उमा त्रिलोक द्वारा लिखी"अमृता -इमरोज़"किताब की समीक्षा
उमा त्रिलोक की किताब को पढ़ना मुझे सिर्फ़ इस लिए अच्छा नही लगा कि यह मेरी सबसे मनपसंद और रुह में बसने वाली अमृता के बारे में लिखी हुई है ..बल्कि यह मेरे इस लिए भी ख़ास है कि इसको इमरोज़ ने ख़ुद अपने हाथो से हस्ताक्षर करके मुझे दिया है ...उमा जी ने इस किताब में उन पलों को तो जीवंत किया ही है जो इमरोज़ और अमृता की जिंदगी से जुड़े हुए बहुत ख़ास लम्हे हैं ,साथ ही साथ उन्होंने इस में उन पलों को समेट लिया है जो अमृता जी की जीवन के आखरी लम्हे थे. और उन्होंने हर पल उस रूहानी मोहब्बत के जज्बे को अपनी कलम में समेट लिया है
फ़िर सुबह सवेरे
हम कागज के फटे हुए टुकडों की तरह मिले
मैंने अपने हाथ में उसका हाथ लिया
उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया
और फ़िर हम दोनों एक सेंसर की तरह हँसे
और फ़िर कागज को एक ठंडी मेज पर रख कर
उस सारी नज़्म पर लकीर फेर दी !
मैंने इस किताब को पढ़ते हुए इसके हर लफ्जे को रुह से महसूस किया ....एक तो मैं उनके घर हो कर आई थी यदि कोई न भी गया हो तो वह इस किताब को पढ़ते हुए शिद्दत से अमृता के साथ ख़ुद को जोड़ सकता है ...उनके लिखे लफ्ज़ अमृता और इमरोज़ की जिंदगी के उस रूहानी प्यार को दिल के करीब ला देते हैं ..जहाँ वह लिखती है इमरोज़ की पेंटिंग और अमृता जी की कविताओं में, किरदारों में एक ख़ास रिश्ता जुडा हुआ दिखायी देता है ..एक ऐसा प्यार का रिश्ता जिसे सामाजिक मंजूरी की जरुरत नही पड़ती है ...
मैं एक लोकगीत
बेनाम ,हवा में खड़ा
हवा का हिस्सा
जिसे अच्छा लगूं
वो याद कर ले
जिसे और अच्छा लगूं
वो अपना ले --
जी में आए तो गा भी ले
मैं एक लोकगीत
जिसको नाम की
जरुरत नही पड़ी...
प्यार के कितने रंग हैं और कितनी दिशाएँ और कितनी ही सीमायें हैं...कौन जान सकता है...
उमा जी का हर बार अमृता जी के यहाँ जाना रिश्तो की दुनिया का एक नया सफर होता...यह उन्होंने न केवल लिखा है बलिक इस को उनके लिखे में गहराई से महसूस भी किया जा सकता है...इस किताब में अमृता का अपने बच्चो के साथ रिश्ता भी बखूबी लिखा है उन्होंने..और इमरोज़ से उनके बच्चो के रिश्ते को बखूबी दर्शाया है लफ्जों के माध्यम से..उमा उनसे आखरी दिनों में मिली जब वह अपनी सेहत की वजह से परेशान थी तब उमा जी जो की रेकी हीलर भी है ,इस मध्याम से उनके साथ रहने का मौका मिला जिससे वह हर लम्हे को अपनी इस किताब में लिख पायी .....अपने आखिरी दिनों की कविता "मैं तेनु फेर मिलांगी" जो उन्होंने इमरोज़ के लिए लिखी थी ,उसका अंग्रेजी में अनुवाद करने को बोला था
इमरोज़ के भावों को उस आखरी वक्त के लम्हों को बहुत खूबसूरती से उन्होंने लिखा है...सही कहा है उमा जी ने कि प्यार में मन कवि हो जाता है वह कविता को लिखता ही नही कविता को जीता है ,तभी उमा के संवेदना जताने पर इमरोज़ कहते हैं कि एक आजाद रुह जिस्म के पिंजरे से निकल कर फ़िर से आज़ाद हो गई...
अमृता इमरोज़ के प्यार को रुह से महसूस करने वालों के लिए यह किताब शुरू से अंत तक अपने लफ्जों से बांधे रखती है...और जैसे जैसे हम इस के वर्क पलटते जाते हैं उतने ही उनके लिखे और साथ व्यतीत किए लम्हों को ख़ुद के साथ चलता पाते हैं...
आज से कुछ साल पहले अमृता इमरोज़ ने समाज को धता बता कर साथ रहने का फैसला किया था. यह दस्तावेज है उनकी जुबानी उनकी कहानी का..इमरोज़ कहते हैं..."एक सूरज आसमान पर चढ़ता है. आम सूरज सारी धरती के लिए. लेकिन एक सूरज ख़ास सूरज सिर्फ़ मन की धरती के लिए उगता है,इस से एक रिश्ता बन जाता है,एक ख्याल,एक सपना,एक हकीक़त..मैंने इस सूरज को पहली बार एक लेखिका के रूप में देखा था,एक शायरा के रूप में,किस्मत कह लो या संजोग,मैंने इस को ढूंढ़ कर अपना लिया,एक औरत के रूप में,एक दोस्त के रूप में,एक आर्टिस्ट के रूप में,और एक महबूबा के रूप में !"
