Thursday, September 18, 2008

अरी मेरी ज़िन्दगी !
तू किसके लिए कातती है मोह की पूनी !
मोह के तार में अम्बर लपेटा जाता
सूरज बाँधा जाता
इक सच सी वस्तु
इसका चोला काता जाता ..""

और तृप्ता ने कोख के आगे
माथा नवाया
मैंने सपनों का मर्म पाया
यह अपना पराया

कोई अजल का जोगी
जैसे मौज में आया
यूँ ही पल भर बैठा ---
सेंके कोख की धूनी...

अरी मेरी ज़िन्दगी !
तू किसके लिए कातती है ---
मोह की पूनी ...

धरती का यह दर्द कोई औरत ही लिख सकती है ..जब यह अमृता ने लिखा तो कहा गया ....अमृता ने इस दर्द को बखूबी लिखा पर उस पर तोहमते लगाने वालों ने उस पर सिर्फ़ इसलिए तोहमते लगायीं कि वह एक औरत थी ..एक बार किसी अखबार वाले ने एक बार उनसे सवाल किया कि इस जन्म में कौन सी ऐसी गलती की है उन्होंने जो वह अगले जन्म में भी करना चाहेंगी ...अमृता ने जवाब दिया कई बार ऐसा एहसास मुझे करवाया गया कि औरत होना ही मेरी गलती है ..और यदि यह गलती है तो मैं यही गलती अगली बार भी चाहूंगी .पर इस शर्त पर कि उस जन्म में भी मेरे हाथ में खुदा को कलम देनी होगी ...और यह बताना होगा कि कलम की रचना तो कलम की होती हैउस में या फर्क कहाँ से गया कि लिखने वाली कलम मर्द के हाथ में है या औरत के हाथ में ..
कितना सच कहा अमृता जी ने। पर यह बात शायद आसानी से अभी भी लोगो कि समझ में नही आती है ..औरत मर्द के भेद के साथ साथ कलम का भी लिंग भेद निरंतर जारी है ....


खैर पिछली कड़ी में था कि इमरोज़ के साथ उनका मिलना कोई जन्मों का ही खेल था ..उन्ही के लिखे एक वाकये में है कि एक बार इन्हे पता चला कि कोई ""रामभद्र दास ""दिल्ली में आए हुए हैं जो पिछले जन्म की बातें भी बताते हैं ..वह देख नही सकते हैं ....पर बताते सच है ...जब यह सुन कर यह उनसे मिलने गयीं तो उन्होंने इनके सिर पर हाथ रखा और कहा कि बहुत दिनों बाद मिलने आई हो और अपने आश्रम की बालिका को पानी लाने को बोला ...जब अमृता ने पानी का गिलास में हाथ में लिया तो बोले कि ---तुम बहुत बड़ी हो गई हो गई जब मैं पहले तुमसे मिला था तुम कोई नौ या दस बरस की थी ,उस जन्म में भी मेरी आँखे नही थी पर मैंने तब भी तुम्हे देखा था तुम उस वक्त नीले रंग की ओढ़नी ओढे हुए थी ...मैंने तुमसे पानी माँगा तो तुमने कहा था-----जाओ बाबा आगे जाओ ..यहाँ पानी नही है ...तब मैंने तुम्हे श्राप दिया ...कि जा तू भी प्यासी रह !!

यह कह कर वह हंसने लगे ..और कहा कि जब कोई साधू ऐसा श्राप देता है तो वह बहुत गहरे अर्थ लिए होता है। ....उस का मतलब था कि तुम्हे जिज्ञासा की प्यास लग जाए ...इस लिए मैंने आज तुम्हे आते ही पानी पिलाया कि शायद तुम्हे कुछ याद जाए

पर अमृता को कुछ याद नही आया ..उन्होंने पूछा कि कितने बरस पहले की बात है ?

वह बोले-- पाँच सौ दस साल पहले की ...

अमृता ने जिज्ञासा से पूछा अच्छा ..कौन से आश्रम की बात है यह ?

ब्रजमंडल में एक गांव था ''रसावली ""अब वह नहीं है .पर तब था और कभी तुम अरुणाचल के आश्रम में थीं ...

