Thursday, September 11, 2008

उठूँ चलूं तकदीर मुझे बुलाने आई है !!!

मैं तो एक कोयल हूँ
मेरी जुबान पर तो
एक वर्जित छाला है
मेरा तो दर्द का रिश्ता ..

यह वर्जित छाला कैसे ,कब अमृता के जीवन में आ गया कोई नही जानता ... लेकिन जब यह आया तो अमृता को इमरोज़ से मिल कर लगा कि कभी हम दोनों ही आदम और हव्वा रहे होंगे ..जिन्होंने आदम बाग़ का वर्जित फल खाया था ..पर उस फल को आख़िर वर्जित किसने कहा कौन जाने ...क्यूँ मिली वह इमरोज़ से .क्या क्या ख्याल उस वक्त उनके जहन से हो कर गुजरे .वह उनके लिखे कई लफ्जों से ब्यान हुआ है . .उनकी हसरत एक ही थी कि कभी सहज से जीना नसीब हो जाए .लेकिन वह राह उन्हें उस वक्त बहुत मुश्किल दिखायी देती थी क्यूंकि उस वक्त उनके पास कुछ कारण भी थे ..एक बार वह एक फ़िल्म देख कर इमरोज़ के साथ वापस लौट रही थी .रास्ते में एक जगह उनकी चाय पीने की हुई ,सो वह वही पास के एक होटल में वह चले गए ...पर थोडी देर बाद नोटिस किया कि सबकी गर्दनें टेढी हो गई उन दोनों को देखने के लिए ..दोनों का मन उखड गया ..और वह वहां से उठ कर एक रोड साइड ढाबे में चले गए ..वहां उन्होंने आराम से चाय पी .उसके बाद वह किसी अच्छे दिखते रेस्टोरेंट में नही गए ...

पर इस तरह की घटनाओं से अमृता शुरू शुरू में परेशान हो जाती और इमरोज़ से कहती ...""देख इमरोज़ तेरी तो जीने बसने की उम्र है .तुम अपनी राह चले जाओ ..मैंने तो अब बहुत दिन नही जीना है .""
इमरोज़ जवाब देते --"तेरे बगैर मैंने जी कर मरना है ....""

पर दर्द की लकीर कभी कभी अपना ख़ुद का आपा भी खो देती है और वह यूँ लफ्जों में ब्यान होती है ..

सूरज देवता दरवाजे पर गया
किसी किरण ने उठ कर
उसका स्वागत नहीं किया
मेरे इश्क ने एक सवाल किया था
जवाब किसी भी खुदा से
दिया गया .....


एक बार वह करोल बाग़ गयीं, वहां एक ज्योतिष के नाम की तख्ती देख कर अन्दर चली गयीं ..और वहां बैठे पंडित जी से पूछा ,कि बताइए यह मिलना होगा होगा या नही होगा ..पंडित ने न जाने कौन से ग्रह नक्षत्र देखे और कहा कि सिर्फ़ ढाई घड़ी का मिलना होगा ...अमृता को गुस्सा आ गया ..उन्होंने कहा नही यह नही हो सकता है ..तो पंडित बोले कि चली ढाई धडी का नहीं तो ज्यादा से ज्यादा सिर्फ़ ढाई बरस का होगा ..

अमृता ने जवाब दिया कि यदि यह कोई ढाई का ही चक्कर है तो ..यह भी तो हो सकता है कि ढाई जन्म का हो ..आधा तो अब गुजर गया ..दो जन्मों का अभी हिसाब बाकी है ..

पंडित जी ने शायद कभी इश्क की दीवानगी नही देखी थी ..और वह दीवानों की तरह उठी वहां से उस राह पर चल पड़ी जिसे दीवानों की राह ,इश्क की राह कहा जाता है ...और उन्ही दिनों उन्होंने लिखा कि..

उम्र के कागज पर
तेरे इश्क ने अंगूठा लगाया
हिसाब कौन चुकायेगा !

किस्मत के इक नगमा लिखा है
कहते हैं कोई आज रात
वही नगमा गायेगा

कल्प वृक्ष की छांव में बैठ कर
कामधेनु के छलके दूध से
किसने आज तक दोहनी भरी !

हवा की आहें आज कौन सुने ,
चलूँ आज मुझे
तकदीर बुलाने आई है ..

उठूँ चलूं तकदीर मुझे बुलाने आई है !!!

किसी से मिलना क्यूँ कर होता है ..जन्मों का नाता क्या सच में होता है ..? पंडित तो अपनी बात कह कर भूल गया होगा .पर अमृता न भुला पायी अपना कहा ...जाने किस जन्म से वह इमरोज को तलाश कर रही थी .यह भी उनके सपनों की एक हकीकत थी कि एक सपना वह बीस बरस लगातार देखती रही.... कोई दो मंजिला मकान है जिसके ऊपर की खिड़की से जंगल भी दिखायी देता है ,एक बहती हुई नदी भी और वहीँ कोई उनकी तरह पीठ किए कैनवस पर चित्र बना रहा है ..वह सपना वह बीस बरस तक देखती रहीं और इमरोज़ से जब मिली तो उसके बाद नही देखा वह सपना उन्होंने ..

