Sunday, August 16, 2009

और जब तूने पलट कर आवाज़ दी ...

एक असीम खमोशी थी
जो सूखे पत्तों की तरह झरती
या यूँ ही किनारे की रेत की तरह घुलती ...


पिछली पोस्ट में अमृता की कहानी का ज़िक्र था .उनकी कहानियाँ ज़िन्दगी के यथार्थ से बुनी हैं इस लिए दिल को छू जाती है और अपनी सी लगती हैं ...उनकी आज की कहानी पिघलती चट्टान नेपाल की कुमारी की व्यथा से जुडी है ..
रात के चौथे पहर में एक अकेली पगडण्डी पर राजश्री अकेली अपने पैरों के साथ बात करती जा रही है उसको महसूस होता है कि जैसे इस पगडण्डी से उसके पैरों की बात चीत बहुत लम्बी और बहुत पुरानी है शायद दो सौ बरस से भी अधिक पुरानी ..
अचानक उसके पैर चलते चलते एक स्थान पर ठहर जाते हैं और वह सोचने लगी है कि वह इस तरह से कहाँ जा रही है ..यह कौन सा रास्ता है ..सामने नदी में बहुत बड़ा भंवर पड़ा हुआ है जो उसकी तरफ मुस्करा के देखता है और कहता है वहीँ जा रही हो जहाँ दो सौ साल पहले तुम्हारे वंश की एक कुमारी रतनराज लक्ष्मी गयी थी ..यह सुन कर राजलक्ष्मी घबरा गयी उसने अपने आस पास देखा यहाँ उसके सिवा कोई और ना था
उसकी आँखों में एक हसरत सी भर गयी ...पैरों के लिए सिर्फ एक ही रास्ता क्यों ...कोई और रास्ता क्यों नहीं ....? इस पर्वत पर सिर्फ एक ही रास्ता क्यों बना ...
राजलक्ष्मी की इस बेबसी के साथ पढने वाले दिल भी बेबस हो जाते हैं ....
राजश्री चट्टानों एक बीच खड़ी जैसे खुद चट्टान हो गयी .उसके सवाल का कोई जवाब कहीं से नहीं मिलता है ...तभी एक नर्म सो आवाज़ उसको चौकना देती है रकसी ..वह किसी फूल की डंडी की तरह कांप उठती है और उस आवाज़ कि तरफ देखती है उस से कुछ ही दूर वह खडा जिसको रोज़ वह इसी पर्वत की परिक्रमा करते हुए देखती रहती है ...
मुझसे तुमसे सिर्फ कुछ बातें करनी है ..मुझे कुछ ती बात करने की इजाजत दो रकसी ....वह वहीँ खडा था ,पर उसकी आवाज़ उसके पास छल कर आ गयी
वह गुलाबी रंग की हो आई पर अपनी साडी की तरह सफ़ेद ठंडी आवाज़ में उसने कहा कि मैं रकसी नहीं हूँ मेरा नाम रकसी नहीं है ...
मुझे नहीं जानना है तुम्हारा नाम ..मैंने सिर्फ यहाँ रकसी पी है ..और मुझे लगता है कि यूँ इस धरती की रकसी से भी बढ़ कर कोई चीज हो ...
रकसी तो सिर्फ शराब होती है ..
पर अगर कोई धरती की मिटटी की भी शराब हो सकती है तो वह तुम हो ...
मैं ...........
तुम्हे देखा और मैं फिर इस धरती से लौट नहीं सका "
तुम ..राजश्री .की आवाज़ रात के चौथे पहर की हवा की तरह कोमल हो उठी ...और अधिक ठंडी भी ..तुम जिस देश से आये हो वहीँ लौट जाओ नहीं तो ...
नहीं तो ...
परदेशी ....
मेरा नाम कुमार है !
"अच्छा राजकुमार !!"
मैं राजकुमार नहीं !
सिर्फ कुमार हूँ साधारण सा कुमार ..
पर तुम्हारा इतिहास ..तुम जानते हो मैं कौन हूँ ?
कुमार ने किसी फूल की पहली खिली हुई पट्टी की तरह कहा इस मिटटी की बेटी ..इस मिटटी की शराब

