Wednesday, June 17, 2009

प्यार के रिश्ते बने बनाए नहीं मिलते

तू सुगंध है
सुगन्ध किसी की मल्कियत नहीं हुआ करती
तू मेरी मल्कियत नहीं
सुगंध एहसास के लिए हैं
बाजुओं में उसकी कल्पना
धोखा है अपने आप से
धोखे में जीना
खुद को कत्ल करना है
मैंने खुद को कत्ल किया है
मैंने हर पल जहर पीया है
हर सोच में तू मेरी है
सिर्फ मेरी
और हकीकत में सदियों का फासला है
सपना स्मृति से फिसल जाता है
सच आलिंगन में रह जाता है

यह पंक्तियाँ अमृता की किताब वर्जित बाग़ की गाथा से ली गयी है ...उन्होंने लिखा है कि मैं यदि पूरी गाथा लिखने लगूंगी तो मेरी नज्मों का लम्बा इतिहास हो जाएगा इस लिए इन में बिलकुल पहले दिनों कि बात लिखूंगी जब मैंने वर्जित बाग़ को देख लिया तो अपना ही कागज कानों में खड़कने लगा था ..

तुम्हारा बुत आम का पौधा
कौन से बाग़ में लगा
कि बाग़ के माली
हमें उडाने आ गए
दुःख तो इस बात का है ..

जब अमृता बहुत छोटी थी तब फरीद की वाणी पढ़ी थी ..हंस उड़ कर खेत में आया तो लोग उडाने चले .तब अमृता इस दर्द की गहराई को समझ नहीं पायी कि लोग क्यों हंस को उडाने आ जाते हैं ? क्या वह जानते नहीं कि हंस खेत का कोई दाना नहीं खायेगा .पर जब अमृता ने इस वर्जित बाग़ कोदेख लिया तो इस दर्द को जाना ..इसी दर्द का थोडा स इजहार इस नज्म में आया

सो जा री मालिन
सो जी अरी बहना
आम की रखवाली के लिए
हमारा बिरहा जो बैठा है ....

अमृता अपनी और से अपना दर्द तो जानती थी ,फिर एक दिन उन्हें पता चला कि जब रोज़ रात को जब दिल्ली रेडियो की गाड़ी आती थी अमृता को घर छोड़ने तो गली के मोड़ पर इमरोज़ का घर था और वह घर की छत से तब तक देखता रहता कि अमृता की गाडी वहां से कब जायेगी ..गाडी चल जाती पर इमरोज़ वहीँ खड़े रहते ..और अन्दर से जब तक उनकी बहन सुभाग आवाज़ दे कर कहती कि अब तो आ जाओ भाई उसकी गाडी जा चुकी है ...
अमृता को तब इमरोज़ के मन का कुछ पता नहीं था लेकिन अपने मन का तो पता था
इस लिए लिखा गया ...
कि मैं तो कोयल हूँ
मेरी जुबान तो
एक वर्जित छाला है
मेरा तो दर्द का रिश्ता
यह वर्जित छाला अमृता की जुबान पर किसने डाला ? बाग़ की हरियाली को वर्जित किसने कह दिया ? यह तो पता नहीं लेकिन जब वह दिन आया जब अमृता और इमरोज़ मिल बैठे तो उन्हें लगा जरुर वही आदम और हव्वा थे .जिन्होंने आदम बाग़ का वर्जित फल खाया था पर तब उस बाग़ के फल को वर्जित करार किसने दिया यह कोई नहीं जानता ..
एक दिन इमरोज़ ने अमृता से कहा कि क्या तुमने कभी हुमायूं के मकबरे की सीढियां चढ़ कर कभी देखा है ..कि ऊपर से कैसा दिखाई देता है ..अमृता तब यह जानती थी कि इमरोज़ जिस विज्ञापन एजेंसी में काम करता है और उसको अपने काम के लिए अक्सर माडल लड़कियों को ले कर लाल किले या इस तरह की एतिहासिक जगह पर आना जाना होता है..जरुर कभी किसी माडल को ले कर यहाँ आया होगा और उसको पता होगा कि ऊपर से कैसा दृश्य दिखायी देता है ..इसलिए उन्होंने पूछा कि यहाँ तुम्हारा किसके साथ आना हुआ है ...
इमरोज़ ने कहा मुझे तो लगता है कि मैं तेरे बगैर कभी कहीं गया ही नहीं ..
अमृता चुप हो गयी ..जरूर कोई होनी थी जो इस तरह की बाते कहलवा देती थी ...और अमृता उसको सच मन लेती थी ..एक बार शहर में फिल्म लगी बागबान .इमरोज़ ने कहा कल एक फिल्म देखी है बाकी फिल्मों से अलग है दिल चाहता है कि तुम्हारे साथ फ़िर से मिल कर देखना चाहता हूँ ...

