Wednesday, October 6, 2010

हर तरफ तू ही तू,और तेरा ही नूर है ..

अमृता और साहिर में जो एक तार था वह बरसों तक जुडा रहा ,लेकिन क्या बात रही दोनों को एक साथ रहना नसीब नहीं हो सका ?यह सवाल अक्सर मन को कुदेरता है ..जवाब मिला यदि अमृता को साहिर मिल गए होते तो आज अमृता अमृता न होती और साहिर साहिर न होते ...कुदरत के राज हमें पता नहीं होते ,किस बात के पीछे क्या भेद छुपा है यह भेद हमें मालूम नहीं होता इस लिए ज़िन्दगी की बहुत सी घटनाओं को हम जीवन भर स्वीकार नहीं कर पाते...
बहुत बार प्रेम की  अतृप्ति जीवन को वह दिशा दे देती है जो तृप्ति नहीं दे पाती .....यह भी जीवन का सत्य है कि जहाँ थोड़ी सी तृप्ति या सकून मिलता है वह वही रुक जाता है ....यह सिर्फ प्यास है जो आगे की यात्रा के लिए उकसाती है ...अमृता को साहिर मिल गए होते तो बहुत संभव था दोनों की  यात्रा रुक जाती |यह वह अतृप्ति ही थी जो साहिर के गीतों में ढलती रही और अमृता के लफ़्ज़ों में उतरती रही .......वैसे देखा जाए तो अमृता ने साहिर को नहीं खोया बलिक साहिर ने अमृता को खोया .....साहिर को न पा कर भी अमृता ने जो हासिल किया वह साहिर नहीं हासिल कर सके ......वह थी रूहानियत ......अमृता के प्रेम रूहानियत में तब्दील हो गया उस में एक सूफियाना ,खुशबु और फकीराना रंगत आ गयी लेकिन इमरोज़ बहुत किस्मत वाले निकले उन्हें अमृता वही रूहानियत वाला प्रेम मिला और इमरोज़ का प्रेम तो पहले ही रूह से जुडा हुआ था इस नाते अमृता भी बहुत तकदीर  वाली रहीं इमरोज़ का साथ मिलने से उनका प्रेम परिपक्व हो कर मेच्योर हो कर रूहानियत की रोशनी में ढलता चला गया इश्क  मजाजी एक छोर है और इश्क हकीकी  दूसरा छोर जो अनंत की  ओर ले जाता है ....
       साहिर को न पाकर अमृता रुकी नहीं बलिक उनके कदम रूहानी इश्क की  ओर चल पड़े .अमृता की  जीवन यात्रा में साहिर की  भूमिका एक इशारे जैसी रही और इशारे ठहरने के लिए नहीं होते वह तो उस दिशा में ले जाने के लिए होते हैं जिस तरफ वह इशारा कर रहे होते हैं ...सच तो यह है कि प्रेम हर किसी की ज़िन्दगी में एक इशारा होता है क्यों कि उस में अनंत की झलक  होती है इश्क मजाजी एक झरोखा होता है जिसमें इश्क हकीकी का ब्रह्मांड देखा जा सकता है ,लेकिन अधिकतर लोग उस झरोखे को बंद कर देते हैं और यात्रा वहीँ रुक जाती है ,हमें साहिर का शुक्रगुजार होना चाहिए जो अमृता को राह का इशारा दे गए ...
राहों का क्या है -
जिस भी राह से कहो 
हम गुजर जायेंगे  
तुम हो तो यह हस्ती 
तुम ही ला मकां हो  
तुम ही होगे उधर 
हम जिधर जायेंगे 
राहों का क्या है ...
          साहिर और अमृता के बीच में महजब की खाई नहीं कुछ और था ...वह कुछ और था साहिर में जीवन के प्रति वह स्वीकारता ,जो उन में नहीं थी जो इमरोज़ के प्रेम में है ...उनका इश्क बस गीतों में था .इस लिए वह अमृता को नहीं मिल सके .....
 तू ज़िन्दगी जैसी भी है 
वैसी मुझे मंजूर है  
जो खुदी से दूर है 
वह खुदा से दूर है

छोड़ कर तुझे
मैं जाउंगा किस जहाँ में
हर तरफ तू ही तू
और तेरा ही नूर है ..
यह  स्वीकारता सिर्फ योगियों और फकीरों में होती है ,वह इमरोज़ में है ...तभी  वह साहिर का नाम अपनी पीठ पर लिखवा पाए और उन्हें कभी उस से कोई जलन नहीं हुई ...एक दिन की बात बताई इमरोज़ ने वह अपने स्टूडियो में साहिर की एक एक किताब का टाइटल बना रहे थे ..किताब का नाम था ...आओ कोई ख्वाब बुने ...इमरोज़ ने कहा ..साला ,ख्वाब बुनता है ,बनता नहीं ,जाहिर है यह बात इमरोज़ ने साहिर की   शायरी के  मद्दे नजर से कही कि ऐसी नज्म  लिखने वाला खुद क्यों नहीं जी पाया !इमरोज़ की  यह बात जब साहिर को पता चली तो साहिर ने जवाब दिया ...हाँ इमरोज़ सही कहता है ,मैं कबीर की  ओलाद से  हूँ न ,बुनता ही रहा ...एक बार किसी ने इमरोज़ से पूछा ..मान लो अमृता साहिर के घर चली गयी होती ,तब ?
इमरोज़ ने कहा --फिर क्या फर्क पड़ना था ! मैं साहिर के घर जाता और नमाज पढ़ती अमृता से कहता ...चलो उठो !घर चलें !
यह सहज सी बात शायद दुनिया में कोई नहीं सह सकता ,न ही कर सकता है ......