राजश्री सीधी तन के खड़ी हो गयी और बोली नहीं मैं कुमारी हूँ ..तुम्हे पता है हमारे देश में कुमारी क्या होती है ?
नहीं
नीचे जा कर काठमांडू की वादी से जा कर किसी से भी पूछो पता चल जाएगा
मैं और किसी से मैंने कुछ नहीं पूछना जो पूछना है तुमसे ही पूछना है ..
मैं श्क्य्वंशी हूँ बोधियों के वन्दनीय वंश से बादियों से
फिर ?
मेरे वंश में जिस लड़की के रूप में बत्तीस लक्ष्ण हो
वह मैं देख रहा हूँ ..तुम मेरे सपनों से भी अधिक सुन्दर हो
पर मेरे वंश में जब लड़की सात वर्ष की होती है कुमारी चुनी जाती है
क्या मतलब ..?
तुम्हे शायद मेरी धरती का इतिहास नहीं मालूम ..यहाँ का राजा असल में सिर्फ राज का प्रतिनिधि होता था राज असल में कुमारी का होता था वह कुमारी घर में रहती थी और राजा उसकी पूजा करता था और राज काज संभलता था
पर वह तो पुराने समय की बात होगी ना !
हाँ , एक तरह से अब भी है ..अब भी मेरे वंश की लड़की उस वक़्त तक कुमारी रहती है जब तक वह जवान नहीं हो जाती है
फिर
वह जवान हो जाती है कुमारी नहीं रहती है उसकी जगह कोई और कुमारी ले लेती है और देश का राजा उसकी पूजा करता है
पर तुम अब ....
अब मैं कुमारी नहीं ..पर मैं कुमारी थी

मेरी मोहब्बत को तुम्हारे अत्तित से कोई वास्ता नहीं है तुम जो भी थी .

पर तुम्हे पता नहीं एक बात बताऊ

मैं आज रात इस वक़्त पूजा करनी आई पर कर नहीं पायी
क्यों ..?
मैं अपने शान्क्य वंश के बुद्ध से अपना आप मांगने आई थी .मेरा अपने आप ...राजश्री ने चट्टान की तरफ देखा और कहा कि कुमारी एक चटान की तरह होती है जो कभी पिघलती नहीं है ...पर मैं कई दिन से ऐसा लगा रहा है कि पिघल रही हूँ .तुम्हे देख कर ..रोज़ तुम्हे इस पर्वत की परिक्रमा में देखा है .यह कह कर वह अधिक उदास हो गयी ..कैसे सवेरा होने से पहले रात उदास हो जाती है ..मेरा अपना आप मुझसे छुटता जा रहा है ..सोचती हूँ अपने आप को हाथ में पकड़ कर भी क्या कर लूंगी ..
कुमार के पैर दिल की तरह धडक उठे ..कुछ आगे बढ़ कर वह उसके पास आगया और खिलते फूल की महक की तरह धीरे से बोला कुमारी ...
कुमारी को सारु उम्र इस तरह कुमारी रहना पड़ता है राजश्री ने यह कह कर अपना चेहरा दोनों हाथों से इस तरह धक् लिया जैसे पुरुष की गंध में सांस लेने से भी डरती हो ...और बोली यह कुमारी राज का कानून नहीं है पर जो कुमारी से शादी करता है वह मर जाता है ऐसा कहा जाता है ..
मुझे मरना मंजूर है ...कुमार ने दोनों हाथ राजश्री के हाथो पर फूलों जैसे कर दिए ..
राजश्री ने कांप कर अपने हाथ हटा लिए ..कहने लगी इस धरती पर पहले शक्ति राज होता था उस वक़्त से ही यह कानून बना है कि यदि कोई कुमारी जिसके साथ भी ब्याह करेगा वह जीता नहीं रहेगा ..
पर कुमारी एक समय का सच हर वक़्त का सच नहीं होता ...
पता नहीं राजश्री ने पर्वत के पीछे बह रही 'वसीगा" नदी की तरफ देखा और कहा कि मेरे वंश में मेरी तरह एक रत्नराज लक्ष्मी हुई थी वह मेरी ही तरह कुमारी चुनी गयी हाथो में राजा के भेजे हुए कंगन पहने गले में लाल रंग की चोली और लाल रंग का गहना माथे पर सिंदूर का लेप और फिर मेरी तरह वह भी जवान हुई उसको कुमारी घर से वापस उसकी माँ के घर भेज दिया गया वह भी इसी पर्वत पर घूमती रही ..और एक दिन इसी पर्वत के पीछे वाली नदी में डूब कर मर गयी
क्यों ?? कुमार ने थिरकती उंगिलयों से कुमारी के कंधे को छुआ
शायद उसको भी कोई कुमार पसंद आ गया था ..राजश्री ने कहा और थोडा सा हट कर पर्वत के नीचे उतर रहे रास्ते को देखने लगी .फिर बोली पिछले दो सौ सालों से भी अधिक हमारे पैरों के लिए यही रास्ता बना हुआ है हमें इसी रास्ते पर चलना है ..
नहीं नहीं !! ...कुमार ने आगे हो कर राजश्री का हाथ पकड़ लिया
राजश्री ने नदी के जैसा एक गहरा सांस लिया और कहने लगी जब किसी लड़की को कुमारी बनाया जाता है उसके माथे पर सोने चांदी की एक आँख लगाई जाती है तीसरी आँख ...उसको हम दृष्टि कहते हैं ..उस में सच मुच कोई शक्ति होती है उस से मन की ताकत कभी नहीं डोलती है ..पर अब ,,,अब तो इन साधारण आँखों से कोई और रास्ता नहीं दिखायी देता है
कुमार आगे आया और राजश्री को बिलकुल अपने पास करके उसके माथे को चूम लिया और यह एक मर्द का सारा इकरार .......तीसरी आँख ..! और कुमार ने राजश्री को नदी की तरफ से हटाते हुए कहा क्या इस तीसरी आँख से भी कोई रास्ता नहीं दिखाई देता .? जीने का रास्ता ...?
राजश्री ने सामने एक पर्वत जैसे मर्द को देखा फिर हथेली से उसकी छाती को इस तरह से छुआ जैसे यहाँ से कोई जीने का रास्ता खोज रही हो .कहने लगी जब सात बरस की बच्ची को कुमारी चुनते हैं पहले सारी रात एक कमरे में जानवरों की खोपड़ियों रख कर उस लड़की को कमरे में बंद कर देते हैं जो सारी रात ना घबराए वही कुमारी चुनी जाती है पर एक समय आता है ..उम्र का तकाजा जब वही कुमारी अपने आप से घबरा जाती है ..
कुमार ने राजश्री को कस कर अपन गले से लगा लिया और सवेरे का पहला उजाला हजारों चट्टानों के बीच खड़ी हुई एक पिघलती चट्टान को देखने लगा ...

