Thursday, November 19, 2009

तेरी यादें ...
बहुत दिन बीते जलावतन हुई
जियीं की मरी ---कुछ पता नही |

सिर्फ़ एक बार --एक घटना घटी
ख्यालों की रात बड़ी गहरी थी
और इतनी स्तब्ध थी
कि पत्ता भी हिले
तो बरसों के कान चौंकते |

फ़िर तीन बार लगा
जैसे कोई छाती का
द्वार खटखटाता
और दबे पांव
छत पर चढ़ता कोई
और नाखूनों से
पिछली दिवार को कुरेदता
तीन बार उठ कर
मैंने सांकल टटोली
अंधेरे को जैसे
एक गर्भ पीड़ा थी
वह कभी कुछ कहता
और कभी चुप होता
ज्यों अपने आवेश को
दांतों में दबाता
फ़िर जीती जागती एक चीज
और जाती जागती एक आवाज़

"मैं काले कोसों से आई हूँ
प्रहरियों की आँख से
इस बदन को चुराती
धीमे से आती
पता है मुझे
कि तेरा दिल आबाद है
पर कहीं वीरान सूनी
कोई जगह मेरे लिए !"

सूनापन बहुत है पर तू "
चौंक कर मैंने कहा __
तू जलावतन _
नहीं कोई जगह नहीं
मैं ठीक कहती हूँ _
कि तेरे लिए कोई जगह नहीं
यह मेरे तर्क ,
मेरे आका के हुक्म हैं !

और फ़िर जैसे
सारा अंधियारा कांप जाता है
वह पीछे लौटी
पर जाने से पहले
कुछ पास आई
और मेरे वजूद को
एक बार छुआ है
धीरे से
ऐसे,जैसे कोई
वतन की मिटटी को छूता है ...

अमृताकी इस रचना में एक बेबसी जिस तरह से उभर कर आई है वह दिल को छू लेती है .....और बहुत कुछ कह जाती है ..उनकी रचनाओं में सहज हीदिल की बात कही गई होती है जो हर किसी से अपनी बात समझा जाती है ..यह रचना भी उनकी श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है ....शुक्रिया

Friday, November 6, 2009

अमृता की कवितायेँ खुद में एक कहानी है ,एक एक लफ्ज़ अपनी बात इस तरह से कहता है जैसे ज़िन्दगी का एक सच मुकम्मल रूप से सच है ..और हर बार उनका लिखा कोई न कोई नया अर्थ दे जाता है ...आज इसी श्रृंखला में उनकी एक और कविता ..डेढ़ घंटे की मुलाकात ..जैसे ज़िन्दगी इसी लिखे में पूरी गुजर गयी हो ..और एक नया अर्थ दे गयी हो ....

डेढ़ घंटे की मुलाक़ात
जैसे बादल का एक टुकडा
आज सूरज के साथ टांका ,
उधेड़ हारी हूँ
पर कुछ नहीं बनता
और लगता है
कि सूरज के लाल कुरते में
यह बादल किसी ने बुन दिया है |

डेढ़ धंटे की मुलाक़ात
सामने उस चौक में
एक संतरी कि तरह खड़ी
और मेरी सोचों का गुजरना
उसने हाथ दे कर रोक दिया
खुदा जाने मैंने क्या कहा था
और जाने खुदा
तूने क्या सुन लिया |

डेढ़ घंटे की मुलाक़ात
सोचती हूँ
आदिवासी औरत की तरह
मैं एक चिलम सुलगा लूँ
और डेढ़ घंटे का तम्बाकू
इस आग में रख कर पी लूँ

इस से पहले
कि मेरी सोच घबरा जाए
और गलत मोड़ मुड जाए
इस से पहले
कि बादल को उतारते
यह सूरज टूट जाए
इस से पहले कि
मुलाक़ात की याद
एक नफरत में बदल जाए

डेढ़ धंटे का धुंआ
कुछ मैं पी लूँ
कुछ पवन पी ले
इस से पहले
कि इसका लफ्ज़
मेरी या तेरी जुबान पर आये
इससे पहले
कि मेरा या तेरा कान
इस जिक्र को सुने

और इस से पहले की मर्द
औरत जात की तौहीन बन जाए
और इस से पहले कि औरत
मर्द जात की ताक का का कारण बने
इस से पहले ......इस से पहले ........!!!!!!