जो कहानी उस फिल्म की इमरोज़ ने अमृता को बतायी उस कहानी में एक आमिर घर के लोग एक अनाथ नवजात समुन्द्र के किनारे कि मछुआरे के बस्ती से एक शिशु को अपने घर ला कर पालते हैं .....वह बच्चा शहर में पलता बढा होता है और शहर की ही एक लड़की से शादी करके वापस मछुआरों की बस्ती में आ कर उनके आगे बढ़ने और उनके मेहनत और गरीबी देख कर उसके हल तलाश करने की कोशिश में लगा जाता है ..और कुछ दिन में वह खुद एक अच्छा मछुआरा बन जाता है ..जिस लड़की के साथ उसकी शादी हुई है वह इस ज़िन्दगी से इनकार नहीं करती पर उस ज़िन्दगी से कुछ उदासीन भी बनी रहती है ...ज़िन्दगी यूँ ही एक तरह से चल रही होती है .कोई शिकवा नहीं कोई शिकायत नहीं ....बस जब वह समुंदर से मछली पकड़ कर आता है तो वह उसको खाने से पहले नहाने को कहती है क्यों कि उस से वह मछली की बू सहन नहीं होती है ...फिर कुछ दिन के लिए उसकी पत्नी शहर चली जाती है ....पीछे से उस का खाना व अन्य कामों के लिए एक लड़की को उसी बस्ती से रख जाती है ....वह लड़की मछली की गंध से इतनी वाकिफ है कि वह समुन्द्र से उसके लौटने पर उसको तौलिया साबुन न नहाने को कह कर सीधा खाना खाने के लिए बुला लेती है ..इस तरह जिन्दगी कुछ दिन चलती है फिर वह उस की पत्नी के आने पर वापस लौट जाती है | एक दिन सभी मछुआरे समुन्द्र में मछली पकड़ने जाते हैं कि अचानक तूफ़ान आ जाता है सारे मछुआरे वापस आ जाते हैं पर वह नायक तूफ़ान में फंस जाता है ..कोई उस उफनते समुन्द्र में उतरने की हिम्मत नहीं कर पाता ..तभी वह लड़की जो पहले उनके घर काम कर चुकी थी वह अपनी नौका ले कर उस तूफ़ान में समुन्द्र में जा कर उस नायक को बचा कर ले आती है ...
यह समुंदरी तूफ़ान दो दिलो कि जद्दो जहद का भी है ...सारा गाँव जश्न मानता है और उस नायक की पत्नी जुबान से कुछ नहीं कहती पर गहराई से सोचती है कि उस नायक के साथ जीने लायक वह लड़की है जो नौका ले कर तूफ़ान में चली गयी ,मैं तो सिर्फ किनारे में खड़ी देखती रह गयी और यह सोच कर वह वापस शहर चली जाती है ..अमृता ने और इमरोज़ ने यह फिल्म एक साथ मिल कर देखी ... देख कर दोनों उसकी कहानी से भरे हुए थे जिस में न कोई तकरार थी.... होंठो पर न मोहब्बत के हर्फ न किसी शिकवे के लेकिन जैसे सहज जीना उन किरदारों के साथ ही हो गया था ...
दिल में एक ही हसरत रही कि किसी तरह से वह सहज ढंग से एक साथ रह सके पर कोई रास्ता तब दोनों को ही नहीं दिखाई देता था ..अमृता इमरोज़ से अक्सर कहती कि 'देख इमरोज़ तेरी तो जीने बसने की उम्र है जाओ तुम अपनी ज़िन्दगी जीओ .मैंने तो अब वैसे भी बहुत दिन नहीं जीना है ."..और इमरोज़ कहते कि मैंने क्या तेरे बगैर जी कर मरना है ..? शायद तभी अमृता जा कर भी उनकी ज़िन्दगी से अब तक दूर नहीं हो पायी है .

प्यार के रिश्ते
बने बनाए नहीं मिलते
जैसे माहिर बुत तराश को
पहली नजर में ही अनगढ़ पत्थर में से
संभावना दिख जाती है मास्टर पीसकी
मास्टर पीस बनाने के लिए
बाकी रह जाता है सिर्फ ..तराश --तराश ---तराश

उसी तरह
दो इंसानों को भी पहली नजर में
एक दूसरे में संभावना दिख जाती है -
प्यार की जीने योग्य रिश्ते की
बाकी रह जाती है तराश -तराश -तराश --
सोते जागते हुए भी
बोलते बुनते हुए भी ...
खामोशी में भी
और एक दूसरे को देखते हुए भी
और न देखते हुए भी
यह ज़िन्दगी का रिश्ता दिलकश रिश्ता
एक रहस्यमय रिश्ता
न यह रिश्ता ख़त्म होता है
और न ही इसकी.. तराश -तराश -तराश ...

