्तगुं होती है ...
khoobsurat tohfa , iske saath aap
इतने खूबसूरत मोती (बिम्ब)चुन के लाती है आप के हैरान कर देती है...
यह खुशकिस्मत है वक़्त की
कि हमें मिले हैं
अमृता और इमरोज़ !
ये खुस्किमती है की ये मोती हम तक पहुँच पाते है...:)
वाह! अमृता जी के जन्मदिन पर हमारे लिए बेहतरीन रचना का तोहफा.... बहुत खूब!
अमृता जी को जन्मदिन पर बहुत सुन्दर तोहफा दिया है। रंजना जी का धन्यवाद। अमृता जी को जन्म दिन की बधाई के रूप मे विनम्र श्रद्धाँजली।
उसकी इबादत
कुछ यूँ होती है
उसकी खुद से
गुफ्तगुं होती है !
बहुत ही भावमय प्रस्तुति, हमेशा की तरह आपने फिर एक बार फिर बेहतरीन प्रस्तुति दी है, आभार ।
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