Thursday, March 4, 2010

जिस काल में जल प्रलय आई थी ,दुनिया गर्क हो गयी थी ,उस तूफ़ान में जब जिस नूह ने एक किश्ती बना कर अपने कुछ लोगों को बचाया था और दुधिया पर्वत पर कायम किया था मीरदाद की कहानी वहीँ से शुरू होती है ....नूह ने इस दुनिया से जाने के वक़्त अपने बेटे को बुला कर कहा था पर्वत की सबसे ऊँची छोटी पर एक घर बनाना ,जहाँ चुने हुए नौ लोगों को रखना ,जो हमेशा नौ की गिनती में रहेंगे ....अगर कोई एक दुनिया से चल जाएगा तो उसकी जगह भरनी होगी ,वह नोवाँ खुदा खुद ही भेज देगा ,जो खाली जगह को भरेगा वह नौ हमेशा सही रास्ता बताने वालें होंगे
कहते हैं बेटे ने घर के लोगों को बुलाया चाहे वहां कई और भी लोग थे लेकिन घर के आदमी आठ थे नूह ने कहा था वह नोवाँ आदृश्य है ,उसे सिर्फ मैं देख सकता हूँ वह हमेशा मेरे साथ रहा है उसी नोवें को कभी न भूलना और हमेशा उसकी जगह बनाए रखना
इस तरह तरह एक ऊँचे पर्वत पर एक शिखर पर एक स्थान बना था फिर एक आदमी दुनिया से चला गया उसकी जगह खाली हो गयी तब एक अजनबी वहां आया कहने लगा मैं खाली जगह भरने आया हूँ
उस स्थान का चाहे यह नियम था कि खाली जगह भरने के लिए जो भी दरवाज़े पर आएगा वही खुदा का भेज हुआ होगा लेकिन तब उस स्थान का मुखिया एक दुनियादार था उसे उस जाने वाले अजनबी का हुलिया पसंद नहीं आया, उसके बदन पर कोई कपडा नहीं था और सारा बदन खरोंचा हुआ था जिस में से खून रिस रहा था वह बड़ी मुश्किल राहों से गुजरता ,मरता जीता मुश्किल से इस जगह पहुंचा था मुखिया ने उसको रखने से इनकार कर दिया लेकिन वह अजनबी वहीँ खड़ा रहा और आखिर मुखिया ने उसको वहां दास बना कर रख लिया
सात बरस गुजर गए ,लेकिन जब आठवां बरस आया तब उस स्थान के सात लोग उस अजनबी के जादू में लिपटे हुए थे उस स्थान को छोड़ कर चले गए ...अजनबी ने मुखिया को श्राप दिया एक दिन आएगा जब तू प्रेत सा बन जाएगा
उन वादियों के लोग इस बात की गवाही देते हैं जो पर्वत के पैरों में बिछी हुई थी उन्होंने उस स्थान के मुखिया को पहाड़ी रास्तों पर भटकते हुए देखा था लेकिन जब भी कोई उसके सामने पड़ता वह लोप हो जाता
इस चली आई पहाड़ी कहानी को मीरदाद किताब लिखने वाले को इस क़दर बैचेन कर दिया कि पहाड़ी पगडंडियों पर घूमते हुए वह उस प्रेत को सोचने लगा इसी बेचनी में उसने उस पर्वत की राह पकड़ी जिसके शिखर पर पहुँचना बहुत मुश्किल था
वह एक छड़ी हाथ में लेकर और रोटी के टुकड़े बंध कर पर्वत पर चढ़ने लगा राह सीधे सीधे पत्थरों की बनी हुई थी इसके शिखर पर पहुंचना ज़िन्दगी का खतरा था रास्ते में अजीब चीजे मिलती गयी उसकी छड़ी ,उसकी रोटी और उसके तन के कपडे सभी उस से जुदा होते गए वह एक जगह बेहोश सा गिर गया होश में आया तब उसने देखा एक कोई बहुत बूढ़ाआदमी उसके चेहरे पर पानी छिड़क रहा है और उसके जख्मों के पौंछ रहा है
