Thursday, July 16, 2009

अमृता प्रीतम जी ने अनेक कहानियाँ लिखी है इन कहानियों में प्रतिबिम्बित हैं स्त्री पुरुष योग वियोग की मर्म कथा और परिवार ,समाज से दुखते नारी के दर्द के बोलते लफ्ज़ हैं ...कई कहानियाँ अपनी अमिट छाप दिल में छोड़ जाती है .....कुछ कहानियाँ अमृता जी ने खुद ही अपने लिखे से अलग संग्रह की थी और वह तो जैसे एक अमृत कलश बन गयी ..उन्हीं कहानियों में से एक कहानी है गुलियाना का एक ख़त ....जिसके नाम का अर्थ है फूलों सी औरत ......पर वह लोहे के पैरों से लगातार दो साल चल कर युगोस्लाविया से चल कर अमृता तक आ पहुंची |

अमृता ने मुस्करा कर उसका स्वागत किया और पूछा ---कि इतनी छोटी उम्र में क्यों इस तरह से देश देश भटक रही हो और क्या खोज रही हो ?
उसने मुस्करा के बहुत विश्वास और आँखों में चमक भर कर जवाब दिया कि कुछ लिखना चाहती हूँ मगर लिखने से पहले दुनिया देखना चाहती हूँ ..बहुत से देश घूम चुकीं हूँ ..जैसे फ्रांस ,इटली ,जापान आदि पर बहुत से घूमने बाकी हैं ...

अच्छा बहुत अच्छा अमृता ने कहा ..पर तुम्हारे देश में कोई तुम्हारी राह देखता होगा न ?

हाँ मेरी माँ मेरी राह देख रही है ..वह हर एक ख़त को मेरा आखिरी ख़त समझ लेती है उसके बाद दूसरे ख़त आने तक उसको यकीन नहीं आता कि मेरा कोई और ख़त आएगा ...

अच्छा ऐसा क्यों ? अमृता ने पूछा

वह सोचती है कि मैं यूँ चलते चलते मर जाउंगी एक दिन ..इस लिए मैं उसको बहुत लम्बे लम्बे ख़त लिखती हूँ ..वह पढ़ नहीं सकती पर वह ख़त को किसी न किसी तरह किसी से पढ़वा लेती है और इस तरह मेरी आँखों से सारी दुनिया देखती रहती है ...

अच्छा गुलियाना तुमने अब तक जितनी दुनिया देखी है वह तुम्हे कैसी लगी ? क्या कहीं किसी ने तुम्हारा हाथ थाम कर कहा नहीं कि बस यही रुक जाओ ..आगे मत जाओ ...
हाँ मैं चाहती थी कि कोई मुझे बाँध ले रोक ले .........मुझे थाम ले ...पर ..ज़िन्दगी कभी किसी के हाथ आई है क्या ? मैं शायद ज़िन्दगी से कुछ अधिक मांगती हूँ ..मेरा देश गुलाम था जब मैं इसकी लड़ाई में शामिल हो गयी इसको आज़ाद करवाने के लिए ...
कब ..?
१९४१ में हमने इस से बगावत करनी शुरू की ..बहुत छोटी थी तब मैं ...
वह दिन तो बहुत मुश्किल रहे होंगे न..?
हाँ चार साल बहुत मुश्किल थे ..हम छिप छिप कर कई महीने यूँ ही काट देते थे ...कई बार दुश्मन हमारा पता पा जाते थे ..एक रात तो हम ६० मील तक चले थे ...
६० मील ? तुम्हारे नाजुक बदन में इतनी ताक़त थी क्या ?
यह तो एक रात की बात है ...तब हम तीन सौ साथी रहे होंगे ..पर सारी उम्र चलने के लिए और कितनी जान चाहिए ..और वह भी अकेले ..
अमृता ने लम्बी सांस भर कर कहा .."गुलियाना ..!!"
चलो कोई अच्छी बात करते हैं ...मुझे कोई अपना गीत सुनाओ
तुमने कभी कोई गीत लिखा है गुलियाना ?
पहले लिखा करती थी ...फिर यूँ महसूस हुआ कि मैं गीत नहीं लिख सकती शायद अब लिखूंगी
कैसे गीत लिखोंगी तुम ?
प्यार के गीत ?
प्यार के गीत में लिखना चाहती थी पर शायद अब नहीं लिख पाउंगी .हो सकता है वह प्यार के ही गीत हो पर उस प्यार के नहीं जो एक फूल की तरह गमले में उगते हैं ..मैं उस प्यार के गीत लिखूंगी जो गमले में नहीं उगता जो सिर्फ धरती में उग सकता है ...
उसकी बात सुन कर अमृता चौंक गयी ..उन्हें ऐसा लगा कि जैसे इस धरती को गुलियाना का बहुत सा कर्जा देना है उसके दिल और और उसके हुस्न का कर्जा बहुत सा कर्जा ..पर धरती उसका यह कर्जा कभी नहीं चुका पाएगी ..

