अमृता के बारे में कई लोग ऐसा मानते हैं कि अमृता अपने लेखन में निरे भावुक स्तर पर ठहर गयीं हैं ... और उनका पूरा लेखन प्लेटोनिक लव और उस से जुड़ी इमोशंस के इर्द गिर्द ही घूमता रहा है .... और उस में निरी भावुकता होती है ..इस पर अमृता ने जवाब दिया कि यह भावुकता नही है कोरी ..इसको इमोशंस की रिचनेस कह सकते हैं ..एहसास की अमीरी .."'रिचनेस प्लस इन्टेलेक्ट "' ..जो खाली इटेलेक्ट है वह खुश्क हो जाता है और खाली भावुकता एक बहाव की तरह है ,जो आपको बहा कर ले जाती है ..आपके पैरों के नीचे जमीन नहीं रहजाती है .खाली भावुकता उड़ते पत्ते की तरह है ,जो कहीं भी बह जाए ...प्लेटोनिक लव का मतलब मोहब्बत को जिस्म से माइनस करना है और यदि जिस्म को माइनस कर दिया मोहब्बत से और खाली रूह की बात की तो पूर्णता उस में कहाँ बचेगी ? इसी पर एक नज़्म कही थी उन्होंने ..
मेरी सेज हाजिर है
पर जूते और कमीज की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढे पर रख दे
कोई ख़ास बात नहीं --
यह अपने अपने देश का रिवाज है
यह एक व्यंग था यानी खाली मूर्ति को छूना .....
यहाँ मैं एक और उनके कहे वाक़या का जिक्र करना चाहूंगी ..एक इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि आपके उपन्यास की नायिकाएं बिना विवाह किए संतान पैदा करके उसको पालती पोसती हैं ...आप विवाह संस्था की सामाजिक जरुरत के बारे में क्या सोचती है ..? अमृता का जवाब था ..कि हमारी श्रेणियां इतनी बनी हुई है कि एक ही चीज सब पर लागू नही होती है .कुछ लोग इसको पहचान का रिश्ता मानते हैं ..उसके लिए एक सेरेमनीहो या न हो उस से कोई फर्क नही पड़ता है ..लेकिन कुछ लोग हैं जिन्हें कानून की पनाह चाहिए ..सरंक्षण चाहिए अदरवाइज दे विल वी एक्स्प्लोइड ..मेरिज का बेसिक कांसेप्ट है एक दूजे का पूरक होना ..एक दूजे की आजादी ..गुलामी नही ..मुश्किल तो यह है की मेरिज शब्द के अर्थ कही खो गए हैं ..विवाह होते हैं टूटते हैं ..फ़िरसे विवाह होते हैं ..इस तरह से अभी कहीं भी सकून नही मिल पा रहा है ..न विवाह के भीतर और न ही बाहर क्यूंकि विवाह के सही अर्थ कोई समझ ही नही पाता है अब ....और इस में मुश्किल यह है कि ..मर्द और औरत ने पूरा मिलन कहाँ देखा है ..? उसने अभी औरत में एक दासी ,वेश्या और देवी देखी है ..इवोल्यूशन आफ ह्यूमन बीइगन्स में औरत ,औरत कहाँ है ..? मर्द ,मर्द कहाँ है ? सिर्फ़ छीनना और लूटना जानते हैं सब ...