मैंने तुझे एक मोड़ पर आवाज़ दी
और जब तूने पलट कर आवाज़ दी
तो हवाओं के गले में कुछ थरथराया
मिटटी के कण कुछ सरसराये
और नदी का पानी कुछ गुनगुनाया ,
पेड़ की टहनियां कुछ कस सी गयीं
पत्तों से एक झंकार उठी
फूलों की कोपल ने आँख झपकाई
और एक चिडिया के पंख हिले ....
यह पहला नाद था
जो कानों ने सुना था !

खुद से खुद की लड़ाई और फिर उस को पा लेना जैसे बहुत कुछ कह गया इस कहानी में ..



आने वाली ३१ अगस्त को अमृता जी का जन्मदिन है ..अभी तक आपको अमृता का पढा जो भी अच्छा लगा ही चाहे खुद से या इस ब्लॉग से वह मुझे मेल से भेजे ..उनके जन्मदिन पर उनका कहा, आपकी पसंद से इसी ब्लॉग पर रखा जाएगा ..शुक्रिया ..

8 comments:

Mohinder56 said...

भावनाप्रद पढने में रुचिकर आलेक के लिये बधाई

नीरज गोस्वामी said...

ऐसा क्या है जो अमृता जी ने लिखा हो और पसंद न आया हो...कम से कम मेरे पास तो उनकी कोई रचना ऐसी नहीं है...आप किस किस रचना को अपने ब्लॉग पर जगह देंगीं? अमृता जी जैसा न कोई दूसरा हुआ है और न ही होगा...
आभार आपका जो उनका लिखा आप हम सब के बांटती हैं.
नीरज

रंजू भाटिया said...

नमस्ते नीरज जी ..सही कहा आपने पर कई बार पढा हुआ ऐसा लगता है कि वह आपके जीवन से जुडा है ..और बहुत अधिक प्रभावित कर जाता है ...उनका लिखा वाकई ऐसा नहीं है जो पसंद न आये...यहाँ सबकी पसंद से उनका एक विशेष अंक जुड़ जाएगा बस यही कोशिश हैशुक्रिया

विधुल्लता said...

तुम्हे देखा और मैं फिर इस धरती से लौट नहीं सका.अच्छी लगी ये पंक्तियाँ "प्रिय रंजना बहुत दिनों बाद तुम्हारे ब्लॉग पर हूँ ...नहीं आ पाई पर याद शिद्दत से करती थी तुमने ठीक याद दिलाया में अमृता जी पर सामग्री भेजती हूँ .

वाणी गीत said...

नेपाल भ्रमण के दौरान कन्या दर्शन के दौरान ऎसी ही एक कन्या को भी देखा था..यह लेख पढ़कर उस व्यथा की याद ताजा हो गयी ..
मैं आपके ब्लॉग की फोलोवर भी हूँ ...मगर आपकी यह पोस्ट वहां नजर नहीं आ रही..!!

रश्मि प्रभा... said...

amrita ji ko padhna ek alag sa sukun hai....bahut khoob

vandana gupta said...

behtreen likha hai amrita ji ne to hamesha hi aur hamein to unhein padhne ki hi ichcha bani rahti hai.........shukrgujar hein aapke.

diwali ki shubhkamnayein

प्यार की स्टोरी हिंदी में said...

Nice Love Story Added by You Ever. Read Love Stories and प्यार की कहानियाँ aur bhi bahut kuch.

Thank You For Sharing.