फ़िर पूछा कि साथ कौन है तुम्हारे ? इमरोज़ आगे आए .उन्होंने उनके सिर को टटोलते हुए कहा - क्या नाम है तुम्हारा ?
इमरोज ने जब अपना नाम बताया तो पूछने लगे कि किस धर्म में आस्था रखते हो तुम?

इमरोज़ ने कहा मैं सिर्फ़ कर्म में आस्था रखता हूँ ....हिंदू -मुस्लिम किसी धर्म में मेरी कोई आस्था नही है .

वह बोले कि किसी जन्म में तुम्हारा नाम नंदन था ,किसी में अरविन्द , तुम पत्थर शिलाओं पर चित्र बनाते थे।

उनेक यह लफ्ज़ सुन कर अमृता चौंक गई ...क्यूंकि उन्होंने कई बार यह सपना देखा था ..कि वह किसी जन्म में जहर पी के मरी थी और उनका चित्र इमरोज़ ने बनाया था .और उस महल के उतराधिकारी के रूप में उन्होंने साहिर को देखा था ..अजब बात है यह सपनों कि उस में इंसान किरदार भी होता है और दर्शक भी ...

अमृता ने इस बारे में कुछ और जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि बाद में आना सब बता दूंगा ...फ़िर जब वह उनसे मिलने गई तो साथ में बादाम का शरबत ले कर गई और यह कह कर उन्हें दिया कि कुछ मीठा पानी लायी हूँ बहुत पुराना पानी का कर्ज़ उतारने के लिए ...

वह हंस पड़े और बोले कि इमरोज़ को साथ लायी हो क्या ..? अमृता ने कहा हाँ ..

"'तुम दोनों ने तो मिलना ही था .तुम्हारा और उसका आत्मा का संग है ...अच्छा हुआ तुम दोनों मिल गए इसके बिना तुम दोनों की मुक्ति नही थी ...""

पढ़ कर लगा ..कि यह सब शायद सच ही होता है ...क्यूँ आख़िर किसी ने मिलना होता है ..और वह मिलना फ़िर कैसे ज़िन्दगी बन जाता है ...कि उसके बिना जीना मुश्किल सा लगने लगता है ...

अमृता के जीवन में जो भी लम्हा गुजरा वह उनके लिखे में शामिल हो गया ..कभी कविता बन कर ..कभी कोई कहानी बन कर ...इमरोज़ से मिलना और दोस्ती का प्यार में बदलना ..हर लम्हा उनकी किसी किसी वाक़ये में लिखा गया है ..यह वाकया उन्होंने
. .. .. "३६ चक "में लिखा ..इन किरदारों में अमृता और इमरोज़ जैसे जीवंतहो उठे .....

जब इमरोज़ उनकी ज़िन्दगी में सिर्फ़ अभी दोस्त बन कर आए थे ..तब एक बार  और कई लोग शिमला गए थे, रास्ते में चंडीगढ़ के पिंजौर में रात बितायी। वहां से सुबह जब चलना शुरू किया तो एक रास्ते पर एक लम्बी पगडण्डी दिखायी दी ...किसी ने कहा कि यहीं आगे एक नदी आएगी जिसका नाम कौशल्या नदी है उसका पानी बहुत शफाक है ....और जब वो जगह सबने देखी तो देखते रह गए ..... उसका पानी और चमकते सूरज में और भी चमक रहा था ...सब ने नहाने का प्रोग्राम बना लिया ...और जिस जगह इमरोज़ नहा रहे थे उसी सीध में थोड़ा नीचे पानी में उतर कर अमृता भी नहाने लगीं ..वह पानी इमरोज़ को छू कर, परस कर रहा था ..वह दूर से देख लेती और अगर इमरोज़ ने उस जगह से थोडी भी दूरी बना ली होती, दायें या बाएँ वह भी उतने ही दूर उसी की सीध में हो लेती ..

यूँ किसी के बदन का पानी परसना क्या होता है..वही जानते हैं जो हवाओं को भी दिशा बदलने को कहते हैं ""बह री हवा पर ..स्वार्थ से भरी हुई ,तू जाना तख्त हजारे ""

और हवाएं भी दिशा बदल कर चल देती है ..

