के २५ हौज ख़ास ...........नयी दिल्ली ...
इक बंगला बने न्यारा ..बसे कुनबा जिस में सारा ....के २५ होज ख़ास ...पंजाबी साहित्य की अनमोल धरोहर ....अब नहीं है ...यह बात जब पता चली तो मैंने सुन कर भी अनसुना कर दिया ......हर इंसान में कुछ अलग तरह से सुनी बातों पर अपनी प्रतिक्रिया दिखाने का असर होता है ..एक तो एक दम से रिएक्ट करते हैं और अपने भाव जाहिर कर देते हैं ..बुरे या अच्छे ...एक अपने भ्रम में रहते हैं कि यह तो हो ही नहीं सकता न ...मैं इस दूसरे वाले लोगों में आती हूँ ...जो बहुत ख़ास है अपना है .उस पर हुए नुक्सान पर एक दम से रिएकट नहीं कर पाती ...कारण अपने भ्रम में जीती हूँ कि जो मैंने अपनी आँखों से देखा है वह ख़त्म होने की कोई तो वजह होनी चाहिए न ...के २५ होज ख़ास अमृता की ख्वाबगाह .पंजाबी साहित्य की अनमोल धरोहर ...अब अमृता की लिखी पंक्तियों को सच बताती हुई नजर आ रही .है ..
यही इसी घर में अमृता के पलंग के पास गुलजार और दीप्ती नवल ने अमृता से उनकी कविताओं के हिंदी अनुवाद के बारे में चर्चा की थी ..यहाँ पर बनी लाइब्रेरी अक्सर रात को रहने वालो के लिए गेस्ट रूम की तरह इस्तेमाल की जाती थी ....कितनी कितनी यादे जुडी है इस घर के साथ ..मैं जब गयी थी तो मुझे यह घर इमरोज़ की पेंटिंग और अमृता के प्यार का एक खूबसूरत ताजमहल नजर आया था ..जहाँ मोहब्बत हवाओं में थी ....लेम्प शेड पर अमृता की नज्मे उकेरी हुई थी ,के रंगों के साथ........ कोई पेन स्टेंड अछुता नहीं था इस प्रेम की आहट से ...वो हरसिंगार का पेड़ जो अमृता और इमरोज़ ने मिल कर वहां लगाया था वह अब नहीं रहा ,वह बोगनविला की बेल जो नीचे से आती हुई ऊपर अमृता की रसोई के सामने आ कर खिड़की पर मुस्कारती थी ..वह अब कहीं खो गयी है ...यह यहाँ ही क्यों हुआ ..नोर्थ लन्दन में जान कीट्स का घर और भी साहित्यकारों के घर आज भी जस के तस संजो के रखे गए हैं ..उनको पढने वाला चाहने वाला वहां उस घर को अपने पढ़े से जोड़ कर खुद को भी उस लेखक से आज भी जुडा हुआ पाता है ....ठीक वैसे ही जैसे मैंने अमृता के साथ खुद को जुडा हुआ पाया जब मैं उनके न रहने के बाद भी उनके घर गयी ...
..के २५ मक्का था ..जहाँ अमृता अपनी नज्मों के साथ आज भी बसती थी ...इमरोज़ कहाँ है ...वह बहादुर प्रेमी ...जिसने अपनी पूरी ज़िन्दगी अमृता के नाम लिख दी ..वह आज वहां पर लगी उस नेमप्लेट को अपने साथ ले आया है ..यह कहते हुए कि मैं इसको फ्रेम करवा कर अपने पास रखूँगा ... बहुत अफ़सोस जनक है ..यह ..साहित्य प्रेमियों के लिए ,अमृता को प्यार करने वालों के लिए पर वह आज भी जिंदा है अपनी लिखी नज्मों से ...... वह यह जानती थी कि यह लिखी नज्मे ही उसको चाहने वालों के लिए एक अमर याद बन कर रहेंगी ...और यही कहेंगी ...
पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है
तो हर देश के, हर शहर की,
हर गली का द्वार खटखटाओ
यह एक शाप है, यह एक वर है
और जहाँ भी
आज़ाद रूह की झलक पड़े
इक बंगला बने न्यारा ..बसे कुनबा जिस में सारा ....के २५ होज ख़ास ...पंजाबी साहित्य की अनमोल धरोहर ....अब नहीं है ...यह बात जब पता चली तो मैंने सुन कर भी अनसुना कर दिया ......हर इंसान में कुछ अलग तरह से सुनी बातों पर अपनी प्रतिक्रिया दिखाने का असर होता है ..एक तो एक दम से रिएक्ट करते हैं और अपने भाव जाहिर कर देते हैं ..बुरे या अच्छे ...एक अपने भ्रम में रहते हैं कि यह तो हो ही नहीं सकता न ...मैं इस दूसरे वाले लोगों में आती हूँ ...जो बहुत ख़ास है अपना है .उस पर हुए नुक्सान पर एक दम से रिएकट नहीं कर पाती ...कारण अपने भ्रम में जीती हूँ कि जो मैंने अपनी आँखों से देखा है वह ख़त्म होने की कोई तो वजह होनी चाहिए न ...के २५ होज ख़ास अमृता की ख्वाबगाह .पंजाबी साहित्य की अनमोल धरोहर ...अब अमृता की लिखी पंक्तियों को सच बताती हुई नजर आ रही .है ..