गुलियाना ने कहा मैंने कहा था न कि मैं ज़िन्दगी से कुछ अधिक मांग लेती हूँ ..

यह तो जरुरत से अधिक नहीं है गुलियाना सिर्फ उतना ही है जितना तुम्हारे दिल में समा सके ...
पर दिल के बराबर कुछ नहीं आता ..हमारे देश का एक लोक गीत है ..
तेरी डोली कहारों ने उठायी
खाट को कन्धा कौन देगा
मेरी
खाट को कन्धा कौन दे ..
सुन कर अमृता ने पूछा क्या तुमने कभी किसी से प्यार किया है गुलियाना ?
कुछ किया जरुर था पर वह प्यार नहीं था .अगर प्यार होता तो ज़िन्दगी से लम्बा होता साथ ही उसको भी मेरी उतनी ही जरूरत होती जितनी मुझे उसको जरूरत थी ..मैंने विवाह भी किए था पर वह विवाह उस गमले के फूलकी तरह था जिस से मेरे मन पर कभी फूल नहीं उगा
पर यह धरती ?क्या तुम्हे इस धरती से डर लगता है ?
धरती तो जरखेज है गुलियाना इस से कैसे डर लगेगा ? अमृता ने कहा
मुझे मालूम है तुम्हे किस से डर लगता है ..क्यों कि मुझे भी उस से ही डर लगता है ...इसी डर से रुष्ट हो कर तो मैं इस दुनिया में निकल पड़ी हूँ ...आखिर एक फूल को इस धरती पर उगने का हक क्यों नहीं दिया जाता जिस फूल का नाम औरत हो ...मैंने उन लोगों से हठ ठाना हुआ है जो किसी फूल को धरती में उगने नहीं देते हैं खासकर उस फूल को जिसका नाम औरत हो ...यह सभ्यता का युग नहीं है सभ्यता का युग तब आएगा जब औरत की मर्ज़ी के बिना उसके जिस्म को हाथ नहीं लगाया जाएगा

सही कहा तुमने गुलियाना ..वैसे अपने गुजारे के लिए तुम क्या करती हो ?
मैं छोटे छोटे सफरनामे लिखती हूँ उनको छपने के लिए अपने देश भेज देती हूँ ..कुछ पैसे मिल जाते हैं कुछ अनुवाद कर देती हूँ मुझे फ्रेंच अच्छी तरह से आती है मैं फ्रेंच कि पुस्तकों का नुवाद अपनी देश की भाषा में करती हूँ ..वापस जा कर शायद मैं बड़ा सफ़र नामा लिख सकूँ शायद वो गीत भी जो सोते हुए मेरे दिल में मंडराने लगता है पर जागने पर नजर नहीं आता ..
अच्छा मुझे वह गीत सुनाओ ..
वह गीत को तो मैं खोज रही हूँ ...बिना बात के ही उस में दो पंक्तियाँ जुडी है इस से आगे का गीत बनता ही नहीं है कोई बात होगी तो गीत आगे बनेगा न ..और एक टूटे हुए गीतकी तरह वह अमृता की तरफ देखने लगी ..और उनको अपने अधूरे गीत की दो कडियाँ सुनाई ..