हर साँस इसके होंठों का आज बैचेन है
पर हर मोहब्बत गुजरती जिस राह से
वह शायद उसी राह से हो कर आई है ...

और इस तरह कई बेरागी आत्माएं कागों के हाथो अपना संदेशा भेजती रही है सदियों से ..वह सारी आत्माएं अपनी सी लगती है ..कुछ कहती हुई ..हवा के रुख को बदलती हुई ......
.. ...""

Monday, September 15, 2008

पत्थर पत्थर है ..वो ग़लत हाथो में आ जाए तो किसी का जख्म बन जाता है ..किसी माइकल एंजलो के हाथ में आ जाए तो हुनर का शाहकार बन जाता है ..किसी का चिंतन उसको छू ले तो वह शिलालेख बन जाता है ..वो किसी गौतम को छू ले तो व्रजासन बन जाता है .और किसी की आत्मा उसके कण कण को सुन ले तो वह आत्मा का संगीत बन जाता है ..
इसी तरह अक्षर अक्षर है ..
उस को किसी की नफरत छू ले तो वह एक गाली बन जाता है ..वो किसी आदि बिन्दु के कम्पन को छू ले तो कास्मिक ध्वनि बन जाता है..वो किसी की आत्मा को छू ले तो वेद की ऋचा बन जाता है ,गीता का श्लोक बन जाता है ,कुरान की आयत बन जाता है ,गुरु ग्रन्थ साहिब की गुरु वाणी बन जाता है ..

और इसी तरह मजहब एक बहुत बड़ी संभावना का नाम है | वह संभावना किसी के संग हो ले तो एक राह बन जाती है .कास्मिक चेतना की बहती हुई धारा तक पहुँचने की ...और हर मजहब की जो भी राहो रस्म है -वो एक तैयारी है जड़ में से चेतना को जगाने की ..चेतना की पहचान "मैं "के माध्यम से होती है और मजहब उस "मैं "को एक जमीन देता है ....खडे होने की ..वह उसको अपने नाम की पनाह देता है ...लेकिन यहाँ एक बहुत बड़ी संभावना होते होते रह जाती है .मजहब में कोई कमी नही आती है ,कमी आती है इंसान में .और मजहब लफ्ज़ की तशरीह करने वालों में ..जब बहती हो धारा को रोक लिया जाता है ,थाम लिया जाता है तो वो पानी एक जोर पकड़ता है .उस वक्त इंसान को एक ताकत का एहसास होता है .लेकिन यह ताकत चेतना की नहीं......अहंकार की होती है ..कुदरत पर भी फतह पाने की जिद बढ जाती है ..तब यह अहंकार की ताकत नफरत .और कत्लो खून में बदल जाती है ..

दुनिया के इतिहास का हर मजहब के नाम पर खून कत्लो आम हुआ है ..और हम इल्जाम देते हैं मजहब को ..इसलिए कि कोई इल्जाम हम अपने पर लेना नही चाहते हैं .हम जो मजहब को अपन अन्तर में उतार नही पाते हैं | मजहब को अन्तर की क्रान्ति है स्थूल से सूक्ष्म हो जाने की ..और हम इसको सिर्फ़ बाहर से पहनते हैं ..सिर्फ़ पहनते हो नहीं बलिक को भी जबरदस्ती पहनाने की कोशिश करते हैं ...

हमारी दुनिया में वक्त -वक्त पर कुछ ऐसे लोग जन्म लेते हैं -जिन्हें हम देवता ,महात्मा ,गुरु और पीर पैगम्बर कहते हैं | वह उसी जागृत चेतना की सूरत होते है ,जो इंसान से खो चुकी है | और हमारे पीर पैगम्बर इस थके हुए ,हारे हुए इंसान की अंतर्चेतना को जगाने का यत्न करते हैं ..लेकिन उनके बाद उनके नाम से जब उनके यत्न को संस्थाई रूप दे दिया जाता है .तो वक्त पा वह यात्रा बाहर की यात्रा हो जाती है वह हमारे अन्तर की यात्रा नही बन पाती है ..

