मेरे प्यारे नवराज -कंदला!
आज मैंने सतलानाबाद में एक इस तरह का स्कूल देखा है कि उसके बारे में तुम्हे लिखने का मन हो आया है ...इस स्कूल का नाम है लेनिन बोर्डिंग स्कूल ....१६० एकड़ जमीन में इस स्कूल की ईमारत बगीचा झील और खेत है ...पढने के कमरे और उनके बरमादे चित्रकारी की कला से सजे हुए हैं ॥ सोने के कमरे हंसो के पंखों की तरह उज्जवल हैं .....खाने के कमरे मुहं से बोल कर दावत देते हैं और क्लब घर शाही महल जैसा है एक तरफ़ छोटा सा चिडिया घर , तरफ़ छोटा सा सुनहरी मछलियों का तालाब ,रंग बिरंगे बेंच और जहाँ तक नजर आए हरियाली ही हरियाली .....वैसे भी यह धरती का टुकडा पहाडी के पहलू में है ...इसके साथ एक नदी बहती है जिसका नाम है वरज आब वरज आब का अर्थ है "नाचता हुआ पानी "
जैसे मैं हैरान और खुश हुई इसी तरह तुम भी होंगे कि इस स्कूल में सिर्फ़ वही बच्चे लिए जाते हैं ,जिनके माँ बाप जंग में मारे गए या अपंग हो गए हैं ...इसके आलावा उस माँ बाप के बच्चे जो ज्यादा बच्चे होने के कारण उनका लालन पालन अच्छी तरह से करने में असमर्थ हैं .....स्कूल में दाखिला लेने में मुश्किल का सवाल ही नही ,स्कूल वाले गांव गांव घूम घूम कर जरुरत मंद बच्चो को ढूंढ़ते हैं .....इस वक्त इस स्कूल में २९० बच्चे हैं और अगले महीने तीन सौ बच्चे और आ रहे हैं ...
एक साल से लेकर चार साल तक के बच्चों के लिए नर्सरी स्कूल चार साल के साथ लेकर किंडर गार्डन और सात साल से आठरह साल की उम्र के लिए स्कूल की पढ़ाई .. उसके बाद बच्चे यूनिवर्सटी भेजे जायेंगे
सात साल की उम्र तक यह बच्चे घरों में किसी को मिलने नही जाते ..माँ बाप या कोई सम्बन्धी इन से आ कर सप्ताह में एक बार मिल लेते हैं ...सात साल से बड़े बच्चे घर जा सकते हैं ....दस दिन की छुट्टियों में ,पर स्कूल की एक इंचार्ज बताती है कि यह बच्चे भी तीसरे चौथे दिन तक स्कूल वापस आ जाते हैं क्यों कि एक बार स्कूल आने के बाद उनका घर में मन नही लगता है....... गर्मी की छुट्टियाँ तीन महीने की होती हैं पर यह तीन महीने बच्चे बोर्डिंग में रहते हैं .......इन में अधिकतर के तो माँ बाप ही नही है तो यह कहाँ जाए औ र जिनके माँ बाप है उनको इन दिनों खेतो में काम इतना होता है कि वह बच्चो पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते हैं...
मैंने बच्ची की कपडों की अलमारियां देखी हैं ....स्कूल यूनीफोर्म को छोड़ कर बाकी सभी बड़े रंग बिरंगे कपड़े और लडकियां के रिबन उनके बालों से मेल खाते हैं .....बाल मनोविज्ञान से बहुत सलाह ली जाती हैं यहाँ पर
किसी बच्चे को बीमारी हो जाए तो बात अलग है .....नहीं तो किसी भी कक्षा में बच्चे फ़ेल हो जाए यह सवाल ही पैदा नही होता है ...कोई बच्चा अगर काम से कमजोर हो तो बच्चे का कसूर नहीं गिना जाता है ....यह कसूर अध्यापक का समझा जाता है कोई बच्चा अगर किसी कक्षा में पास न हो सके तो अध्यापक की तरक्की रोक ली जाती है..
नाच संगीत दस्तकारी और खेती बाडी के अलावा बच्चो को मेहमान नवाजी भी सिखाई जाती है .....एक कक्षा के बच्चे दूसरी कक्षा के बच्चो को दावत देते हैं और सीखतें हैं कि मेजबान कैसे बना जाता है ...
बच्चों को तीन भाषा सीखना जरुरी होता है ...ताजक उनकी अपनी भाषा रुसी देश की भाषा और बाकी दुनिया से संवाद रखने के लिए अंग्रेजी भाषा यह तीनो भाषाएं बच्चे चार साल की उम्र से सीखना शुरू कर देते हैं ...
