तेरी यादें ...
बहुत दिन बीते जलावतन हुई
जियीं की मरी ---कुछ पता नही |
सिर्फ़ एक बार --एक घटना घटी
ख्यालों की रात बड़ी गहरी थी
और इतनी स्तब्ध थी
कि पत्ता भी हिले
तो बरसों के कान चौंकते |
फ़िर तीन बार लगा
जैसे कोई छाती का
द्वार खटखटाता
और दबे पांव
छत पर चढ़ता कोई
और नाखूनों से
पिछली दिवार को कुरेदता
तीन बार उठ कर
मैंने सांकल टटोली
अंधेरे को जैसे
एक गर्भ पीड़ा थी
वह कभी कुछ कहता
और कभी चुप होता
ज्यों अपने आवेश को
दांतों में दबाता
फ़िर जीती जागती एक चीज
और जाती जागती एक आवाज़
"मैं काले कोसों से आई हूँ
प्रहरियों की आँख से
इस बदन को चुराती
धीमे से आती
पता है मुझे
कि तेरा दिल आबाद है
पर कहीं वीरान सूनी
कोई जगह मेरे लिए !"
सूनापन बहुत है पर तू "
चौंक कर मैंने कहा __
तू जलावतन _
नहीं कोई जगह नहीं
मैं ठीक कहती हूँ _
कि तेरे लिए कोई जगह नहीं
यह मेरे तर्क ,
मेरे आका के हुक्म हैं !
और फ़िर जैसे
सारा अंधियारा कांप जाता है
वह पीछे लौटी
पर जाने से पहले
कुछ पास आई
और मेरे वजूद को
एक बार छुआ है
धीरे से
ऐसे,जैसे कोई
वतन की मिटटी को छूता है ...
अमृताकी इस रचना में एक बेबसी जिस तरह से उभर कर आई है वह दिल को छू लेती है .....और बहुत कुछ कह जाती है ..उनकी रचनाओं में सहज हीदिल की बात कही गई होती है जो हर किसी से अपनी बात समझा जाती है ..यह रचना भी उनकी श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है ....शुक्रिया
बहुत दिन बीते जलावतन हुई
जियीं की मरी ---कुछ पता नही |
सिर्फ़ एक बार --एक घटना घटी
ख्यालों की रात बड़ी गहरी थी
और इतनी स्तब्ध थी
कि पत्ता भी हिले
तो बरसों के कान चौंकते |
फ़िर तीन बार लगा
जैसे कोई छाती का
द्वार खटखटाता
और दबे पांव
छत पर चढ़ता कोई
और नाखूनों से
पिछली दिवार को कुरेदता
तीन बार उठ कर
मैंने सांकल टटोली
अंधेरे को जैसे
एक गर्भ पीड़ा थी
वह कभी कुछ कहता
और कभी चुप होता
ज्यों अपने आवेश को
दांतों में दबाता
फ़िर जीती जागती एक चीज
और जाती जागती एक आवाज़
"मैं काले कोसों से आई हूँ
प्रहरियों की आँख से
इस बदन को चुराती
धीमे से आती
पता है मुझे
कि तेरा दिल आबाद है
पर कहीं वीरान सूनी
कोई जगह मेरे लिए !"
सूनापन बहुत है पर तू "
चौंक कर मैंने कहा __
तू जलावतन _
नहीं कोई जगह नहीं
मैं ठीक कहती हूँ _
कि तेरे लिए कोई जगह नहीं
यह मेरे तर्क ,
मेरे आका के हुक्म हैं !
और फ़िर जैसे
सारा अंधियारा कांप जाता है
वह पीछे लौटी
पर जाने से पहले
कुछ पास आई
और मेरे वजूद को
एक बार छुआ है
धीरे से
ऐसे,जैसे कोई
वतन की मिटटी को छूता है ...
अमृताकी इस रचना में एक बेबसी जिस तरह से उभर कर आई है वह दिल को छू लेती है .....और बहुत कुछ कह जाती है ..उनकी रचनाओं में सहज हीदिल की बात कही गई होती है जो हर किसी से अपनी बात समझा जाती है ..यह रचना भी उनकी श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है ....शुक्रिया
18 comments:
अमृता प्रीतम जीवित ही मिथक हो चली थीं..अब तो उन्हें याद करना जैसे प्रेम की हर फुहार महसूसना है..
Amrata preetam ko aapke madhyam se mahsoos karte hain.aapki yeh shiddat hamesha bani rahe. aameen!
bahut achha laga aapka amrita ji ko yaad karne ka dhang
तेरी यादें ...
बहुत दिन बीते जलावतन हुई
जियीं की मरी ---कुछ पता नही |
ऐसी पंक्तियाँ वो कलम की चितेरी ही लिख सकती थीं...कविता का एक एक शब्द मन को झिंझोड़ता हुआ.....बहुत बहुत शुक्रिया उनकी इस बेहतरीन रचना से रु-बी-रु करवाने के लिए
सही कहा आपने यह श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है
ीअमृता जी को शत शत नमन धन्यवाद आपका इस रचना को पढवाने के लिये
रंजना जी
सादर वन्दे!
इस रचना की और अमृता प्रीतम की बड़ाई करना मतलब सूरज को रोशनी दिखाना है,
लेकिन आपको इसे प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद, क्योंकि हम जब ऐसे ही, इन जैसे विभूतियों को याद करते हैं तो इनकी रचनाओ के साथ-साथ हमारी लेखनी भी सार्थक हो जाती है.
रत्नेश त्रिपाठी
पर जाने से पहले
कुछ पास आई
और मेरे वजूद को
एक बार छुआ है
धीरे से
ऐसे,जैसे कोई
वतन की मिटटी को छूता है ...
अमृता का साहस अपर प्रेम उनकी हर रचना के एक एक शब्द से झलकता है ..
इन शब्दों से रूबरू हो पाने के लिए आपका बहुत आभार ....!!
khoobsoorat rachna
तेरी यादें ...
बहुत दिन बीते जलावतन हुई
जियीं की मरी ---कुछ पता नही |
और इतनी स्तब्ध थी
कि पत्ता भी हिले
तो बरसों के कान चौंकते |
अंधेरे को जैसे
एक गर्भ पीड़ा थी
ज्यों अपने आवेश को
दांतों में दबाता
यह मेरे तर्क ,
मेरे आका के हुक्म हैं !
ऐसे,जैसे कोई
वतन की मिटटी को छूता है ...
... अवाक्... कहाँ से ऐसे आती है ऐसी कसावट... इस पर तो एक लम्भी चर्चा हो सकती है... कितना शोर है इनमें........
Behtreen rachna...
अमृता प्रीतम की कलम की तारीफ़ करना सूरज को दिया दिखाने के बराबर है.. मैंने उनकी पिंजर पड़ी है.. पंजाबी तड़के के साथ हिंदुस्तान के बंटवारे का दर्द और एक लव स्टोरी का बेजोड़ संगम है..
'Amrita Preetam' Yeh naam hi apne aap me prem aur samvedansheelta ka aaina ban chuka hai............is achchhi rachna ke liye shukriya.
उनकी हर रचना एक सुंदर एक है.
Nice Post!! Nice Blog!!! Keep Blogging....
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बहुत अच्छी एवं सुन्दर रचना
बहुत -२ आभार
बहुत ही सुंदर रचना है।
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एक बार छुआ है
धीरे से
ऐसे,जैसे कोई
वतन की मिटटी को छूता है ...।
बहुत ही गहराई लिये हुये ।
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