सही है जो सहज होता है वह ही सबसे कठिन होता है ..असल में साहिर एक पाक मस्जिद थे लेकिन वहां कभी नमाज अदा नहीं हुई ..और इमरोज़ का घर वह बना जहाँ अमृता इबादत भी कर सकीं और रह भी सकीं ...और यह दोनों हकीकते हमारे पास ही हैं ....

21 comments:

vandana gupta said...

बस यही तो अमर प्रेम है……………जहाँ चाहतों ने ही त्याग किया और चाहतें कभी जवाँ न हुयीं………………जिसने पाया उसने रखा नही और जिसने रखा उसे मिला नही……………।एक अजीब कशिश थी उनके प्रेम मे………………यही किसी किसी को नसीब होता है सच कहा अगर मिल जाते तो पूर्णता कभी नही आती।

महेन्‍द्र वर्मा said...

अमृता जी मेरी प्रिय लेखिका हैं। उनकी ज़िदगी की कहानी का यह हिस्सा पढ़कर सुखद अनुभूति हुई।

वाणी गीत said...

जितना पढ़े , उतना डूबे ...!

PN Subramanian said...

ज्ञानवर्धन हुआ. आभार.

डॉ .अनुराग said...

इश्क सिर्फ पाना भर नहीं है .अपने यार को सुख भरी थाल देना भी है ...

ePandit said...

आपके ब्लॉग पर आज ही आना हुआ और यह पोस्ट मन को छू गयी।

क्या अमृता और क्या इमरोज दोनों का प्रेम विलक्षण है। फैसला करना मुश्किल है कि किसका प्रेम ज्यादा महान था।

ePandit said...

एक बात आप पूर्णविराम (।) की जगह पाइप साइन (|)क्यों प्रयोग करते हैं?

फ़िरदौस ख़ान said...

इश्क़...अपने महबूब की परस्तिश ही इश्क़ है...इश्क़ इबादत है...अब और क्या कहें...

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लगा....पढ़कर. धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

पढ़ कर तृप्त हुए ..सुन्दर ..

निर्मला कपिला said...

बहुत बार प्रेम की अतृप्ति जीवन को वह दिशा दे देती है जो तृप्ति नहीं दे पाती | यह भी जीवन का सत्य है कि जहाँ थोड़ी सी तृप्ति या सकून मिलता है वह वही रुक जाता है |यह सिर्फ प्यास है जो आगे की यात्रा के लिए उकसाती है |
रंजू जी सही कहा आपने। अमृ्ता की प्यास ही उसे इस ऊचाई तक खींच लाई है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। शुभकामनायें

दिगम्बर नासवा said...

इस अमर प्रेम को उन्होने जिस बुलंदियों पर जिया है आपने उसे उसी रूहानियत के स्तर पर लिखा है ....
डूब जाता हूँ आपके अल्फ़ाज़ के जादू में .....

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
मध्यकालीन भारत-धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२), राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें

pratima sinha said...

इस ब्लोग को पढती हूँ तो सारे शब्द खो जाते हैं. रहते हैं तो सिर्फ़ आँखो में आँसू..., जिनसे बचे-खुचे शब्दों के भी फैल जाने का डर रहता है.अब कहूँ तो क्या...? लिखूँ तो क्या...?

Parul kanani said...

unka likhna..unka padhna...lafon se pare hai ye anubhuti!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सूफियाना मिजाज़ की एक शानदार रचना। आपने इसका अच्छा विश्लेषण किया है।
................
वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।

सदा said...

छोड़ कर तुझे
मैं जाउंगा किस जहाँ में
हर तरफ तू ही तू
और तेरा ही नूर है ..

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति, अमृता जी को जितनी बार पढ़ो लगता है कम है .....।

Acharya Rekha Kalpdev said...

इन पंक्तियों को पढने के बाद भला ऎसा कौन है, जिसकी आंखे नम न हुई हो,

लफ्ज कुछ ऎसे है कि हर दिल को छू जायें. अश्कों को बहने से रोक लूं तो कुछ कहूं............... अद्वभुत, लाजवाब...........

kuch kahna hai said...

dil ko chhune wali rachna... poori rachna padhte waqt main us me doob si gayee thi...

Anonymous said...

रंजू भाटिया जी

बहुत सुंदर ब्लॉग है आपका -पहले भी देखा था मैंने ! आपका श्रम और अमृता प्रीतम के लेखन का लगाव मन को छू गया ...आभार !

डॉ सरस्वती माथुर

Anonymous said...

रंजू भाटिया जी

बहुत सुंदर ब्लॉग है आपका -पहले भी देखा था मैंने ! आपका श्रम और अमृता प्रीतम के लेखन का लगाव मन को छू गया ...आभार !

डॉ सरस्वती माथुर