शायद इस लिए उनके लिखे उपन्यासों का मसला उस औरत और मर्द के रिश्ते पर रहा ,जो इंसान को इंसान के रिश्ते तक पहुंचाता है और फ़िर एक देश से दूसरे देश के रिश्तों तक ..पर यह रिश्ता अभी उलझा हुआ है ..क्यूंकि अभी दोनों अधूरे हैं दोनों ही एक दूजे को समझ नही पाए हैं ..उनके अनुसार हम लोग जवानी .खूबसूरती की कोशिश को कुछ सुखों और सहूलियतों की कोशिश को मोहब्बत का नाम दे देते हैं ..लेकिन मोहब्बत जैसी घटना सिर्फ़ एक किसी पूरे मर्द या पूरी औरत के बीच घट सकती है..पूरी औरत से यहाँ उनका मतलब पूछा गया तो जवाब बहुत खूबसूरत दिया उन्होंने ..वह औरत जो आर्थिक तौर पर ,जज्बाती तौर पर और जेहनी तौर पर स्वंतंत्र हो ..आजादी कभी किसी से मांगी या छीनी नही जा सकती है ..न ही यह पहनी जा सकती है ,यह वजूद की मिटटी से उगती है ..
उनको अपने एक हिन्दुस्तानी औरत होने का फक्र था .क्यूंकि ईसा से भी चार हजार साल पहले इस धरती की औरत ने वह चिंतन दुनिया को दिया था जो आज कई सदियों के बाद भी किसी मुल्क की तहजीब में शामिल नही हुआ ..ऋग्वेद की एक ऋचा में सूर्या सावित्री ने कहा था कि ... सुबह की रोशनी जब सूरज से मिले तो उसकी आंखों में ज्ञान का काजल हो ,हाथों में अपने प्रिय को सौगात देने के लिए वेदमंत्र हो ..दुनिया के विद्वान उनके पुरोहित हों और स्वंत्रता उनकी सेज हो ..और अमृता को अपने ख्यालों की तसकीद आज की किसी हकीकत से नहीं मिली ..बलिक इसी साठ सदियों पुराने चिंतन से मिली ...तभी वह अपने वक्त से आगे चली और बिना डर के बिना भय के चली ..अमृता जैसा होना एक हिम्मत का काम है ..तभी इमरोज़ मिलता है ..औरइमरोज़ जैसी मोहब्बत करना भी मायने रखता है .तभी अमृता लिख पायी ....
आ सजन ,आज बातें कर ले ....
तेरे दिल के बागों में
हरी चाह की पट्टी जैसी
जो बात जब भी उगी ,
तुने वही बात तोड़ ली
हर इक नाजुक बात छिपा ली ,
हर इक पत्ती सूखने डाल दी
मिटटी के इस चूल्हे में से
हम कोई चिंगारी ढूंढ़ लेंगे
एक दो फूंक मार लेंगे
बुझती लकड़ी फ़िर से बाल लेंगे
मिटटी के इस चूल्हे में
इश्क की एक एक आँच बोल उठेगी
मेरे जिस्म की हंडिया में
दिल का पानी खौल उठेगा
आ सजन .आज खोल पोटली ....
हरी चाय की पत्ती की तरह
वही तोड़ गंवाई बातें
वहीँ संभाल सुखायी बातें
इस पानी में डाल कर देख ,
इसका रंग बदल कर देख
गर्म घूंट इक तुम भी पीना ,
गर्म घूंट इक मैं भी पी लूँ
उम्र का ग्रीष्म हमने बीता दिया ,
उम्र का शिशिर नही बीतता
आ सजन ,आज बातें कर लें ..... .. ,
मेरी सेज हाजिर है
पर जूते और कमीज की तरह
तू अपना बदन भी उतार दे
उधर मूढे पर रख दे
कोई ख़ास बात नहीं --
यह अपने अपने देश का रिवाज है
यह एक व्यंग था यानी खाली मूर्ति को छूना .....
