अरी मेरी ज़िन्दगी !
तू किसके लिए कातती है मोह की पूनी !
मोह के तार में अम्बर न लपेटा जाता
सूरज न बाँधा जाता
इक सच सी वस्तु
इसका चोला न काता जाता ..""
और तृप्ता ने कोख के आगे
माथा नवाया
मैंने सपनों का मर्म पाया
यह न अपना न पराया
कोई अजल का जोगी
जैसे मौज में आया
यूँ ही पल भर बैठा ---
सेंके कोख की धूनी...
अरी मेरी ज़िन्दगी !
तू किसके लिए कातती है ---
मोह की पूनी ...
धरती का यह दर्द कोई औरत ही लिख सकती है ..जब यह अमृता ने लिखा तो कहा गया ....अमृता ने इस दर्द को बखूबी लिखा पर उस पर तोहमते लगाने वालों ने उस पर सिर्फ़ इसलिए तोहमते लगायीं कि वह एक औरत थी ..एक बार किसी अखबार वाले ने एक बार उनसे सवाल किया कि इस जन्म में कौन सी ऐसी गलती की है उन्होंने जो वह अगले जन्म में भी करना चाहेंगी ...अमृता ने जवाब दिया कई बार ऐसा एहसास मुझे करवाया गया कि औरत होना ही मेरी गलती है ..और यदि यह गलती है तो मैं यही गलती अगली बार भी चाहूंगी .पर इस शर्त पर कि उस जन्म में भी मेरे हाथ में खुदा को कलम देनी होगी ...और यह बताना होगा कि कलम की रचना तो कलम की होती है, उस में या फर्क कहाँ से आ गया कि लिखने वाली कलम मर्द के हाथ में है या औरत के हाथ में ..
कितना सच कहा अमृता जी ने। पर यह बात शायद आसानी से अभी भी लोगो कि समझ में नही आती है ..औरत मर्द के भेद के साथ साथ कलम का भी लिंग भेद निरंतर जारी है ....
खैर पिछली कड़ी में था कि इमरोज़ के साथ उनका मिलना कोई जन्मों का ही खेल था ..उन्ही के लिखे एक वाकये में है कि एक बार इन्हे पता चला कि कोई ""रामभद्र दास ""दिल्ली में आए हुए हैं जो पिछले जन्म की बातें भी बताते हैं ..वह देख नही सकते हैं ....पर बताते सच है ...जब यह सुन कर यह उनसे मिलने गयीं तो उन्होंने इनके सिर पर हाथ रखा और कहा कि बहुत दिनों बाद मिलने आई हो और अपने आश्रम की बालिका को पानी लाने को बोला ...जब अमृता ने पानी का गिलास में हाथ में लिया तो बोले कि ---तुम बहुत बड़ी हो गई हो गई जब मैं पहले तुमसे मिला था तुम कोई नौ या दस बरस की थी ,उस जन्म में भी मेरी आँखे नही थी पर मैंने तब भी तुम्हे देखा था तुम उस वक्त नीले रंग की ओढ़नी ओढे हुए थी ...मैंने तुमसे पानी माँगा तो तुमने कहा था-----जाओ बाबा आगे जाओ ..यहाँ पानी नही है ...तब मैंने तुम्हे श्राप दिया ...कि जा तू भी प्यासी रह !!
यह कह कर वह हंसने लगे ..और कहा कि जब कोई साधू ऐसा श्राप देता है तो वह बहुत गहरे अर्थ लिए होता है। ....उस का मतलब था कि तुम्हे जिज्ञासा की प्यास लग जाए ...इस लिए मैंने आज तुम्हे आते ही पानी पिलाया कि शायद तुम्हे कुछ याद आ जाए ।
पर अमृता को कुछ याद नही आया ..उन्होंने पूछा कि कितने बरस पहले की बात है ?
वह बोले-- पाँच सौ दस साल पहले की ...
अमृता ने जिज्ञासा से पूछा अच्छा ..कौन से आश्रम की बात है यह ?
ब्रजमंडल में एक गांव था ''रसावली ""अब वह नहीं है .पर तब था और कभी तुम अरुणाचल के आश्रम में थीं ...
फ़िर पूछा कि साथ कौन है तुम्हारे ? इमरोज़ आगे आए .उन्होंने उनके सिर को टटोलते हुए कहा - क्या नाम है तुम्हारा ?