आज हमारे देश के जो हालात है वह हमारे अपने होंठों से निकली हुई एक एक भयानक चीख हैं ..और हम जो टूटते चले गए थे .हमने इस चीख को भी टुकडों में बाँट लिया .हिंदू चीख ...सिख चीख .मुस्लिम चीख .कह कर इस चीख का नामाकरण हुआ .....इसी से जातीकरण हुआ और पंजाब .असाम .गुजरात कह कर इस चीख का प्रांतीय करण हुआ ..

पश्चिम में एक सांइस दान हुए हैं लेथब्रेज | उन्होंने पेंडुलम की मदद से .जमीनदोज शक्तियों की खोज की ,और अलग अलग शक्तियों की पहचान के दर नियत किए ... उन्होंने पाया कि

१० इंच की दूरी से जिन शक्तियों का संकेत मिलता है ,वह सूरज ,आग .लाल रंग सच्चाई और पूर्व दिशा है ..

२० इंच की दूरी से ..धरती .ज़िन्दगी गरिमा .सफ़ेद रंग और दक्षिण दिशा का संकेत मिलता है ..

३० इंच की दूरी से .आवाज़ .ध्वनि .चाँद .पानी हरा रंग और पश्चिम दिशा का संकेत मिलता है

और ४० इंच की दूरी से जिन शक्तियों का संकेत मिलता है .वह मौत की .नींद की .झूठ की ,काले रंग की और उत्तर दिशा की शक्तियां है|
यही लेथब्रेज थे जिन्होंने उन पत्थरों का मुआइना किया जो कभी किसी प्राचीन ज़ंग में इस्तेमाल हुए थे और उन्होंने पाया की उन पत्थरों पर नफरत और लड़ाई झगडे के आसार इस कदर उन पर अंकित हो चुके थे कि उनका पेंडुलम ,वही दर नियत कर रहा था ----जो उसके मौत का किया था ..

हमारे प्राचीन इतिहास में एक नाम मीरदाद का आता है ..वक्त का यह सवाल तब भी बहुत बड़ा होगा कि ज़िन्दगी से थके हुए , हारे हुए कुछ लोग मीरदाद के पास गए तो मीरदाद ने कहा --हम जिस हवा में साँस लेते हैं ,क्या आप उस हवा को अदालत में तलब कर सकते हैं ? हम लोग इतने उदास क्यूँ हैं ? इसकी गवाही तो उस हवा से लेनी होगी ,जिस हवा में हम साँस लेते हैं और जो हवा हमारे ख्यालों के जहर में भरी हुई है ..

लेथ ब्रेज ने आज साइंस की मदद से हमारे सामने रखा है कि ..हमारे ही ख्यालों में भरी हुई नफरत ,हमारे ही हाथो हो रहा कत्लोआम ,और हमारे ही होंठों से निकला हुआ जहर ,उस हवा में मिला हुआ है ,जिस हवा में हम साँस लेते हैं .और वही सब कुछ हमारे घर के आँगन में ,हमारी गलियों में ,और हमारे माहौल की दरो दिवार पर अंकित हो गया है ..
और आज हम महाचेतना के वारिस नहीं ,आज हम चीखों के वारिस है .आज हम जख्मों के वारिस हैं ..आज हम इस सड़कों पर बहते हुए खून के वारिस हैं .....

ज़िन्दगी की असली इबारत क्या थी ?
वह रेशम ख्यालों सी
खुशख़त होती थी
पर लहू की तपती हुई
और सपनों की स्याही से
गीली इबारत को
जिस सोख्ते ने सोख लिया था
वह सोख्ता मैं भी हूँ --आप भी .
धरती और समाज भी
मजहब और सियासत भी ..


यह सिरों पर लटकते हुए दिन
यह छाती में टूटती हुई रातें
और हर पीढी को
विरासत में मिलती हुई
जख्मों की बातें ,
और यह जो जवानियों के बंजर
और रेतीला सहरा है
और इनमें नित्य बहते हुए
लहू के दरिया है
यह ठंडी और उल्टी लकीरें हैं
और सोख्ते जो लकीरों से काले हैं
बस यही --
अब असली इबारत के हवाले हैं
वह असली इबारत
तो कब की खो चुकी हैं ...

मन मिर्जा तन साहिबां ..से

Thursday, September 11, 2008

मैं तो एक कोयल हूँ
मेरी जुबान पर तो
एक वर्जित छाला है
मेरा तो दर्द का रिश्ता ..

