दोस्त ! तुमने ख़त तो लिखा था
पर दुनिया की मार्फत डाला
और दोस्त ! मोहब्बत का ख़त
जो धरती के माप का होता है
जो अम्बर के माप का होता है
वह दुनिया वालों से पकड़ कर
एक कौम जितना क़तर डाला
कौम के नाप का कर डाला
और फिर शहर में चर्चा हुई
वह तेरा ख़त जो मेरे नाम था
लोग कहते हैं
कि मजहब के बदन पर
वह बहुत ढीला लगता
सो ख़त की इबारत को उन्होंने
कई जगह से फाड़ लिया था ....
और आगे तू जानता
कि वे कैसे माथे
जिनकी समझ के नाप
हर अक्षर ही खुला आता
सो उन्होंने अपने माथे
अक्षरों पर पटके
और हर अक्षर को उधेड़ डाला था ....
और मुझे जो ख़त नहीं मिला
वह जिसकी मार्फ़त आया
वह दुनिया दुखी है --कि मैं
उस ख़त के जवाब जैसी हूँ ....
अमृता की यह नज्म सच में उस ख़त के जैसी है जो न जाने कैसी मोहब्बत की भूख ले कर दुनिया में आता है .एक ऐसा शख्स जिसने अपनी कल्पना की पहचान तो कर ली .एक परछाई की तरह ,लेकिन रास्ता चलते चलते उसने वह परछाई देखी नहीं कभी ....उसने वह पगडंडियाँ खोज ली हैं जिन पर सहज चला जा सकता है लेकिन उस राह को खोज लेना उसके बस में नहीं है जो कल्पित मोहब्बत की राह हो ...एक अजीब सा खालीपन हो जाता है .बाहर भीड़ है दुनिया कि पर अन्दर मन खाली वह न इस भीड़ में खो सकता है .और न ही उसके खालीपन को कोई भर सकता है ..वह एक दहलीज पर खड़े हुए इंसान जैसा हो जाता है जहाँ न अन्दर आया जा सकता है और न ही उससे बाहर जाया जा सकता है ...
अमृता की वर्जित बाग़ की गाथा में एक चरित्र है सुरेंदर ...बहुत रोचक लगा उस शख्स के बारे में पढना ...खुद अमृता ने एक दिन उसको कहा था कि मैं तुम्हारी कहानी लिखना चाहूंगी तुम कोई ऐसी बात सुना दो ,जिसके तारो में तुम्हारी सारी ज़िन्दगी लिपट गयी हो ...
सुरेंदर अमृता जी के मुहं से यह सुन कर कुछ देर खामोश हो गया .फिर कहने लगा ...कि एक कहानी सुनाता हूँ दीदी आपको .....एक आदमी मोटर साईकल पर कहीं जा रहा था .रास्ते में वह किसी आदमी से टकरा गया उस दूसरे बन्दे को कोई जख्म नहीं आया पर थोडी सी खरोंच लग गयी ...उसने उठ कर उस मोटर साईकल वाले को पकड़ लिया और पीटने लगा ..जब मारते मारते थक गया तो जहाँ वह मोटर साईकल वाला खडा था वहां एक लाइन उसके चारों तरफ खींच दी ..और कहा इस से बाहर मत आना ..बस वहीँ खड़े रहना ...
और वह दूसरी तरफ इंट कर उसकी मोटर साईकल को तोड़ने लगा ..पहले उसकी लाईट तोडी फिर शीशा लकीर में खडा आदमी कुछ हँसा ..मोटर साईकल तोड़ने वाले ने एक नजर उसको देखा फिर उसकी मोटर साईकल का पैडल तोड़ दिया ..लकीर में खडा आदमी फ़िर हंसा उसने अब उसकी मोटर साईकल का हेंडल तोड़ दिया
वह मोटर साईकल तोड़ने वाला बन्दा हैरान कि यह हँस क्यों रहा है ..वह जितना हँसता वह और जोर से उसकी मोटर साईकल तोड़ने लगता ...आखिर उस से रहा नहीं गया ..उसने उस से पूछा कि मैं तो तेरा नुकसान कर रहा हूँ तू हँस क्यों रहा है ? देख मैंने तेरी मोटर साईकल का क्या हाल कर दिया है ?
