वनमहोत्सव यानी पेडों का जश्न .... अमृता ने मास्को में उस वक्त देखा ,जब वह मास्को हवाई अड्डे से शहर की और आ रही थी तब ...यहाँ चालीस किलोमीटर लम्बी राह पर जैसे कोई मेला लगा हुआ था ...लोग हाथो में कुदाली और बेलचे पकड़े मोटरों में से उतर रहे थे ....जवान लड़के- लडकियां रंग बिरंगे कपड़े पहने हँसते गाते सड़क की पटरियों के पास मिटटी खोद रहे थे ...पता लगा आज वनमहोत्सव है ...यह यहाँ साल में एक बार आम तौर पर मई के महीने में मनाया जाता है .....इस महीने के पहले इतवार हर मास्कोवासी अपनी धरती पर एक पेड़ बोता है और दोस्ती का जश्न अमृता ने देखा मास्को के सबसे सुंदर शहर बालशोई थियटर में जब टैगोर दिवस मनाया गया ....यहाँ पर जगमग बल्बों से दीवारे जगमगा रही थी और डेढ़ हजार साहित्य प्रेमी यहाँ पर एक डी देश के साहित्य कार की कलम को सत्कार दे कर दोस्ती के बीज बो रहे थे ...
फ़िर अजरबाईजान की राजधानी बाकू से लिखा अमृता ने कि वह यहाँ का राष्ट्रीय अजायबघर देख कर आई है ....एक देश चाहे दूसरे देश से हजारो मील दूर होता है पर इंसान का मन कितना एक जैसा होता है मोहब्बत की लग्न एक जैसी.... मेहनती हाथो के काम एक जैसे , वहम एक जैसे , भ्रम एक जैसे ..
इस अजायबघर घर में चौदह हाल कमरे हैं .....पहले कमरे में वह निशानियाँ संभाली हुई है जिनके बारे में सोचा जाता है कि यह आठवीं सदी की उस से पहले की है ..तब के सिक्के. जेवर ,हथियार मूर्तिकला के नमूने .....इसी कमरे मैं वह तस्वीरें हैं जिन में अय्याशी के निशान मिलते हैं ...इसके आलावा किसी तस्वीर में सूरज पूजा है किसी में गाय पूजा है और किसी में सर्प पूजा
और एक तस्वीर बहुत दिलचस्प हैं यहाँ ,जिस में इजराइल फ़रिश्ता किसी कि जान लेने के लिए आता है पर उसके सगे सम्बन्धी और प्रियजन इजराईल की मिन्नत करते हैं कि उसकी जगह किसी और की जान ले ले पर इसको छोड़ दे इजराइल मान जाता है और उसकी जगह उसके माँ बाप की जान मांगता है सभी डर के पीछे हट जाते हैं ....आख़िर उस आदमी को प्यार करने वाली एक युवती इजराइल को अपनी जान देने के लिए आगे बढती है ....यह तस्वीर देख कर अमृता की आँखे भर आयीं और उनके मुहं से निकला ..हाय औरत ! सचमुच किसी को प्यार करती है ,तो कैसा प्यार करती है .....उसके लिए एक पल में जान हाजिर कर देना कितनी छोटी सी बात हो जाती है उसके लिए ....
अमृता के साथ वहां की शायर जुल्फिया भी साथ थी ....दोनों एक दूजे की नही जानते थे .पर फ़िर भी दोनों रात को एक एक बजे तक बातें करते ..अजीब हैं न दिल का यह जज्बा भी ...उस वक्त दोनों के साथ कोई दूरभाषिया नही होता था ,पर एक निर्भरता बढ़ जाती और अपनी बात समझाने की जैसे एक होड़ सी दोनों में लग जाती ..... जब शब्द नही मिलते तो भावों से काम लिया जाता और ऐसे वक्त पर जुल्फिया एक छुरी पकड लेती और उसक सिरा अपनी तरफ़ कर के अमृता को इशारा करती कि मेरी छाती चीर कर सब बातें निकल लो जो यहाँ पर जज्ब है.... इस तरह तस्वीरों से ,इशारों से, दिल की जुबान से ...उन दोनों कि बातें चलती रहती और कभी कोई शब्द कभी कोई भाषा उस वक्त का गवाह बनता कोई शब्द उर्दू का कोई उजबेक का ,कोई ताजक का ,कोई रुसी तो कोई अन्ग्रेजी ..जुल्फिया इस भाषा को सलाद कहती ...जैसे वह अपने पोते जो उजबेक पुत्र और रुसी बहू से पैदा हुआ है उसकी कहती थी ..
