अमृता जी के बारे में जितना लिखा जाए मेरे ख्याल से उतना कम है , जैसा कि मैंने अपने पहले लेख में लिखा था कि मैंने इनके लिखे को जितनी बार पढ़ा है उतनी बार ही उसको नए अंदाज़ और नए तेवर में पाया है .।उनके बारे में जहाँ भी लिखा गया मैंने वह तलाश करके पढ़ा है ।एक बार किसी ने इमरोज़ से पूछा कि आप जानते थे कि अमृता जी साहिर से दिली लगाव रखती हैं और फ़िर साजिद पर भी स्नेह रखती है आपको यह कैसा लगता है ?
इस पर इमरोज़ जोर से हँसे और बोले कि एक बार अमृता ने मुझसे कहा था कि अगर वह साहिर को पा लेतीं तो मैं उसको नही मिलता .तो मैंने उसको जवाब दिया था कि तुम तो मुझे जरुर मिलती चाहे मुझे तुम्हे साहिर के घर से निकाल के लाना पड़ता "" जब हम किसी को प्यार करते हैं तो रास्ते कि मुश्किल को नही गिनते मुझे मालूम था कि अमृता साहिर को कितना चाहती थी लेकिन मुझे यह भी बखूबी मालूम था कि मैं अमृता को कितना चाहता था !"
साहिर के साथ अमृता का रिश्ता मिथ्या व मायावी था जबकि मेरे साथ उसका रिश्ता सच्चा और हकीकी.वह अमृता को बेचैन छोड़ गया और मेरे साथ संतुष्ट रही .।
उन्होंने एक किस्से का बयान किया है कि जब गुरुदत्त ने मुझे नौकरी के लिए मुम्बई बुलाया तो मैं अमृता को बताने आया ।अमृता कुछ देर तक तो खामोश रही फ़िर उसने मुझे एक कहानी सुनाई .यह कहानी दो दोस्तों की थी इसमें से एक बहुत खूबसूरत था दूसरा कुछ ख़ास नही था ।.एक बहुत खूबसूरत लड़की खूबसूरत दोस्त की तरफ़ आकर्षित हो जाती है वह लड़का अपने दोस्त की मदद से उस लड़की का दिल जीतने की कोशिश करता है ,उस लड़के का दोस्त भी उस लड़की को बहुत प्यार करता है पर अपनी सूरत कि वजह से कभी उसक कुछ कह नही पाता है आखिरकार उस खूबसूरत लड़की और उस खूबसूरत लड़के की शादी हो जाती है इतने में ज़ंग छिड जाती है और दोनों दोस्त लड़ाई के मैदान में भेज दिए जातें हैं।
लड़की का पति उसको नियमित रूप से ख़त लिखता है लेकिन वह सारे ख़त अपने दोस्त से लिखवाता है कुछ दिन बाद लड़ाई के मैदान में उसकी मौत हो जाती है और उसके दोस्त को ज़ख्मी हालत में वापस लाया जाता है लड़की अपने पति के दोस्त से मिलने जाती है और अपने पति के ख़त उसको दिखाती है दोनों खतों को पढने लगते हैं तभी बिजली चली जाती है पर उसके पति का दोस्त उन खतों को अंधेरे में भी पढता रहता है क्यूंकि वो लिखे तो उसी ने थे और उसको जबानी याद थे ।लड़की सब समझ जाती है ,पर उस दोस्त कीतबीयत भी बिगड़ जाती है और वह भी दम तोड़ देता है ।लड़की कहती है की मैंने एक आदमी से प्यार किया लेकिन उसको दो बार खो दिया !
एक गहरी साँस ले कर इमरोज़ ने यही कहा कि अमृता ने सोचा था कि मुझे कहानी का मर्म समझ मैं नही आया पर मैं समझ गया था कि वह कहना चाहती थी कि पहले साहिर मुझे छोड़ के चला गया अब तुम मुझे छोड़ के जा रहे हो और जो चले जाते हैं वह आसानी से वापस कहाँ आते हैं .।जब इमरोज़ मुम्बई पहुंचे तो तीसरे दिन ही अमृता को ख़त लिख दिया कि मैं वापस आ रहा हूँ उन्होंने कहा कि मैं जानता था कि अगर मैं वापस नही लौटा तो हमेशा के लिए अमृता को खो दूंगा।
इमरोज़ ने बताया कि अमृता ने कभी भी अपने प्यार का खुले शब्दों में इजहार नही किया और न मैंने उसको कभी कहा अमृता जी ने अपनी एक कविता में लिखा था कि .