यह वर्जित छाला कैसे ,कब अमृता के जीवन में आ गया कोई नही जानता ... लेकिन जब यह आया तो अमृता को इमरोज़ से मिल कर लगा कि कभी हम दोनों ही आदम और हव्वा रहे होंगे ..जिन्होंने आदम बाग़ का वर्जित फल खाया था ..पर उस फल को आख़िर वर्जित किसने कहा कौन जाने ...क्यूँ मिली वह इमरोज़ से .क्या क्या ख्याल उस वक्त उनके जहन से हो कर गुजरे .वह उनके लिखे कई लफ्जों से ब्यान हुआ है . .उनकी हसरत एक ही थी कि कभी सहज से जीना नसीब हो जाए .लेकिन वह राह उन्हें उस वक्त बहुत मुश्किल दिखायी देती थी क्यूंकि उस वक्त उनके पास कुछ कारण भी थे ..एक बार वह एक फ़िल्म देख कर इमरोज़ के साथ वापस लौट रही थी .रास्ते में एक जगह उनकी चाय पीने की हुई ,सो वह वही पास के एक होटल में वह चले गए ...पर थोडी देर बाद नोटिस किया कि सबकी गर्दनें टेढी हो गई उन दोनों को देखने के लिए ..दोनों का मन उखड गया ..और वह वहां से उठ कर एक रोड साइड ढाबे में चले गए ..वहां उन्होंने आराम से चाय पी .उसके बाद वह किसी अच्छे दिखते रेस्टोरेंट में नही गए ...

पर इस तरह की घटनाओं से अमृता शुरू शुरू में परेशान हो जाती और इमरोज़ से कहती ...""देख इमरोज़ तेरी तो जीने बसने की उम्र है .तुम अपनी राह चले जाओ ..मैंने तो अब बहुत दिन नही जीना है .""
इमरोज़ जवाब देते --"तेरे बगैर मैंने जी कर मरना है ....""

पर दर्द की लकीर कभी कभी अपना ख़ुद का आपा भी खो देती है और वह यूँ लफ्जों में ब्यान होती है ..

सूरज देवता दरवाजे पर गया
किसी किरण ने उठ कर
उसका स्वागत नहीं किया
मेरे इश्क ने एक सवाल किया था
जवाब किसी भी खुदा से
दिया गया .....


एक बार वह करोल बाग़ गयीं, वहां एक ज्योतिष के नाम की तख्ती देख कर अन्दर चली गयीं ..और वहां बैठे पंडित जी से पूछा ,कि बताइए यह मिलना होगा होगा या नही होगा ..पंडित ने न जाने कौन से ग्रह नक्षत्र देखे और कहा कि सिर्फ़ ढाई घड़ी का मिलना होगा ...अमृता को गुस्सा आ गया ..उन्होंने कहा नही यह नही हो सकता है ..तो पंडित बोले कि चली ढाई धडी का नहीं तो ज्यादा से ज्यादा सिर्फ़ ढाई बरस का होगा ..

अमृता ने जवाब दिया कि यदि यह कोई ढाई का ही चक्कर है तो ..यह भी तो हो सकता है कि ढाई जन्म का हो ..आधा तो अब गुजर गया ..दो जन्मों का अभी हिसाब बाकी है ..

पंडित जी ने शायद कभी इश्क की दीवानगी नही देखी थी ..और वह दीवानों की तरह उठी वहां से उस राह पर चल पड़ी जिसे दीवानों की राह ,इश्क की राह कहा जाता है ...और उन्ही दिनों उन्होंने लिखा कि..

उम्र के कागज पर
तेरे इश्क ने अंगूठा लगाया
हिसाब कौन चुकायेगा !

किस्मत के इक नगमा लिखा है
कहते हैं कोई आज रात
वही नगमा गायेगा

कल्प वृक्ष की छांव में बैठ कर
कामधेनु के छलके दूध से
किसने आज तक दोहनी भरी !

हवा की आहें आज कौन सुने ,
चलूँ आज मुझे
तकदीर बुलाने आई है ..

उठूँ चलूं तकदीर मुझे बुलाने आई है !!!

