अमृता जी की लिखी पंक्तियाँ दिल पर असर करती है उनका लिखा यदि यह कहा जाए कि इन में कहावत बन सकनेकी शक्ति है तो ग़लत नही होगा ..उनके लिखे को उनके एक पाठक ने इन को एक डायरी का रूप दिया वह मैं आपकेसामने जल्द ही ले कर आउंगी ......अभी उन्ही के लफ्जों में उन्ही कि बतायी बात करते हैं अमृता ने एक जगहलिखा है की उनकी जिंदगी में तीन वक्त ऐसे आए जब उन्होंने अपन अन्दर की औरत को सिर्फ़ औरत को जी भरकर देखा ..उसका रूप उनकी नज़रो में इतना भरा पूरा था कि उनेक अन्दर का लेखक का अस्तित्व उस वक्त उनेकध्यान से विस्मृत हो गया .पर वह उसको सिर्फ़ याद ही कर पायी कुछ वर्षों की दूरी पर खड़े हो कर ..उनके अनुसार
पहला वक्त तब देखा था जब वह २५ वर्ष की थी उस वक्त उनक कोई बच्चा नही था और उन्हें रोज़ रात को सोते हुएएक सपना आता एक छोटा सा चेहरा बहुत ही तराशे हुए नकश सीधा टुकुर टुकुर उनको तरफ देख रहा होता औरकई बार सपने में उस बच्चे को देखने के कारण उस बच्चे के चहरे से उनकी पक्की जान पहचान हो गई सपने मेंवह उस से कई बातें करती उस से पूछती तू कहाँ था में तुझे ढूढ रही थी ..वह चेहरा हंस के जवाब देता कि में तो यहींथा छिपा हुआ था ...और वह लिखती है की में जैसे ही उसको उठाने को झुकती वह गायब हो जाता और मेरी नींदखुल जाती उस वक्त वह औरत जाग जाती जो माँ नही बन पायी थी उस वक्त तक तो उसको अपनी दुनिया वीराननज़र आती और जब उन्होंने आपने पहले बच्चे को गोद में उठाया तो उनके भीतर की वह औरत हैरानी और खुशीसे उसको देखती रह गई थी ...
दूसरी बार ऐसा ही समय के बारे में वह बताती है कि एक दिन साहिर आया था तो उसको हलका बुखार था उसकेगले में दर्द था साँस भी सही से नही ले पा रहा था तब उस दिन उन्होंने साहिर के गले और छाती पर विक्स मला थाऔर तब उन्हें लगा कि इसी तरह पैरों पर खड़े खड़े वह पौरों से उँगलियों से और हथेली से उसकी छाती को मलतेहुए सारी उम्र गुजार सकती हूँ मेरे अन्दर की सिर्फ़ औरत को उस समय दुनिया के किसी कागज कलम की जरुरतनही थी
और तीसरी बार वह औरत उन्होंने तब देखी जब अपने स्टूडियो में बैठे हुए इमरोज़ ने अपना पतला सा ब्रश अपनेकागज से उठा कर उस को एक बार लाल रंग में डुबो कर उनके माथे पर बिंदी लगा दी थी ..
वह कहती है की मेरे भीतर की इस सिर्फ़ औरत को सिर्फ़ लेखक से अदावत नही उसने अपने आप ही उसके उसकेओट में खड़े होनास्वीकार कर लिया अपने बदन से आँखे चुराते हुए और शायद अपनी आँखों से भी और जब तकतीन बार उसने अपनी अगली जगह आना चाहा मेरे भीतर एक सिर्फ़ लेखक ने उसके लिए वह जगह खाली कर दीथी ...
अम्बर के आले में सूरज जलाकर रख दू
पर मन की ऊँची ममती पर दिया कैसे रखूं
आँखों में धुंध का गिलाफ लिए किसकी पग धूलि चूमने
सूरज की परिकर्मा करती ठहर गई धरती
नजर के आसामन से है चल दिया सूरज कहीं
पर चाँद में अभी उसकी खुशबु आ रही है ...
अमृता ......
..........रंजू ..........
पहला वक्त तब देखा था जब वह २५ वर्ष की थी उस वक्त उनक कोई बच्चा नही था और उन्हें रोज़ रात को सोते हुएएक सपना आता एक छोटा सा चेहरा बहुत ही तराशे हुए नकश सीधा टुकुर टुकुर उनको तरफ देख रहा होता औरकई बार सपने में उस बच्चे को देखने के कारण उस बच्चे के चहरे से उनकी पक्की जान पहचान हो गई सपने मेंवह उस से कई बातें करती उस से पूछती तू कहाँ था में तुझे ढूढ रही थी ..वह चेहरा हंस के जवाब देता कि में तो यहींथा छिपा हुआ था ...और वह लिखती है की में जैसे ही उसको उठाने को झुकती वह गायब हो जाता और मेरी नींदखुल जाती उस वक्त वह औरत जाग जाती जो माँ नही बन पायी थी उस वक्त तक तो उसको अपनी दुनिया वीराननज़र आती और जब उन्होंने आपने पहले बच्चे को गोद में उठाया तो उनके भीतर की वह औरत हैरानी और खुशीसे उसको देखती रह गई थी ...
