Sunday, March 15, 2009

मेरा अश्वमेघ यज अधूरा है ..अधूरा रहे !

अमृता की आत्मकथा रसीदी टिकट में एक वाकया है कि किसी ने एक एक बार उनका हाथ देख कर कहा कि धन की रेखा बहुत अच्छी है और इमरोज़ का हाथ देख कर कहा की धन की रेखा बहुत मद्धम है .इस पर अमृता हंस दी और उन्होंने कहा की कोई बात नहीं हम दोनों मिल कर एक ही रेखा से काम चला लेंगे ....

और इस वाकये के बाद उनके पास एक पोस्ट कार्ड आया जिस पर लिखा था ----

मैं हस्त रेखा का ज्ञान रखती हूँ ..क्या वह हाथ देख सकती हूँ जिसकी एक रेखा से आप और इमरोज़ मिल कर ज़िन्दगी चला लेंगे .?

उस पोस्ट कार्ड पर नाम लिखा हुआ था उर्मिला शर्मा ..
वह पोस्ट कार्ड कुछ दिन तक अमृता जी के पास यूँ ही पड़ा रहा .फिर उन्होंने उसका एक दिन साधारण सा जवाब दिया आप जब चाहे आ जाए कोई एतराज़ नहीं है ...
उसी ख़त में उनका फ़ोन नम्बर भी था उन्हें लगा कि जब वह आएँगी तो फ़ोन कर के आएँगी ..पर ऐसा नहीं हुआ ..एक दिन वह अचानक आ गयीं उन्हें मालूम नहीं था अमृता ऊपर की मंजिल पर रहती हैं ..इस लिए उन्होंने नीचे का दरवाजा खटखटाया अमृता जी की बहू ने दरवाजा खोला तो उन्होंने अमृता जी का नाम सुन कर उन्हें ऊपर भेज दिया .

अमृता जी ने उन्हें पहचाना नहीं तब उन्होंने खुद ही बताया कि वह हाथ की रेखाए देखने आई है और तुंरत अमृता से पूछा नीचे कौन था उन्होंने कहा मेरी बहू ..वह एक मिनट चुप रह कर बोलीं कि उनके यहाँ कोई बच्चा नहीं होगा ..
अमृता ने सुना और कहा आपको इस तरह से नहीं कहना चाहिए ..न तो आपने उसका हाथ देखा न जन्मपत्री ..फिर कैसे इतनी बड़ी बात कह सकती है ...

बस मैंने कह दिया .उर्मिल जी ने कहा ..अमृता को उनके बोलने का ढंग बहुत रुखा सा लगा ...लेकिन वह मेहमान थी ...बाद में चाय पीते हुए अमृता ने महसूस किया कि भले ही वह बहुत रुखा बोलतीं है पर इंसान भली हैं ...
उन्होंने अमृता से पूछा कि आपकी जन्मपत्री है ? नहीं तो मैं बना देती हूँ ..
अमृता ने हंस कर कहा मेरी जन्मपत्री तो मेरे पास नहीं हैं खुदा के पास होगी वहां से लेने मुझे जाना होगा ..
उन्होंने अमृता से फिर पूछा अच्छा तारीख तो आपकी कहीं मैंने देखी है और साल भी क्या समय था आपको कुछ याद है ? यह सुन कर अमृता ने सोचा अपनी पूरी ज़िन्दगी के हालात रसीदी टिकट में लिख दिया हैं क्या उनको पढ़ कर इस विद्या से वक़्त का पता नहीं चल सकता है ..? पर अमृता ने कुछ कहा नहीं ...और पूछा कि क्या अपने मेरी किताब पढ़ी है .. क्या सोचती है वह उसको पढ़ कर ?
उनका जवाब था मैंने तो किताब नहीं पढ़ी क्यों कि किताबे पढने की मेरी आदत नहीं हैं ..वह मेरे पति ने पढ़ी है और उन्होंने ही बीच में मुझे यह एक वाक्या सुना दिया था वह बहुत पढ़ते हैं ..
अमृता को उनकी बातों में बहुत सफाई और सादगी दिखी ..जो उन्हें अच्छी लगी ...इस तरह बात आगे बढ़ी वह धीरे धीरे अमृता के घर आने लगी ...
फिर एक दिन कुछ इस तरह से हुआ जब वह आयीं तो आते ही पूछने लगीं कि आपकी बहू यहीं है ?
जी हाँ अभी तो यहीं है .उसके मायके वाले हिन्दुस्तान में नहीं लन्दन में हैं ...शायद वहां जाए ..
हाँ वह जायेगी पर वापस नहीं आएगी वह अगस्त में यहाँ से चली जायेगी .अमृता को सुन का अच्छा नहीं लगा ..पर कुछ कहा नहीं उन्होंने ..मई का महीना था .कुछ दिनों बाद उनकी बहू का जन्मदिन था .जन्मदिन वाले दिन अमृता जी ने मेज पर केक और छोटा सा उपहार रखे तो यह देख कर उनक बहू अचानक से रोने लगी ..अमृता को समझ नहीं आया कि यह क्या हुआ क्यों रो रही हैं यह ..उन्होंने उसको बहुत प्यार किया और पूछा आखिर हुआ क्या है ? पर उसकी बजाय उनके बेटे ने कहा वह तलाक ले कर वापस लन्दन जाना चाहती है और यहाँ नहीं रहना चाहती है पर आप सब लोगों को यह करते हुए देख कर इसका मन भर आया है यह सब अमृता जी नहीं जानती थी ..सुनते ही उन्हें उर्मिल की बात याद हो आई यह सब उन्होंने इतना पहले कैसे कह दिया ..?