वह लकीर में खडा हुआ आदमी कहने लगा कि मैं इस बात पर हँस रहा हूँ कि जब तू मोटर साईकल तोड़ने में ध्यान देता था तो मैं आहिस्ता से अपना पैर लकीर के बाहर निकल लेता था ..
सुरेंदर अमृता से यह कहानी सुना कर बोला कि वह लकीर में खडा हुआ आदमी मैं हूँ ..जो ज़िन्दगी के कीमती बरस टूटते हुए देख रहा हूँ ...बस इसको टूटते हुए देखते रहता हूँ ,,कभी कभी हँस भी लेता हूँ ...जब तोड़ने फोड़ने वाले की नजर उस तरफ होती है तो अपना पैर लकीर से बाहर कर लेता हूँ ...
अब तुम मुझ पर क्या कहानी लिखोगी ....अमृता ने सुन कर कहा ..अब कुछ न कहो ..आगे कहने को कुछ नहीं रहा ...हम सब इसी तरह की दहलीज पर खड़े हैं ..जो खुद को भरम भुलावे में उलझाए रखते हैं ......और ज़िन्दगी को जीते रहते हैं ...कभी हँसते हुए .कभी ....बस यूँ ही ....
पर दुनिया की मार्फत डाला
और दोस्त ! मोहब्बत का ख़त
जो धरती के माप का होता है
जो अम्बर के माप का होता है
वह दुनिया वालों से पकड़ कर
एक कौम जितना क़तर डाला
कौम के नाप का कर डाला
और फिर शहर में चर्चा हुई
वह तेरा ख़त जो मेरे नाम था
लोग कहते हैं
कि मजहब के बदन पर
वह बहुत ढीला लगता
सो ख़त की इबारत को उन्होंने
कई जगह से फाड़ लिया था ....
और आगे तू जानता
कि वे कैसे माथे
जिनकी समझ के नाप
हर अक्षर ही खुला आता
सो उन्होंने अपने माथे
अक्षरों पर पटके
और हर अक्षर को उधेड़ डाला था ....
और मुझे जो ख़त नहीं मिला
वह जिसकी मार्फ़त आया
वह दुनिया दुखी है --कि मैं
उस ख़त के जवाब जैसी हूँ ....
अमृता की यह नज्म सच में उस ख़त के जैसी है जो न जाने कैसी मोहब्बत की भूख ले कर दुनिया में आता है .एक ऐसा शख्स जिसने अपनी कल्पना की पहचान तो कर ली .एक परछाई की तरह ,लेकिन रास्ता चलते चलते उसने वह परछाई देखी नहीं कभी ....उसने वह पगडंडियाँ खोज ली हैं जिन पर सहज चला जा सकता है लेकिन उस राह को खोज लेना उसके बस में नहीं है जो कल्पित मोहब्बत की राह हो ...एक अजीब सा खालीपन हो जाता है .बाहर भीड़ है दुनिया कि पर अन्दर मन खाली वह न इस भीड़ में खो सकता है .और न ही उसके खालीपन को कोई भर सकता है ..वह एक दहलीज पर खड़े हुए इंसान जैसा हो जाता है जहाँ न अन्दर आया जा सकता है और न ही उससे बाहर जाया जा सकता है ...
अमृता की वर्जित बाग़ की गाथा में एक चरित्र है सुरेंदर ...बहुत रोचक लगा उस शख्स के बारे में पढना ...खुद अमृता ने एक दिन उसको कहा था कि मैं तुम्हारी कहानी लिखना चाहूंगी तुम कोई ऐसी बात सुना दो ,जिसके तारो में तुम्हारी सारी ज़िन्दगी लिपट गयी हो ...