उस बूढ़े आदमी ने कहा --मैं तेरा ही इन्तजार कर रहा था ,करीब एक सौ पचास बरस हो गए हैं यह बात पक्की थी कि एक दिन तुम्हे यहाँ आना था और नंगे ,भूखे ,और खाली हाथ ,तभी तो रास्ते में तुम्हारे कपडे उतार लिए गए ,तुम्हारी छड़ी छीन ली गयी और रोटी के टुकड़े भी .मैं एक अमानत लेकर यहाँ बैठा हुआ एक किताब जो तुम्हे सौपनी है ,इसलिए कि तुम उसको दुनिया को दे सको
और उस बूढ़े आदमी ने कहा मेरा नाम श्मदाम है मैं ही बदनसीब इस स्थान का मुखिया हूँ यह किताब मैं जब तेरे हाथ में दूंगा मैं उसी क्षण पत्थर हो जाउंगा और इस प्रेत ज़िन्दगी से मुक्त हो जाउंगा
शमदाम ने वह किताब मिखाइल नेइमी को पकड़ा दी उसकी एक अमानत किताब को लेने वाला हैरान था ,फिर उसने सारे खण्डहर को छान मारा ,वहां कोई नहीं था वह शमदाम न जाने कौन सी जगह पत्थर हो कर पड़ा था
यह कहानी है उस किताब की जहाँ से किताब की इब्तदा होती है .सारी किताब एक बात चीत की सूरत में है इसी बात चीत में ज़िन्दगी के सारे पहलु समाये हैं ---मोहब्बत .मालिक और गुलाम का रिश्ता .ताखलिकी ,खमोश ,पैसा साहूकार और कर्जदार ज़िन्दगी और मौत के बीच में चलता हुआ वक़्त और पछतावा ...
यह किताब अमृता ने तब पढ़ी जब वह एक रात सो रही थी उन्होंने उसका हर्फ हर्फ पी लिया जागी तो कागज कहीं नहीं था लेकिन उसका लफ्ज़ लफ्ज़ उनके सामने था उन्होंने वहीँ कागज पर उतार लिया और वह कागज़ न जाने कब तक यूँ ही हाथ में ले कर बैठी रही जब इमरोज़ कमरे में आये तो उन्होंने उनसे कहा देखो मेरे साथ क्या हुआ ..देखो यह कागज़ यह मैंने लिखा नहीं जब मैं सो रही थी तब यह एक फरमान की तरह मुझे मिला ..जानती हूँ सभी फरमान अपने अन्दर से हो उठते हैं कहीं बाहर से नहीं आते ...पर इसको देखो पढो ...

कुछ घड़ियाँ बड़ी मासूम होती है
मैंने दिल के कंधे पर हाथ रखा
कहा --अब मिटटी क्या तलाशता है योगी ?

उसने उतरते सूरज की चिलम पकड़ी
कहने लगा --फिर तू ही बता मैं क्या करूँ ?
मैंने कहा --वह खुदा की जात का बंदा है
उसकी हयाती पर फतवा था
कि दुश्मनों के देश से आती हवाओं को
वह खैर खबर पूछ लेता था
और किसी राहगीर के हाथों
चार हर्फ भी भेज देता था ...

अब जब वह कब्र में सो रहा है
तू वहां दिया जलाने कैसे जाएगा ?
कि राहों में वर्दियों का पहरा है
और वर्दियों वाले
मोहब्बत की शिनाख्त नहीं करते
और जाने कितनी हयातियाँ
यूँ ही बेशिनाखत जीती और मर जाती है
तूने मोहब्बत का योग लिया है योगी !
अब ख़ामोशी की कफनी पहन लेनी है
और सिर्फ ख़ामोशी की चिलम पीनी है !

"चिरागों की रात" अमृता प्रीतम द्वारा लिखित से कुछ पंक्तियाँ )