कल रात सपने में एक
औरत देखी
जिसे मैंने कभी नही देखा था
इस बोलते नैन नक्श बाली को
कहीं देखा हुआ है ..
कभी कभी खूबसूरत सोचे
खूबसूरत शरीर भी धारण कर लेती है...
अमृता इमरोज
लेखिका – उमा त्रिलोक
मूल्य – 120
प्रकाशक – पेंगुइन बुक्स इंडिया प्रा. लि. भारत
उमा त्रिलोक की किताब को पढ़ना मुझे सिर्फ़ इस लिए अच्छा नही लगा कि यह मेरी सबसे मनपसंद और रुह में बसने वाली अमृता के बारे में लिखी हुई है ..बल्कि यह मेरे इस लिए भी ख़ास है कि इसको इमरोज़ ने ख़ुद अपने हाथो से हस्ताक्षर करके मुझे दिया है ...उमा जी ने इस किताब में उन पलों को तो जीवंत किया ही है जो इमरोज़ और अमृता की जिंदगी से जुड़े हुए बहुत ख़ास लम्हे हैं ,साथ ही साथ उन्होंने इस में उन पलों को समेट लिया है जो अमृता जी की जीवन के आखरी लम्हे थे. और उन्होंने हर पल उस रूहानी मोहब्बत के जज्बे को अपनी कलम में समेट लिया है
फ़िर सुबह सवेरे
हम कागज के फटे हुए टुकडों की तरह मिले
मैंने अपने हाथ में उसका हाथ लिया
उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया
और फ़िर हम दोनों एक सेंसर की तरह हँसे
और फ़िर कागज को एक ठंडी मेज पर रख कर
उस सारी नज़्म पर लकीर फेर दी !
मैंने इस किताब को पढ़ते हुए इसके हर लफ्जे को रुह से महसूस किया ....एक तो मैं उनके घर हो कर आई थी यदि कोई न भी गया हो तो वह इस किताब को पढ़ते हुए शिद्दत से अमृता के साथ ख़ुद को जोड़ सकता है ...उनके लिखे लफ्ज़ अमृता और इमरोज़ की जिंदगी के उस रूहानी प्यार को दिल के करीब ला देते हैं ..जहाँ वह लिखती है इमरोज़ की पेंटिंग और अमृता जी की कविताओं में, किरदारों में एक ख़ास रिश्ता जुडा हुआ दिखायी देता है ..एक ऐसा प्यार का रिश्ता जिसे सामाजिक मंजूरी की जरुरत नही पड़ती है ...
मैं एक लोकगीत
बेनाम ,हवा में खड़ा
हवा का हिस्सा
जिसे अच्छा लगूं
वो याद कर ले
जिसे और अच्छा लगूं
वो अपना ले --
जी में आए तो गा भी ले
मैं एक लोकगीत
जिसको नाम की
जरुरत नही पड़ी...
प्यार के कितने रंग हैं और कितनी दिशाएँ और कितनी ही सीमायें हैं...कौन जान सकता है...
उमा जी का हर बार अमृता जी के यहाँ जाना रिश्तो की दुनिया का एक नया सफर होता...यह उन्होंने न केवल लिखा है बलिक इस को उनके लिखे में गहराई से महसूस भी किया जा सकता है...इस किताब में अमृता का अपने बच्चो के साथ रिश्ता भी बखूबी लिखा है उन्होंने..और इमरोज़ से उनके बच्चो के रिश्ते को बखूबी दर्शाया है लफ्जों के माध्यम से..उमा उनसे आखरी दिनों में मिली जब वह अपनी सेहत की वजह से परेशान थी तब उमा जी जो की रेकी हीलर भी है ,इस मध्याम से उनके साथ रहने का मौका मिला जिससे वह हर लम्हे को अपनी इस किताब में लिख पायी .....अपने आखिरी दिनों की कविता "मैं तेनु फेर मिलांगी" जो उन्होंने इमरोज़ के लिए लिखी थी ,उसका अंग्रेजी में अनुवाद करने को बोला था
इमरोज़ के भावों को उस आखरी वक्त के लम्हों को बहुत खूबसूरती से उन्होंने लिखा है...सही कहा है उमा जी ने कि प्यार में मन कवि हो जाता है वह कविता को लिखता ही नही कविता को जीता है ,तभी उमा के संवेदना जताने पर इमरोज़ कहते हैं कि एक आजाद रुह जिस्म के पिंजरे से निकल कर फ़िर से आज़ाद हो गई...
अमृता इमरोज़ के प्यार को रुह से महसूस करने वालों के लिए यह किताब शुरू से अंत तक अपने लफ्जों से बांधे रखती है...और जैसे जैसे हम इस के वर्क पलटते जाते हैं उतने ही उनके लिखे और साथ व्यतीत किए लम्हों को ख़ुद के साथ चलता पाते हैं...