किसी से मिलना क्यूँ कर होता है ..जन्मों का नाता क्या सच में होता है ..? पंडित तो अपनी बात कह कर भूल गया होगा .पर अमृता न भुला पायी अपना कहा ...जाने किस जन्म से वह इमरोज को तलाश कर रही थी .यह भी उनके सपनों की एक हकीकत थी कि एक सपना वह बीस बरस लगातार देखती रही.... कोई दो मंजिला मकान है जिसके ऊपर की खिड़की से जंगल भी दिखायी देता है ,एक बहती हुई नदी भी और वहीँ कोई उनकी तरह पीठ किए कैनवस पर चित्र बना रहा है ..वह सपना वह बीस बरस तक देखती रहीं और इमरोज़ से जब मिली तो उसके बाद नही देखा वह सपना उन्होंने ..

यह इश्क के नाते हैं ,जन्मों जन्मो साथ चलते है .किसी से मिलना यूँ अकारण नहीं होता है ..इमरोज़ से मिलना ,साहिर से मिलना उनका शायद इसी कारण के तहत रहा होगा ..इसका भी एक वाक्या इन्होने बताया है अपने एक लेख में ..पर वो अगली कड़ी में ...अभी के लिए इतना ही ..और इस के साथ ही आप सब का तहे दिल से शुक्रिया .. इस तरह से हर कड़ी को इतने प्यार से पढने के लिए ...यही आपका स्नेह मुझे अमृता के और करीब ले जाता है ..धन्यवाद इसी तरह साथ चलते रहें इस इश्क के सफर में ...

Monday, September 8, 2008

अमृता के बारे में कई लोग ऐसा मानते हैं कि अमृता अपने लेखन में निरे भावुक स्तर पर ठहर गयीं हैं ... और उनका पूरा लेखन प्लेटोनिक लव और उस से जुड़ी इमोशंस के इर्द गिर्द ही घूमता रहा है .... और उस में निरी भावुकता होती है ..इस पर अमृता ने जवाब दिया कि यह भावुकता नही है कोरी ..इसको इमोशंस की रिचनेस कह सकते हैं ..एहसास की अमीरी .."'रिचनेस प्लस इन्टेलेक्ट "' ..जो खाली इटेलेक्ट है वह खुश्क हो जाता है और खाली भावुकता एक बहाव की तरह है ,जो आपको बहा कर ले जाती है ..आपके पैरों के नीचे जमीन नहीं रहजाती है .खाली भावुकता उड़ते पत्ते की तरह है ,जो कहीं भी बह जाए ...प्लेटोनिक लव का मतलब मोहब्बत को जिस्म से माइनस करना है और यदि जिस्म को माइनस कर दिया मोहब्बत से और खाली रूह की बात की तो पूर्णता उस में कहाँ बचेगी ? इसी पर एक नज़्म कही थी उन्होंने ..

मेरी सेज हाजिर है
पर जूते और कमीज की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढे पर रख दे
कोई ख़ास बात नहीं --
यह अपने अपने देश का रिवाज है
यह एक व्यंग था यानी खाली मूर्ति को छूना .....

यहाँ मैं एक और उनके कहे वाक़या का जिक्र करना चाहूंगी ..एक इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि आपके उपन्यास की नायिकाएं बिना विवाह किए संतान पैदा करके उसको पालती पोसती हैं ...आप विवाह संस्था की सामाजिक जरुरत के बारे में क्या सोचती है ..? अमृता का जवाब था ..कि हमारी श्रेणियां इतनी बनी हुई है कि एक ही चीज सब पर लागू नही होती है .कुछ लोग इसको पहचान का रिश्ता मानते हैं ..उसके लिए एक सेरेमनीहो या हो उस से कोई फर्क नही पड़ता है ..लेकिन कुछ लोग हैं जिन्हें कानून की पनाह चाहिए ..सरंक्षण चाहिए अदरवाइज दे विल वी एक्स्प्लोइड ..मेरिज का बेसिक कांसेप्ट है एक दूजे का पूरक होना ..एक दूजे की आजादी ..गुलामी नही ..मुश्किल तो यह है की मेरिज शब्द के अर्थ कही खो गए हैं ..विवाह होते हैं टूटते हैं ..फ़िरसे विवाह होते हैं ..इस तरह से अभी कहीं भी सकून नही मिल पा रहा है .. विवाह के भीतर और ही बाहर क्यूंकि विवाह के सही अर्थ कोई समझ ही नही पाता है अब ....और इस में मुश्किल यह है कि ..मर्द और औरत ने पूरा मिलन कहाँ देखा है ..? उसने अभी औरत में एक दासी ,वेश्या और देवी देखी है ..इवोल्यूशन आफ ह्यूमन बीइगन्स में औरत ,औरत कहाँ है ..? मर्द ,मर्द कहाँ है ? सिर्फ़ छीनना और लूटना जानते हैं सब ...