दूसरी बार ऐसा ही समय के बारे में वह बताती है कि एक दिन साहिर आया था तो उसको हलका बुखार था उसकेगले में दर्द था साँस भी सही से नही ले पा रहा था तब उस दिन उन्होंने साहिर के गले और छाती पर विक्स मला थाऔर तब उन्हें लगा कि इसी तरह पैरों पर खड़े खड़े वह पौरों से उँगलियों से और हथेली से उसकी छाती को मलतेहुए सारी उम्र गुजार सकती हूँ मेरे अन्दर की सिर्फ़ औरत को उस समय दुनिया के किसी कागज कलम की जरुरतनही थी
और तीसरी बार वह औरत उन्होंने तब देखी जब अपने स्टूडियो में बैठे हुए इमरोज़ ने अपना पतला सा ब्रश अपनेकागज से उठा कर उस को एक बार लाल रंग में डुबो कर उनके माथे पर बिंदी लगा दी थी ..
वह कहती है की मेरे भीतर की इस सिर्फ़ औरत को सिर्फ़ लेखक से अदावत नही उसने अपने आप ही उसके उसकेओट में खड़े होनास्वीकार कर लिया अपने बदन से आँखे चुराते हुए और शायद अपनी आँखों से भी और जब तकतीन बार उसने अपनी अगली जगह आना चाहा मेरे भीतर एक सिर्फ़ लेखक ने उसके लिए वह जगह खाली कर दीथी ...
अम्बर के आले में सूरज जलाकर रख दू
पर मन की ऊँची ममती पर दिया कैसे रखूं
आँखों में धुंध का गिलाफ लिए किसकी पग धूलि चूमने
सूरज की परिकर्मा करती ठहर गई धरती
नजर के आसामन से है चल दिया सूरज कहीं
पर चाँद में अभी उसकी खुशबु आ रही है ...
अमृता ......
..........रंजू ..........
7 comments:
उनकी नज़्म में उतनी ही इमानदारी है जैसा वे सोचती थी.....ये नज़्म बेहद खूबसूरत है हमेशा की तरह.....
शायद इस सफर में धीरे-धीरे हम भी महसूस कर पाएं... उनके अंदर के इंसान को. यही तो खूबसूरती है ब्लॉग जगत की... कई बार बिना बड़ी-बड़ी पुस्तकों को पढ़े ही काम की बातें पढने को मिल जाती हैं... सवेदनशील बातें.
लीखती रहे... हम साथ चल रहे हैं.
नजर के आसामन से है चल दिया सूरज कहीं
पर चाँद में अभी उसकी खुशबु आ रही है ...
wah bahut khubsurat baat kahi in panktiyon mein
khud ke andar ki aurat ke roop se wakif kara diya unhone un teen smarano mein,bahut sundar.
hamari uljhan shayad waqt ke saath suljhe,khushiyan aati hai kabhi janti hun magar mohobbat se alag hona aasan to nahi,magar hamara gum bahut bada bhi nahi.
अम्बर के आले में सूरज जलाकर रख दू
पर मन की ऊँची ममती पर दिया कैसे रखूं
आँखों में धुंध का गिलाफ लिए किसकी पग धूलि चूमने
सूरज की परिकर्मा करती ठहर गई धरती
नजर के आसामन से है चल दिया सूरज कहीं
पर चाँद में अभी उसकी खुशबु आ रही है ...
wah bahut khubsurat baat kahi in panktiyon mein
man mai utar jaati hai.
Manvinder
आभार इस प्रस्तुति के लिए. आनन्द आ जाता है पढ़कर.
"नजर के आसामन से है चल दिया सूरज कहीं
पर चाँद में अभी उसकी खुशबु आ रही है ..."
यह पंक्ति ह़ृदय में उतर गयी। अमृता जी साहित्य की एक ऐसी धारा हैं, जिनका स्थान और कोई नहीं ले सकता।
सच में ख़ुद के आइने में ही ख़ुद को देखना बहुत बढ़ी बात है। क्योंकि इंसान अपने आप को ही नहीं जानता कि वो कब क्या है? बहुत ही बढ़िया मैं माफ़ी चाहता हूं इतने दिन तक आपके लेख न पढ़ पाने के कारण वैसे आज मैंने आपके सारे लेख जो आपने नए पोस्ट किए हैं पढ़ लिए हैं। शुक्रिया भी और माफ़ी भी।
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