इस पत्र में अमृता ने बताया है कि अरबी और फारसी के कई लफ्ज़ उजबेक भाषा में इस तरह से प्रचलित है जैसे पंजाबी में मसलन ..खुदा .आसमान .जमीन .,हवा ,बाग़ बगीचा , बुलबुल ,गुल दरिया , नहर ,मेहर मोहब्बत रहमत, इल्म ,फेन ,दर्द जहमत, आराम , गुसल ,कर्म, नसीब ,खुश, ख्याल ,तसव्वर , तस्वीर ,हाजिर मुमकिन दावत नज्म ,शेयर ,कलम ,अदीब ,दोस्त ,सलाम ,बच्चा आदि आदि
मिर्च को मुर्च ,समोसे को सनबोसा और चाय को चुए कहा जाता है दूध को यहाँ सूत कहते हैं पुरानी पंजाबी में सूत बेटे को कहते हैं जननी जेते सूत जनि दूध पूत का भाव शायद इतने जुड़ गए कि पंजाबी में पुत्र का सूत और उजबेक में दूध का सूत बन गया है पानी को यहाँ सु कहा जाता है पंजाब में भी बहते पानी को सुआ कहा जाता है
पंजाब में गांव कि बुजुर्ग औरते जैसे अपने अजीजों के सर पर प्यार देती हुई कहती है खेरां नाल सुखां नाल ..यहाँ दोस्त मित्र सम्बन्धी एक दूजे से विदा लेते वक्त अपने दायें हाथ को छाती से लगा कर बड़े प्यार से कहते हैं ख़ैर .. ख़ैर .
यहाँ पर विद्यार्थी बहुत शौक से हिन्दी और उर्दू सीखने में लगे हैं उजबेक लड़कियों का स्वभाव पंजाबी लड़कियों के शर्मीले स्वभाव से बहुत मिलता जुलता है...
इस तरह अमृता के खतों के माध्यम से हमने उजबेक स्वभाव और उजबेक रहन सहन के बारे में बहुत कुछ जाना इन खतों की खूबसूरत श्रंखला का अंत करते हैं, वही की कुछ रचनाओं से जो अनुवादित हैं पर यह यहाँ भी हर दिल का हाल यूँ ब्यान करती है जैसे मेरे आपके दिल का ही हाल हो .. पहली कविता निगार खानुम की है
सारस
जब मैं रात के आँगन में जाती हूँ
अपनी नींद से मैं पंख लेती
सपने में मैं सरस बनती हूँ
और पूरे आसमान मैं उड़ती
फ़िर कहीं से एक आवाज़ आती है
कहीं से एक हसरत बुलाती है
मैं पर्वत के कंधे छूती हुई
किसी देश में उतर जाती
कितनी ही आवाजों होंठो में पकडती
मोहब्बत के चाँद से कहती हूँ
देखो यह सुगंधी पल्लू से बाँध लो
और लाखो सितारों में यह सुगंधी बाँट दो
यह मोहब्बत का चाँद है
और चाँद में हिजर का दाग है
मैं उस से भी आगे गुजर जाती हूँ
और पूरे आसमान में उड़ती हूँ
फ़िर सूरज की लालिमा आती है
मेरे तकिये के पास खड़ी होती है
और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे जगाती है
धरती मुझे कस कर पकड़ लेती है
और फ़िर मुझे एक बात सुनाती है
प्यार करती न्योछावर सी होती है
धरती मुझे लडियाती है
मैं धरती का कन्धा चूम लेती हूँ
और धरती का माथा चूम लेती हूँ ...(निगार खानुम )
याद
तेरी आँखों की मादकता याद आई
बागों के पत्ते पर मोती चमकने लगे
पर्वत एक नाज और अंदाज से सो रहे थे
तेरे बिरहा ने मेरे दिल को बाहों में ले लिया
पेडो पर बुलबुल के गीतों की आवाज उग आई
फूलों के जाम सुगंधी से भरे हुए
शाम की हवा ने सब जाम छलका दिए
मेरे दिल में याद का प्याला छलक गया
आज पानी के किनारे
तेरी याद मैंने बाँहों में ले ली
तेरी याद पत्थर सी ठंडी
आज पानी के किनारे तेरी याद
एक बेल सी नाजुक
एक सपना नींद ने बाँहों में भर लिया ..(आइबेक )
फ़िर अजरबाईजान की राजधानी बाकू से लिखा अमृता ने कि वह यहाँ का राष्ट्रीय अजायबघर देख कर आई है ....एक देश चाहे दूसरे देश से हजारो मील दूर होता है पर इंसान का मन कितना एक जैसा होता है मोहब्बत की लग्न एक जैसी.... मेहनती हाथो के काम एक जैसे , वहम एक जैसे , भ्रम एक जैसे ..