यहाँ मैं एक और उनके कहे वाक़या का जिक्र करना चाहूंगी ..एक इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि आपके उपन्यास की नायिकाएं बिना विवाह किए संतान पैदा करके उसको पालती पोसती हैं ...आप विवाह संस्था की सामाजिक जरुरत के बारे में क्या सोचती है ..? अमृता का जवाब था ..कि हमारी श्रेणियां इतनी बनी हुई है कि एक ही चीज सब पर लागू नही होती है .कुछ लोग इसको पहचान का रिश्ता मानते हैं ..उसके लिए एक सेरेमनीहो या न हो उस से कोई फर्क नही पड़ता है ..लेकिन कुछ लोग हैं जिन्हें कानून की पनाह चाहिए ..सरंक्षण चाहिए अदरवाइज दे विल वी एक्स्प्लोइड ..मेरिज का बेसिक कांसेप्ट है एक दूजे का पूरक होना ..एक दूजे की आजादी ..गुलामी नही ..मुश्किल तो यह है की मेरिज शब्द के अर्थ कही खो गए हैं ..विवाह होते हैं टूटते हैं ..फ़िरसे विवाह होते हैं ..इस तरह से अभी कहीं भी सकून नही मिल पा रहा है ..न विवाह के भीतर और न ही बाहर क्यूंकि विवाह के सही अर्थ कोई समझ ही नही पाता है अब ....और इस में मुश्किल यह है कि ..मर्द और औरत ने पूरा मिलन कहाँ देखा है ..? उसने अभी औरत में एक दासी ,वेश्या और देवी देखी है ..इवोल्यूशन आफ ह्यूमन बीइगन्स में औरत ,औरत कहाँ है ..? मर्द ,मर्द कहाँ है ? सिर्फ़ छीनना और लूटना जानते हैं सब ...
शायद इस लिए उनके लिखे उपन्यासों का मसला उस औरत और मर्द के रिश्ते पर रहा ,जो इंसान को इंसान के रिश्ते तक पहुंचाता है और फ़िर एक देश से दूसरे देश के रिश्तों तक ..पर यह रिश्ता अभी उलझा हुआ है ..क्यूंकि अभी दोनों अधूरे हैं दोनों ही एक दूजे को समझ नही पाए हैं ..उनके अनुसार हम लोग जवानी .खूबसूरती की कोशिश को कुछ सुखों और सहूलियतों की कोशिश को मोहब्बत का नाम दे देते हैं ..लेकिन मोहब्बत जैसी घटना सिर्फ़ एक किसी पूरे मर्द या पूरी औरत के बीच घट सकती है..पूरी औरत से यहाँ उनका मतलब पूछा गया तो जवाब बहुत खूबसूरत दिया उन्होंने ..वह औरत जो आर्थिक तौर पर ,जज्बाती तौर पर और जेहनी तौर पर स्वंतंत्र हो ..आजादी कभी किसी से मांगी या छीनी नही जा सकती है ..न ही यह पहनी जा सकती है ,यह वजूद की मिटटी से उगती है ..
उनको अपने एक हिन्दुस्तानी औरत होने का फक्र था .क्यूंकि ईसा से भी चार हजार साल पहले इस धरती की औरत ने वह चिंतन दुनिया को दिया था जो आज कई सदियों के बाद भी किसी मुल्क की तहजीब में शामिल नही हुआ ..ऋग्वेद की एक ऋचा में सूर्या सावित्री ने कहा था कि ... सुबह की रोशनी जब सूरज से मिले तो उसकी आंखों में ज्ञान का काजल हो ,हाथों में अपने प्रिय को सौगात देने के लिए वेदमंत्र हो ..दुनिया के विद्वान उनके पुरोहित हों और स्वंत्रता उनकी सेज हो ..और अमृता को अपने ख्यालों की तसकीद आज की किसी हकीकत से नहीं मिली ..बलिक इसी साठ सदियों पुराने चिंतन से मिली ...तभी वह अपने वक्त से आगे चली और बिना डर के बिना भय के चली ..अमृता जैसा होना एक हिम्मत का काम है ..तभी इमरोज़ मिलता है ..औरइमरोज़ जैसी मोहब्बत करना भी मायने रखता है .तभी अमृता लिख पायी ....
आ सजन ,आज बातें कर ले ....
