Tuesday, July 13, 2010

तुम्हारे ग़म की डली उठा कर
जुबान पर रख ली है देखो मैंने
वह कतरा- कतरा पिघल रही है
मैं कतरा कतरा ही जी रहा हूँ

गुलजार की लिखी यह पंक्तियाँ इमरोज़ अमृता के रिश्ते को और भी पुख्ता कर देती है |इमरोज़ का कहना है इतनी बड़ी दुनिया में मेरा सिर्फ इतना योगदान है कि मैंने अपने जीवन में एक शख्स चुन लिया है जिसे मुझे खुश रखना है --अमृता को | बस अमृता को खुश रखने की कोशिश मेरी ज़िन्दगी का मकसद है | मुझमें इतनी क्षमता नहीं है कि मैं पूरी दुनिया को खुश रख सकूँ .लेकिन कम से कम एक शख्स को खुश रखने की क्षमता मुझमें जरुर है "

और यह क्षमता हर इंसान में हैकि वह अपनी ज़िन्दगी में कम से कम एक इंसान को खुश रख सके आप पूरी दुनिया की फ़िक्र मत करिए |अपनी ज़िन्दगी में सिर्फ किसी एक शख्श को चुन ले -अपनी माँ को चुन ले ,अपने पिता को चुन ले .अपने भाई या दोस्त को चुन ले या हो सके तो अपनी बीबी को ही चुन ले ..जिसे आपको खुश रखना है यही अपनी ज़िन्दगी का मकसद बना लें ..फिर किसी मजहब की जरुरत है , कानून की , राजनीति की ..आखिर यह तीनों आपको खुश करने के वादे ही तो करते हैं ,फिर भी इंसान खुश क्यों नहीं है ?
उन्ही के लफ़्ज़ों में .....

कानून
किसी अजनबी मर्द औरत को
रिश्ता बनाने का
सिर्फ मौका देता है
रिश्ता नहीं ......

रिश्ता बने या बने
इसकी कानून
फ़िक्र करता है
और जिम्मा लेता है .....


सच में इस को अपनाने में अड़चन क्या है ....? अड़चन है इंसान का अहंकार ,अपना स्वार्थ ..बहुत कम लोग इस तरह के मिलेंगे जो दूसरो की ख़ुशी में खुश होते हैं ,अधिकतर लोग तो सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए बेचैन लगेंगे ,सिर्फ अपने सुख के लिए, चाहे इसके लिए दूसरों को दुःख देना पड़े ॥
इमरोज़ का हर कर्म अपने में अनोखा है चाहे वह अमृता से प्यार करना हो चाहे पेंटिंग करना .चाहे भोजन बनाना ..वह हर जगह कुछ नया करना चाहते हैं |उनकी बनायी कला कृतियाँ हर बार अलग हैं ,उनकी नक़ल नहीं बनायी जा सकती .अब तक वह न जाने कितनी कृतियाँ बना चुके हैं पर सब एक दूसरे से अलग कहीं कोई नक़ल नहीं |उनके बनाए चित्र एक अलग से बिखरे हुए अक्षरों का एहसास करवातें हैं और उनकी तूलिका से लिखे अक्षर नृत्य करते दिखते हैं ----अक्षरों के पैर धरती पर थिरकते हुए और हाथ आकाश में लहराते गीत गाते से ....इन सब में ख़ास बात या है कि वह हर समय वर्तमान में रहते हैं ..और जो कशिश वर्तमान में रह कर जीने में है वह जल्दी कहीं देखने को नहीं मिलती फिर चाहे वह भोजन हो या ज़िन्दगी .......या अमृता से प्रेम करना

प्यार सबसे सरल
इबादत है
बहते पानी जैसी ....

ना इसको किसी शब्द की जरुरत
ना किसी जुबान की मोहताजी
ना किसी वक़्त की पाबंदी
और ना ही कोई मज़बूरी
किसी को सिर झुकाने की

प्यार से ज़िन्दगी जीते जीते
यह इबादत अपने आप
हर वक़्त होती रहती है
और --जहाँ पहुँचना है
वहां पहुँचती रहती है ....

इमरोज़ ....