बाद में वीजा मिलने की कुछ दिक्कत हुई और उनकी बहू तलाक ले कर सितम्बर में लन्दन चली गयी .कभी न वापस आने के लिए ..
उसके बाद तीन साल तक उनके घर का माहौल यूँ ही उदास सा रहा पर उर्मिल का कहना था कि उनका बेटा जरुर शादी करेगा और उसके दो बच्चे होंगे .. पर बेटा शादी के लिए तैयार ही नहीं था ..आखिर १९८२ में उसका मन बदला और उसकी एक लड़की से जान पहचान हुई ... बात दुबारा चली पर उर्मिल जी ने कहा की यह इस लड़की को कहेगा .. और दूसरी लड़की आएगी इसके जीवन में ..अमृता ने कहा मैं नहीं अब मन सकती इसने खुद लड़की को पसनद किए है अब यह न नहीं कर सकता पर न जाने अचानक से क्या हुआ उनके लड़के ने उस लड़की से शादी करने से इनकार कर दिया ..वह उर्मिल जी की बातो को कभी नहीं मानता था इस लिए अमृता बेटे को बताये बैगेर उर्मिल से बात करती थी ..कुछ समय बाद उसने फिर एक लड़की को पसन्द किया ..अमृता ने उर्मिल जो को उस लड़की के बारे में बताया तो उन्होंने कुछ सितारों की गणना करके कहा हां अब यह इस से शादी करेगा ...और अच्छा रहेगा ..
यही हुआ ..अमृता जी की उस से दोस्ती और बढती गयी ..और तब उन्होंने माना कि ज्योतिष के ज्ञान की कोई सीमा नहीं है सिर्फ कुछ एक कण हाथ लगते हैं कुदरत के रहस्य कब किस तरह अपने रंग दिखाए कौन जानता है

और अब चलते चलते अमृता की एक कविता ..

अश्वमेघ यज

एक चेत पूनम की रात थी
कि दुधिया श्वेत मेरे इश्क का धोडा
देश और विदेश में विचरने चला गया

सारा शरीर सच सा श्वेत
और श्यामकर्ण विरही रंग के ..

एक स्वर्ण पत्र उसके मस्तक पर
यह दिग्विजय धोडा ---
कोई सबल है तो इसको पकड़ कर जीते

और इस यज का एक नियम है
वह जहाँ भी ठहरा
मैंने गीत दान किये
और कई जगह हवन रचा
सो जो भी जीतने को आया वह हारा

आज उम्र की अवधी चुक गयी है
यह सही सलामत मेरे पास लौट आया है
पर कैसी अनहोनी
कि पुण्य की इच्छा नहीं हैं
न कोई फल की लालसा बाकी
यह दुधिया श्वेत मेरे इश्क का धोडा
मारा नहीं जाता --मारा नहीं जाता
बस यह सलामत रहे ,
पूरा रहे !
मेरा अश्वमेघ यज अधूरा है
अधूरा रहे !

यह प्रसंग अमृता जी की किताब अनंत नाम जिज्ञासा में भी लिखा गया है .

18 comments:

विष्णु बैरागी said...

बहुत ही रोचक और अविश्‍वसनीय विवरण है। इस प्रसंग का स्रोत यदि प्रकट करतीं तो अच्‍छा होता।
अमृताजी की कविता के क्‍या कहने। वह किसी टिप्‍पणी की मोहताज नहीं।

विष्णु बैरागी said...

टिप्‍पणी लिखने के बाद पोस्‍ट एक बार फिर पढी। पहली ही पंक्ति में स्रोत बता रखा है आपने।
अपनी असावधानी के लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूं।

vandana gupta said...

main to amrita ji ki zindagi ki kayal ho chuki hun.unke har alfaz dil mein utarte hain .aapka bahut bahut dhanyavaad itni sundar rachna padhwane ke liye.
aage bhi intzaar rahega.........

Vineeta Yashsavi said...

