Thursday, July 10, 2008

महक नही मुरझाई,कल होंठो से आई थी,आज आंसुओं से आई है

जब मैं अमृता के घर गई थी तो वहाँ की हवा में जो खुशबू थी वह महक प्यार की एक एक चीज में दिखती थी इमरोज़ की खूबसूरत पेंटिंग्स ,और उस पर लिखी अमृता की कविता की पंक्तियाँ ..देख कर ही लगता है जैसे सारा माहौल वहाँ का प्यार के पावन एहसास में डूबा है ..और दिल ख़ुद बा ख़ुद जैसे रूमानी सा हो उठता है

...इमरोज़ ने साहिर के नाम को भी बहुत खूबसूरती से केलीगार्फी में ढाल कर अपने कमरे की दीवार पर सजा रखाहै .. इमरोज़ से इसके बारे में पूछा तो इमरोज़ जी ने कहा कि जब अमृता कागज़ पर नही लिख रही होती थी तो भी उसके दायें हाथ की पहली ऊँगली कुछ लिख रही होती थी ...कोई शब्द कोई नाम कुछ भी चाहे किसी का भी हो भले ही अपना ही नाम क्यों हो वह चाँद की परछाई में भी शब्द ढूँढ़ लेती थी !बचपन से उनकी ऊँगली उन चाँद की परछाई में भी कोई कोई लफ्ज़ तलाश कर लेती थी

इमरोज़ बताते हैं कि हमारी जान पहचान के सालों में वह उस को स्कूटर में बिठा कर रेडियो स्टेशन ले जाया करतेथे ,तब अमृता पीछे बैठी मेरी पीठ पर ऊँगली से साहिर का नाम लिखती रही थी ,मुझे तभी पता चला था कि वह साहिर से कितना प्यार करती थी ..और जिसे अमृता इतना प्यार करती थी उसकी हमारे घर में हमारे दिल में एक ख़ास जगह है इस लिए साहिर का नाम यूं दिख रहा है ..साहिर के साथ अमृता का रिश्ता खामोश रिश्ता था मन के स्तर का ,उनके बीच शारीरिक कुछ नही था जो दोनों को बाँध सकता वह अमृता के लिए एक ऐसा इंसान था जिसके होने के एहसास भर से अमृता को खुशी और जज्बाती सकून मिलता रहा !!

चौदह साल तक अमृता उसकी साए में जीती रही . दोनों के बीच एक मूक संवाद था ,वह आता अमृता को अपनी नज्म पकड़ा के चला जाता कई बार अमृता की घर की गली में पान की दुकान तक आता पान खाता और अमृता कीखिड़की की तरफ़ देख के चला जाता .... अमृता के लिए वह एक हमेशा चमकने वाला सितारा लेकिन पहुँच सेबहुत दूर ..अमृता ने ख़ुद भी कई जगह कहा है कि साहिर घर आता कुर्सी पर बैठता ,एक के बाद एक सिगरेट पीता और बचे टुकड़े एशट्रे में डाल कर चला जाता .उसके जाने के बाद वह एक -एक टुकडा उठाती और उसको पीने लगतीऐसा करते करते उन्हें सिगरेट की आदत लग गई थी !!


अमृता प्यार के एक ऐसे पहलू में यकीन रखती थी जिस में प्रेमी एक दूजे में लीन होने की बात नही करते वह कहती थी कि कोई किसी में लीन नही होता है दोनों ही अलग अलग इंसान है एक दूजे से अलग रह कर ही वह एकदूजे को पहचान सकेंगे अगर लीन हो जाए तो फ़िर प्यार कैसे करोगे ?

इमरोज़ जी के लफ्जों में अमृता के लिए कुछ शब्द ..

कैसी है इसकी खुशबु
फूल मुरझा गया ,
पर महक नही मुरझाई
कल होंठो से आई थी
आज आंसुओं से आई है
कल यादो से आएगी
सारी धरती हुई वैरागी
कैसी है ये महक जो इसकी
फूल मुरझा गया पर महक नही मुरझाई !!
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8 comments:

sanjay patel said...

कैसी रूहानी मुहब्बतों वाले लोग थे.
आज सब लौकिक और दैहिक हो चला है.
अभी अभी जिया है अमृता-इमरोज़ ने ये समय
लेकिन लगता है कोई परी कथा पढ़ रहे हैं हम आप.

गुलज़ार और अमृता जैसे दो अज़ीम लेखकों को पाठक बिरादरी तक पहुँचाने का बड़ा काम कर रहीं हैं आप रंजू जी....आदाब.

आभा said...

इन्हें पढ़ कर कौन खयालो मे गुम होने से बच सकता है..........

डॉ .अनुराग said...

is kisse ko imroj ji kitab me padh chunka hun....par har bar naya sa lagta hai..

Abhishek Ojha said...

ऐसा प्यार पढ़कर ख्यालों में तो कोई भी खो जायेगा...

आपकी पोस्ट पढ़कर गणितज्ञ रामानुजन का ख्याल आ गया, कहते हैं अन्तिम दिनों में एक स्लेट और चाक रखा करते थे... हाथ से मिटाते-मिटाते हाथ पर घाव हो गया था... तब भी हाथ से ही मिटाते. अक्सर बैठ कर लिखते रहते, मिटाते रहते. प्यार होता ही ऐसा है... जिस किसी से भी हो जाय. रामानुजन को गणित जैसे बोझिल विषय से ही हो गया था. अंको से रोमांस किया करते... फिर ये तो अलौकिक प्रेम ही लगता है.

dpkraj said...

आपकी यह बढि़या प्रस्तुति है।
दीपक भारतदीप

Manvinder said...

ek baar Janender ji ne likha tha ki, prem ab kisse kahaniyo dk hi vishaye rah jaega, so waahi ho raha hai.
sarahaniy hai apka paryaas
Manvinder

शोभा said...

रंजू जी
अमृता जी की सुनहरी यादें बाँटने के लिए आभार। सस्नेह

Manish Kumar said...

वह कहती थी कि कोई किसी में लीन नही होता है दोनों ही अलग अलग इंसान है एक दूजे से अलग रह कर ही वह एकदूजे को पहचान सकेंगे अगर लीन हो जाए तो फ़िर प्यार कैसे करोगे ?

kya baat kahi thi unhone. Man prasanna ho gaya aise jazbon ko padhkar. prastuti ka shukriya