इमरोज ने जब अपना नाम बताया तो पूछने लगे कि किस धर्म में आस्था रखते हो तुम?
इमरोज़ ने कहा मैं सिर्फ़ कर्म में आस्था रखता हूँ ....हिंदू -मुस्लिम किसी धर्म में मेरी कोई आस्था नही है .
वह बोले कि किसी जन्म में तुम्हारा नाम नंदन था ,किसी में अरविन्द , तुम पत्थर शिलाओं पर चित्र बनाते थे।
उनेक यह लफ्ज़ सुन कर अमृता चौंक गई ...क्यूंकि उन्होंने कई बार यह सपना देखा था ..कि वह किसी जन्म में जहर पी के मरी थी और उनका चित्र इमरोज़ ने बनाया था .और उस महल के उतराधिकारी के रूप में उन्होंने साहिर को देखा था ..अजब बात है यह सपनों कि उस में इंसान किरदार भी होता है और दर्शक भी ...
अमृता ने इस बारे में कुछ और जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि बाद में आना सब बता दूंगा ...फ़िर जब वह उनसे मिलने गई तो साथ में बादाम का शरबत ले कर गई और यह कह कर उन्हें दिया कि कुछ मीठा पानी लायी हूँ बहुत पुराना पानी का कर्ज़ उतारने के लिए ...
वह हंस पड़े और बोले कि इमरोज़ को साथ लायी हो क्या ..? अमृता ने कहा हाँ ..
"'तुम दोनों ने तो मिलना ही था .तुम्हारा और उसका आत्मा का संग है ...अच्छा हुआ तुम दोनों मिल गए इसके बिना तुम दोनों की मुक्ति नही थी ...""
पढ़ कर लगा ..कि यह सब शायद सच ही होता है ...क्यूँ आख़िर किसी ने मिलना होता है ..और वह मिलना फ़िर कैसे ज़िन्दगी बन जाता है ...कि उसके बिना जीना मुश्किल सा लगने लगता है ...
अमृता के जीवन में जो भी लम्हा गुजरा वह उनके लिखे में शामिल हो गया ..कभी कविता बन कर ..कभी कोई कहानी बन कर ...इमरोज़ से मिलना और दोस्ती का प्यार में बदलना ..हर लम्हा उनकी किसी न किसी वाक़ये में लिखा गया है ..यह वाकया उन्होंने . .. .. "३६ चक "में लिखा ..इन किरदारों में अमृता और इमरोज़ जैसे जीवंतहो उठे .....
जब इमरोज़ उनकी ज़िन्दगी में सिर्फ़ अभी दोस्त बन कर आए थे ..तब एक बार और कई लोग शिमला गए थे, रास्ते में चंडीगढ़ के पिंजौर में रात बितायी। वहां से सुबह जब चलना शुरू किया तो एक रास्ते पर एक लम्बी पगडण्डी दिखायी दी ...किसी ने कहा कि यहीं आगे एक नदी आएगी जिसका नाम कौशल्या नदी है उसका पानी बहुत शफाक है ....और जब वो जगह सबने देखी तो देखते रह गए ..... उसका पानी और चमकते सूरज में और भी चमक रहा था ...सब ने नहाने का प्रोग्राम बना लिया ...और जिस जगह इमरोज़ नहा रहे थे उसी सीध में थोड़ा नीचे पानी में उतर कर अमृता भी नहाने लगीं ..वह पानी इमरोज़ को छू कर, परस कर आ रहा था ..वह दूर से देख लेती और अगर इमरोज़ ने उस जगह से थोडी भी दूरी बना ली होती, दायें या बाएँ वह भी उतने ही दूर उसी की सीध में हो लेती ..
यूँ किसी के बदन का पानी परसना क्या होता है..वही जानते हैं जो हवाओं को भी दिशा बदलने को कहते हैं ""बह री हवा पर ..स्वार्थ से भरी हुई ,तू जाना तख्त हजारे ""
और हवाएं भी दिशा बदल कर चल देती है ..
हर साँस इसके होंठों का आज बैचेन है
पर हर मोहब्बत गुजरती जिस राह से
वह शायद उसी राह से हो कर आई है ...
और इस तरह कई बेरागी आत्माएं कागों के हाथो अपना संदेशा भेजती रही है सदियों से ..वह सारी आत्माएं अपनी सी लगती है ..कुछ कहती हुई ..हवा के रुख को बदलती हुई ...... .. ...""