शायद इस लिए उनके लिखे उपन्यासों का मसला उस औरत और मर्द के रिश्ते पर रहा ,जो इंसान को इंसान के रिश्ते तक पहुंचाता है और फ़िर एक देश से दूसरे देश के रिश्तों तक ..पर यह रिश्ता अभी उलझा हुआ है ..क्यूंकि अभी दोनों अधूरे हैं दोनों ही एक दूजे को समझ नही पाए हैं ..उनके अनुसार हम लोग जवानी .खूबसूरती की कोशिश को कुछ सुखों और सहूलियतों की कोशिश को मोहब्बत का नाम दे देते हैं ..लेकिन मोहब्बत जैसी घटना सिर्फ़ एक किसी पूरे मर्द या पूरी औरत के बीच घट सकती है..पूरी औरत से यहाँ उनका मतलब पूछा गया तो जवाब बहुत खूबसूरत दिया उन्होंने ..वह औरत जो आर्थिक तौर पर ,जज्बाती तौर पर और जेहनी तौर पर स्वंतंत्र हो ..आजादी कभी किसी से मांगी या छीनी नही जा सकती है .. ही यह पहनी जा सकती है ,यह वजूद की मिटटी से उगती है ..

उनको अपने एक हिन्दुस्तानी औरत होने का फक्र था .क्यूंकि ईसा से भी चार हजार साल पहले इस धरती की औरत ने वह चिंतन दुनिया को दिया था जो आज कई सदियों के बाद भी किसी मुल्क की तहजीब में शामिल नही हुआ ..ऋग्वेद की एक ऋचा में सूर्या सावित्री ने कहा था कि ... सुबह की रोशनी जब सूरज से मिले तो उसकी आंखों में ज्ञान का काजल हो ,हाथों में अपने प्रिय को सौगात देने के लिए वेदमंत्र हो ..दुनिया के विद्वान उनके पुरोहित हों और स्वंत्रता उनकी सेज हो ..और अमृता को अपने ख्यालों की तसकीद आज की किसी हकीकत से नहीं मिली ..बलिक इसी साठ सदियों पुराने चिंतन से मिली ...तभी वह अपने वक्त से आगे चली और बिना डर के बिना भय के चली ..अमृता जैसा होना एक हिम्मत का काम है ..तभी इमरोज़ मिलता है ..औरइमरोज़ जैसी मोहब्बत करना भी मायने रखता है .तभी अमृता लिख पायी ....


सजन ,आज बातें कर ले ....

तेरे दिल के बागों में
हरी चाह की पट्टी जैसी
जो बात जब भी उगी ,
तुने वही बात तोड़ ली

हर इक नाजुक बात छिपा ली ,
हर इक पत्ती सूखने डाल दी
मिटटी के इस चूल्हे में से
हम कोई चिंगारी ढूंढ़ लेंगे
एक दो फूंक मार लेंगे
बुझती लकड़ी फ़िर से बाल लेंगे

मिटटी के इस चूल्हे में
इश्क की एक एक आँच बोल उठेगी
मेरे जिस्म की हंडिया में
दिल का पानी खौल उठेगा

सजन .आज खोल पोटली ....

