कन्नड़ के एक माने हुए अदीब श्री शिवराम कारंत से जब किसी ने कहा कि अगर आप इजाजत दें ,तो मैं आपका ज़िन्दगी नामा लिखना चाहता हूँ तो उसी वक़्त कारंत हँस दिए कहने लगे भाई !तुम्हे मेरा कत्ल करने की क्या जरुरत है ,जबकि मैं खुद अपना कत्ल कर सकता हूँ ....दुनिया के किसी हथियार को कोई कत्ल मुआफ नहीं किया जा सकता .लेकिन कलम वह हथियार है जिसको इखलाक की अदालत में कलमकार को अपन कत्ल मुआफ होता है ...हम जो भी अपनी दास्तान लिखते हैं ज़िन्दगी की खुद अपने कातिल होते हैं ,लेकिन इखलाक की अदालत में हम बाइज्जत बरी होते हैं ......
यही वजह थी कि जब सारा ने अमृता को बहुत उदास ख़त लिखे तो उन्होंने सारा से कहा तुम अपनी कलम से पूरी दास्तान लिखो ...दुनिया में बहुत थोड़े अदीब हैं ,जो अपने हाथों पर अपने खून की मेहँदी लगा सकते हैं और अमृता का यह मानना था कि सारा उन थोड़े गिने चुने लोगों में से थी ..उसने लिखा ..अमृता !!सदियों से मुझे एक आंसू की तलाश है, लेकिन अगर बुत रोया तो मैं कंकरों से भर जाऊँगी ....
काश !मेरे लहू में कोई आवाज़ न खिले !
छाओं का दर्द पेड़ों में रह गया है
मैं मिटती जा रही हूँ !काश .कोई मुझे लिख दे ,मैं पागल नहीं होना चाहती
कोई है ,जो मेरे मौसम सहे !कोई है ,जो मेरे दिल के अंधेरों पर जबान रख दे
पानियों पर मेरे कदम की मोहर सब्त है और रवानी मेरी रूह है
मैं एडी से लेकर आँख तक पहुंची हूँ ,मगर बहुत प्यासी हूँ
तन्हाई मुझे तारीक कर रही है --
वक़्त का सांप मिटटी पे लहराया है ,और जख्मों की कोई मौत नहीं होती ...
हमारी जमीन से दो तरह की गर्द उठती है ,एक सुर्ख रंग की है और एक स्याह रंग की ॥सुर्ख रंग की गर्द वह होती है ,जिसको शोहरत कहते हैं और स्याह रंग की गर्द वह जिसको इल्जाम कहते हैं ..जिनके बदन यह गर्द लिपटती है अगर स्याह रंग की हो तो लोग अपना बदन चुरा कर चलते हैं और सुर्ख रंग की हो तो लोग उसको कीमखाब की तरह तरह पहन कर चलते हैं ...
लेकिन दुनिया में थोड़े से लोग होते हैं जो उस गर्द को चाहे वह स्याह हो या सुर्ख ,अपनी आत्मा के पानी से ।अपने बदन को धो सकते हैं .और सारा उन दुनिया के थोड़े लोगों में से एक थी ....
अमृता !!जी चाहता है मौत का घुंघट अपने हाथों से उठा दूँ और आँखों की कचहरी से दूर निकल जाऊं .काश मेरी मिटटी रूठ जाए !सुनसान आँखों में कौन रहने आएगा |आँखों की स्याही से बन्दों को लिख रही हूँ .....आंसू तो दिल की धड़कन में चुभ रहे हैं ,और आँखे हैं कि करबला का मैदान बनी हुई है ...
खुदा की इबादत का इतिहास उतना लम्बा है ,जितना इंसान के जिहन में खुदा के तस्सुवर का ..इस इतिहास में कुछ बदलता है अगर तो वह है इबादत का अंदाज़ .बुत पूजा से बुत शिकनी तक का यह अंदाज़ बदलता रहता है ,लेकिन हर अंदाज़ को इबादत का लकब जरुर नसीब होता है .।
अगर हर्फ नहीं नसीब हुआ होता सारा की इबादत को तो जिसने सजदे में झुक कर नहीं खुद सजदा हो कर कहा ....
ऐ खुदा ! क्या मैं तेरी जकाह हूँ ?या एक सजदा हूँ ?
ऐ खुदा ! तू मेरा इनकार है .और मैं तेरा इकरार हूँ ..