एक छोटी सी बच्ची हंसती हंसती मेरी बाहों में आ गई है इस नाम वाइला है.... छ सात साल के छोटे छोटे बच्चे जो थोडी सी रुसी और थोडी सी अंगेरजी जानते हैं वह रुसी में कहते हैं जद्रासतबिच नमस्ते ,सलाम और अंगेरजी में कहते हैं हाउ डू यु डू ...इन्होने सभी हिन्दुस्तानी बच्चों के लिए सलाम भेजा है मेरे हाथों
तुम्हारी अम्मी
सतालनाबाद
ताजिकस्तान
५ मई १९ ६१
इस तरह के पत्र यह साफ़ ब्यान करते हैं कि अमृता बच्चो को कभी जहन से दूर नही कर पायी ...वह जहाँ भी गई बच्चे उनके साथ उस सफर में ख्याल में चलते रहे ....वह वहां की एक एक बात से बच्चों को वाकिफ करा देना चाहती है ,चाहे वह बात प्रकति से जुड़ी जो चाहे वहां की संस्कृति और समाज से ....वह हर जगह जुड़ के ख़ुद को को वहां से जोड़ कर देखती लिखती रही और यही बात हम पढ़ते हुए भी महसूस करते हैं .,कहीं भी उनके लिखे से ख़ुद को अलग नहीं कर पाते हैं ..और वहां के बारे में सब कुछ जान जाते हैं ...मुझेउनके पत्र में भाषा की बात और लड़ाई में अकेले हुए बच्चो की इतनी अच्छी देखभाल ने बहुत प्रभावित किया ..इन्ही पत्र के एक हिस्से में उन्होंने बच्चो को वहां के मशहूर कवियों की कवितायें भी अनुवादित कर के भेजी हैं ...उन में में एक एक करके यहाँ दे रही हूँ इस बार वहां की जुल्फिया की कविता है
तूने लिखा था मैं आऊंगा
देशो की सरहदे लाँघ कर
आसमान की चीर कर
तुम मेरा इन्तजार करना
मेरा सारा वजूद मेरी आँखों में समाया है
और मेरी आँखे आसमान को टा टो लने लगी है
तेरे जहाज का पंछी उड़ता रहा
और फ़िर उसने मेरे दिल का कहा मान लिया
तेरे दिल का कहा मान लिया
दो दिलों की मिनटों के सामने
उसके पंखों ने जिद छोड़ दी
तू आया और मुझे लगा
कि मैंने सूरज को उतार लिया हो
तेरा रोशन चहेरा धरती पर देखा
तो रोशनी से मैंने अंजलि भर ली
मेरे बदन को तेरा साँस छू गए
टो सारी कायनात झूम गई
मेरी यह काली झुल्फे
खुश नसीबी में भीग गई
अभी दिल की बात होंठो में नही आई थी
कि मिलन के क्षण जाने कहाँ चल दिए
दिल की बांसुरी से स्वर जगे थे
उन्होंने मिलन का जश्न मानाया था
तू चला गया
तो तेरा ख्याल मेरे पास रह गया
एक क्षण की चिंगारी
कि उम्र का चिराग जल गया
जुल्फिया
आज मैंने सतलानाबाद में एक इस तरह का स्कूल देखा है कि उसके बारे में तुम्हे लिखने का मन हो आया है ...इस स्कूल का नाम है लेनिन बोर्डिंग स्कूल ....१६० एकड़ जमीन में इस स्कूल की ईमारत बगीचा झील और खेत है ...पढने के कमरे और उनके बरमादे चित्रकारी की कला से सजे हुए हैं ॥ सोने के कमरे हंसो के पंखों की तरह उज्जवल हैं .....खाने के कमरे मुहं से बोल कर दावत देते हैं और क्लब घर शाही महल जैसा है एक तरफ़ छोटा सा चिडिया घर , तरफ़ छोटा सा सुनहरी मछलियों का तालाब ,रंग बिरंगे बेंच और जहाँ तक नजर आए हरियाली ही हरियाली .....वैसे भी यह धरती का टुकडा पहाडी के पहलू में है ...इसके साथ एक नदी बहती है जिसका नाम है वरज आब वरज आब का अर्थ है "नाचता हुआ पानी "
जैसे मैं हैरान और खुश हुई इसी तरह तुम भी होंगे कि इस स्कूल में सिर्फ़ वही बच्चे लिए जाते हैं ,जिनके माँ बाप जंग में मारे गए या अपंग हो गए हैं ...इसके आलावा उस माँ बाप के बच्चे जो ज्यादा बच्चे होने के कारण उनका लालन पालन अच्छी तरह से करने में असमर्थ हैं .....स्कूल में दाखिला लेने में मुश्किल का सवाल ही नही ,स्कूल वाले गांव गांव घूम घूम कर जरुरत मंद बच्चो को ढूंढ़ते हैं .....इस वक्त इस स्कूल में २९० बच्चे हैं और अगले महीने तीन सौ बच्चे और आ रहे हैं ...
