अमृता प्रीतम और इमरोज़ ...इनके बारे में जानना और लिखना सच में एक अदभुत एक सकून सा देता है दिल को ..एक लेखिका के रूप में अमृता जी को बहुत प्रतिरोध का सामना करना पड़ा ,उनका बहुत विरोध भी हुआ ,उनके स्पष्ट ,सरल और निष्कपट लेखन के कारण और उनके रहने सहने के ढंग के कारण भी ..लेकिन उन्होंने कभी भी अपने विरोधियों और निन्दकों की परवाह नही की !उन्होंने अपने पति से अलग होने से पहले उन्हें सच्चाई का सामना करने और यह मान लेने के लिए प्रेरित किया की समाज का तिरिस्कार और निंदा की परवाह किए बिना उन्हें अलग अलग चले जाना चाहिए ,उनका मानना था की सच्चाई का सामना करने के लिए इंसान को साहस और मानसिक बल की जरुरत होती है
एक बार एक हिन्दी लेखक ने अमृता जी से पूछा था की अगर तुम्हारी किताबों की सभी नायिकाएं सच्चाई की खोज में निकल पड़ी तो क्या सामजिक अनर्थ न हो जायेगा ?
अमृता जी ने बहुत शांत भाव से जवाब दिया था कि यदि झूठे सामजिक मूल्यों के कारण कुछ घर टूटते हैं तो सच्चाई की वेदी पर कुछ घरों का बलिदान भी हो जाने देना चाहिए !!
अमृता और इमरोज़ दोनों मानते थे कि उन्हें कभी समाज की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं थी !आम लोगो की नज़र में उन्होंने धर्म विरोधी काम ही नही किया था बलिक उससे भी बड़ा अपराध किया था ,एक शादीशुदा औरत् होते हुए भी सामजिक स्वीकृति के बिना वह किसी अन्य मर्द के साथ रहीं जिस से वह प्यार करती थी और जो उनसे प्यार करता था !
एक दिन अमृता ने इमरोज़ से कहा था कि इमरोज़ तुम अभी जवान हो .तुम कहीं जा कर बस जाओ .तुम अपने रास्ते जाओ ,मेरा क्या पता मैं कितने दिन रहूँ या न रहूँ !"
तुम्हारे बिना जीना मरने के बराबर है और मैं मरना नही चाहता " इमरोज़ ने जवाब दिया था !
एक दिन फ़िर किसी उदास घड़ी में उन्होंने इमरोज़ से कहा था कि तुम पहले दुनिया क्यों नही देख आते ? और अगर तुम लौटो और मेरे साथ जीना चाहा तो फ़िर में वही करुँगी जो तुम चाहोगे !"
इमरोज़ उठे और उन्होंने उनके कमरे के तीन चक्कर लगा कर कहा "लो मैं दुनिया देख आया ! अब क्या कहती हो ?"
अब ऐसे दीवाने प्यार को क्या कहे ?
अमृता जी के लफ्जों में कहे तो ..
आज मैंने एक दुनिया बेची
एक दीन विहाज ले आई
बात कुफ्र की थी
सपने का एक थान उठाया
गज कपडा बस फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली ...
शेष अगले अंक में ....
एक बार एक हिन्दी लेखक ने अमृता जी से पूछा था की अगर तुम्हारी किताबों की सभी नायिकाएं सच्चाई की खोज में निकल पड़ी तो क्या सामजिक अनर्थ न हो जायेगा ?
अमृता जी ने बहुत शांत भाव से जवाब दिया था कि यदि झूठे सामजिक मूल्यों के कारण कुछ घर टूटते हैं तो सच्चाई की वेदी पर कुछ घरों का बलिदान भी हो जाने देना चाहिए !!
अमृता और इमरोज़ दोनों मानते थे कि उन्हें कभी समाज की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं थी !आम लोगो की नज़र में उन्होंने धर्म विरोधी काम ही नही किया था बलिक उससे भी बड़ा अपराध किया था ,एक शादीशुदा औरत् होते हुए भी सामजिक स्वीकृति के बिना वह किसी अन्य मर्द के साथ रहीं जिस से वह प्यार करती थी और जो उनसे प्यार करता था !
एक दिन अमृता ने इमरोज़ से कहा था कि इमरोज़ तुम अभी जवान हो .तुम कहीं जा कर बस जाओ .तुम अपने रास्ते जाओ ,मेरा क्या पता मैं कितने दिन रहूँ या न रहूँ !"
तुम्हारे बिना जीना मरने के बराबर है और मैं मरना नही चाहता " इमरोज़ ने जवाब दिया था !
एक दिन फ़िर किसी उदास घड़ी में उन्होंने इमरोज़ से कहा था कि तुम पहले दुनिया क्यों नही देख आते ? और अगर तुम लौटो और मेरे साथ जीना चाहा तो फ़िर में वही करुँगी जो तुम चाहोगे !"
इमरोज़ उठे और उन्होंने उनके कमरे के तीन चक्कर लगा कर कहा "लो मैं दुनिया देख आया ! अब क्या कहती हो ?"
अब ऐसे दीवाने प्यार को क्या कहे ?
अमृता जी के लफ्जों में कहे तो ..
आज मैंने एक दुनिया बेची
एक दीन विहाज ले आई
बात कुफ्र की थी
सपने का एक थान उठाया
गज कपडा बस फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली ...
शेष अगले अंक में ....
9 comments:
एक अच्छी शुरुआत ... अगली कड़ी का इंतज़ार है !
रंजू जी
अमृता जी का, और अमृता जी के बारे में, लिखा पढने में हमेशा एक आनंद मिलता है जिसे लफ्जों में बयां नहीं किया जा सकता. विलक्षण प्रतिभा की लेखिका थीं वे और इमरोज़ के साथ ने उनकी लेखनी को प्यार की चाशनी में डुबो दिया था. बहुत सुंदर प्रस्तुति है आप की ये श्रृंखला...जो काश कभी खत्म ना हो.
नीरज
अब ऐसे दीवाने प्यार को क्या कहे ?
बस प्यार प्यार प्यार .............
amrita ji ke baare mein padhna achcha lag raha hai--
dhnywaad is kadi ko shuru karne ke liye
आज मैंने एक दुनिया बेची
एक दीन विहाज ले आई
बात कुफ्र की थी
सपने का एक थान उठाया
गज कपडा बस फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली ...
कई बार सोचता हूँ......जब किशोर था टैब उनकी कहानिया पढता था ,कविताये नही ..शायद पढता तो उतना समझ नही पाता......बस इन्हे पढे जा रहा हूँ....
बहुत बहुत आभार....
अब आगे का इन्तजार.
amrutaji aur imroz ke baare mein aur janna achha laga,aur aapka anda-e-bayan bhi bahut sundar
bahut sundar prastuti.. shukriya ranju ji hamare sath yaha share karne ke liye
आपने ठीक कहा...यहाँ पहुँचना
अमृता जी के ज़रिए
ज़िंदगी और सुकून को जीना है.
आप सिर्फ़ ब्लॉग लिखने से
बड़ा कम कर रही हैं.......
सुकून बाँटने का काम ...!
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शुक्रिया दिल से
डा.चंद्रकुमार जैन
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