इस अजायबघर घर में चौदह हाल कमरे हैं .....पहले कमरे में वह निशानियाँ संभाली हुई है जिनके बारे में सोचा जाता है कि यह आठवीं सदी की उस से पहले की है ..तब के सिक्के. जेवर ,हथियार मूर्तिकला के नमूने .....इसी कमरे मैं वह तस्वीरें हैं जिन में अय्याशी के निशान मिलते हैं ...इसके आलावा किसी तस्वीर में सूरज पूजा है किसी में गाय पूजा है और किसी में सर्प पूजा
और एक तस्वीर बहुत दिलचस्प हैं यहाँ ,जिस में इजराइल फ़रिश्ता किसी कि जान लेने के लिए आता है पर उसके सगे सम्बन्धी और प्रियजन इजराईल की मिन्नत करते हैं कि उसकी जगह किसी और की जान ले ले पर इसको छोड़ दे इजराइल मान जाता है और उसकी जगह उसके माँ बाप की जान मांगता है सभी डर के पीछे हट जाते हैं ....आख़िर उस आदमी को प्यार करने वाली एक युवती इजराइल को अपनी जान देने के लिए आगे बढती है ....यह तस्वीर देख कर अमृता की आँखे भर आयीं और उनके मुहं से निकला ..हाय औरत ! सचमुच किसी को प्यार करती है ,तो कैसा प्यार करती है .....उसके लिए एक पल में जान हाजिर कर देना कितनी छोटी सी बात हो जाती है उसके लिए ....
अमृता के साथ वहां की शायर जुल्फिया भी साथ थी ....दोनों एक दूजे की नही जानते थे .पर फ़िर भी दोनों रात को एक एक बजे तक बातें करते ..अजीब हैं न दिल का यह जज्बा भी ...उस वक्त दोनों के साथ कोई दूरभाषिया नही होता था ,पर एक निर्भरता बढ़ जाती और अपनी बात समझाने की जैसे एक होड़ सी दोनों में लग जाती ..... जब शब्द नही मिलते तो भावों से काम लिया जाता और ऐसे वक्त पर जुल्फिया एक छुरी पकड लेती और उसक सिरा अपनी तरफ़ कर के अमृता को इशारा करती कि मेरी छाती चीर कर सब बातें निकल लो जो यहाँ पर जज्ब है.... इस तरह तस्वीरों से ,इशारों से, दिल की जुबान से ...उन दोनों कि बातें चलती रहती और कभी कोई शब्द कभी कोई भाषा उस वक्त का गवाह बनता कोई शब्द उर्दू का कोई उजबेक का ,कोई ताजक का ,कोई रुसी तो कोई अन्ग्रेजी ..जुल्फिया इस भाषा को सलाद कहती ...जैसे वह अपने पोते जो उजबेक पुत्र और रुसी बहू से पैदा हुआ है उसकी कहती थी ..
इस पत्र में अमृता ने बताया है कि अरबी और फारसी के कई लफ्ज़ उजबेक भाषा में इस तरह से प्रचलित है जैसे पंजाबी में मसलन ..खुदा .आसमान .जमीन .,हवा ,बाग़ बगीचा , बुलबुल ,गुल दरिया , नहर ,मेहर मोहब्बत रहमत, इल्म ,फेन ,दर्द जहमत, आराम , गुसल ,कर्म, नसीब ,खुश, ख्याल ,तसव्वर , तस्वीर ,हाजिर मुमकिन दावत नज्म ,शेयर ,कलम ,अदीब ,दोस्त ,सलाम ,बच्चा आदि आदि
मिर्च को मुर्च ,समोसे को सनबोसा और चाय को चुए कहा जाता है दूध को यहाँ सूत कहते हैं पुरानी पंजाबी में सूत बेटे को कहते हैं जननी जेते सूत जनि दूध पूत का भाव शायद इतने जुड़ गए कि पंजाबी में पुत्र का सूत और उजबेक में दूध का सूत बन गया है पानी को यहाँ सु कहा जाता है पंजाब में भी बहते पानी को सुआ कहा जाता है
पंजाब में गांव कि बुजुर्ग औरते जैसे अपने अजीजों के सर पर प्यार देती हुई कहती है खेरां नाल सुखां नाल ..यहाँ दोस्त मित्र सम्बन्धी एक दूजे से विदा लेते वक्त अपने दायें हाथ को छाती से लगा कर बड़े प्यार से कहते हैं ख़ैर .. ख़ैर .
