"""किसी तारीख़ को"" ...अमृता इमरोज़ की दिल की बातें जो लफ्जों में तारीख़ दर तारीख ढलती रही और बाद में हम जैसे पढने वालों के लिए एक यादगार लम्हे में दिल से उतर कर रूह की गहराई में बस गयीं ।...जब मुझे पता चला कि यह किताब बाज़ार में आ चुकी है तो इसको पढे बिना मुझे चैन कैसे मिलता :) और जब इसको पढ़ना शुरू किया तो लगा कि यह प्यार भी खुदा किसी किसी बन्दे को दिल से देता है ..हर किसी के बस का नही यूं प्यार करना ..शुरुआत में ही लिखी पंक्तियाँ पढ़ कर कौन न होगा जो इसको अंत तक नही पढ़ना चाहेगा ...
अब बताये कौन न मरे इस सादगी से लिखे लफ्जों पर ।.चलिए अमृता इमरोज़ के इस सफर में उनके लिखे इन प्रेम पत्रों को भी साथ ले कर चलते हैं ...सबसे पहली पोस्ट में गुजारिश भी थी इन्हे यहाँ लिखने की .मैं कोशिश करती हूँ कि आप को इस सफर में उस दुनिया में वहाँ ले कर चलूँ जहाँ इश्क लफ्जों में ढल कर रूह को छू जाता है।
अमृता का पहला ख़त इमरोज़ को तब मिला जब वह मुम्बई में थे उस वक्त वह वहाँ गुरुदत के साथ शमा फ़िल्म में करने के लिए गए थे तब वह ख़त मिला एक लाइन का ।इस में न उन्होंने इमरोज़ को किसी नाम से संबोधित किया था न ही नीचे अपना नाम लिखा था और वह एक लाइन थी जी आयां [स्वागतम ]मुम्बई भाषा में तब इमरोज़ कहते हैं कि वह एक लाइन का ख़त पा कर उन्हें लगा कि अमृता उनके साथ वहीं है।
उनके साथ होने का एहसास तो मैंने तब भी महसूस किया जब मैं उनसे रूबरू मिली थी ..उनकी आंखों में वो प्यार झलक रहा था और उनके मुहं से वही नाम निकले जिनसे वह उनको अक्सर बुलाया करते थे .माजा नाम उन्होंने .. उन्होंने एक स्पेनिश नाविल द नेकिड माजा को पढने के बाद उन्हें दिया था और बाद में उन्हें इसी नाम से बुलाते रहे ।बाद में उन्हें पता चला कि मराठी में माजा का मतलब मेरा होता है तो वह लफ़ज़ वह नाम उन्हें बहुत अपना सा लगने लगा ।.यह बात उन्होंने मुझे मिलने पर भी बताई थी ..यह ख़त सिर्फ़ अमृता इमरोज़ की प्रेम पाती ही नही है मुझे तो पढ़ कर लगा कि यह दिल से लिखे वह लफ़ज़ हैं जो शायद प्रेम करने वाले दिलों को प्रेरणा देते रहेंगे ..या इमरोज़ के लफ्जों में कहे तो उनकी आत्म कथा रसीदी टिकट का ही एक हिस्सा ..
३०-१० ५९
तुम्हारे ख़त जीती [इमरोज़ को कहती थी वो ]इतने सुंदर है मेरे तसव्वुर से भी ज्यादा सुंदर जिनका मैं सारी उम्र इन्तेजार करती रही ..चाहे वह इन्तजार इन्तजार ही रह गया कितनी ही कविताओं में मैं उनके जवाब भी लिखती थी आज वह सब सच हो गए पर आज मेरा मन मेरे वश में नही है आँखे भर भर आती हैं ..मेरी उम्र के साल इस सच को देखने के लिए एक जगह ठहर क्यों नही जाते हैं ?वह क्यों बढ़ते गए ? आज वह तुम्हारे साथ मेल नही खा रहे हैं
तुम मुझे उस जादुओं से भरी वादी में बुला रहे हो जहाँ मेरी उम्र लौट के नही आती है उम्र दिल का साथ नही दे रहा है दिल उसी जगह ठहर गया है जहाँ ठहरने का इशारा तुमने उसको किया है ।सच उसके पैर वहाँ ही रुक गए हैं पर आज कल मुझे लगता है एक एक दिन कई कई बरस बीत जाते हैं और अपनी उम्र के इतने बरसों का बोझ मुझसे सहन नही हो रहा है ....