आज पवन मेरे शहर की बह रही
दिल की हर चिनगारी सुलगा रही है
तेरा शहर शायद छू के आई है
होंठो के हर साँस पर बेचैनी छाई है
मोहब्बत जिस राह से गुजर कर आई है
उसी राह से शायद यह भी आई है
इमरोज़ जी अपने घर की छत पर खड़े उस गाड़ी का इंतज़ार करते रहते थे जिस में अमृता रेडियो स्टेशन से लौटती थीं .गाड़ी के गुजर जाने के बाद भी वह वहीं खड़े रहते और अवाक शून्य में देखते रहते वे यहाँ इंतज़ार करते और वह वहाँ कविता में कुछ लिखती रहती
जिंद तो हमारी
कोयल सुनाती
जबान पर हमारे
वर्जित छाला
और दर्दों का रिश्ता हमारा
अमृता जी की लिखी एक रचना
यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वोही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी
चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा
चौदह मिनिट हुए हैं
इसका ख़ाता देखो
चौदह साल ही हैं
इस कलम से पूछो
मेरे इस जिस्म में
तेरा साँस चलता रहा
धरती गवाही देगी
धुआं निकलता रहा
उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सान्सों में
कुछ हवा में मिल गयी,
देखो यह आखरी टुकड़ा है
ऊँगलीयों में से छोड़ दो
कही मेरे इश्कुए की आँच
तुम्हारी ऊँगली ना छू ले
ज़िंदगी का अब गम नही
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले !!
इस पर इमरोज़ जोर से हँसे और बोले कि एक बार अमृता ने मुझसे कहा था कि अगर वह साहिर को पा लेतीं तो मैं उसको नही मिलता .तो मैंने उसको जवाब दिया था कि तुम तो मुझे जरुर मिलती चाहे मुझे तुम्हे साहिर के घर से निकाल के लाना पड़ता "" जब हम किसी को प्यार करते हैं तो रास्ते कि मुश्किल को नही गिनते मुझे मालूम था कि अमृता साहिर को कितना चाहती थी लेकिन मुझे यह भी बखूबी मालूम था कि मैं अमृता को कितना चाहता था !"
साहिर के साथ अमृता का रिश्ता मिथ्या व मायावी था जबकि मेरे साथ उसका रिश्ता सच्चा और हकीकी.वह अमृता को बेचैन छोड़ गया और मेरे साथ संतुष्ट रही .।
उन्होंने एक किस्से का बयान किया है कि जब गुरुदत्त ने मुझे नौकरी के लिए मुम्बई बुलाया तो मैं अमृता को बताने आया ।अमृता कुछ देर तक तो खामोश रही फ़िर उसने मुझे एक कहानी सुनाई .यह कहानी दो दोस्तों की थी इसमें से एक बहुत खूबसूरत था दूसरा कुछ ख़ास नही था ।.एक बहुत खूबसूरत लड़की खूबसूरत दोस्त की तरफ़ आकर्षित हो जाती है वह लड़का अपने दोस्त की मदद से उस लड़की का दिल जीतने की कोशिश करता है ,उस लड़के का दोस्त भी उस लड़की को बहुत प्यार करता है पर अपनी सूरत कि वजह से कभी उसक कुछ कह नही पाता है आखिरकार उस खूबसूरत लड़की और उस खूबसूरत लड़के की शादी हो जाती है इतने में ज़ंग छिड जाती है और दोनों दोस्त लड़ाई के मैदान में भेज दिए जातें हैं।
लड़की का पति उसको नियमित रूप से ख़त लिखता है लेकिन वह सारे ख़त अपने दोस्त से लिखवाता है कुछ दिन बाद लड़ाई के मैदान में उसकी मौत हो जाती है और उसके दोस्त को ज़ख्मी हालत में वापस लाया जाता है लड़की अपने पति के दोस्त से मिलने जाती है और अपने पति के ख़त उसको दिखाती है दोनों खतों को पढने लगते हैं तभी बिजली चली जाती है पर उसके पति का दोस्त उन खतों को अंधेरे में भी पढता रहता है क्यूंकि वो लिखे तो उसी ने थे और उसको जबानी याद थे ।लड़की सब समझ जाती है ,पर उस दोस्त कीतबीयत भी बिगड़ जाती है और वह भी दम तोड़ देता है ।लड़की कहती है की मैंने एक आदमी से प्यार किया लेकिन उसको दो बार खो दिया !
