Tuesday, April 21, 2009

नज्म और आवाज़ का जादू ..गुलजार -अमृता

तेरी नज्म से गुजरते वक्त खदशा रहता है
पांव रख रहा हूँ जैसे ,गीली लैंडस्केप पर इमरोज़ के
तेरी नज्म से इमेज उभरती है
ब्रश से रंग टपकने लगता है

वो अपने कोरे कैनवास पर नज्में लिखता है ,
तुम अपने कागजों पर नज्में पेंट करती हो


-गुलजार

अमृता की लिखी नज्म हो और गुलजार जी की आवाज़ हो तो इसको कहेंगे सोने पर सुहागा .....दोनों रूह की अंतस गहराई में उतर जाते हैं ..रूमानी एहसास लिए अमृता के लफ्ज़ हैं तो मखमली आवाज़ में गुलजार के कहे बोल हैं इसको गाये जाने के बारे में गुलजार कहते हैं कि यह तो ऐसे हैं जैसे "दाल के ऊपर जीरा" किसी ने बुरक दिया हो ..गुलजार से पुरानी पीढी के साथ साथ आज की पीढी भी बहुत प्रभावित है ..उनके लिखे बोल .गाए लफ्ज़ हर किसी के दिल में अपनी जगह बना लेते हैं ..पर गुलजार ख़ुद भी कई लिखने वालों से बहुत ही प्रभावित रहे हैं ..अमृता प्रीतम उन में से एक हैं ...अमृता प्रीतम पंजाबी की जानी मानी लेखिका रही हैं ...

गुलजार जी पुरानी यादों में डूबता हुए कहते हैं कि .मुझे ठीक से याद नही कि मैं पहली बार उनसे कब मिला था ...पर जितना याद आता है .तो यह कि तब मैं छात्र था और साहित्य कारों को सुनने का बहुत शौक था ..अमृता जी से शायद में पहली बार "एशियन राईटर की कान्फ्रेंस" में मिला था ....एक लिफ्ट मैं जब मैं वहां ऊपर जाने के लिए चढा तब उसी लिफ्ट मैं अमृता प्रीतम और राजगोपालाचारी भी थे .जब उनसे मिला तो उनसे बहुत प्रभावित हुआ ......उनकी नज्मों को पढ़ते हुए ही वह बड़े हुए और उनकी नज्मों से जुड़ते चले गए और जब भी दिल्ली आते तो उनसे जरुर मिलते ..तब तक गुलजार भी फ़िल्म लाइन में आ चुके थे.

अमृता जी की लिखी यह नज्में गुलजार जी की तरफ़ से एक सच्ची श्रद्धांजली है उनको ..उनकी लिखी नज्में कई भाषा में अनुवादित हो चुकी है ......पर गुलजार जी आवाज़ में यह जादू सा असर करती हैं ..इस में गाई एक नज्म अमृता की इमरोज़ के लिए है .

मैं तुम्हे फ़िर मिलूंगी ...
कहाँ किस तरह यह नही जानती
शायद तुम्हारे तख्यिल की कोई चिंगारी बन कर
तुम्हारे केनवास पर उतरूंगी
या शायद तुम्हारे कैनवास के ऊपर
एक रहस्यमय रेखा बन कर
खामोश तुम्हे देखती रहूंगी


गुलजार कहते हैं कि यदि इस में से कोई मुझे एक नज्म चुनने को कहे तो मेरे लिए यह बहुत मुश्किल होगा ..क्यों कि मुझे सभी में पंजाब की मिटटी की खुशबू आती है ..और मैं ख़ुद इस मिटटी से बहुत गहरे तक जुडा हुआ हूँ ..यह मेरी अपनी मातृ भाषा है .. अमृता की लिखी एक नज्म दिल को झंझोर के रख देती है ...और उसको यदि आवाज़ गुलजार की मिल गई हो तो ..दिल जैसे सच में सवाल कर उठता है ...

आज वारिस शाह से कहती हूँ
अपनी कब्र से बोलो !
और इश्क की किताब का कोई नया वर्क खोलो !
पंजाब की एक बेटी रोई थी ,
तूने उसकी लम्बी दास्तान लिखी
आज लाखों बेटियाँ रो रही है वारिस शाह !
तुमसे कह रही है :.......


इसकी एक एक नज्म अपने में डुबो लेती है ..और यह नशा और भी अधिक गहरा हो जाता है ..जब गुलजार जी की आवाज़ कानों में गूंजने लगती है ..यह नज्में वह बीज है इश्क के जो दिल की जमीन पर पड़ते ही कहीं गहरे जड़े जमा लेते हैं ..और आप साथ साथ गुनगुनाने पर मजबूर हो जाते हैं ..