30 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

अमृता जी की रचनाएं जिंदगी के बेहद करीब ले जाती हैं। और उनकी इस बात से भला कौन इनकार कर सकता है कि प्यार के रिश्ते बनाए नहीं मिलते।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

sada said...

तू सुगंध है
सुगन्ध किसी की मल्कियत नहीं हुआ करती,

हर बार की तरह इस बार भी बेहतरीन प्रस्‍तुति, जिसके लिये आपका आभार ।

श्यामल सुमन said...

अमृता प्रीतम जी की रचना के बारे में क्या कहना? जीवन के बहुत करीब तक ले जाती है। आपका प्रयास अच्छा लगा।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

shahid "ajnabi" said...

अमृता जी मुहब्बत की इक जीती हुई पैकर हैं. हमेशा मेरी नज़रों में लफ्ज़ कम ही रहेंगे उनके लिए. क्योंकि उनको लफ्जों में लिखना आफताब को चिराग दिखाने जैसी बात है.

शाहिद "अजनबी"

Alpana Verma said...

पोस्ट का शीर्षक ही कितना कुछ कह गया..
'अमृता और इमरोज़ के भावभरे किस्से के एक और हिस्से को जाना.
धन्यवाद.

ओम आर्य said...

अमृता जी की रचना जितनी ही जिन्दगी के करीब है उतनी ही किसी और दुनिया मे हमे ले जाता है जहाँ सैकडो मील का फासला दिखता है .......कभी कभी उनकी रचानाये ये भी कहने को मजबूर करती है कि अमृता जी आज से बहुत आगे की सोच रखती है......

बहुत ही सुन्दर हमेशा की तरह .........उत्तम प्रस्तुति

अनिल कान्त said...

in ke har shabd mein dil kho jata hai.......

Pratibha Katiyar said...

sunadar!

दिगम्बर नासवा said...

प्यार के रिश्ते
बने बनाए नहीं मिलते
जैसे माहिर बुत तराश को
पहली नजर में ही अनगढ़ पत्थर में से
संभावना दिख जाती है मास्टर पीसकी
मास्टर पीस बनाने के लिए
बाकी रह जाता है सिर्फ ..तराश --तराश ---तराश



अमृता जी की कहानिया, उनके लेख और कवितायें जीवन के आस पास ही बिखरे हुवे मिल जाते हैं........... उनकी लेखनी का चमत्कार उन्हें स्वप्निल दुनिया में ले जाता है....... itni खूबसूरत abhivyakti को aapne sambhav kar diyaa hameshaa की tarah

नीरज गोस्वामी said...

अमृत साहित्य से रूबरू करवा कर आप हम सब पर बहुत उपकार कर रहीं हैं...उन्हें जितना जब पढो अलग ही आनंद आता है...
नीरज

डिम्पल मल्होत्रा said...

प्यार के रिश्ते
बने बनाए नहीं मिलते
जैसे माहिर बुत तराश को
पहली नजर में ही अनगढ़ पत्थर में से
संभावना दिख जाती है मास्टर पीसकी
मास्टर पीस बनाने के लिए
बाकी रह जाता है सिर्फ ..तराश --तराश ---तराश ....esse badha sach koee or nahi hai...

vandana gupta said...

shabd kya hain jadoo hain.........pata nhi kahan le jate hain.........us duniya se ubarna aasan nhi hota....har lafz ek kahani kah jata hai.
unko padhwane ke liye shukriya.

Anonymous said...

sundar

Arvind Mishra said...

संवेदित हुआ मन पढ़ कर !

सुशील छौक्कर said...

सच प्यार के रिश्ते बने बनाए नहीं मिलते है।
दो इंसानों को भी पहली नजर में
एक दूसरे में संभावना दिख जाती है -
प्यार की जीने योग्य रिश्ते की
बाकी रह जाती है तराश -तराश -तराश --

क्या कहें इन शब्दों के आगे हमारे लायक कुछ कहने को कहाँ रह जाता है।

शेफाली पाण्डे said...

amrita jee kee rachna padhvane ke lie aabhaar....

प्रिया said...

