पिछले कुछ दिनों से मैं अमृता जी की लिखी हुई कई नज्म और कहानी लेख पढ़ रही थी ..यूं तो इनको मैं अपना गुरु मानती हूँ .पर हर बार इनके लिखे को पढ़ना एक नया अनुभव दे जाता है ..और एक नई सोच ..वह एक ऐसी शख्सियत थी जिन्होंने ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जी ..एक किताब में उनके बारे में लिखा है की हीर के समय से या उस से पहले भी वेदों उपनिषदों के समय से गार्गी से लेकर अब तक कई औरतों ने अपनी मरजी से जीने और ढंग से जीने की जरुरत तो की पर कभी उनकी जरुरत को परवान नही चढ़ने दिया गया और अंत दुखदायी ही हुआ ! आज की औरत का सपना जो अपने ढंग से जीने का है वह उसको अमृता इमरोज़ के सपने सा देखती है ..ऐसा नही है की अमृता अपनी परम्पराओं से जुड़ी नही थी ..वह भी कभी कभी विद्रोह से घबरा कर हाथो की लकीरों और जन्म के लेखो जोखों में रिश्ते तलाशने लगती थी ,और जिस समय उनका इमरोज़ से मिलना हुआ उस वक्त समाज ऐसी बातों को बहुत सख्ती से भी लेता था ..पर अमृता ने उसको जी के दिखाया ..
वह ख़ुद में ही एक बहुत बड़ी लीजेंड हैं और बंटवारे के बाद आधी सदी की नुमाइन्दा शायरा और इमरोज़ जो पहले इन्द्रजीत के नाम से जाने जाते थे, उनका और अमृता का रिश्ता नज्म और इमेज का रिश्ता था अमृता की नज़मे पेंटिंग्स की तरह खुशनुमा हैं फ़िर चाहे वह दर्द में लिखी हों या खुशी और प्रेम में वह और इमरोज़ की पेंटिंग्स मिल ही जाती है एक दूजे से !!
मुझे उनकी लिखी इस पर एक कविता याद आई ..
तुम्हे ख़ुद से जब लिया लपेट
बदन हो गए ख्यालों की भेंट
लिपट गए थे अंग वह ऐसे
माला के वो फूल हों जैसे
रूह की वेदी पर थे अर्पित
तुम और मैं अग्नि को समर्पित
यूं होंठो पर फिसले नाम
घटा एक फ़िर धर्मानुषठान
बन गए हम पवित्र स्रोत
था वह तेरा मेरा नाम
धर्म विधि तो आई बाद !!
अमृता जी ने समाज और दुनिया की परवाह किए बिना अपनी ज़िंदगी जी उनमें इतनी शक्ति थी की वह अकेली अपनी राह चल सकें .उन्होंने अपनी धार दार लेखनी से अपन समय की सामजिक धाराओं को एक नई दिशा दी थी !!बहुत कुछ है उनके बारे में लिखने को .पर बाकी अगले लेख में ...
अभी उन्ही की लिखी एक सुंदर कविता से इस लेख को विराम देती हूँ ..
मेरे शहर ने जब तेरे कदम छुए
सितारों की मुठियाँ भरकर
आसमान ने निछावर कर दीं
दिल के घाट पर मेला जुड़ा ,
ज्यूँ रातें रेशम की परियां
पाँत बाँध कर आई......
जब मैं तेरा गीत लिखने लगी
काग़ज़ के उपर उभर आयीं
केसर की लकीरें
सूरज ने आज मेहंदी घोली
हथेलियों पर रंग गयी,
हमारी दोनो की तकदीरें
अमृता जी पर लिखी एक जानकरी के आधार पर लेख
12 comments:
ye bahue hi pyara lekh hai..
बहुत ही अच्छा कार्य किया जा रहा है आपके द्वारा । इस ब्लाग से अमृता प्रीतम जी की यादें सजीव होंगी एवं उनकी रचना संसार से हम रूबरू हो सकेंगें ।
धन्यवाद ।
हर बार इनके लिखे को पढ़ना एक नया अनुभव दे जाता है...सही लिखा है आपने, सुपठनीय भी।
अमृता जी मूलतः भावनाओं की संवाहिका रही हैं। यथार्थवादी महिला रचनाकारों को भी आपके अनुभव जगत में स्थान मिलना चाहिए।
अमृता जी को पढ़ना वाकई सुखद है.. आपका धन्यवाद इस ब्लॉग को प्रारंभ करने के लिए
bahut chota tha tab unki kitabe padta tha ,fir imroj ko jana ...lekin samjh me shayad barso bad aaya....is lekhan ke liye badhai.
एक बेहतरीन कार्य कर रहीं है आप.
इस पोस्ट के माध्यम से अमृता जी के बारे मे जो जानकारी मिली उसके लिए आभार.
आगे भी इंतज़ार रहेगा.
अभी कल ही उन पर बनाई डाक्यूमेंटरी फिल्म देख रहा था। आज आपने उनकी कविता और उनकी याद करा दी। सच में बहुत प्यारी लेखिका थी। उनकी हिम्म्त को सलाम और उनके लेखन को प्यार करता हूँ। वही लेखिका थी जिन्होने मुझे किताबो का आशिक बनाया। बहुत शुक्रिया आपका।
इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
अनुरोध है की अमृता की पंजाबी नज्में देवनागरी लिपि में पोस्ट करें. मुझ जैसे लोगों को जो पंजाबी समझ सकते हैं पर गुरमुखी में पढ़ नही सकते, यह एक आनंददायक यात्रा होगी.
शुभकामनाओं सहित,
Faceless Maverick
बहुत स्वागत है आपके इस सार्थक प्रयास का और इस नये ब्लॉग का, रंजू जी.
जारी रहें, शुभकामनाऐं.
अमृता जी सचमुच लीजेंड हैं.
उनकी स्मरण गाथा आज फिर पढ़ रहा था
कि ब्लॉगवाणी के ज़रिए यहाँ तक पहुँच गया.
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शुक्रिया ब्लॉगवाणी का.
बधाई आपको अच्छी पहल के लिए.
डा.चंद्रकुमार जैन
rseedi ticket padhkar amrita preetam ji ko jaana tha...tab se kaheen bhi kuch bhi milta hai,padh jati hoon. bahut badhiya lekh..
beautiful writings on my favourite Amrita Preetam....
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