आज किसने आसमान का जादू तोडा ?
आज किसने तारों का गुच्छा उतारा ?
और चाबियों को गुच्छे की तरह बाँधा ,
मेरी कमर से चाबियों को बाँधा ?

और यह कह कर गुलियाना बोली मुझे यहाँ कमर पर चाबियों कभी तरह कई तरह के तार बंधे महसूस होते हैं ....
और अमृता सोचने लगी ..कि इसधरती पर वे घर कब बनेंगे जिनके दरवाजे तारों की चाबियों से खुलते होंगे ?

तुम क्या सोच रही हो
अमृता ने कहा मैं सोचती थी कि की क्या तुम्हारे देश में भी औरते अपनी कमर में चाबियों के गुच्छे बंधा करती है ?
हाँ दादी -नानी बाँधा करती थी ..
चाबियों से घर का ख्याल आता है और घर से आदिम सपने का ...
देखो ना इसी सपने को खोजती खोजती मैं कहाँ से कहाँ पहुँच गयी हूँ ...अब मैं अपने गीतों को सपनो की अमानत दे जाउंगी .
धरती का कर्ज़ तुम्हारे सिर पर और हो जायेगा ? अमृता ने सुन कर कहा
कर्ज़ की बात सुन कर गुलियाना हंसने लगी ..और अमृता सोचने लगी कि यदि गुलियाना का हुलिया कोई अपने कागजों में दर्ज़ करे तो वह इस तरह सेलिखेगा

नाम ..गुलियाना सायेनोबिया
बाप का नाम ...निकोलोयियन सायोनोबिया
जन्म शहर .मेसेडोनिया
कद ..पाँच फुट तीन इंच
बालों का रंग ......भूरा
आँखों का रंग ....स्लेटी
पहचान का चिन्ह
उसके निचले होंठो पर एक तिल है और बायीं और पलक पर एक जख्म का निशान है
और उस से बात करते हुए अमृता को महसूस हुआ कि किसी दिलवाले इंसान ने अगर अपनी ज़िन्दगी के कागजों में गुलियाना का हुलिया दर्ज़ किया तो वह इस तरह से लिखेगा

नाम _ फूलों सी महक सी एक औरत
बाप का नाम _ इंसान का एक सपना
जन्म शहर _ धरती की बड़ी जरखेज मिटटी
कद _ उसका माथा तारों से छूता है |
बालों का रंग _ धरती के रंग जैसा
आँखों का रंग _ आसमान के रंग जैसा
पहचान का निशान _ उसके होंठो पर ज़िन्दगी की प्यास है और उसके रोम रोम पर सपनों का बौर पड़ा है |

कितनी हैरानी की बात थी कि ज़िन्दगी ने गुलियाना को जन्म दिया था पर बाद में उसकी खबर लेना भूल गयी ..पर अमृता हैरान नहीं थी क्यों कि यह ज़िन्दगी कि पुरानी आदत है बिसार देने की ..इस लिए उन्होंने हँस कर गुलियाना से कहा कि हमारे देश में एक बूटी होती है जिसे ब्राम्ही बूटी कहते हैं कहते हैं यदि इसको पीस कर पी ले तो स्मरण शक्ति वापस आ जाती है ..चल ज़िन्दगी को वही पिला देते हैं ताकि उसको हम याद आ जाएँ ......

