Thursday, October 29, 2009

रात का शिकवा कि दिन जाने को था
मेरी दहलीज पार कर
मुट्ठी भर सितारे चुरा कर ले गया

दिन का शिकवा कि रात जाने को थी
मेरी दहलीज पार कर के
मुट्ठी भर किरणें चुरा कर ले गयी

होंठ चांदी के कटोरे थे
मिसरी का एक टुकडा घोल कर --
फिर रात मुस्कराई
और दिन हँस दिया
सितारा कोई कम नहीं
किरणें पूरी की पूरी थी
भेड़ों की चोरी .
चरवाहों की चोरी
बंदूकों की चोरी
सिपाहियों की चोरी

यह कैसी चोरियाँ हैं दोस्तों .
यह इल्जाम कैसे हैं !
और राजनीति के हाथ में
यह जाम कैसे हैं !

जो दुनिया का आँगन सजाये
उस हुस्न की चोरी करो !
जो अदब के कायदे सिखाये
उस इश्क की चोरी करो !
जो जीने की रस्म चलाए
उस इल्म कि चोरी करो !
जो इंसान की किस्मत लिखे
उस कलम की चोरी करो !

दिल की दहलीज पार कर
बाहों को खोल कर
उस दौलत को चुराओ !

होंठ चांदी के कटोरे हैं
मिसरी का टुकडा घोल कर
कोई तोहमत लगाओ
यह सभी दौलते हैं
अगर चोरी करो
तो सब चोरियाँ मुबारक !
अगर तोहमत लगाओ
तो सब तोहमते प्यारी हैं !

अमृता प्रीतम