ऐ खुदा ! छातियों से एडी तक मैं तेरी हूँ
मैं नादानी से बच्चे जनती हूँ
और तू फजल से हुक्म जनता है
ऐ खुदा ! मैं अपनी कोख से चलती
और तेरा नाम जनती
ऐ खुदा ! मैंने अपनी नस्ल पर तेरा नाम लिखा है ...
सारा शायद जानती थी कि जिसने अपनी नस्ल पर खुदा का नाम लिखा है ,उसकी इस जुरुत को इबादत का नाम नहीं दिया जायेगा और इस लिए वह हँस दी और कहने लगी ..
ऐ खुदा ।मैं बहुत कडवी हूँ ,पर तेरी शराब हूँ !
और इस शराब का घूंट पीने के लिए होंठो को उस इंसानकी जरुरत थी ,जिस इंसान में खुदा बसता हो ..और वह इंसान कहीं नहीं था ..
सारा ने जाने किस इलहाई मोहब्बत से कहा था .."ऐ खुदा !तू चाँद की स्याही से रात लिखता है ....लेकिन खुदा के बन्दों ने रात की स्याही से सारा के दिन लिख दिए
यही वजह थी कि जब सारा ने अमृता को बहुत उदास ख़त लिखे तो उन्होंने सारा से कहा तुम अपनी कलम से पूरी दास्तान लिखो ...दुनिया में बहुत थोड़े अदीब हैं ,जो अपने हाथों पर अपने खून की मेहँदी लगा सकते हैं और अमृता का यह मानना था कि सारा उन थोड़े गिने चुने लोगों में से थी ..उसने लिखा ..अमृता !!सदियों से मुझे एक आंसू की तलाश है, लेकिन अगर बुत रोया तो मैं कंकरों से भर जाऊँगी ....
काश !मेरे लहू में कोई आवाज़ न खिले !
छाओं का दर्द पेड़ों में रह गया है
मैं मिटती जा रही हूँ !काश .कोई मुझे लिख दे ,मैं पागल नहीं होना चाहती
कोई है ,जो मेरे मौसम सहे !कोई है ,जो मेरे दिल के अंधेरों पर जबान रख दे
पानियों पर मेरे कदम की मोहर सब्त है और रवानी मेरी रूह है
मैं एडी से लेकर आँख तक पहुंची हूँ ,मगर बहुत प्यासी हूँ
तन्हाई मुझे तारीक कर रही है --
वक़्त का सांप मिटटी पे लहराया है ,और जख्मों की कोई मौत नहीं होती ...
हमारी जमीन से दो तरह की गर्द उठती है ,एक सुर्ख रंग की है और एक स्याह रंग की ॥सुर्ख रंग की गर्द वह होती है ,जिसको शोहरत कहते हैं और स्याह रंग की गर्द वह जिसको इल्जाम कहते हैं ..जिनके बदन यह गर्द लिपटती है अगर स्याह रंग की हो तो लोग अपना बदन चुरा कर चलते हैं और सुर्ख रंग की हो तो लोग उसको कीमखाब की तरह तरह पहन कर चलते हैं ...
लेकिन दुनिया में थोड़े से लोग होते हैं जो उस गर्द को चाहे वह स्याह हो या सुर्ख ,अपनी आत्मा के पानी से ।अपने बदन को धो सकते हैं .और सारा उन दुनिया के थोड़े लोगों में से एक थी ....
अमृता !!जी चाहता है मौत का घुंघट अपने हाथों से उठा दूँ और आँखों की कचहरी से दूर निकल जाऊं .काश मेरी मिटटी रूठ जाए !सुनसान आँखों में कौन रहने आएगा |आँखों की स्याही से बन्दों को लिख रही हूँ .....आंसू तो दिल की धड़कन में चुभ रहे हैं ,और आँखे हैं कि करबला का मैदान बनी हुई है ...
खुदा की इबादत का इतिहास उतना लम्बा है ,जितना इंसान के जिहन में खुदा के तस्सुवर का ..इस इतिहास में कुछ बदलता है अगर तो वह है इबादत का अंदाज़ .बुत पूजा से बुत शिकनी तक का यह अंदाज़ बदलता रहता है ,लेकिन हर अंदाज़ को इबादत का लकब जरुर नसीब होता है .।
अगर हर्फ नहीं नसीब हुआ होता सारा की इबादत को तो जिसने सजदे में झुक कर नहीं खुद सजदा हो कर कहा ....
ऐ खुदा ! क्या मैं तेरी जकाह हूँ ?या एक सजदा हूँ ?
ऐ खुदा ! तू मेरा इनकार है .और मैं तेरा इकरार हूँ ..