यह सुन कर गुलियाना हंस पड़ी और बोली .कि जब भी तुम कोई प्यार का गीत लिखती हो ..या कोई और भी तो वहजंगल में से वही बूटी ही तोड़ रहा होता है ...शायद कभी वह दिन आये जब हम ज़िन्दगी को यह बूटीपिला दे
गुलियाना तो यह कह कर चली गयी ..पर उसके बाद जब भी अमृता कोई गीत लिखती उन्हें उसको बात याद आ जाती कि हम सब मन के जंगल से ब्राम्ही बूटियाँ बीन रहे हैं ..हम शायद किसी दिन ज़िन्दगी को इतनी बूटीपिलादेंगे कि उसको हम याद आ जाएँ
पांच महीने होने को आये गुलियाना का कोई ख़त नहीं आया और अब कई महीने बीत जायेंगे उसका कोई ख़त नहीं आएगा ..क्यों कि आज के अखबार में खबर छपी है ..कि दो देशों कि सीमा पर कुछ फोजियों ने एक परदेशी औरत को खेतों में घेर लिया ..उसको बहुत चिंता जनक हालत में अस्पताल पहुंचाया गया है वहां उसकी मौत हो गयी ...उसका पास पोर्ट और उसके कागज जली हुई हालत में मिले हैं .औरत का कद पांच फुट तीन इंच है ..उसके बालों का रंग भूरा और आँखों का रंग स्लेटी है ..उसके निचले होंठो पर एक तिल है ..और बायीं पलक के नीचे एक जख्म का निशान है
यह अखबार की खबर नहीं अमृता सोचती है यह तो उसका एक ख़त है ..जो ज़िन्दगी के घर से जाते हुए उसने ज़िन्दगी को लिखा है और उसने ख़त में ज़िन्दगी से सबसे पहले यह सवाल पूछा है ...कि आखिर ...इस धरती पर उस फूल को कब आने का अधिकार क्यों नहीं दिया गया जिसका नाम औरत है ? और साथ ही पूछा है कि वह सभ्यता का युग कब आएगा जब औरत की मर्ज़ी के बिना कोई उसको हाथ नहीं लगा सकेगा ? और तीसरा सवाल यह पूछा है कि जिस घर के दरवाज़े खोलने के लिए उसने अपनी कमर में तारों के गुच्छे को चाबियों को गुच्छे की तरहबांधा था उस घर का दरवाजा आखिर कहाँ है ?

अमृता की यह कहानी आज भी उतनी ही सच्ची बात कहती है ...जो ज़िन्दगी से सवाल आज भी यही करती नजर आती है ...और यह सवाल अक्सर बिना जवाब के हैं ...अमृता को अपनी पसंद कहानियों में से यह एक उनकी पसंदकी कहानी है आगे भी इसी तरह इसका सिलसिला जारी रहेगा ...यदि किसी के पास उनके इन सवालों के जवाब हो तो जरुर दे ...

Sunday, July 5, 2009

अमृता प्रीतम अपने सपनों पर बहुत विश्वास करती थी .क्यों कि उनके देखे सपने उन्हें कोई न कोई अर्थ दे जाते थे | उनके सपनो की व्यख्या समय समय पर ज्योतिष आचार्य श्री राज जी ने अमृता से मिलने पर की थी |उनके इन्हों सपनो का लेखा जोखा उनकी किताब सितारों के संकेत में लिखा गया है उन्हीं सपनों में एक सपना का विश्लेष्ण उनकी और साहिर के बारे में भी है जब राज जी ने कहा कि आपने आपके सितारों की भाषा देख कर आपका और साहिर साहब के आत्मिक सम्बन्ध देख कर बता सकता हूँ ..अमृता ने कोई जवाब नहीं दिया पर एक नज्म ककी एक पंक्ति उनके बंद होठों में आ गयी ..मान सुच्चे इश्क दा है ,हुनर दा दावा नहीं ....राज जी ने आगे बताया कि आपका जन्म भी कर्क लगन का है और साहिर साहब का भी जन्म कर्क लग्न का है इस लिए आपके आत्म स्थान का मालिक भी मंगल है और साहिर जी का भी |यही मंगल ही कारण बना आपके और उनके आत्मिक सम्बन्ध का और मंगल ही वह कारण बना जिसने आपके सम्बन्ध को कोई सूरत आख्तियार नहीं करने दी....
अमृता ने पूछा वह किस तरह ..?
तब राज जी ने बताया कि आपके आतम तत्व के पंचम स्थान का स्वामी हो कर वह मंगल आपके लग्न में चला गया और वहां कर्क राशि के कारण वह नीच का मंगल हो गया और साहिर साहब का मंगल नवम स्थान पर जाने से वह परमात्मा स्थान पर गया परन्तु उसने अपने पृथ्वी तत्व के भार से उस परमात्म तत्व की सूक्ष्मता को दबा दिया इसी मंगल ने आपकी आत्मिक शक्ति भी कमजोर कर दी और आपका मिलना न हो पाया ..
अमृता को महसूस हुआ उस वक़्त जैसे उनकी एक नज्म की सतर वर्षों के माथे पर अंकित हो गयी थी ..