हरी चाय की पत्ती की तरह
वही तोड़ गंवाई बातें
वहीँ संभाल सुखायी बातें
इस पानी में डाल कर देख ,
इसका रंग बदल कर देख

गर्म घूंट इक तुम भी पीना ,
गर्म घूंट इक मैं भी पी लूँ
उम्र का ग्रीष्म हमने बीता दिया ,
उम्र का शिशिर नही बीतता

सजन ,आज बातें कर लें .....
.. ,

Tuesday, September 2, 2008

कब और किस दिशा में कुछ सामने आएगा ,कोई सवाल पूछेगा ,यह रहस्य पकड़ में नही आता ..एक बार मोहब्बत और दर्द के सारे एहसास ,सघन हो कर आग की तरह लपट से पास आए और इश्क का एक आकार ले लिया ..
उसने पूछा .......कैसी हो ? ज़िन्दगी के दिन कैसे गुजरते रहे ..?

जवाब दिया .....तेरे कुछ सपने थे .मैं उनके हाथों पर मेहन्दी रचाती रही .

उसने पूछा.... ..लेकिन यह आँखों में पानी क्यूँ है ?

कहा ......यह आंसू नही सितारे हैं ...इनसे तेरी जुल्फे सजाती रही ..

उसने पूछा ... .इस आग को कैसे संभाल कर रखा ?

जवाब दिया.... काया की डलिया में छिपाती रही

उसने पूछा -....बरस कैसे गुजारे ?

कहा ....तेरे शौक की खातिर काँटों का वेश पहनती रही

उसने पूछा ....काँटों के जख्म किस तरह से झेले ?

कहा ....दिल के खून में शगुन के सालू रंगती रही

उसने कहा.... और क्या करती रही ?

कहा ....कुछ नही तेरे शौक की सुराही से दुखों की शराब पीती रही

उसने पूछा........इस उम्र का क्या किया ?

कहा .....कुछ नही तेरे नाम पर कुर्बान कर दी .[यह अमृता का साक्षात्कार है जो एक नज्म की सूरत में है ..]

अमृता ने एक जगह लिखा है कि वह इतिहास पढ़ती नही .इतिहास रचती है ..और यह भी अमृता जी का कहना है वह एक अनसुलगाई सिगरेट हैं ..जिसे साहिर के प्यार ने सुलगाया और इमरोज़ के प्यार ने इसको सुलगाये रखा ..कभी बुझने नही दिया ..अमृता का साहिर से मिलन कविता और गीत का मिलना था तो अमृता का इमरोज़ से मिलना शब्दों और रंगों का सुंदर संगम ....हसरत के धागे जोड़ कर वह एक ओढ़नी बुनती रहीं और विरह की हिचकी में भी शहनाई को सुनती रहीं ..

धरती पर बहती गंगा का रिश्ता पातालगंगा से होता है .और एक रिश्ता आकाशगंगा से .....जो दर्द होंठों पर नहीं आया वह पातालगंगा का पानी बन गया उसी का नाम साहिर है ..और जो इबादत बन कर होंठो पर आया वह आकाश गंगा का पानी बन गया उसी का नाम इमरोज़ है ...

साहिर की मोहब्बत में वही लिखती रही ..

फ़िर तुम्हे याद किया
हमने आग को चूम लिया
इश्क एक जहर का प्याला है
इक घूँट हमने फ़िर से मांग लिया ..

और इमरोज़ की सूरत में जब अपने एहसास की इन्तहा देखी ,एक दीवानगी का आलम था तब लिखा ..

कलम से आज गीतों का काफिया तोड़ दिया
मेरा इश्क यह किस मुकाम पर आया है
उठ ! अपनी गागर से पानी की कटोरी दे दे
मैं राह के हादसे ,अपने बदन से धो लूंगी.....

यह राह के हादसे ,आकाशगंगा का पानी ही धो सकता है .एक दर्द ने मन की धरती की जरखेज किया था .और एक दीवानगी उसका बीज बन गई ,मन की हरियाली बन गई ..वह मोहब्बत के रेगिस्तान से भी गुजरी है और समाज और महजब के रेगिस्तान से भी ..वक्त वक्त पर उनको कई फतवे मिलते रहे ..और वह लिखती रही ..

बादलों के महल में मेरा सूरज सो रहा --
जहाँ कोई दरवाजा नही ,कोई खिड़की नही
कोई सीढ़ी नही --
और सदियों के हाथों ने जो पगडण्डी बनायी है
वह मेरे चिंतन के लिए बहुत संकरी है .....