यह इश्क के नाते हैं ,जन्मों जन्मो साथ चलते है .किसी से मिलना यूँ अकारण नहीं होता है ..इमरोज़ से मिलना ,साहिर से मिलना उनका शायद इसी कारण के तहत रहा होगा ..इसका भी एक वाक्या इन्होने बताया है अपने एक लेख में ..पर वो अगली कड़ी में ...अभी के लिए इतना ही ..और इस के साथ ही आप सब का तहे दिल से शुक्रिया .. इस तरह से हर कड़ी को इतने प्यार से पढने के लिए ...यही आपका स्नेह मुझे अमृता के और करीब ले जाता है ..धन्यवाद इसी तरह साथ चलते रहें इस इश्क के सफर में ...

21 comments:

जितेन्द़ भगत said...

अमृता जी पर लि‍खते हुए आपके कलम में एक रुहानी ताकत आ जाती है, मुझ जैसा पाठक तो बरबस खींचा चला आता है। बहुत ही बढ़ि‍या वर्णन।

फ़िरदौस ख़ान said...

उम्र के कागज पर
तेरे इश्क ने अंगूठा लगाया
हिसाब कौन चुकायेगा !

किस्मत के इक नगमा लिखा है
कहते हैं कोई आज रात
वही नगमा गायेगा

बहुत ख़ूब... दिलचस्प पोस्ट है...

Nitish Raj said...

निराले इश्क पर आपकी पेशकश काफी बेहतरीन है, लिखना भी चाहिए तो ऐसे और पढ़ना भी चाहिए तो ऐसे। आपने बहुत ही बेहतर लिखा है। मैंने भी अमृता जी को बहुत पढ़ा है। मेरी एक महिला मित्र हुआ करती थी कभी कॉलेज टाइम में जिनको अमृता जी की अधिकतर कृति कंठस्थ थी। एक प्रेम का जज्बा ये भी होता है।

mamta said...

हमेशा की तरह अच्छा लिखा है आपने।

और बॉक्स मे जो लिखा है वो बहुत ही ज्यादा पसंद आया।

सुशील छौक्कर said...

ऐसे ही अमृता जी की जिदंगी के रंग बिरंगे रंग यू ही दिखाती रहिए।

डॉ .अनुराग said...

उम्र के कागज पर
तेरे इश्क ने अंगूठा लगाया
हिसाब कौन चुकायेगा !

ये इश्क भी अजीब चीज़ है...या तो हौसला भर देती है या दुनिया से अलग कर देती है....इन ज्योत्शियो का तो क्या कहे?इश्क के तूफ़ान के आगे इनकी क्या बिसात....?

Abhishek Ojha said...

उम्र के कागज पर
तेरे इश्क ने अंगूठा लगाया
हिसाब कौन चुकायेगा !

इश्क की दास्ताँ किसी और ही दुनिया में ले जाती है... जारी रखिये सुहाना सफर !

Arvind Mishra said...

भारतीय और पाश्चात्य सर्जना के दो बिल्कुल अलग आलंबन भाव दीखते हैं -पाश्चात्य कवि जहाँ प्रिय /प्रेयसी के भौतिक अहसास से प्रेरित होते हैं भारतीय कविजन ज्यादातर रूहानी हैं -वर्डस्वर्थ की प्रेयसी लूसी और पन्त की प्रकृति प्रेमिका( बाले तेरे बाल जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन ! ) को देखा जा सकता है -अमृता जी रूहानी प्रेम की अगुयाई करती दीखती हैं -अच्छा प्रेजेनटेशन !

KK Mishra of Manhan said...

आप ने अमृता प्रीतम जी क जिक्र करके मुझे उनकि एक पुरानी उपन्यास की स्मृतियां याद दिला दी क्या आप ने उसे पड़ा है "हरदत्त का जिन्दगी नामा" यदि नही तो जरूर पढ़ियेगा यकीन मानिये आप के मन के तार हिल जायेगे दिलों दिमाग में क्रान्ति कि लहर दौड़ेगी............

Dr. Chandra Kumar Jain said...

हमेशा की तरह श्रेष्ठ.
===============
धन्यवाद

मीनाक्षी said...

अमृता इमरोज़ की कहानी एक अनोखे नशे में डुबो देती है... शब्द भी खामोश से किसी ओर ही दुनिया में डूब जाते हैं.

शोभा said...
This comment has been removed by the author.
शोभा said...

रंजू जी
आपके माध्यम से मैंने भी अमृता जी को काफी जान लिया है. एक सुंदर लेख के लिए बधाई.

Ashok Pandey said...

आप के साथ हम भी अमृता जी के करीब चले जा रहे हैं। उनकी कुछ कविताएं पहले पढ़ी थीं, लेकिन अब आपके सफर का सहयात्री बन उनके बारे में काफी कुछ जानने को मिल रहा है।

Sajeev said...

पहली टिपण्णी ही वो सब कह गई जो मैं कहना चाहता था, वाकई बहुत बढ़िया

राकेश खंडेलवाल said...

इस कहानी को शब्दों के सुन्दर आभूषणों से सज्जित भावभीने वस्त्र पहनाये हैं आपने.

Anonymous said...

पढ़ कर बहुत अच्छा लगा
मै तो भाव बिभोर हो गया

पारुल "पुखराज" said...

padh rahey hain..gun rahey hain...shukriya ranju DI

Satish Saxena said...

अमृता जी के बारे में आपको जितना पढा है उतना कहीं नही पढ़ पाया ! धन्यवाद !

Dileepraaj Nagpal said...

bahut badhiya

vandana gupta said...

juban khamosh hai pyar ki intihan par............bahut badhiya unke jivan se ru-b-ru karwane ke liye dhanyavaad.