उम्र की एक रात थी ,अरमान रह गए जागते

किस्मत को नींद आ गयी ...
उन्होंने राज जी से कुछ नहीं कहा पर महसूस किया कि शायद यही मंगल ही किस्मत कि आँखों में भरी हुई नींद थी ..
उन्होंने सिर्फ सपने देखे और हर सपने की ताबीर सपने में हुई और उसकी बात उनकी नज्मों में ..

एह रात तेरे ख्याल विच गुजर के

मैं हुनें हुने जागी हाँ सते बहिश्त उसार के ..

फिर अमृता ने पूछा उनसे कि एक रहस्य की बात बताइए मैंने तो अपना पूर्व जन्म देख लिया साथ में साहिर का भी ..पर साहिर क्यों नहीं देख पाए यह सब ...
राज जीने कहा साहिर साहब न देख पाते यह सब ..क्यों कि उनके ब्रहस्पति पर न आत्म स्थान की दृष्टि है न परमात्मा स्थान पर ..और दूसरी बात कि आपका राहू पंचम में है ..पंचम स्थान पूर्वजन्म का होता है .यह छाया गृह मनुष्य की यादों को पूर्व जन्म से जोड़ देता है .परन्तु साहिर साहब का राहू चौथे स्थान पर है पंचम के व्यय में ..इस लिए पूर्व जन्म की किसी याद का चमत्कार उनके साथ हो नहीं सकता था ..
बस इस जन्म में आपकी मुलाक़ात का संयोग होना जरुरी था और फिर विरोध होना भी ...
अमृता को याद आया कि साहिर से पहली मुलाकातों के समय में उन्होंने एक नज्म लिखी थी

इंज किसे न बिछड़ डिठा

इंज कोई मिलिया अग्गे
होए संयोग वियोग इक्कठे
हंजुआं ये गल हंजू लग्गे ..............
और अब यह राज जी के कहे शब्द जैसे उस नज्म की व्याख्या कर रहे हैं
वह हैरान होती है कि क्या यह नज्मे इल्हाम होती है ? और लिखने वाले शायर जो इनका अक्षर अक्षर जोड़ते हैं ।इनके अर्थो को ही नहीं जानते ? इन आसुंओं और आंसुओं की मुलाक़ात को उन्होंने आज से आधी सदी पहले लिखा था और अर्थ आज राज जी की बातों से जाना ॥यह सोच कर अमृता के बदन में एक कम्पन सा दौड़ गया जैसे पृथ्वी तत्व अग्नि ,पानी पवन और आकाश सभी तत्व मिल कर कोई दिलासा दे रहे हो ...
कितना सच है न जिन्हें मिलना होता है वह किसी भी तरह मिलते हैं ..ग्रह न जाने कैसी चाल चलते हैं जो संयोग और वियोग बना देते हैं ..जिनसे हर दिल किसी न किसी मीठी याद में या दर्द में डूबा रहता है .कोई नज्म के जरिये आपनी बात कह देता है तो कोई किसी और जरिये पर जिनसे मिलना वह पहले से ही तय है ...अजब है यह सितारों कि चाल भी ..जो समझे वही जाने और वही माने ...