यहाँ पर विद्यार्थी बहुत शौक से हिन्दी और उर्दू सीखने में लगे हैं उजबेक लड़कियों का स्वभाव पंजाबी लड़कियों के शर्मीले स्वभाव से बहुत मिलता जुलता है...
इस तरह अमृता के खतों के माध्यम से हमने उजबेक स्वभाव और उजबेक रहन सहन के बारे में बहुत कुछ जाना इन खतों की खूबसूरत श्रंखला का अंत करते हैं, वही की कुछ रचनाओं से जो अनुवादित हैं पर यह यहाँ भी हर दिल का हाल यूँ ब्यान करती है जैसे मेरे आपके दिल का ही हाल हो .. पहली कविता निगार खानुम की है
सारस
जब मैं रात के आँगन में जाती हूँ
अपनी नींद से मैं पंख लेती
सपने में मैं सरस बनती हूँ
और पूरे आसमान मैं उड़ती
फ़िर कहीं से एक आवाज़ आती है
कहीं से एक हसरत बुलाती है
मैं पर्वत के कंधे छूती हुई
किसी देश में उतर जाती
कितनी ही आवाजों होंठो में पकडती
मोहब्बत के चाँद से कहती हूँ
देखो यह सुगंधी पल्लू से बाँध लो
और लाखो सितारों में यह सुगंधी बाँट दो
यह मोहब्बत का चाँद है
और चाँद में हिजर का दाग है
मैं उस से भी आगे गुजर जाती हूँ
और पूरे आसमान में उड़ती हूँ
फ़िर सूरज की लालिमा आती है
मेरे तकिये के पास खड़ी होती है
और मेरा हाथ पकड़ कर मुझे जगाती है
धरती मुझे कस कर पकड़ लेती है
और फ़िर मुझे एक बात सुनाती है
प्यार करती न्योछावर सी होती है
धरती मुझे लडियाती है
मैं धरती का कन्धा चूम लेती हूँ
और धरती का माथा चूम लेती हूँ ...(निगार खानुम )
याद
तेरी आँखों की मादकता याद आई
बागों के पत्ते पर मोती चमकने लगे
पर्वत एक नाज और अंदाज से सो रहे थे
तेरे बिरहा ने मेरे दिल को बाहों में ले लिया
पेडो पर बुलबुल के गीतों की आवाज उग आई
फूलों के जाम सुगंधी से भरे हुए
शाम की हवा ने सब जाम छलका दिए
मेरे दिल में याद का प्याला छलक गया
आज पानी के किनारे
तेरी याद मैंने बाँहों में ले ली
तेरी याद पत्थर सी ठंडी
आज पानी के किनारे तेरी याद
एक बेल सी नाजुक
एक सपना नींद ने बाँहों में भर लिया ..(आइबेक )
22 comments:
तेरे बिरहा ने मेरे दिल को बाहों में ले लिया
पेडो पर बुलबुल के गीतों की आवाज उग आई
फूलों के जाम सुगंधी से भरे हुए
शाम की हवा ने सब जाम छलका दिए
मेरे दिल में याद का प्याला छलक गया
आज पानी के किनारे
तेरी याद मैंने बाँहों में ले ली
तेरी याद पत्थर सी ठंडी
आज पानी के किनारे तेरी याद
एक बेल सी नाजुक
एक सपना नींद ने बाँहों में भर लिया
आज के लेख ने वो असर किया की शब्द नही है कुछ कहने को......
Regards
"
इस ब्लॉग की इपोर्टेंस आने वाले साओ में पता चलेगी...
शब्दों को इतने सुंदर भी न होने चाहिए ! कहीं ये सुबह -शाम न चुरा ले ! बहुत बढ़िया लगा !
