Wednesday, December 22, 2010

रसीदी टिकट लगभग आज से कई साल पहले लिखी है और यह शायद महात्मा गांधी जी की आत्मकथा के बाद इतनी ईमानदारी ,सच्चाई और निर्भीकता से लिखी गयी दूसरी आत्मकथा है |
मैंने ज़िन्दगी में दो बार मोहब्बत की ........एक बार साहिर से और दूसरी बार इमरोज़ से 
अपने जीवन में इतनी निर्भीकता ,स्वीकारता रसीदी टिकट में दिखायी देती है और अक्षरों के साए में नेहरु -एडविना पर लिखी एक किताब का हवाला देते हुए वह कहती है ---मेरा और साहिर का रिश्ता भी कुछ इसी रोशनी में पहचाना जा सकता है -जिसके लम्बे बरसों में कभी तन नहीं रहा था सिर्फ मन था -जो नज्मों में धडकता रहा दोनों की ...
लेकिन अमृता जी को समझने के लिए सिर्फ इन दो आत्मकाथ्य को पढना ही बहुत नहीं होगा उन्हें और गहराई से समझने के लिए लाल धागे का रिश्ता ,दरवेशों की मेहँदी और हरे धागे का रिश्ता पढना  भी बहुत जरुरी है ....यूँ यह पुस्तके अपना स्वंतत्र महत्व रखती है लेकिन एक तरह से यह अमृता की ही आत्मकथा का ही एक हिस्सा है इस में उनके अंतर जगत का वर्णन है और रसीदी टिकट में बाहरी जगत का
थोड़े थोड़े अंतराल पर उन्हें के सपना आता रहा जिस में उन्हें एक मकान की  दूसरी मंजिल पर खिड़की की तरफ देखता हुआ कोई नजर आता और वह कोई चित्र बना रहा होता कैनवास पर ..जिस दिन अमृता कि ज़िन्दगी में इमरोज़ आये उसके बाद से वह सपना उन्हें कभी नहीं आया
एक और सपना उन्हें उनके  सपने से बाहर निकलने की  और संकेत कर रहा होता जिस में उन्हें साहिर की  पीठ दिखायी देती और सपने में ही पिता कहते पहचान सकती है उसको ...? यह तेरी तक़दीर है ......
और साहिर साहब पीठ दिखा कर चले गए ..साहिर साहब के गुजरने पर आंसुओं से लिखी अमृता की पंक्तियाँ है ..

अज्ज आपणे दिल दरिया दे विच्च
मैं आपणे फूल प्रवाहे.........

एक पंजाबी टप्पा है ..कच्ची कंद  उते काणा ऐ ..मिलणा तू रब नु तेरा प्यारा त़ा बहाणा ऐ ---ज़िन्दगी कच्ची दिवार पर बैठे हुए कोवे के तरह है मिलना तो बस रब्ब से है तेरा प्यार तो एक बहाना है  

और साहिर के लिए अमृता का प्यार एक बहाना बन गया उन्हें रब के प्यार की और ले जाने के लिए वे लिखती है जो लोग रेत को पानी समझने की गलती नहीं करते हैं ,उनकी प्यास में जरुर कोई कसर होगी पर मेरी प्यास में कोई कसर नहीं है..मेरे छलावे .मेरे सयाने पन में कोई कसर हो सकती है ,पर प्यास में नहीं ..और प्यार की वही कशिश रही कि इश्क मिजाजी की तलाश में उनके कदम इश्क हकीकी की तरफ बढ़ते गए और उनके लेखन में आलेखों में नज्मों में सूफियाना अंदाज़ आता चला गया जो कभी लिखा करती थी दिल्ली की  गलियाँ ,एक लड़की एक जाम .तीसरी औरत, हीरे की कनी ,लाल मिर्च ,एक थी अनीता वही कलम अब लिखने लगी दरवेशों की  मेहँदी ,शक्ति कणों की लीला,सातवीं किरण अक्षर  कुंडली, इश्क सहस्त्रनाम ,इश्क अल्लाह हक़ अल्लाह
यह कम गौर करने वाली बात नहीं कि अमृता एक कवि हैं लेखन हैं लेकिन उनसे मिलने वाले लोग लेखक कवि कम और  साधक और साधू अधिक होते हैं मन मिर्ज़ा तन साहिबा ,एक मुट्ठी अक्षर,समरण गाथा ,काल चेतना, अन्नत नाम जिज्ञासा ,अज्ञात का निमंत्रण ,सपनों की नीली सी लकीर आदि लिखे गए में उनकी दिशा परिवर्तन चिंतन शिद्दत से दिखायी देता है
कभी साहिर के लिए उन्होंने लिखा था ..
लिख जा मेरी तकदीर मेरे लिए
मैं जी रही हूँ तेरे बिना तेरे लिए
हर्फ मेरे तड़प उठते इसी तरह
सुलगते हैं यह सितारे रात भर जिस तरह ...

और उसी तड़प ने रूप ले लिया अब

साईं !तू  अपनी चिलम से
थोड़ी सी आग दे दे
मैं तेरी अगरबत्ती हूँ
और तेरी दरगाह पर मैंने
एक घडी जलना है ...
 
और उसी तड़प का एक रूप यह भी है
 
अरे साईं 
तेरे चरखे ने आज
क़ात लिया
कातने वाली को ...

उनकी इस चिंतन धारा ने रूमानियत से रूहानियत का रूप कब लिया यह जानेंगे हम अगले अंक में ................जारी है अभी यह ..