Tuesday, December 29, 2009

मैंने आसमान से एक तारा टूटते हुए देखा है ...
बहुत तेजी से .आसमान के जिहन में एक जलती हुई लकीर खेंचता हुआ ,,लोग कहते हैं तो सच ही कहते होंगे कि उन्होंने कई बार टूटे हुए तारों की गर्म राख जमीन पर गिरते देखी है मैंने भी उस तारे की गर्म राख अपने दिल के आँगन में बरसती हुई देखी है जिस तरह तारों के नाम होते हैं उसी तरह जो तारा मैंने टूटते हुए देखा उसका नाम था सारा शगुफ्ता ....उस तारे के टूटते समय आसमान के जिहन से जो एक लम्बी और जलती हुई लकीर खिंच गयी थी वह सारा शगुफ्ताकी नज्म थी
नज्म जमीन पर गिरी ,तो खुदा जाने उसके कितने टुकड़े हवा में खो गए लेकिन जो राख मैंने हाथ से छू कर देखी थी उस में कितने ही जलते हुए अक्षर थे ,जो मैंने उठा उठा कर कागज़ में रख दिए
नहीं जानती खुदा ने इन कागजों को ऐसा शाप क्यों दिया है आप उन पर कितने ही जलते हुए अक्षर रख दे वह कागज़ जलते ही नहीं
जिन लोगों के पास एहसास है जलते हुए अक्षर को पढ़ते हुए उनके एहसास से सुलगने लगते हैं पर कोई कागज़ नहीं जलता
शायद यह शाप नहीं है ..है भी तो इसको शाप नहीं कहना चाहिए अगर ऐसा होता तो खुदा जाने दुनिया की कितनी किताबें अपनी ही अक्षरों की राख से जल जाती ...

पिछले दो दिन से मैं अमृता द्वारा संकलित "एक थी सारा'' को पढ़ रही हूँ ..और इसका असर इस तरह से जहन पर हुआ कि आपसे बांटे बगैर नहीं रह सकी .."सारा का दर्द" उनके लिखे लफ़्ज़ों में कई टुकडो में अमृता प्रीतम तक पहुंचा .... पाकिस्तान की यह शायरा अमृता प्रीतम तक अपने लफ़्ज़ों से नज्म और अपनी ज़िन्दगी के किस्से सुनाती हुई पहुंचती रही ॥उनके दर्द को इस नज्म से बखूबी समझा जा सकता है ॥

एक थी सारा ...

मेरी तहरीरों से कई घरों ने मुझ पर थूक दिया है
लेकिन में उनका जायका नहीं बन सकती
मैं टूटी हुई दस्तकें झोली में भर रही हूँ
ऐसा लगता है पानी में कील थोक रही हूँ
हर चीज बह जायेगी ,मेरे लफ्ज़ ,मेरी औरत
यह मशकरी गोली किसने चलायी अमृता !
जुबान एक निवाला क्यों कबूल करती है
भूख एक और पकवान अलग अलग
देखने के सिर्फ एक "चाँद सितारा "क्यों देखूं ?
समुन्द्र के लिए लहर जरुरी है
अमृता ! वह ब्याहाने वाले लोग कहाँ गए ?
यह कोई घर है ?
कि औरत और इजाजत में कोई फर्क नहीं रहा
मैंने बागवत की है अकेली ने
अब अपने आँगन में अकेली रहती हूँ
कि आज़ादी कोई बड़ा पेशा नहीं
देख ! मेरी मजदूरी ,चुन रही हूँ लुंचे मांस
लिख रही हूँ
कभी मैं दीवारों में चिनी गयी
कभी बिस्तर पर चिनी जाती हूँ .....