तुम्हारी अमृता ..
यह थी इस पत्रों के सफर की शुरुआत ..अमृता इमरोज़ से कई साल बड़ी थी और यह बात उन्हें इमरोज़ से मिलने पर और ज्यादा चुभती थी ..पर इमरोज़ का दिल कभी भी उम्र के इस बहाने को सुनने के लिए राजी नही था ..प्यार जब हो जाए तो कहाँ देखता है उम्र .वक्त और बाकी सब आने वाली मुश्किलें ...तभी तो वह अमृता और इमरोज़ थे ..:)
तुम मिले तो
कई जन्म
मेरी नब्ज में धडके
फ़िर मेरी साँस ने तुम्हारी साँस का घूंट पिया
तब मस्तक में कई काल पलट गए .....
शेष अगले अंक में :)
तुम्हारा मेल दोस्ती की हद को छू गया
दोस्ती मोहब्बत की हद तक गई
मोहब्बत इश्क की हद तक
और इश्क जनून को हद तक ..
दोस्ती मोहब्बत की हद तक गई
मोहब्बत इश्क की हद तक
और इश्क जनून को हद तक ..
अब बताये कौन न मरे इस सादगी से लिखे लफ्जों पर ।.चलिए अमृता इमरोज़ के इस सफर में उनके लिखे इन प्रेम पत्रों को भी साथ ले कर चलते हैं ...सबसे पहली पोस्ट में गुजारिश भी थी इन्हे यहाँ लिखने की .मैं कोशिश करती हूँ कि आप को इस सफर में उस दुनिया में वहाँ ले कर चलूँ जहाँ इश्क लफ्जों में ढल कर रूह को छू जाता है।
अमृता का पहला ख़त इमरोज़ को तब मिला जब वह मुम्बई में थे उस वक्त वह वहाँ गुरुदत के साथ शमा फ़िल्म में करने के लिए गए थे तब वह ख़त मिला एक लाइन का ।इस में न उन्होंने इमरोज़ को किसी नाम से संबोधित किया था न ही नीचे अपना नाम लिखा था और वह एक लाइन थी जी आयां [स्वागतम ]मुम्बई भाषा में तब इमरोज़ कहते हैं कि वह एक लाइन का ख़त पा कर उन्हें लगा कि अमृता उनके साथ वहीं है।
उनके साथ होने का एहसास तो मैंने तब भी महसूस किया जब मैं उनसे रूबरू मिली थी ..उनकी आंखों में वो प्यार झलक रहा था और उनके मुहं से वही नाम निकले जिनसे वह उनको अक्सर बुलाया करते थे .माजा नाम उन्होंने .. उन्होंने एक स्पेनिश नाविल द नेकिड माजा को पढने के बाद उन्हें दिया था और बाद में उन्हें इसी नाम से बुलाते रहे ।बाद में उन्हें पता चला कि मराठी में माजा का मतलब मेरा होता है तो वह लफ़ज़ वह नाम उन्हें बहुत अपना सा लगने लगा ।.यह बात उन्होंने मुझे मिलने पर भी बताई थी ..यह ख़त सिर्फ़ अमृता इमरोज़ की प्रेम पाती ही नही है मुझे तो पढ़ कर लगा कि यह दिल से लिखे वह लफ़ज़ हैं जो शायद प्रेम करने वाले दिलों को प्रेरणा देते रहेंगे ..या इमरोज़ के लफ्जों में कहे तो उनकी आत्म कथा रसीदी टिकट का ही एक हिस्सा ..