एक साल से लेकर चार साल तक के बच्चों के लिए नर्सरी स्कूल चार साल के साथ लेकर किंडर गार्डन और सात साल से आठरह साल की उम्र के लिए स्कूल की पढ़ाई .. उसके बाद बच्चे यूनिवर्सटी भेजे जायेंगे
सात साल की उम्र तक यह बच्चे घरों में किसी को मिलने नही जाते ..माँ बाप या कोई सम्बन्धी इन से आ कर सप्ताह में एक बार मिल लेते हैं ...सात साल से बड़े बच्चे घर जा सकते हैं ....दस दिन की छुट्टियों में ,पर स्कूल की एक इंचार्ज बताती है कि यह बच्चे भी तीसरे चौथे दिन तक स्कूल वापस आ जाते हैं क्यों कि एक बार स्कूल आने के बाद उनका घर में मन नही लगता है....... गर्मी की छुट्टियाँ तीन महीने की होती हैं पर यह तीन महीने बच्चे बोर्डिंग में रहते हैं .......इन में अधिकतर के तो माँ बाप ही नही है तो यह कहाँ जाए औ र जिनके माँ बाप है उनको इन दिनों खेतो में काम इतना होता है कि वह बच्चो पर पूरा ध्यान नहीं दे पाते हैं...
मैंने बच्ची की कपडों की अलमारियां देखी हैं ....स्कूल यूनीफोर्म को छोड़ कर बाकी सभी बड़े रंग बिरंगे कपड़े और लडकियां के रिबन उनके बालों से मेल खाते हैं .....बाल मनोविज्ञान से बहुत सलाह ली जाती हैं यहाँ पर
किसी बच्चे को बीमारी हो जाए तो बात अलग है .....नहीं तो किसी भी कक्षा में बच्चे फ़ेल हो जाए यह सवाल ही पैदा नही होता है ...कोई बच्चा अगर काम से कमजोर हो तो बच्चे का कसूर नहीं गिना जाता है ....यह कसूर अध्यापक का समझा जाता है कोई बच्चा अगर किसी कक्षा में पास न हो सके तो अध्यापक की तरक्की रोक ली जाती है..
नाच संगीत दस्तकारी और खेती बाडी के अलावा बच्चो को मेहमान नवाजी भी सिखाई जाती है .....एक कक्षा के बच्चे दूसरी कक्षा के बच्चो को दावत देते हैं और सीखतें हैं कि मेजबान कैसे बना जाता है ...
बच्चों को तीन भाषा सीखना जरुरी होता है ...ताजक उनकी अपनी भाषा रुसी देश की भाषा और बाकी दुनिया से संवाद रखने के लिए अंग्रेजी भाषा यह तीनो भाषाएं बच्चे चार साल की उम्र से सीखना शुरू कर देते हैं ...
एक छोटी सी बच्ची हंसती हंसती मेरी बाहों में आ गई है इस नाम वाइला है.... छ सात साल के छोटे छोटे बच्चे जो थोडी सी रुसी और थोडी सी अंगेरजी जानते हैं वह रुसी में कहते हैं जद्रासतबिच नमस्ते ,सलाम और अंगेरजी में कहते हैं हाउ डू यु डू ...इन्होने सभी हिन्दुस्तानी बच्चों के लिए सलाम भेजा है मेरे हाथों
तुम्हारी अम्मी
सतालनाबाद
ताजिकस्तान
५ मई १९ ६१
इस तरह के पत्र यह साफ़ ब्यान करते हैं कि अमृता बच्चो को कभी जहन से दूर नही कर पायी ...वह जहाँ भी गई बच्चे उनके साथ उस सफर में ख्याल में चलते रहे ....वह वहां की एक एक बात से बच्चों को वाकिफ करा देना चाहती है ,चाहे वह बात प्रकति से जुड़ी जो चाहे वहां की संस्कृति और समाज से ....वह हर जगह जुड़ के ख़ुद को को वहां से जोड़ कर देखती लिखती रही और यही बात हम पढ़ते हुए भी महसूस करते हैं .,कहीं भी उनके लिखे से ख़ुद को अलग नहीं कर पाते हैं ..और वहां के बारे में सब कुछ जान जाते हैं ...मुझेउनके पत्र में भाषा की बात और लड़ाई में अकेले हुए बच्चो की इतनी अच्छी देखभाल ने बहुत प्रभावित किया ..इन्ही पत्र के एक हिस्से में उन्होंने बच्चो को वहां के मशहूर कवियों की कवितायें भी अनुवादित कर के भेजी हैं ...उन में में एक एक करके यहाँ दे रही हूँ इस बार वहां की जुल्फिया की कविता है
तूने लिखा था मैं आऊंगा
देशो की सरहदे लाँघ कर
आसमान की चीर कर
तुम मेरा इन्तजार करना
मेरा सारा वजूद मेरी आँखों में समाया है