Aapke is blog ke karan amrita ji ke baare mai bahut sari rochak jankari mil jati hai...

mamta said...

बड़ा ही रोचक किस्सा है ।

mehek said...

और इस यज का एक नियम है
वह जहाँ भी ठहरा
मैंने गीत दान किये
और कई जगह हवन रचा
सो जो भी जीतने को आया वह हारा

आज उम्र की अवधी चुक गयी है
यह सही सलामत मेरे पास लौट आया है
पर कैसी अनहोनी
कि पुण्य की इच्छा नहीं हैं
bahut pasand aayi ye lines,jitna kissa rochak hai,utani hi amrutaji ki life bhi.sach bahut achha lagta hai yaha aake unhe padhna.aabhar

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत दिलचस्प वाकया है. यकीन ना करने का कोई कारण ही नही दिखता. शायद इसमे के लोग मिलना भी भाग्य से ही होता है.

शब्दों का प्रवाह साथ साथ बहाये ले जाता है. आज भी यही हुआ.

रामराम.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत दिलचस्प वाकया है. यकीन ना करने का कोई कारण ही नही दिखता. शायद इसमे के लोग मिलना भी भाग्य से ही होता है.

शब्दों का प्रवाह साथ साथ बहाये ले जाता है. आज भी यही हुआ.

रामराम.

ओम आर्य said...

mujhe kabhi to jyotish pe vishwas ho jaata hai aur kabhi uTh jaat hai.
par shaayd urmila ji ki tarah koi mil jaaye to shayad fir kabhi vishwas wo uthe hin na.

Manish Kumar said...

क्या इन बातों के होने के बाद अमृता ज्योतिषियों की सलाह लेती थी ? मुझे नहीं लगता लेती होंगी जैसा उनका व्यक्तित्व था। पर अगर ऍसा था तो बताईएगा..

सुशील छौक्कर said...

अमृता की आत्मकथा रसीदी टिकट में एक वाकया है कि किसी ने एक एक बार उनका हाथ देख कर कहा कि धन की रेखा बहुत अच्छी है और इमरोज़ का हाथ देख कर कहा की धन की रेखा बहुत मद्धम है .इस पर अमृता हंस दी और उन्होंने कहा की कोई बात नहीं हम दोनों मिल कर एक ही रेखा से काम चला लेंगे

ये लाईने बहुत करीब है ....

B said...

Thank you for sharing this story with us. Because of you, we get to read about Amrita, thanks a lot for sharing interesting stories about her from various books. She'll always stay alive in our hearts.

अभिषेक मिश्र said...

इस संस्मरण से तो ज्योतिष पर पुनर्विचार की जरुरत महसूस होती है.

दिगम्बर नासवा said...

बहूत ही अविस्मरणीय प्रसंग.......
जीवन की अनोखी सचाई पर जिस अंदाज से बयान है बहूत दिल को छू लेने वाली है
बहूत समायू बाद अमृता जी के बारे में आपने कुछ लिखा.....मज़ा आ गया पढ़ कर

डॉ. मनोज मिश्र said...

इधर बीच मुझसे काफी कुछ छूट गया .आपकी पोस्ट को एक -एक कर के देख रहाहूँ .अमृता जी को जितने मन से आप प्रस्तुत कर रहीं हैं वह अन्यत्र दृश्य नहीं है .

संगीता पुरी said...

उस दिन भी इस लेख को पढा ... टिप्‍पणी देने से पहले मैं दूसरों की टिप्‍पणियों का इंतजार कर रही थी ... कोई भी टिप्‍पणी इस लेख के विरोध में नहीं दी गयी ... सही है ... किसी विशेष क्षेत्र में महारत हासिल करने के बाद उसके द्वारा की जानेवाली हर बात अकाट्य हो जाती है ... पर इतना ही काफी नहीं ... इतनी सटीक गणना करनेवाली उस हस्‍तरेखा विशेषज्ञा को ऐसा माहौल अवश्‍य मिलना चाहिए था ... कि वह अपना ज्ञान दूसरों में भी बांट सके ... और वैसे अन्‍य विशेषज्ञ दुनिया में चलते रहें ... पर शायद ही ऐसा हुआ हो ... लोगों की उपेक्षा से ऐसा ज्ञान सतत् नहीं रह पाता।

B said...

hi, can we post more from Rasidi Ticket? Thx.

kumar Dheeraj said...

रंजू जी आपने अमृता जी के बारे में जो जानकारी दी है उससे मेरे दिल में उनके प्रति एक उल्लास जग गया है सबसे पहले मै निकल चुका हू कि कहां मुझे रसीदी टिकट मिले पहले में उसे मै पढ़ूगा । वैसे अमृता प्रीतम की कई कविताए मैने पढ़ी है । जानकारी के लिए धन्यवाद