एक जमाने से
तेरी ज़िन्दगी का पेड़
कविता ,कविता
फूलता फलता और फैलता
तुम्हारे साथ मिल कर देखा है
और जब
तेरी ज़िन्दगी के पेड़ ने
बीज बनना शुरू किया
मेरे अन्दर जैसे कविता की
पत्तियां फूटने लगीं है ..

और जिस दिन तू पेड़ से
बीज बन गई
उस रात एक नज्म ने
मुझे पास बुला कर पास बिठा कर
अपना नाम बताया
अमृता जो पेड़ से बीज बन गई....


रंजना ( रंजू ) भाटिया

25 comments:

संध्या आर्य said...

गुलजार की आवाज जो नशा घोल देती है फिज़ाओ मे.......ये दोनो ही किसी और दुनिया मे लेकर चले जाते है........

नीरज गोस्वामी said...

वाह...अब ऐसी पोस्ट पर क्या कमेन्ट किया जाए...सुभान अल्लाह...
नीरज

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

बहुत ही मनभावक

ताऊ रामपुरिया said...

बस नायाब..के सिवा क्या कहें?

रामराम.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया पोस्ट!

ravindra vyas said...

marmik!

सुशील छौक्कर said...

सच्ची बात अमृता जी के शब्द और गुलजार जी की आवाज हो तो फिर क्या कहने।

आशीष कुमार 'अंशु' said...

SUNDAR-ATI SUNDAR

अनिल कान्त said...

रूमानियत लिए हुए हैं नज्में भी और सभी जानते हैं कि गुलज़ार जी की आवाज़ रूमानी असर छोड़ जाती है इन कानों में

vandana gupta said...

kuch kahne layak hum hain kahan.........nishabd hain

प्रिया said...

Ranju mam, I heard this album " Amrita Pritam Poetry recited by Gulzaar". aapne to apni script mein bilkul jeevant discription diya hain.......sach bolu to Iske baad se hi Amrita Pritam ko janney ki lalak jagi.... aap isi tarha hamhe amrita ji se milwati rahiye....

कुश said...

अब इस पर क्या कहूँ.. बहुत बार सुन चूका हूँ ये हर बार नयी लगती है.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही दिलकश अंदाज में बयान किया है अमृता और गुलज़ार जी के काव्य को ..................दोनों ही अपने आप में छाप छोड़ते हैं इक दूजे की..........और गुलज़ार की गहरी, ओस की बूंदों से भीगी आवाज़ ..अमृता जी की कलम को बाहर निकाल देती है ................लाजवाब पोस्ट

Abhishek Ojha said...

Superb Combination !

अभिषेक मिश्र said...

उस रात एक नज्म ने
मुझे पास बुला कर पास बिठा कर
अपना नाम बताया
अमृता जो पेड़ से बीज बन गई....
Do sitaron se judi umda yaadein banti aapne.

विधुल्लता said...

मैं तुम्हे फ़िर मिलूंगी ...
कहाँ किस तरह यह नही जानती
bas itnaa hi

Ashok Pandey said...

शीर्षक में थोड़ा परिवर्तन करने की इच्‍छा हो रही है, कुछ इस तरह - नज्‍म, आवाज और लेखनी का जादू ...गुलजार-अमृता-रंजना :)

डॉ .अनुराग said...

मै तैनू फिर मिलांगी ....ओरिजनल वर्सन यही है...जो आपसे पहली वेब मुलाकात में मैंने भेजा था ..वैसे इ स्निप्स पर ये मौजूद है...लोग फ्री में डाउन लोड कर सकते है

Manish Kumar said...

Amrita ki nazmon ka Gulzar ki aawaz mein jo album hai wo suna hai. aapki is behtareen prastuti ka dhanyawaad.

ओम आर्य said...

रंजू जी, तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ आपका

admin said...

सही कहा आपने। गुलजान वर्तमान दौर के ऐसे गीतकार हैं, जिनकी कलम में उर्दू की नफासत और समय की नब्‍ज दोनों मौजूद है।

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मॉं की गरिमा का सवाल है
प्रकाश का रहस्‍य खोजने वाला वैज्ञानिक

निर्मला कपिला said...

lajavab post hai abhar

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत ही सुंदर ,अनुकरणीय .

शोभना चौरे said...

बहुत ही उम्दा पोस्ट |
बार बार पढ़ने को करता है मन|
आभार

Vineeta Yashsavi said...

Behtreen post...