तू किसके लिए कातती है मोह की पूनी !
मोह के तार में अम्बर न लपेटा जाता
सूरज न बाँधा जाता
इक सच सी वस्तु
इसका चोला न काता जाता ..""
और तृप्ता ने कोख के आगे
माथा नवाया
मैंने सपनों का मर्म पाया
यह न अपना न पराया
कोई अजल का जोगी
जैसे मौज में आया
यूँ ही पल भर बैठा ---
सेंके कोख की धूनी...
अरी मेरी ज़िन्दगी !
तू किसके लिए कातती है ---
मोह की पूनी ...
धरती का यह दर्द कोई औरत ही लिख सकती है ..जब यह अमृता ने लिखा तो कहा गया ....अमृता ने इस दर्द को बखूबी लिखा पर उस पर तोहमते लगाने वालों ने उस पर सिर्फ़ इसलिए तोहमते लगायीं कि वह एक औरत थी ..एक बार किसी अखबार वाले ने एक बार उनसे सवाल किया कि इस जन्म में कौन सी ऐसी गलती की है उन्होंने जो वह अगले जन्म में भी करना चाहेंगी ...अमृता ने जवाब दिया कई बार ऐसा एहसास मुझे करवाया गया कि औरत होना ही मेरी गलती है ..और यदि यह गलती है तो मैं यही गलती अगली बार भी चाहूंगी .पर इस शर्त पर कि उस जन्म में भी मेरे हाथ में खुदा को कलम देनी होगी ...और यह बताना होगा कि कलम की रचना तो कलम की होती है, उस में या फर्क कहाँ से आ गया कि लिखने वाली कलम मर्द के हाथ में है या औरत के हाथ में ..
कितना सच कहा अमृता जी ने। पर यह बात शायद आसानी से अभी भी लोगो कि समझ में नही आती है ..औरत मर्द के भेद के साथ साथ कलम का भी लिंग भेद निरंतर जारी है ....
खैर पिछली कड़ी में था कि इमरोज़ के साथ उनका मिलना कोई जन्मों का ही खेल था ..उन्ही के लिखे एक वाकये में है कि एक बार इन्हे पता चला कि कोई ""रामभद्र दास ""दिल्ली में आए हुए हैं जो पिछले जन्म की बातें भी बताते हैं ..वह देख नही सकते हैं ....पर बताते सच है ...जब यह सुन कर यह उनसे मिलने गयीं तो उन्होंने इनके सिर पर हाथ रखा और कहा कि बहुत दिनों बाद मिलने आई हो और अपने आश्रम की बालिका को पानी लाने को बोला ...जब अमृता ने पानी का गिलास में हाथ में लिया तो बोले कि ---तुम बहुत बड़ी हो गई हो गई जब मैं पहले तुमसे मिला था तुम कोई नौ या दस बरस की थी ,उस जन्म में भी मेरी आँखे नही थी पर मैंने तब भी तुम्हे देखा था तुम उस वक्त नीले रंग की ओढ़नी ओढे हुए थी ...मैंने तुमसे पानी माँगा तो तुमने कहा था-----जाओ बाबा आगे जाओ ..यहाँ पानी नही है ...तब मैंने तुम्हे श्राप दिया ...कि जा तू भी प्यासी रह !!
यह कह कर वह हंसने लगे ..और कहा कि जब कोई साधू ऐसा श्राप देता है तो वह बहुत गहरे अर्थ लिए होता है। ....उस का मतलब था कि तुम्हे जिज्ञासा की प्यास लग जाए ...इस लिए मैंने आज तुम्हे आते ही पानी पिलाया कि शायद तुम्हे कुछ याद आ जाए ।
पर अमृता को कुछ याद नही आया ..उन्होंने पूछा कि कितने बरस पहले की बात है ?
वह बोले-- पाँच सौ दस साल पहले की ...
अमृता ने जिज्ञासा से पूछा अच्छा ..कौन से आश्रम की बात है यह ?
ब्रजमंडल में एक गांव था ''रसावली ""अब वह नहीं है .पर तब था और कभी तुम अरुणाचल के आश्रम में थीं ...
फ़िर पूछा कि साथ कौन है तुम्हारे ? इमरोज़ आगे आए .उन्होंने उनके सिर को टटोलते हुए कहा - क्या नाम है तुम्हारा ?