सुरेंदर अमृता जी के मुहं से यह सुन कर कुछ देर खामोश हो गया .फिर कहने लगा ...कि एक कहानी सुनाता हूँ दीदी आपको .....एक आदमी मोटर साईकल पर कहीं जा रहा था .रास्ते में वह किसी आदमी से टकरा गया उस दूसरे बन्दे को कोई जख्म नहीं आया पर थोडी सी खरोंच लग गयी ...उसने उठ कर उस मोटर साईकल वाले को पकड़ लिया और पीटने लगा ..जब मारते मारते थक गया तो जहाँ वह मोटर साईकल वाला खडा था वहां एक लाइन उसके चारों तरफ खींच दी ..और कहा इस से बाहर मत आना ..बस वहीँ खड़े रहना ...
और वह दूसरी तरफ इंट कर उसकी मोटर साईकल को तोड़ने लगा ..पहले उसकी लाईट तोडी फिर शीशा लकीर में खडा आदमी कुछ हँसा ..मोटर साईकल तोड़ने वाले ने एक नजर उसको देखा फिर उसकी मोटर साईकल का पैडल तोड़ दिया ..लकीर में खडा आदमी फ़िर हंसा उसने अब उसकी मोटर साईकल का हेंडल तोड़ दिया
वह मोटर साईकल तोड़ने वाला बन्दा हैरान कि यह हँस क्यों रहा है ..वह जितना हँसता वह और जोर से उसकी मोटर साईकल तोड़ने लगता ...आखिर उस से रहा नहीं गया ..उसने उस से पूछा कि मैं तो तेरा नुकसान कर रहा हूँ तू हँस क्यों रहा है ? देख मैंने तेरी मोटर साईकल का क्या हाल कर दिया है ?
वह लकीर में खडा हुआ आदमी कहने लगा कि मैं इस बात पर हँस रहा हूँ कि जब तू मोटर साईकल तोड़ने में ध्यान देता था तो मैं आहिस्ता से अपना पैर लकीर के बाहर निकल लेता था ..
सुरेंदर अमृता से यह कहानी सुना कर बोला कि वह लकीर में खडा हुआ आदमी मैं हूँ ..जो ज़िन्दगी के कीमती बरस टूटते हुए देख रहा हूँ ...बस इसको टूटते हुए देखते रहता हूँ ,,कभी कभी हँस भी लेता हूँ ...जब तोड़ने फोड़ने वाले की नजर उस तरफ होती है तो अपना पैर लकीर से बाहर कर लेता हूँ ...
अब तुम मुझ पर क्या कहानी लिखोगी ....अमृता ने सुन कर कहा ..अब कुछ न कहो ..आगे कहने को कुछ नहीं रहा ...हम सब इसी तरह की दहलीज पर खड़े हैं ..जो खुद को भरम भुलावे में उलझाए रखते हैं ......और ज़िन्दगी को जीते रहते हैं ...कभी हँसते हुए .कभी ....बस यूँ ही ....
29 comments:
पोस्ट अच्छी लगी आभार।
सुरेन्द्र जी की कहानी ने बहुत गहरी बात कह दी।
सुरेंदर अमृता से यह कहानी सुना कर बोला कि वह लकीर में खडा हुआ आदमी मैं हूँ ..जो ज़िन्दगी के कीमती बरस टूटते हुए देख रहा हूँ ...बस इसको टूटते हुए देखते रहता हूँ ,,कभी कभी हँस भी लेता हूँ ...जब तोड़ने फोड़ने वाले की नजर उस तरफ होती है तो अपना पैर लकीर से बाहर कर लेता हूँ ...
अमृता के जीवां से जुडी एक बहुत ही गहरी और रोचक जानकारी मिली आपसे ....शुक्रिया ....!!
सुरेन्द्र जी की कहानी ने बहुत गहरी बात कह दी।
kitna sach kaha hai...........har insan ka sach.
जो ज़िन्दगी के कीमती बरस टूटते हुए देख रहा हूँ ...बस इसको टूटते हुए देखते रहता हूँ ,,कभी कभी हँस भी लेता हूँ ...जब तोड़ने फोड़ने वाले की नजर उस तरफ होती है तो अपना पैर लकीर से बाहर कर लेता हूँ ...
kitani geharai hai in panktiyon mein,aur bahut sara zindagi ka sach bhi,nazm bhi utnai hi khubsurat,dil ke paas.
