इमरोज़ चित्रकार
मेरे सामने
ईजल पर एक कैनवस पड़ा है
कुछ इस तरह लगता है --
कि कैनवस पर लगा लाल रंग का एक टुकडा
एक लाल कपड़ा बनकर हिलता है
और हर इंसान के अन्दर का पशु
एक सींग उठाता है
सींग तनता है --
और हर कूचा- गली- बाजार
एक रिंग बनता है
मेरे पंजाबी रगों में
एक स्पेनी परम्परा खौलती है
गोया की मिथ ---
बुल फाइटिंग --टिल डेथ ---
चित्रकार इमरोज़ से जब अमृता की मुलाकात हुई तो उनके कला और व्यक्तितव का एक नया पहलू सामने आया ..वह जो बहुत बार देखा पढ़ा हो कर भी अनकहा सा था ..यहाँ इस में यह उनके उसी साक्षात्कार के रूप में है ॥
अमृता ..इमरोज़ ! हलों कुदाल वाले घराने में जन्म ले कर आपने खेती के औजार थामने की बजाय हाथों में रंग और ब्रश कैसे ले लिए ?
इमरोज़ : यह भी हल ही चला रहा हूँ ,विचारों की जमीन पर .छुटपन में घर में हर वक्त ड्राइंग किया करता था .हलांकि स्कूल में ड्राइंग नहीं थी ..यह ठीक है शुरू में जिन चीजों की ड्राइंग की ,वे सब खेतों और हल कुदाल से ही जुड़ी हुई थी ॥
अमृता : आप औरत की ड्राइंग में माहिर है ? क्या औरत का बुनयादी तसव्वुर खेतों में रोटी ले कर जाने वाली औरत का था ?
इमरोज़ : नहीं जब हलों कुदाल की ड्राइंग करता था ,तब औरत की ड्राइंग नहीं करता था .हल कुदाल भी मेरा सपना कभी नहीं थे - वे सिर्फ़ आब्जेक्ट थे
अमृता : सारे कलाकार यथार्थ की व्याख्या अलग अलग करते हैं .इमरोज़ आपकी नजर में यथार्थ क्या है ?
इमरोज़ :मेरे अनुसार हर यथार्थ एक नए यथार्थ को जन्म देता है वह शायद आम लोगों की पकड़ में नहीं आता पर हर कलाकार उसको जरुर पहचान लेता है ,जब बाहरी चीजों को अन्दर की नजर मिलती है तब वह कई नए आकार लेती है नए यथार्थ जन्म
अमृता : केनवस के रंगों और हाथों के सामने रखने से पहले आप पेन्सिल स्केच बनाते हैं या सिर्फ़ जहनी स्केच ?
इमरोज़ : दोनों
अमृता : अमरीकन चित्रकार इवान अलब्राईट को अपनी एक पेंटिंग पर बीस साल लग गए वह उस पर बीस साल काम करते रहे और उनके लफ्जों में यह सारी दुनिया की यात्रा थी ..क्या आपको भी किसी पेंटिंग ने इस तरह से बरसों बांधे रखा ?
इमरोज़ : औरत की ड्राइंग करते हुए मुझे तीस बरस हो गए हैं .महारत के साथ मैं बहुत जल्दी औरत के नयन नक्श तो बना लेता पर उसका चिंतन उसके माथे में भरने में बहुत बरस लग गए ...सेंकडों तस्वीरें बना कर भी मैं औरत के चित्र को एक चित्र कह सकता हूँ ,जिस पर मैंने तीस बरस लगा दिए हैं ..वह चित्र अब मेरे से इस बरस बना है ॥
अमृता : कौन सा ?
इमरोज़ : वह मेरे कमरे में सिर्फ़ एक पेंटिंग है वही ॥
अमृता : जिस में एक साज की शक्ल में है एक औरत और उसका बदन ऐसे हैं जैसे साज के तार सुर किए हों ॥
इमरोज़ : हाँ सिर्फ़ वही पेंटिंग एक लाइन की पेंटिंग है औरत चिंतन की शकल में भी और औरत साज की शकल में भी ...
अमृता : सो इम ! पिछले तीस सालों से आपकी कला की थीम औरत है आपने कभी इन तीस सालों में इस थीम की पकड़ से मुक्त होना चाहा ?