Nissandeh amrita ji ke kayal to hum bhi hain... aapki post padhkar bahut accha laga ... bes ek baat puchana chahte hain ki ..
प्यार के रिश्ते
बने बनाए नहीं मिलते
जैसे माहिर बुत तराश को
पहली नजर में ही अनगढ़ पत्थर में से
संभावना दिख जाती है मास्टर पीसकी
मास्टर पीस बनाने के लिए
बाकी रह जाता है सिर्फ ..तराश --तराश ---तराश

उसी तरह
दो इंसानों को भी पहली नजर में
एक दूसरे में संभावना दिख जाती है -
प्यार की जीने योग्य रिश्ते की
बाकी रह जाती है तराश -तराश -तराश --
सोते जागते हुए भी
बोलते बुनते हुए भी ...
खामोशी में भी
और एक दूसरे को देखते हुए भी
और न देखते हुए भी
यह ज़िन्दगी का रिश्ता दिलकश रिश्ता
एक रहस्यमय रिश्ता
न यह रिश्ता ख़त्म होता है
और न ही इसकी.. तराश -तराश -तराश ...

ye kavita Amrita ji ki hain ya phir aapki rachan.? .... bahut achchi hain

Abhishek Ojha said...

कितना सच है ! प्यार का तो एक अलग ही संसार है.

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत ही भावपूर्ण .

अभिषेक मिश्र said...

संवेदना की अद्भुत झलक है अमृता की लेखनी में.

Vineeta Yashsavi said...

सोते जागते हुए भी
बोलते बुनते हुए भी ...
खामोशी में भी
और एक दूसरे को देखते हुए भी
और न देखते हुए भी
यह ज़िन्दगी का रिश्ता दिलकश रिश्ता
एक रहस्यमय रिश्ता
न यह रिश्ता ख़त्म होता है
और न ही इसकी.. तराश -तराश -तराश ...

bahut acchi kavita parwayi apne Amrita ji ki...

निर्मला कपिला said...

कि मैं तो कोयल हूँ
मेरी जुबान तो
एक वर्जित छाला है
मेरा तो दर्द का रिश्ता
ितना दर्द्की दिल चिथडे-चिथडे सा बिखर जायेप्यार के रिश्ते
बने बनाए नहीं मिलते
जैसे माहिर बुत तराश को
पहली नजर में ही अनगढ़ पत्थर में से
संभावना दिख जाती है मास्टर पीसकी
मास्टर पीस बनाने के लिए
बाकी रह जाता है सिर्फ ..तराश --तराश ---तराश ....
जीवन की सच्चाई से रूबरु कर्वाता हर लफ्ज़ आँखों को नम कर देता है नमन्

Manish Kumar said...

आपकी इस सतत मेहनत को सलाम।

विधुल्लता said...

तू सुगंध है ...जिन्दगी के करीब है

बवाल said...

आदरणीय रंजू जी,
अमृता जी जो लिख गईं वो तो ठीक है लेकिन जिस बेहतरीन अंदाज़ से आप उनके लेखन का विश्लेषण प्रस्तुत करती हैं जी, वो अपने आप में बेमिसाल है। हम सभी को आपका बहुत बहुत आभार मानना चाहिए जी इस बात के लिए।

हरकीरत ' हीर' said...

एक लम्बी साँस ....और एक गहरी आह ......बस......!!!!!

google speedy cash said...

good sotry

ρяєєтii said...

प्यार के रिश्ते
बने बनाए नहीं मिलते
जैसे माहिर बुत तराश को
पहली नजर में ही अनगढ़ पत्थर में से
संभावना दिख जाती है मास्टर पीसकी
मास्टर पीस बनाने के लिए
बाकी रह जाता है सिर्फ .. तराश - तराश - तराश

क्या कहे इनके लिए हम ... इनके प्यार में खुदा का स्पर्श, एक बंदगी झलकती है, जो हर किसी का नसीब नहीं ... हम सिर्फ अमृता प्रीतम को जानते थे. स्कूल में उन्हें ही पढ़ा था न् . २ दिन पहले "माँ" ने हमें इमरोज़ जी से परिचय करवाया, ofcourse उनकी बातो से ... हमें अमृता-इमरोज़ के बारे में जानने की और जिज्ञाशा हुई और इसी जिग्याशावश हम खोजते खोजते आपके ब्लॉग तक पहुच गए, और आपके द्वारा भी इन्हें कुछ ओर जाना ., बहूत शुक्रिया ...!

vandana gupta said...

अमृता जी पढना हमेशा ही ऐसा लगता है जैसे खुद को पढ रही हों……………इसके आगे कुछ कहने को शब्द ही नही बचते।

Kailash Sharma said...

एक उत्क्रष्ट आलेख जिसने निशब्द कर दिया।