एक गहरी साँस ले कर इमरोज़ ने यही कहा कि अमृता ने सोचा था कि मुझे कहानी का मर्म समझ मैं नही आया पर मैं समझ गया था कि वह कहना चाहती थी कि पहले साहिर मुझे छोड़ के चला गया अब तुम मुझे छोड़ के जा रहे हो और जो चले जाते हैं वह आसानी से वापस कहाँ आते हैं .।जब इमरोज़ मुम्बई पहुंचे तो तीसरे दिन ही अमृता को ख़त लिख दिया कि मैं वापस आ रहा हूँ उन्होंने कहा कि मैं जानता था कि अगर मैं वापस नही लौटा तो हमेशा के लिए अमृता को खो दूंगा।
इमरोज़ ने बताया कि अमृता ने कभी भी अपने प्यार का खुले शब्दों में इजहार नही किया और न मैंने उसको कभी कहा अमृता जी ने अपनी एक कविता में लिखा था कि .
आज पवन मेरे शहर की बह रही
दिल की हर चिनगारी सुलगा रही है
तेरा शहर शायद छू के आई है
होंठो के हर साँस पर बेचैनी छाई है
मोहब्बत जिस राह से गुजर कर आई है
उसी राह से शायद यह भी आई है
इमरोज़ जी अपने घर की छत पर खड़े उस गाड़ी का इंतज़ार करते रहते थे जिस में अमृता रेडियो स्टेशन से लौटती थीं .गाड़ी के गुजर जाने के बाद भी वह वहीं खड़े रहते और अवाक शून्य में देखते रहते वे यहाँ इंतज़ार करते और वह वहाँ कविता में कुछ लिखती रहती
जिंद तो हमारी
कोयल सुनाती
जबान पर हमारे
वर्जित छाला
और दर्दों का रिश्ता हमारा
अमृता जी की लिखी एक रचना
यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वोही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी
चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा
चौदह मिनिट हुए हैं
इसका ख़ाता देखो
चौदह साल ही हैं
इस कलम से पूछो
मेरे इस जिस्म में
तेरा साँस चलता रहा
धरती गवाही देगी
धुआं निकलता रहा
उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सान्सों में
कुछ हवा में मिल गयी,
देखो यह आखरी टुकड़ा है
ऊँगलीयों में से छोड़ दो
कही मेरे इश्कुए की आँच
तुम्हारी ऊँगली ना छू ले
ज़िंदगी का अब गम नही
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले !!
21 comments:
wah wah ranjana ji...aaapne aaj bahut hi achcha lekh prastut kiya hai--maine amrita pritam ko padha nahin hai lekin unke likhe hue ke baare mein padha hai..
चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा
dil ko chhu gaya hai........
अमृता जी से रूबरू करवाने का यह क्रम जारी रहे ।
तेरा शहर शायद छू के आई है
होंठो के हर साँस पर बेचैनी छाई है
मोहब्बत जिस राह से गुजर कर आई है
उसी राह से शायद यह भी आई है
wah behad sundar ehsaas
मैं आज पहली बार आपके ब्लाग पर प्रवेश कर रहा हूं। अमृता जी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा। ऐसी बहुत सी घटनाएं उनके जीवन में हैं। आप पढ़ाते रहें अच्छा लगा पढ़कर। मैं आपको एक सुझाव देना चाहता हूं। अगर हो सके तो अमृता जी और इम्बरोज़ जी के प्रेम पत्रों की एक किताब छपी है। अगर वो लैटर आप हम लोगों को पढ़वाएं तो हमें अच्छा लगेगा। और उसमें से लोगों को सीखने के लिए बहुत कुछ मिलेगा। आप जो हमें पढ़ा रहे हैं। उसके लिए बधाई। और आगे भी पढ़ाते रहें।
धन्यवाद एवं शुभकामनाएं
जब हम किसी को प्यार करते हैं तो रास्ते कि मुश्किल को नही गिनते मुझे मालूम था कि अमृता साहिर को कितना चाहती थी लेकिन मुझे यह भी बखूबी मालूम था कि मैं अमृता को कितना चाहता था !"==============================
बहुत बड़े दिल का बेहद
संजीदा बयान है यह.
अमृता का इमरोज़ होना
सच, मामूली बात नहीं है.
ऐसी जिन्दगी को शायद ख़ुद
एक खुली किताब बन जाना होता है.
इस श्रंखला के लिए बधाई एक बार फिर.
===============================
डा.चंद्रकुमार जैन
अमृता जी के शब्दो में एक जादू ही है.. हर बार एक अलग मतलब निकलता है.. और हर एक के लिए एक अलग मतलब निकलता है.. आपका बहुत बहुत धन्यवाद इतनी उम्दा सख्सियत से रु ब रु करने के लिए..