इमरोज़ : मैं इस थीम की पकड़ में नहीं हूँ मैं ...इसके साथ साथ चल रहा हूँ हम दोनों चल रहे हैं.... हमसफ़र की तरह
अमृता : कई चित्रकारों के लिए कोई खास रंग बहुत लाडला होता है , कोई एक ऐसा रंग जो आपको अपनी और खींचता हो ? जैसे काल्डर को लाल रंग .उसका जी करता है की वह हर चीज को लाल रंग में रंग दे ...
इमरोज़ : धूप का रंग मुझ पर इतना छाया रहता है कि मेरा जी करता है हर चीज धूपी रंग की कर दू ...
अमृता : आपने आज तक अपने चित्रों की एक बार भी नुमाइश नही की क्यों ?
इमरोज़ : दो चीजों के लिए नुमाइश की जाती है ..एक दूसरो की राय लेने के लिए .और दूसरी तस्वीरों को बेचने के लिए ....किसी की राय की मुझे जरुरत नहीं ..मुझे अपनी राय पर यकीन है ..और तस्वीरें मैं बेचने केलिए बनाता नहीं हूँ ..मैं ......मैं नुमाइश क्यूँ करूँ ? वैसे भी मुझे नुमाइश लफ्ज़ से भी एतराज़ है
अमृता : क्यों ?
इमरोज़ : क्यों की इस लफ्ज़ की रूह में हमारी अपनी सभ्यता की रूह नहीं है .कोई इंसान खूबसूरती का मुजस्सिमा हो खुदा की नेमत है .पर उसको शो केस में खड़ा कर दिया जाए ..या मेरी आंखों को कबूल नहीं होता है ...
अमृता : तो फ़िर कला दर्शकों तक कैसे पहुंचे ?
इमरोज़ : यह खूबसूरती का कर्म नहीं है कि वह दर्शकों को तलाश करती फिरे ,यह दर्शकों का कर्म है कि वह खूबसूरती को तलाश करें ॥
सारे रंग
सारे शब्द
मिल कर भी
प्यार की तस्वीर
नहीं बना पाते
हाँ ! प्यार की तस्वीर
देखी जा सकती है
पल पल मोहब्बत जी रही
ज़िन्दगी के आईने में ........
इमरोज़
जारी है आगे भी ...
मेरे सामने
ईजल पर एक कैनवस पड़ा है
कुछ इस तरह लगता है --
कि कैनवस पर लगा लाल रंग का एक टुकडा
एक लाल कपड़ा बनकर हिलता है
और हर इंसान के अन्दर का पशु
एक सींग उठाता है
सींग तनता है --
और हर कूचा- गली- बाजार
एक रिंग बनता है
मेरे पंजाबी रगों में
एक स्पेनी परम्परा खौलती है
गोया की मिथ ---
बुल फाइटिंग --टिल डेथ ---
चित्रकार इमरोज़ से जब अमृता की मुलाकात हुई तो उनके कला और व्यक्तितव का एक नया पहलू सामने आया ..वह जो बहुत बार देखा पढ़ा हो कर भी अनकहा सा था ..यहाँ इस में यह उनके उसी साक्षात्कार के रूप में है ॥
अमृता ..इमरोज़ ! हलों कुदाल वाले घराने में जन्म ले कर आपने खेती के औजार थामने की बजाय हाथों में रंग और ब्रश कैसे ले लिए ?
इमरोज़ : यह भी हल ही चला रहा हूँ ,विचारों की जमीन पर .छुटपन में घर में हर वक्त ड्राइंग किया करता था .हलांकि स्कूल में ड्राइंग नहीं थी ..यह ठीक है शुरू में जिन चीजों की ड्राइंग की ,वे सब खेतों और हल कुदाल से ही जुड़ी हुई थी ॥
अमृता : आप औरत की ड्राइंग में माहिर है ? क्या औरत का बुनयादी तसव्वुर खेतों में रोटी ले कर जाने वाली औरत का था ?
इमरोज़ : नहीं जब हलों कुदाल की ड्राइंग करता था ,तब औरत की ड्राइंग नहीं करता था .हल कुदाल भी मेरा सपना कभी नहीं थे - वे सिर्फ़ आब्जेक्ट थे
अमृता : सारे कलाकार यथार्थ की व्याख्या अलग अलग करते हैं .इमरोज़ आपकी नजर में यथार्थ क्या है ?