और मेरी आँखे आसमान को टा टो लने लगी है
तेरे जहाज का पंछी उड़ता रहा
और फ़िर उसने मेरे दिल का कहा मान लिया
तेरे दिल का कहा मान लिया
दो दिलों की मिनटों के सामने
उसके पंखों ने जिद छोड़ दी
तू आया और मुझे लगा
कि मैंने सूरज को उतार लिया हो
तेरा रोशन चहेरा धरती पर देखा
तो रोशनी से मैंने अंजलि भर ली
मेरे बदन को तेरा साँस छू गए
टो सारी कायनात झूम गई
मेरी यह काली झुल्फे
खुश नसीबी में भीग गई
अभी दिल की बात होंठो में नही आई थी
कि मिलन के क्षण जाने कहाँ चल दिए
दिल की बांसुरी से स्वर जगे थे
उन्होंने मिलन का जश्न मानाया था
तू चला गया
तो तेरा ख्याल मेरे पास रह गया
एक क्षण की चिंगारी
कि उम्र का चिराग जल गया
जुल्फिया
23 comments:
सच पढकर बहुत ही अच्छा लगा। और ऐसे भी स्कूल होते है अच्छा लगा। और आखिर में लिखी रचना अद्भुत थी।
बहुत सुन्दर, पढ़कर बहुत अच्छा लगा, बधाई
---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
इस ब्लॉग की सार्थकता उजागर हो रही है... बहुत आभार
चिट्ठियों को पढ़ना बड़ा अच्छा लग रहा है. जानकारी भी बढ़ रही है.
sach shabdon ka jadu kahi hai to bas yahi,ek saans mein padh gaye saara post,sundar.
बेहतरीन रचना के साथ बेहतर ढंग से लिखा बहुत ही अच्छा लिखा है आपने आभार
Apke blog se Amrita ji ke jeevan ke kai pahlu ke baare mai pata chalta hai.
इस ब्लॉग को पढ़ना हमेशा सुखद अनुभूति देता है. आभार आपका.
thx ranju di
तूने लिखा था मैं आऊंगा
देशो की सरहदे लाँघ कर
आसमान की चीर कर
तुम मेरा इन्तजार करना
" very touching and emotional.."
Regards
अमृता जी की बारे में जितना भी पढो कम है, उनकी शक्शियत का हर पहलू जुदा भी है और हम में से एक भी है.
यही बात उनको सब से अलग करती है.
कविता भी बहुत खूबसूरत है...........उनका अनुवाद भी उनकी कविताओं की झलक देता है.
बेहद खूबसूरत ढंग से आपने इसे लिखा है और अंत मे जो कविता है लाजवाब है ।
शुक्रिया रंजू जी ।
क्या लिखूं कुछ समझ में नहीं आ रहा है.. वैसे भी अमृता जी के बारे में लिखना सूरज को दिया दिखाने के समान है..
bahut badiyaa jaankaari hai badhaai
नाचता हुआ पानी ही है यह लेखन.
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बधाई..... निरंतर ऐसी सुंदर
मन को छूने वाली प्रस्तुति के लिए
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
प्रिय रंजना ,आज बस यूही व्यस्त थी अभी तुम्हारी पोस्ट देखी...दिल को सुकून मिलता है अमृता जी को पढ़कर..इतना बढिया ख़त ..इतनी अच्छी बातें कविता तो जैसे उसमे चार चाँद,तू चला गयातो तेरा ख्याल मेरे पास रह गया...बस लिखने को मन हो गया...धन्यवाद अमृता जी की कुछ कवितायें डायरी मैं हैं कभी...
अमृता जी के इस रूप को भी दिखाने के लिए धन्यवाद।
घुघूती बासूती
लाजवाब कविता के साथ, एक अलग ही अन्दाज दिखा. बहुत धन्यवाद आपको रुबरु कराने के लिये.
रामराम.
ख़त भी नज़्म जैसा ही है
काश सरहदें लाँघ कर, स्कूलों का यह रूप हमारे देश में भी होता!
(gandhivichar.blogspot.com)
ek baar phir behtareen raha amrita ki lekhni ke sath tay kiya ye blog safar.
ranjana ji
aapka baaton ko convey karne ka tareeka aur word power itni sudredh hai ki jab tak poora ka poora na padh liya jaaye kahin aur dekhne ka man hi nahi karta. bahut aacha laga ek baar phir yahan aakar.
manuj mehta
गणतंत्र दिवस को हार्दिक शुभकामना .
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