वो दिन फिर ताजा हो गये जब मैं अमृता जी को पढा करता था। इस ब्लोग के बहाने फिर से मैं अमृता जी के लेखन के जादू को देख सकूगा। शुक्रिया आपका।
यह आग की बात है
तूने यह बात सुनाई है
यह ज़िंदगी की वोही सिगरेट है
जो तूने कभी सुलगाई थी
चिंगारी तूने दे थी
यह दिल सदा जलता रहा
वक़्त कलम पकड़ कर
कोई हिसाब लिखता रहा
चौदह मिनिट हुए हैं
इसका ख़ाता देखो
चौदह साल ही हैं
इस कलम से पूछो
मेरे इस जिस्म में
तेरा साँस चलता रहा
धरती गवाही देगी
धुआं निकलता रहा
उमर की सिगरेट जल गयी
मेरे इश्के की महक
कुछ तेरी सान्सों में
कुछ हवा में मिल गयी,
देखो यह आखरी टुकड़ा है
ऊँगलीयों में से छोड़ दो
कही मेरे इश्कुए की आँच
तुम्हारी ऊँगली ना छू ले
ज़िंदगी का अब गम नही
इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूँ
अब और सिगरेट जला ले !!
अमृता जी की ये नज्म मेरी fav मे से एक है..अभी अभी इमरोज़ की किताब नज्म जारी है ,एक महीने पहले पढी है.....आपका शुक्रिया.....
रंजू जी
अमृताजी लगता है जैसे किसी और लोक की वासी थी. जिस ख़याल और और चेतना से ये लोग (साहिर,अमृता,इमरोज़)स्पंदित थे वह इस ज़माने की नहीं लगती . प्रेम को जिस पवित्रता और उद्दात्तता से इन लोगों ने जिया वह एक करिश्मा ही कहा जाना चाहिये...भगवान ने कुच ख़ास अंदाज़ में गढ़ा था इन सब को ....
वाह! बहुत बढ़िया प्रयास.जारी रहिये, अच्छा लग रहा है अमृता जी विषय में पढ़ना/
बेहतरीन लेख ! बेहद अच्छा लगा पढ़ कर...
अमृता प्रीतम
"जो जिया वो लिखा" को अक्षरश चरितार्थ करने वाली एक महान रचनाकार, जिसके लेखन में जिन्दगी का हर रंग था, क्या उपन्यास, क्या कहानी, क्या कविता. विभाजन की त्रासदी को पिंजर जैसे महान उपन्यास में इतनी तटस्थता से सिर्फ अमृता जी लिख सकतीं थीं, तो पंजाब के दर्द को "अज्ज अक्खां वारिस साह नूं" में सिर्फ अमृता जी ही ढाल सकती थीं. और इन सब के पार दरवेशों, पीरों, सूफियों, सितारों, किरणों की बातें करतीं अमृता जी किसी और दुनिया में ले जाती हैं. खुशनसीब हूँ कि उनके मंदिर जैसे घर में उनसे और इमरोज़ जी से एक से ज्यादा बार मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
बहुत दिनों के बाद अमृता जी पर कुछ अच्छा और सार्थक पढ़ने को मिला. दिल से आपकी लेखनी को बहुत सारी दुआएं.. यूँ ही अच्छा लिखती रहिये.
rajneeshvaid@yahoo.com
kuch aapki lekhni kuch Amrta ji ka jadu
jane kyu aisa hota hai ki
ek saans main padhti hoon
dubara upar jakar dubara padhti hoon
aur phir jane kitni der tak shabad nahi milte
kahani main itna ghari baat kahne wali amruta waqayi kamaal thi
imroz ka pyaar bhi kitna vishal tha
kitni sachhi baat kahi
Sahir bachin chor gaya magar mere saath wo santusht thi
aese to Amrita Ji ki lekhni mujhe kafi pasand hai,,,par aaj aapka likha padhkar,unko or bhi karib mahsus kar rahi hu.. sukriya
itne sundar ahsaas ,itni gahri bhavnayein ..........amrita ji ki nazmon ko padhvane ka shukriya.
vaise unke bare mein jyada nhi janti magar wo kahte hain na dard ka rishta sabse uncha hota hai shayad isliye samajh pane ki koshish karti hun .
अमृता-इमरोज के इस ज़ज्बे को खामोशी से महसूस ही किया जा सकता है.
अमृता जी और इमरोज़ को जितना पढूं जितना जानूं कम हीं लगता, बार बार पढ़ती हूँ, और यूँहीं कहीं से इस जगह पहुँच गई, और जान सकूँ| उनके लिए मैं कभी लिखी थी... AMRITA - IMROZ
Bahut talaashi koi aur Amrita nahi milti,
Na koi aur Imroz milta.
Ek yug me ek hi Amrita - Imroz hote,
Koi dusra nahi hota.
Pyar,dosti,naate,rishte--
Sare bandhano se parey,
Koi do ruhaani humsafar--
AMRITA AUR IMROZ.
*********************
Uma Trilok wrote very interesting book .......badhai....
Amrta g apne to kya khub likha hai jitni tarif karu utni hi kam h
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