इमरोज़ :मेरे अनुसार हर यथार्थ एक नए यथार्थ को जन्म देता है वह शायद आम लोगों की पकड़ में नहीं आता पर हर कलाकार उसको जरुर पहचान लेता है ,जब बाहरी चीजों को अन्दर की नजर मिलती है तब वह कई नए आकार लेती है नए यथार्थ जन्म
अमृता : केनवस के रंगों और हाथों के सामने रखने से पहले आप पेन्सिल स्केच बनाते हैं या सिर्फ़ जहनी स्केच ?
इमरोज़ : दोनों
अमृता : अमरीकन चित्रकार इवान अलब्राईट को अपनी एक पेंटिंग पर बीस साल लग गए वह उस पर बीस साल काम करते रहे और उनके लफ्जों में यह सारी दुनिया की यात्रा थी ..क्या आपको भी किसी पेंटिंग ने इस तरह से बरसों बांधे रखा ?
इमरोज़ : औरत की ड्राइंग करते हुए मुझे तीस बरस हो गए हैं .महारत के साथ मैं बहुत जल्दी औरत के नयन नक्श तो बना लेता पर उसका चिंतन उसके माथे में भरने में बहुत बरस लग गए ...सेंकडों तस्वीरें बना कर भी मैं औरत के चित्र को एक चित्र कह सकता हूँ ,जिस पर मैंने तीस बरस लगा दिए हैं ..वह चित्र अब मेरे से इस बरस बना है ॥
अमृता : कौन सा ?
इमरोज़ : वह मेरे कमरे में सिर्फ़ एक पेंटिंग है वही ॥
अमृता : जिस में एक साज की शक्ल में है एक औरत और उसका बदन ऐसे हैं जैसे साज के तार सुर किए हों ॥
इमरोज़ : हाँ सिर्फ़ वही पेंटिंग एक लाइन की पेंटिंग है औरत चिंतन की शकल में भी और औरत साज की शकल में भी ...
अमृता : सो इम ! पिछले तीस सालों से आपकी कला की थीम औरत है आपने कभी इन तीस सालों में इस थीम की पकड़ से मुक्त होना चाहा ?
इमरोज़ : मैं इस थीम की पकड़ में नहीं हूँ मैं ...इसके साथ साथ चल रहा हूँ हम दोनों चल रहे हैं.... हमसफ़र की तरह
अमृता : कई चित्रकारों के लिए कोई खास रंग बहुत लाडला होता है , कोई एक ऐसा रंग जो आपको अपनी और खींचता हो ? जैसे काल्डर को लाल रंग .उसका जी करता है की वह हर चीज को लाल रंग में रंग दे ...
इमरोज़ : धूप का रंग मुझ पर इतना छाया रहता है कि मेरा जी करता है हर चीज धूपी रंग की कर दू ...
अमृता : आपने आज तक अपने चित्रों की एक बार भी नुमाइश नही की क्यों ?
इमरोज़ : दो चीजों के लिए नुमाइश की जाती है ..एक दूसरो की राय लेने के लिए .और दूसरी तस्वीरों को बेचने के लिए ....किसी की राय की मुझे जरुरत नहीं ..मुझे अपनी राय पर यकीन है ..और तस्वीरें मैं बेचने केलिए बनाता नहीं हूँ ..मैं ......मैं नुमाइश क्यूँ करूँ ? वैसे भी मुझे नुमाइश लफ्ज़ से भी एतराज़ है
अमृता : क्यों ?
इमरोज़ : क्यों की इस लफ्ज़ की रूह में हमारी अपनी सभ्यता की रूह नहीं है .कोई इंसान खूबसूरती का मुजस्सिमा हो खुदा की नेमत है .पर उसको शो केस में खड़ा कर दिया जाए ..या मेरी आंखों को कबूल नहीं होता है ...
अमृता : तो फ़िर कला दर्शकों तक कैसे पहुंचे ?
इमरोज़ : यह खूबसूरती का कर्म नहीं है कि वह दर्शकों को तलाश करती फिरे ,यह दर्शकों का कर्म है कि वह खूबसूरती को तलाश करें ॥
सारे रंग
सारे शब्द
मिल कर भी
प्यार की तस्वीर
नहीं बना पाते
हाँ ! प्यार की तस्वीर
देखी जा सकती है
पल पल मोहब्बत जी रही
ज़िन्दगी के आईने में ........
इमरोज़
जारी है आगे भी ...