आज मैंने
अपने घर का नम्बर मिटाया है
और गली के माथे पर लगा
गली का नाम हटाया है
और हर सड़क की
दिशा का नाम पोंछ दिया है
सही तो है ....यह घर अमृता का था ..पिता ने जहाँ विवाह किया वहां उस घर में वह रह नहीं पायी ,पिता का घर तो कभी बेटी का हुआ ही नहीं ..यह अमृता का अपना बनाया घर था जहाँ वह इमरोज़ के साथ अपने दोनों बच्चो के साथ रहती थी ...यह घर इमरोज़ की पेंटिंग और अमृता की लिखी नज्मों का गवाह था ..यह घर कला का एक ख्वाबगाह था ,जिसके दरवाजे .सबके लिए और ख़ास कर पंजाबी साहित्य लिखने वालों के खुले रहते थे ....यहाँ आने वालों में शिव कुमार बटालवी ,दिलीप ठाकुर टिवाना, गुरदयाल सिंह और अभी कई साहित्यकार आते थे ....पकिस्तान से विशेषकर लेखक जब आते थे तो अमृता के घर आते थे जहाँ फेज़ अहमद फेज़ का मुशायरा घर के टेरस पर आयोजित किया जाता था ....साहिर भी यहाँ आये थे ..जब अमृता और इमरोज़ से मिलने .अपने घर का नम्बर मिटाया है
और गली के माथे पर लगा
गली का नाम हटाया है
और हर सड़क की
दिशा का नाम पोंछ दिया है
यही इसी घर में अमृता के पलंग के पास गुलजार और दीप्ती नवल ने अमृता से उनकी कविताओं के हिंदी अनुवाद के बारे में चर्चा की थी ..यहाँ पर बनी लाइब्रेरी अक्सर रात को रहने वालो के लिए गेस्ट रूम की तरह इस्तेमाल की जाती थी ....कितनी कितनी यादे जुडी है इस घर के साथ ..मैं जब गयी थी तो मुझे यह घर इमरोज़ की पेंटिंग और अमृता के प्यार का एक खूबसूरत ताजमहल नजर आया था ..जहाँ मोहब्बत हवाओं में थी ....लेम्प शेड पर अमृता की नज्मे उकेरी हुई थी ,के रंगों के साथ........ कोई पेन स्टेंड अछुता नहीं था इस प्रेम की आहट से ...वो हरसिंगार का पेड़ जो अमृता और इमरोज़ ने मिल कर वहां लगाया था वह अब नहीं रहा ,वह बोगनविला की बेल जो नीचे से आती हुई ऊपर अमृता की रसोई के सामने आ कर खिड़की पर मुस्कारती थी ..वह अब कहीं खो गयी है ...यह यहाँ ही क्यों हुआ ..नोर्थ लन्दन में जान कीट्स का घर और भी साहित्यकारों के घर आज भी जस के तस संजो के रखे गए हैं ..उनको पढने वाला चाहने वाला वहां उस घर को अपने पढ़े से जोड़ कर खुद को भी उस लेखक से आज भी जुडा हुआ पाता है ....ठीक वैसे ही जैसे मैंने अमृता के साथ खुद को जुडा हुआ पाया जब मैं उनके न रहने के बाद भी उनके घर गयी ...
..के २५ मक्का था ..जहाँ अमृता अपनी नज्मों के साथ आज भी बसती थी ...इमरोज़ कहाँ है ...वह बहादुर प्रेमी ...जिसने अपनी पूरी ज़िन्दगी अमृता के नाम लिख दी ..वह आज वहां पर लगी उस नेमप्लेट को अपने साथ ले आया है ..यह कहते हुए कि मैं इसको फ्रेम करवा कर अपने पास रखूँगा ... बहुत अफ़सोस जनक है ..यह ..साहित्य प्रेमियों के लिए ,अमृता को प्यार करने वालों के लिए पर वह आज भी जिंदा है अपनी लिखी नज्मों से ...... वह यह जानती थी कि यह लिखी नज्मे ही उसको चाहने वालों के लिए एक अमर याद बन कर रहेंगी ...और यही कहेंगी ...
पर अगर आपको मुझे ज़रूर पाना है
तो हर देश के, हर शहर की,
हर गली का द्वार खटखटाओ
यह एक शाप है, यह एक वर है
और जहाँ भी
आज़ाद रूह की झलक पड़े
- — समझना वह मेरा घर है।