ऐ खुदा ! छातियों से एडी तक मैं तेरी हूँ
मैं नादानी से बच्चे जनती हूँ
और तू फजल से हुक्म जनता है
ऐ खुदा ! मैं अपनी कोख से चलती
और तेरा नाम जनती
ऐ खुदा ! मैंने अपनी नस्ल पर तेरा नाम लिखा है ...
सारा शायद जानती थी कि जिसने अपनी नस्ल पर खुदा का नाम लिखा है ,उसकी इस जुरुत को इबादत का नाम नहीं दिया जायेगा और इस लिए वह हँस दी और कहने लगी ..
ऐ खुदा ।मैं बहुत कडवी हूँ ,पर तेरी शराब हूँ !
और इस शराब का घूंट पीने के लिए होंठो को उस इंसानकी जरुरत थी ,जिस इंसान में खुदा बसता हो ..और वह इंसान कहीं नहीं था ..
सारा ने जाने किस इलहाई मोहब्बत से कहा था .."ऐ खुदा !तू चाँद की स्याही से रात लिखता है ....लेकिन खुदा के बन्दों ने रात की स्याही से सारा के दिन लिख दिए
14 comments:
ऐ खुदा !तू चाँद की स्याही से रात लिखता है ....लेकिन खुदा के बन्दों ने रात की स्याही से सारा के दिन लिख दिए। सही बात है दुनिया जीते जी अदमी की कद्र नहीं करती मरने पर उसकी शान मे कसीदे निकालती है। बहुत सुन्दर पोस्ट है इस सफर को जारी रखें शुभकामनायें
ऐ खुदा ! मैं अपनी कोख से चलती
और तेरा नाम जनती
ऐ खुदा ! मैंने अपनी नस्ल पर तेरा नाम लिखा है ...
" बेहद ही शानदार अभिव्यक्ति......"
regards
."ऐ खुदा !तू चाँद की स्याही से रात लिखता है ....लेकिन खुदा के बन्दों ने रात की स्याही से सारा के दिन लिख दिए
uff ! bahut hi peedadayi , marmik abhivyakti...........shayad hi koi us dard ko mehsoos kar sake jo lafzon mein utar diya hai.
ऐ खुदा ! क्या मैं तेरी जकाह हूँ ?या एक सजदा हूँ ?
ऐ खुदा ! तू मेरा इनकार है .और मैं तेरा इकरार हूँ ..
ऐ खुदा ! छातियों से एडी तक मैं तेरी हूँ
मैं नादानी से बच्चे जनती हूँ
और तू फजल से हुक्म जनता है
ऐ खुदा ! मैं अपनी कोख से चलती
और तेरा नाम जनती
ऐ खुदा ! मैंने अपनी नस्ल पर तेरा नाम लिखा है ...
bahut shadaar post...
ऐ खुदा ! तू मेरा इनकार है और मैं तेरा इकरार हूँ .......शानदार लाइनें.
ऐ खुदा ।मैं बहुत कडवी हूँ ,पर तेरी शराब हूँ !
और इस शराब का घूंट पीने के लिए होंठो को उस इंसानकी जरुरत थी ,जिस इंसान में खुदा बसता हो ..और वह इंसान कहीं नहीं था ..
realy what a smart truth...nice post...very nice
didi ,bahut hee achha.
कितना डूब कर लिखती हैं आप.....
उफ्फ़ , दर्द की इन्तिहाँ है ये ,
बस ऐसे घूँट गले में अटक कर ही तो रह जाते हैं|
दुनिया में बहुत थोड़े अदीब हैं ,जो अपने हाथों पर अपने खून की मेहँदी लगा सकते हैं और अमृता का यह मानना था कि सारा उन थोड़े गिने चुने लोगों में से थी ..उसने लिखा ..अमृता !!सदियों से मुझे एक आंसू की तलाश है, लेकिन अगर बुत रोया तो मैं कंकरों से भर जाऊँगी ....रंजना तुम्हे बहुत दिनों बाद पढ़ रही हूँ अमृता प्रीतम के बारे में इस तरह की सामग्री संजोना -लिखना तुम्ही कर सकती हो ..कोई और नहीं यह लेख वाकई अद्भुत है ..नए साल की शुभकामना
bahut sundar prastuti
bahut bahut abhar
सुभानाल्लाह ......एक एक शब्द दिल में उतरता सा.......सलाम आपको भी और अमृता को भी ......!!
बहुत सुंदर पोस्ट ।
ऐ खुदा ! मैंने अपनी नस्ल पर तेरा नाम लिखा है
वाह ।
sach much khuda da noor hai AMRITA PRITAM
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