दिलचस्प चिट्ठी और रचना तो खैर...
अमृता जी के बारे में क्या कहूँ....पता नहीं कितनी सदियों में कोई एक अमृता जैसा होता है...क्या लिखती हैं वो...कमाल...
नीरज
हाय औरत ! सचमुच किसी को प्यार करती है ,तो कैसा प्यार करती है .....उसके लिए एक पल में जान हाजिर कर देना कितनी छोटी सी बात हो जाती है उसके लिए ....
नारी के अनेकों रूप में ये रूप भी बहुत बखूबी से अमृता जी की नज्म, कवितायें और कहानियों में मिलता है.........सही कहा है प्यार की कोई भाषा नही होती, दो व्यक्तियों में सम्बन्ध बनने हों तो कोई बाधा बीचमें नही आ सकती. अरबी, फारसी के बहुत से शब्द पंजाबी में हैं ये बात दुबई में आसानी से देखने को मिलती है. कविता भी खूब्रूरत एहसास लिए है
देखो यह सुगंधी पल्लू से बाँध लो
और लाखो सितारों में यह सुगंधी बाँट दो
यह मोहब्बत का चाँद है
अमृता जी नें इसमे निगार की साँसों को उतारा लगता है, बहुत ही सजीव
yaad nazm bahut bahut pasandayi,lekh padhne ursaat mein phir aayenge hum.
आज की पोस्ट से तो बहुत सारे नए शब्द पढने को मिले। और रचना तो आप चुन चुन कर सुन्दर ही डालती है पोस्टों में। इस बार की भी कमाल की सुन्दर है। और हाँ कुश जी की बात से सहमत हूँ।
आज तो इस नज़्म को अपने साथ ले जा रहा हूँ
kya kahun............tarif karke unke ahsaason ko chota kar dungi kyunki tarif karni mujhe nhi aati ya yun kahein ki wo shabd hi nhi bane kisi bhi dictionary mein.har lafz chota jan padta hai............itne gahre bhav hote hain unki nazmon mein ki kya kahein.
aapka bahut bahut shukriya unse milwane ke liye ----------lekhon ke jariye hi sahi.
अमृता जी के इमरोज के नाम पत्र भी बहुत सुन्दर हैं। अगर आपके पास हों तो अवश्य प्रस्तुत करें।
WWWWAAAAAAAHHHHH !!!
इस खूबसूरत पोस्ट के लिये धन्यवाद.
jitani nazme khubsurat hai,lekh bhi ek alag bhav liye alag duniya mein le jata hai.jahan se vawas aane ka mann nahi karta,bahut sundar lekh.
amritaji aaj bhI sunder sa sapna ban kar hamare dilon me raj karti hain har kavita me jaise unki atmaa shabdon se bhi adhik prakhar hoti hai is rachna ne jo nAYE SHABD DIYE HAI vo moti sahejne laayak hai unke baare me pad kar ek sukhad se dard ki anubhuti hoti hai dhanyvaad
amritaji aaj bhI sunder sa sapna ban kar hamare dilon me raj karti hain har kavita me jaise unki atmaa shabdon se bhi adhik prakhar hoti hai is rachna ne jo nAYE SHABD DIYE HAI vo moti sahejne laayak hai unke baare me pad kar ek sukhad se dard ki anubhuti hoti hai dhanyvaad
Bahut Achha Ranju ji.....
वनमहोत्सव,दोस्ती का जश्न,टैगोर दिवस,
एक देश चाहे दूसरे देश से हजारो मील दूर होता है पर इंसान का मन कितना एक जैसा होता है मोहब्बत की लगन एक जैसी....
.....जैसी गहरी नजर, वैसे ही सुंदर भाव भी.
achcha laga ise padhna..
प्रकृति ने हमें केवल प्रेम के लिए यहाँ भेजा है. इसे किसी दायरे में नहीं बाधा जा सकता है. बस इसे सही तरीके से परिभाषित करने की आवश्यकता है. ***वैलेंटाइन डे की आप सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ***
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'युवा' ब्लॉग पर आपकी अनुपम अभिव्यक्तियों का स्वागत है !!!
आपकी रचना अच्छी, मै आपको पढ़्ता रहूँगा।
preetam ji ka pinjar pada, great upanyaas hai, aur bhi rachnayen padi, amirta ji ki rachnaon ko blog jagat me lane ke liye Sadhuwaad............
Zaaree rakhen
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