आज से कुछ साल पहले अमृता इमरोज़ ने समाज को धता बता कर साथ रहने का फैसला किया था. यह दस्तावेज है उनकी जुबानी उनकी कहानी का..इमरोज़ कहते हैं..."एक सूरज आसमान पर चढ़ता है. आम सूरज सारी धरती के लिए. लेकिन एक सूरज ख़ास सूरज सिर्फ़ मन की धरती के लिए उगता है,इस से एक रिश्ता बन जाता है,एक ख्याल,एक सपना,एक हकीक़त..मैंने इस सूरज को पहली बार एक लेखिका के रूप में देखा था,एक शायरा के रूप में,किस्मत कह लो या संजोग,मैंने इस को ढूंढ़ कर अपना लिया,एक औरत के रूप में,एक दोस्त के रूप में,एक आर्टिस्ट के रूप में,और एक महबूबा के रूप में !"
कल रात सपने में एक
औरत देखी
जिसे मैंने कभी नही देखा था
इस बोलते नैन नक्श बाली को
कहीं देखा हुआ है ..
कभी कभी खूबसूरत सोचे
खूबसूरत शरीर भी धारण कर लेती है...
अमृता इमरोज
लेखिका – उमा त्रिलोक
मूल्य – 120
प्रकाशक – पेंगुइन बुक्स इंडिया प्रा. लि. भारत
25 comments:
बहुत सुंदर और सही समीक्षा .
ranjana ji
dhanyavaad , amrita ji ke jeevan ke aur aur pahlu se ru-b-ru karwane ke liye.
prem ke har roop dikha rahi hain aap .
hmmm kafi achchha prastutikaraN
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Blogging And Password Hacking Part-I
अमृता की रचनाओं में सच में लोकगीत की मिठास है।
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जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
जिसे अच्छा लगूं
वो याद कर ले
जिसे और अच्छा लगूं
वो अपना ले --
bahut khub prastuti rahi is baar apki...
बहुत सुंदर रंजना जी. अमृता मेरी भी प्रिय हैं. पहले से पढ़े हुए होने के बावजूद हर हिस्सा फिर-फिर बांध लेता है. अमृता की दुनिया प्यार की दुनिया है. कौन नहीं भीगना चाहेगा अहसासों की बारिश में.
शुक्रिया, ऐसी हसीन दुनिया बनाने के लिए.
एक अच्छी और सुंदर समीक्षा रंजू जी। मेरे पास भी है ये किताब। एक बार शुरु किया था पढना तो उसमें डूबता ही चला गया था।
bahut hi mohabbat bhari sameeksha
बहुत सुंदर समिक्षा है. शुभकामनाएं.
रामराम.
कल रात सपने में एक
औरत देखी
जिसे मैंने कभी नही देखा था
इस बोलते नैन नक्श बाली को
कहीं देखा हुआ है ..
अमृता जी..उमाजी और मुझे तो लगता है आपकी समीक्षा में भी...अमृता की की झलक साफ़ नजर आती है.........
आपकी चर्चा और समीक्षा दोनों हीं लाजवाब हैं
बेहतरीन समीक्षा की है आपने बहुत बहुत धन्यवाद
fir subh swere hum kagaz ke tukdo ki tarah mile....dil ko chhu gyee....
इस पुस्तक से परिचय और समीक्षा के लिए धन्यवाद ! कभी पढ़ी जायेगी यह किताब भी.
अमृता अपने वक़्त से कही आगे की चीज थी....ओर एक शानदार रूह की मालिक ...
"एक आजाद रुह जिस्म के पिंजरे से निकल कर फ़िर से आज़ाद हो गई..."
प्यार को रूह तक महसूस करने वाला ही इस गहरे तक पहुँच सकता है. किताब के प्रति उत्सुकता बढा दी है आपने.
लोक गीत के बेनाम
होने का मर्म समझा गयी
यह प्रेम-पगी पोस्ट.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
खूबसूरत समीक्षा।
सही है रुहो को नाम की कोई जरुरत ही नही होती है...
..........रुहे तो समाजिक कसौटियो से मुक्त होती है....
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अमृता की दुनिया प्यार की दुनिया है. ..सही है रुहो को नाम की कोई जरुरत ही नही होती है...
अमृता ......
ये मेरे दिल की पाक किताब है .....
मैं यहाँ से वाक् लूँ ......वहीँ तू है
शुक्रिया इस किताब के बारे में इतनी अच्छी तरह चर्चा करने के लिए।
बहुत ही सटीक् समीक्षा है आभर्
बहुत खूब.. अच्छी लगी आपकी यह समीक्षा
रंजना जी ,
आपने कुछ पल के लिए मुझे स्तब्ध कर दिया....अमृता को जब जब पढा है मैंने रूह तड़प उठी है ...आज फ़िर आपने किंकर्त्तव्यविमूढ़ कर दिया ....!!
सच में, अमृता जी लोकगीत की तरह ही जन जन में छाई हुई हैं।
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अभिनय के उस्ताद जानवर
लो भई, अब ऊँट का क्लोन
achachi lagi sameeksha aur sabhi tippaniya bhi.
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