तेरे दिल के बागों में
हरी चाह की पट्टी जैसी
जो बात जब भी उगी ,
तुने वही बात तोड़ ली
हर इक नाजुक बात छिपा ली ,
हर इक पत्ती सूखने डाल दी
मिटटी के इस चूल्हे में से
हम कोई चिंगारी ढूंढ़ लेंगे
एक दो फूंक मार लेंगे
बुझती लकड़ी फ़िर से बाल लेंगे
मिटटी के इस चूल्हे में
इश्क की एक एक आँच बोल उठेगी
मेरे जिस्म की हंडिया में
दिल का पानी खौल उठेगा
आ सजन .आज खोल पोटली ....
हरी चाय की पत्ती की तरह
वही तोड़ गंवाई बातें
वहीँ संभाल सुखायी बातें
इस पानी में डाल कर देख ,
इसका रंग बदल कर देख
गर्म घूंट इक तुम भी पीना ,
गर्म घूंट इक मैं भी पी लूँ
उम्र का ग्रीष्म हमने बीता दिया ,
उम्र का शिशिर नही बीतता
आ सजन ,आज बातें कर लें ..... .. ,
15 comments:
amrita ko padna har baar achcha lagata hai....kabhi kabhi lagata hai....jaise ussi kaal mai jee rahae hai...
badhaaee Ranju
गर्म घूंट इक तुम भी पीना ,
गर्म घूंट इक मैं भी पी लूँ
उम्र का ग्रीष्म हमने बीता दिया ,
उम्र का शिशिर नही बीतता
आ सजन ,आज बातें कर लें .....
बहुत ख़ूब...अमृता को पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है...
जो सवाल आपने उठाया कुछ लोग ऐसा भी समझते है। एक पत्रकार है उन्होने एक सवाल किया था कि " आपके लेखन का कुछ हिस्सा छोडकर ऐसा क्यूं लगता है कि मैने स्वेटर बुना था उसके लिए और उसको पहना किसी ओर ने।" वो इंटरव्यूह कही गया या नही पता नही। पर शायद वह इसी सोच को दर्शाता है। मेरा यह मानना है कि वह निरी भावुकता नही है उनके लेखन में उसके कदमों के नीचे एक धरती भी है। दूसरा मै भी मानता हूँ कि औरत और मर्द का रिशता काफी उलझा हुआ है। और जो अमृता जी ने कहा कि "यह रिश्ता अभी उलझा हुआ है ..क्यूंकि अभी दोनों अधूरे हैं दोनों ही एक दूजे को समझ नही पाए हैं ..उनके अनुसार हम लोग जवानी .खूबसूरती की कोशिश को कुछ सुखों और सहूलियतों की कोशिश को मोहब्बत का नाम दे देते हैं ..लेकिन मोहब्बत जैसी घटना सिर्फ़ एक किसी पूरे मर्द या पूरी औरत के बीच घट सकती है..पूरी औरत से यहाँ उनका मतलब पूछा गया तो जवाब बहुत खूबसूरत दिया उन्होंने ..वह औरत जो आर्थिक तौर पर ,जज्बाती तौर पर और जेहनी तौर पर स्वंतंत्र हो ..आजादी कभी किसी से मांगी या छीनी नही जा सकती है ..न ही यह पहनी जा सकती है ,यह वजूद की मिटटी से उगती है"
यह सही हैं। इस उलझे हुए रिश्ते को सुलझाने की कोशिश की थी मैंने अपनी एक तुकंबदी "मेरी कौन थी वो"में। पर जब एक दो जनो पढवाया था तो फिर उलझ गया था। शायद मै अपनी सही कह नही पाया या वो समझ नही पाये। खैर एक अच्छी पोस्ट के लिए आपका शुक्रिया। अगर ब्लोगर इसे पढकर कुछ अपने भी विचार दे तो बहुत ही अच्छा होगा।
पूरी औरत से यहाँ उनका मतलब पूछा गया तो जवाब बहुत खूबसूरत दिया उन्होंने ..वह औरत जो आर्थिक तौर पर ,जज्बाती तौर पर और जेहनी तौर पर स्वंतंत्र हो ..आजादी कभी किसी से मांगी या छीनी नही जा सकती है ..न ही यह पहनी जा सकती है ,यह वजूद की मिटटी से उगती है ॥
बहुत पसंद आई ये पंक्तियाँ। बस इसी तरह आप पढ़वाती रहिये।
मुझे लगता है नज़्म लिखना ओर खूबसूरत नज़्म लिखना केवल दो तीन लोग ही इसमे खरे उतरते थे ,अमृता जी,गुलज़ार साहेब ओर परवीन शाकिर.....एक ओर शानदार पहलु उनके जीवन से.......