इमरोज ने जब अपना नाम बताया तो पूछने लगे कि किस धर्म में आस्था रखते हो तुम?
इमरोज़ ने कहा मैं सिर्फ़ कर्म में आस्था रखता हूँ ....हिंदू -मुस्लिम किसी धर्म में मेरी कोई आस्था नही है .
वह बोले कि किसी जन्म में तुम्हारा नाम नंदन था ,किसी में अरविन्द , तुम पत्थर शिलाओं पर चित्र बनाते थे।
उनेक यह लफ्ज़ सुन कर अमृता चौंक गई ...क्यूंकि उन्होंने कई बार यह सपना देखा था ..कि वह किसी जन्म में जहर पी के मरी थी और उनका चित्र इमरोज़ ने बनाया था .और उस महल के उतराधिकारी के रूप में उन्होंने साहिर को देखा था ..अजब बात है यह सपनों कि उस में इंसान किरदार भी होता है और दर्शक भी ...
अमृता ने इस बारे में कुछ और जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि बाद में आना सब बता दूंगा ...फ़िर जब वह उनसे मिलने गई तो साथ में बादाम का शरबत ले कर गई और यह कह कर उन्हें दिया कि कुछ मीठा पानी लायी हूँ बहुत पुराना पानी का कर्ज़ उतारने के लिए ...
वह हंस पड़े और बोले कि इमरोज़ को साथ लायी हो क्या ..? अमृता ने कहा हाँ ..
"'तुम दोनों ने तो मिलना ही था .तुम्हारा और उसका आत्मा का संग है ...अच्छा हुआ तुम दोनों मिल गए इसके बिना तुम दोनों की मुक्ति नही थी ...""
पढ़ कर लगा ..कि यह सब शायद सच ही होता है ...क्यूँ आख़िर किसी ने मिलना होता है ..और वह मिलना फ़िर कैसे ज़िन्दगी बन जाता है ...कि उसके बिना जीना मुश्किल सा लगने लगता है ...
अमृता के जीवन में जो भी लम्हा गुजरा वह उनके लिखे में शामिल हो गया ..कभी कविता बन कर ..कभी कोई कहानी बन कर ...इमरोज़ से मिलना और दोस्ती का प्यार में बदलना ..हर लम्हा उनकी किसी न किसी वाक़ये में लिखा गया है ..यह वाकया उन्होंने . .. .. "३६ चक "में लिखा ..इन किरदारों में अमृता और इमरोज़ जैसे जीवंतहो उठे .....
जब इमरोज़ उनकी ज़िन्दगी में सिर्फ़ अभी दोस्त बन कर आए थे ..तब एक बार और कई लोग शिमला गए थे, रास्ते में चंडीगढ़ के पिंजौर में रात बितायी। वहां से सुबह जब चलना शुरू किया तो एक रास्ते पर एक लम्बी पगडण्डी दिखायी दी ...किसी ने कहा कि यहीं आगे एक नदी आएगी जिसका नाम कौशल्या नदी है उसका पानी बहुत शफाक है ....और जब वो जगह सबने देखी तो देखते रह गए ..... उसका पानी और चमकते सूरज में और भी चमक रहा था ...सब ने नहाने का प्रोग्राम बना लिया ...और जिस जगह इमरोज़ नहा रहे थे उसी सीध में थोड़ा नीचे पानी में उतर कर अमृता भी नहाने लगीं ..वह पानी इमरोज़ को छू कर, परस कर आ रहा था ..वह दूर से देख लेती और अगर इमरोज़ ने उस जगह से थोडी भी दूरी बना ली होती, दायें या बाएँ वह भी उतने ही दूर उसी की सीध में हो लेती ..
यूँ किसी के बदन का पानी परसना क्या होता है..वही जानते हैं जो हवाओं को भी दिशा बदलने को कहते हैं ""बह री हवा पर ..स्वार्थ से भरी हुई ,तू जाना तख्त हजारे ""
और हवाएं भी दिशा बदल कर चल देती है ..
हर साँस इसके होंठों का आज बैचेन है
पर हर मोहब्बत गुजरती जिस राह से
वह शायद उसी राह से हो कर आई है ...
और इस तरह कई बेरागी आत्माएं कागों के हाथो अपना संदेशा भेजती रही है सदियों से ..वह सारी आत्माएं अपनी सी लगती है ..कुछ कहती हुई ..हवा के रुख को बदलती हुई ...... .. ...""