३०-१० ५९
तुम्हारे ख़त जीती [इमरोज़ को कहती थी वो ]इतने सुंदर है मेरे तसव्वुर से भी ज्यादा सुंदर जिनका मैं सारी उम्र इन्तेजार करती रही ..चाहे वह इन्तजार इन्तजार ही रह गया कितनी ही कविताओं में मैं उनके जवाब भी लिखती थी आज वह सब सच हो गए पर आज मेरा मन मेरे वश में नही है आँखे भर भर आती हैं ..मेरी उम्र के साल इस सच को देखने के लिए एक जगह ठहर क्यों नही जाते हैं ?वह क्यों बढ़ते गए ? आज वह तुम्हारे साथ मेल नही खा रहे हैं
तुम मुझे उस जादुओं से भरी वादी में बुला रहे हो जहाँ मेरी उम्र लौट के नही आती है उम्र दिल का साथ नही दे रहा है दिल उसी जगह ठहर गया है जहाँ ठहरने का इशारा तुमने उसको किया है ।सच उसके पैर वहाँ ही रुक गए हैं पर आज कल मुझे लगता है एक एक दिन कई कई बरस बीत जाते हैं और अपनी उम्र के इतने बरसों का बोझ मुझसे सहन नही हो रहा है ....
तुम्हारी अमृता ..
यह थी इस पत्रों के सफर की शुरुआत ..अमृता इमरोज़ से कई साल बड़ी थी और यह बात उन्हें इमरोज़ से मिलने पर और ज्यादा चुभती थी ..पर इमरोज़ का दिल कभी भी उम्र के इस बहाने को सुनने के लिए राजी नही था ..प्यार जब हो जाए तो कहाँ देखता है उम्र .वक्त और बाकी सब आने वाली मुश्किलें ...तभी तो वह अमृता और इमरोज़ थे ..:)
तुम मिले तो
कई जन्म
मेरी नब्ज में धडके
फ़िर मेरी साँस ने तुम्हारी साँस का घूंट पिया
तब मस्तक में कई काल पलट गए .....
शेष अगले अंक में :)
12 comments:
wah bahut bahut romantic rahi ye post,vaise bhi hum pyar ki chaht rakhnewalon mein se hai,pyar ko pyar karnewale,jaha bhi dil ki baat ho,hamari dhadkan gaati hai,
तुम मिले तो
कई जन्म
मेरी नब्ज में धडके
फ़िर मेरी साँस ने तुम्हारी साँस का घूंट पिया
तब मस्तक में कई काल पलट गए .....
ye lines bahut sundar,ranju ji aj ka din bana diya aapne is post ke saath,chaliye phir mulakat hogi yahi aapse aur amruta ji se aapki agli post mein.
बहुत शानदार पोस्ट! बहुत बहुत धन्यवाद रंजू जी.. इस बार वाकई मज़ा आ गया..
ham se bantane ka shukriya
एक थी अमृता ओर एक है उनकी दीवानी....क्या बात है....
तुम मुझे उस जादुओं से भरी वादी में बुला रहे हो जहाँ मेरी उम्र लौट के नही आती है उम्र दिल का साथ नही दे रहा है दिल उसी जगह ठहर गया है जहाँ ठहरने का इशारा तुमने उसको किया है ।सच उसके पैर वहाँ ही रुक गए हैं पर आज कल मुझे लगता है एक एक दिन कई कई बरस बीत जाते हैं और अपनी उम्र के इतने बरसों का बोझ मुझसे सहन नही हो रहा है ..
ranjana Ji shukriya --
maine Shivani ko khuub padha hai-samjh nahin aata---amrita ji ka lekhan kaise aur kahan miss kar diya?
तुम मिले तो
कई जन्म
मेरी नब्ज में धडके
फ़िर मेरी साँस ने तुम्हारी साँस का घूंट पिया
तब मस्तक में कई काल पलट गए .....
-शानदार प्रस्तुति. आभार इसे लाने का.
आपका यह आलेख बहुत प्रभावपूर्ण और रुचिकर लगा। आपकी रुचियां देखकर प्रसन्नता होती है।
दीपक भारतदीप
रंजू...आप कितनी खूबसूरती से पेश कर रही हैं अम्रता की दास्ताँ..जी करता है कभी ख़त्म ही न हो.
दिल को छूने वाली पोस्ट.
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बधाई
डा.चन्द्रकुमार जैन
अगली कड़ी का इंतज़ार है !
अगली कड़ी का इंतज़ार है !
बहुत खूब। पोस्ट का शीर्षक ही मन को छू गया। आपकी लेखनी में एक अजब ही चुम्बकत्व है, जो पाठकों को सीधे खींच लाता है।
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