हर इक नाजुक बात छिपा ली ,
हर इक पत्ती सूखने डाल दी
मिटटी के इस चूल्हे में से
हम कोई चिंगारी ढूंढ़ लेंगे
एक दो फूंक मार लेंगे
बुझती लकड़ी फ़िर से बाल लेंगे
मिटटी के इस चूल्हे में
इश्क की एक एक आँच बोल उठेगी
मेरे जिस्म की हंडिया में
दिल का पानी खौल उठेगा
बहुत बहुत खूबसूरत रंजू जी, कमाल की पोस्ट है, आपके लिखने के अंदाज़ ने दिल छू लिया...
वाह बहुत सुंदर . आप काफी भावुक कर देती हैं. अमृताजी को इतनी नज़दीक से समझने और हम सबको भी उनके इतना पास लाने के लिए आभार.
अमृता जी के बारे में इतनी विस्तृत जानकारी दे कर आप बहुत अच्छा काम कर रही हैं , बधाई, इसी प्रकार हमारा ज्ञान बढ़ाती रहिए। धन्यवाद
वाह...रूह को ठंडक पहुंचाते हुए शब्द....अमृता जी का क्या कहना...
नीरज
अमृता प्रीतम की गिनती उन चंद मसीहाई रचनाकारों में होती है जिन्होंने सुकोमल इंसानी भावनाओं को लेकर एक इन्द्रधनुषी यूटोपिया का सृजन अपनी रचनाओं में क्या है .उनकी रचनाओं में प्रेम के रूहानी और दैहिक द्वंद्वों को भी साफ़ साफ़ देखा जा सकता है .बहुत सुविचारित पोस्ट ! ब्लॉगजगत में ऐसे विश्लेष्णात्मक आलेखों का सदैव स्वागत है जो कुछ सोचने समझने को प्रेरित करते हैं और बौद्धिक संतृप्तता की राह पर ले चलते हैं !
सचमुच अमृता जी का लेखन एहसास की अमीरी से भरा-पूरा है। उनके एहसास को आप जिस बेहतरीन अंदाज में हम तक पहुंचाती हैं, वह भी कम नहीं है।
aapki is lekh mala se amrita ke vyaktitva ki kayi tahein humare samne khul rahi hain. Humesha ki terah ek bada sa shukriya !
और, मर्द... शादी के रिश्ते की समझ थोडी बढ़ी. हमेशा की तरह अच्छा.
पूरी औरत से यहाँ उनका मतलब पूछा गया तो जवाब बहुत खूबसूरत दिया उन्होंने ..वह औरत जो आर्थिक तौर पर ,जज्बाती तौर पर और जेहनी तौर पर स्वंतंत्र हो ..आजादी कभी किसी से मांगी या छीनी नही जा सकती है ..न ही यह पहनी जा सकती है ,यह वजूद की मिटटी से उगती है ॥
हर बार कि तरह शानदार है ये पोस्ट भी.
आपकी हर पोस्ट पढ़ कर लगता है जैसे अमृता को बहुत भीतर तक जानने वाला कोई शख्श (जो कि इमरोज़ हो सकता है) ही ये पोस्ट लिख रहा हो. ये आपके लेखन का नया कमाल है.
एहसास की अमीरी का
जीवंत और अमीर दस्तावेज़.
अच्छी प्रस्तुति.
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