बहुत गहरी और ज़िन्दगी के करीब कही बात...........ज़िन्दगी भी तो इंसान पर हंसती है ऐसे ही..देखती रहती है गुर से मिटते हुवे..............टूटते हुवे.
बहुत ही जीवित कविता अमृता जी की और सुखद एहसास ...शुक्रिया आपका .......
मार्मिक ,शुक्रिया !
बहुत अच्छी लगी ये बात ...सच ही तो है
मार्मिक और गूढ संदेश देती रचना. बहुत आभार आपका.
रामराम.
Vo saara samay yaad aa gaya jab ye kissa, amrita ki jindagi ka ye hissa phali baar padha tha...shukriya
dra ji ki kathadil ko choo gayi. badhi goodh baat keh gaye wo apni choti kahani mein
इतनी खुबसूरत रचना है कि समझ मे नही आ रही किस तरह से रंजना जी की शुक्रिया अदा करू ..............बहुत ही शानदार तोहफा है .........
आभार
रंजना जी बहुत ही अच्छी जानकारी और बहुत ही अच्छी कविता अमृता जी की पेश की है आपने तहेदिल से शुक्रिया बहुत ही अच्छी पोस्ट लिखी है और अमृता जी के बारे में तो कह सकते हैं सोने पे सुहागा
सुरेंदर जी की कहानी दिल को छू गई..
bahut hi khubsurat rachna .boond boond mai amrit ka ahsas dilati
सिर्फ इतना कहना है कि
हमें लकीर से बाहर पैर करने की कोशिश छोड़नी नहीं चाहिए.
लोग कहते हैं
कि मजहब के बदन पर
वह बहुत ढीला लगता
सो ख़त की इबारत को उन्होंने
कई जगह से फाड़ लिया था ...
मार्मिक और गूढ संदेश देती रचना.
सुरेंदर अमृताजी के विचारो को अपने करीब महसुस करता हु।
रंजनाजी आपको भी धन्यवाद प्रस्तुती के लिऐ
हे प्रभु
Aaj aapne ek baar fir Amrita ji ke baare mai kuchh naya bata diya...
sach me yahi zindgee hai...apne apne dayre hai jinse bahar niklne ki koshish har koee karta hai..
बहुत प्रभावित करनें वाली रचना .
प्रिय रंजना....आज सुबह सबसे पहली पोस्ट तुन्हारी पढ़ी...अमृता को पढ़ कर ही ताजगी का अह सास होता है ....जो ज़िन्दगी के कीमती बरस टूटते हुए देख रहा हूँ ...बस इसको टूटते हुए देखते रहता हूँ ,,कभी कभी हँस भी लेता हूँ ...जब तोड़ने फोड़ने वाले की नजर उस तरफ होती है तो अपना पैर लकीर से बाहर कर लेता हूँ ...सुंदर वाकया है....लेकिन तुम जिन्दगी के इन लम्हों को कीमती बना रही हो वरना तो कौन इतना खोज कर अमृता को पढता ....
कह दो मुखालिफ हवाओं को से कह दो
मोहबत का दिया तो जलाता रहेगा
bahut marmik baat kahi hai post bahut achhi lagi dhanyavad
"..जो ज़िन्दगी के कीमती बरस टूटते हुए देख रहा हूँ ...बस इसको टूटते हुए देखते रहता हूँ ,,कभी कभी हँस भी लेता हूँ ...जब तोड़ने फोड़ने वाले की नजर उस तरफ होती है तो अपना पैर लकीर से बाहर कर लेता ....."
मुझे तो लग रहा था कि सिर्फ मेरे साथ ही ऐसा हो रहा है.
behtrin
एक बार फिर अमृता प्रीतम की रचना को पढ़कर अभिभूत हुआ हूं । अमृता प्रीतम की हर कविता पर मै पैनी नजर ऱखता हू । शुक्रिया
कहानी बहुत अच्छी लगी.शुक्रिया.
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