अमृता के खतों के साथ साथ आप ,""रसीदी टिकट "'के अंश भी पढ़ते रहे हैं | किसी भी प्यार ,उलाहना का जिक्र एक के खतों से पूरा नही होता है | इमरोज़ भी बराबर अपनी माजा को ख़त के जवाब देते रहे | जब इमरोज़ ने अमृता के खतों का उल्लेख किया तो इमरोज़ को लगा कि खतों का भी जिक्र होना जरुरी है ,ठीक वैसे ही जैसे काफ्का की महबूबा पर लिखी हुई एक प्रस्तावना में आर्थर कोस्लर कहता है ---काफ्का के लिखे हुए ख़त तो मिल गए ,पर मिलेना के खतों के बिना काफ्का की पोट्रेट अधूरी रह गई है |वह मिलेना के खतों जलते हुए सर पर पर वर्षा की बुँदे कहा करता था और वही वर्षा की बूंदे खो गयीं हैं ,लेकिन गनीमत है कि इमरोज़ के अमृता को लिखे ख़त कहीं गुम नहीं हुए |वह अमृता के पास रहे जिसे इमरोज़ ने उस से उधार ले कर एक जगह अमृता के खतों के साथ ही रख दिया है |
बम्बई २-१०-५९
इतनी पुख्ता जुबान लिखने वाली ! इतना अनोखा सोचने वाली ! तुम्हारे साथ डर और सहम अच्छे नही लगते हैं और न ही देखे जाते हैं |फ़िर मेरे होते हुए ? ऐसे नही हो सकता | मेरी मानों एतबार को और बड़ा करो ! और देखो ,ज्यूँ ज्यूँ एतबार को बड़ा करती जाओगी डर छोटे और छोटे होते जायेंगे | क्यूँ उम्र को सालों के हिसाब से गिनती हो ? क्यूँ नहीं मेरे लगन के हिसाब से गिनती ? मेरी सारी इन्टेसिटी और सारी धड़कने तुम अपना लो |मेरी लगन तुम्हारी उम्र है |मेरी इन्टेसिटी तुम्हारी सेहत |
अब तुम अपने आतीत को और आतीत की तल्खियों को छोड़ने की तकलीफ सह रही हो ,यह छोड़ने की आरजी तकलीफ है | आओ! मुस्तकबिल में आ जाओ | मुस्तकबिल अपनी सारी मुस्कराहट के साथ अपना दर और दिल खोले इन्तजार कर रहा है ...
किस्मत का इन्तजार कर रहा मुस्तकबिल
जीती
ऐ हजारी लगाने वाली !
आ कर रजिस्टर क्यूँ नही संभाल लेती हो | एक मकान बहुत सुंदर जगह लिया है ,आ कर इसको घर बना दो | अपना और अपने सपनों का घर |ज़िन्दगी में पहली बार मैंने घर चाहा है | तुम नामुमकिन जैसी जगह पर थी, जब मैं तुमसे मिला था | मुझ पर भरोसा करो ,मेरे अपनत्व पर पूरा एतबार करो | जीने की हद तक तुम्हारा ,तुम्हारे जीवन का जामिन ,तुम्हारा जीती !
मैं अपने आतीत ,वर्तमान और भविष्य का पल्ला तुम्हारे आगे फैलाता हूँ -- इस में अपने आतीत .वर्तमान और भविष्य डाल दो!
मेरे जुनूं मेरी वहशत का इम्तहान ले लो !
अपने हुस्न की अजमत का इम्तहान तो दो !
बम्बई २-१०-५९
इतनी पुख्ता जुबान लिखने वाली ! इतना अनोखा सोचने वाली ! तुम्हारे साथ डर और सहम अच्छे नही लगते हैं और न ही देखे जाते हैं |फ़िर मेरे होते हुए ? ऐसे नही हो सकता | मेरी मानों एतबार को और बड़ा करो ! और देखो ,ज्यूँ ज्यूँ एतबार को बड़ा करती जाओगी डर छोटे और छोटे होते जायेंगे | क्यूँ उम्र को सालों के हिसाब से गिनती हो ? क्यूँ नहीं मेरे लगन के हिसाब से गिनती ? मेरी सारी इन्टेसिटी और सारी धड़कने तुम अपना लो |मेरी लगन तुम्हारी उम्र है |मेरी इन्टेसिटी तुम्हारी सेहत |
अब तुम अपने आतीत को और आतीत की तल्खियों को छोड़ने की तकलीफ सह रही हो ,यह छोड़ने की आरजी तकलीफ है | आओ! मुस्तकबिल में आ जाओ | मुस्तकबिल अपनी सारी मुस्कराहट के साथ अपना दर और दिल खोले इन्तजार कर रहा है ...
किस्मत का इन्तजार कर रहा मुस्तकबिल
जीती
ऐ हजारी लगाने वाली !
आ कर रजिस्टर क्यूँ नही संभाल लेती हो | एक मकान बहुत सुंदर जगह लिया है ,आ कर इसको घर बना दो | अपना और अपने सपनों का घर |ज़िन्दगी में पहली बार मैंने घर चाहा है | तुम नामुमकिन जैसी जगह पर थी, जब मैं तुमसे मिला था | मुझ पर भरोसा करो ,मेरे अपनत्व पर पूरा एतबार करो | जीने की हद तक तुम्हारा ,तुम्हारे जीवन का जामिन ,तुम्हारा जीती !
मैं अपने आतीत ,वर्तमान और भविष्य का पल्ला तुम्हारे आगे फैलाता हूँ -- इस में अपने आतीत .वर्तमान और भविष्य डाल दो!
मेरे जुनूं मेरी वहशत का इम्तहान ले लो !
अपने हुस्न की अजमत का इम्तहान तो दो !
15 comments:
vaah kya baat hai, seedhe dil main utar gyi....
बहुत बहुत शुक्रिया रंजू जी.. इसे यहा पढ़वाने के लिए..
अब क्या कहूँ रंजू जी, इतनी खूबसूरत पोस्ट और इतने दिलकश टाइटल ने दिल मोह लिया, तारीफ़ को लफ्ज़ नही हैं...बेहद शानदार
ranju ji achhe lekh ko padhane ke liye aabhar. jari rhe.
बेहतरीन आलेख.
बेहद शानदार बहुत शुक्रिया रंजू जी,
बहुत अच्छी प्रस्तुति
इस बार भी. इसमें एतबार को
बड़ा करने और अपने वज़ूद को पूरी
इंटेंसिटी से जीने की अतिरिक्त प्रेरणा भी है.
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धन्यवाद
डा.चन्द्रकुमार जैन
रंजना जी इसे पढ़ने का मजा ही अलग है धन्यवाद आपने पढ़वाया।
बेहतरीन... जारी रखिये !
ranju...
har baar ki tarha se is baar bhi bahtreen likha hai....
jaari rakho
रंजू जी बहुत खूब लिखा है आप ने ..शुक्रिया आप का ..
अमृता प्रीतम को पढ़ना तो हमेशा ही अच्छा लगता है।
शुभकामनाएं:
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की ढेरों शुभकामनाएं |
हिन्दी में लिखने की लिए पर जायें
http://hindiinternet.blogspot.com/
Love is Divine ka ehsas hota hai in panktiyo ko par kar. Chahat mein na dar, nar umra;keval visvas
bas vahi sab kuch, ek surrender...
nisha bala tyagi
Love is Divine ka ehsas hota hai in panktiyo ko par kar. Chahat mein na dar, nar umra;keval visvas
bas vahi sab kuch, ek surrender...
nisha bala tyagi
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