"तूने इश्क भी किया
तो कुछ इस तरह
जैसे इश्क मेंह है
और तुम्हे भीगने का डर है !"
हर अतीत एक वो डायरी का पुराना पन्ना है ....जिस को हर दिल अजीज यदा कदा पलटता है और उदास हो जाता है .कई बार उस से कुछ लफ्ज़ छिटक कर यूँ बिखर जाते हैं ...कोई नाम उन में चमक जाता है ,पर कोई विशेष नाम नहीं ,क्यों कि मोहबत का कोई एक नाम नहीं होता ,उसके कई नाम होते हैं ....
वैसे तो अमृता का दूसरा मतलब ही मोहब्बत है ,पर उनके कुछ लिखे कुछ पन्ने जो मोहब्बत को एक नए अंदाज़ से ब्यान करते हैं ...उनको यहाँ कुछ बताने की कोशिश की है .. ....काया विज्ञान कहता है :यह काया पंचतत्वों से मिल कर बनी है --पृथ्वी ,जल ,वायु ,अग्नि ,और आकाश ...
लेकिन इन पांच तत्वों के बीच इतना गहन आकर्षण क्यों है कि इन्हें मिलना पड़ा ?
कितने तो भिन्न है यह ,कितने विपरीत ....
कहाँ ठहरा हुआ सा पृथ्वी तत्व ,
तरंगित होता जल तत्व
दहकता हुआ अग्नि तत्व
प्रवाह मान वायु तत्व
और कहाँ अगोचर होता आकाश तत्व ,
कोई भी तो मेल नहीं दिखता आपस में
यह कैसे मिल बैठे ..? कौन सा स्वर सध गया इनके मध्य ..? निश्चित ही इन्हें जोड़ने वाला ,मिलाने वाला कोई छठा तत्व भी होना चाहिए ...अभी यह प्रश्न सपन्दित हुआ ही था कि दसों दिशाएँ मिल कर
गुनगुनाई ..प्रेम ..वह छठा तत्व है प्रेम ....यह सभी तत्व प्रेम में है एक दूसरे के साथ ,इस लिए ही इनका मिलन होता है ..यह छठा तत्व जिनके मध्य जन्म लेता है .वे मिलते ही हैं फिर ,उन्हें मिलना ही होता है ,मिलन उनकी नियति हो जाती है !मिलन घटता ही है ..कहीं पर भी ..किसी भी समय ...इस मिलन के लिए स्थान अर्थ खो देता है ..और काल भी ..स्थान और काल की सीमायें तोड़ कर भी मिलना होता है ....फिर किसी भी सृष्टि में चाहे ,किसी भी पृथ्वी पर चाहे ....फिर पैरों के नीचे कल्प दूरी बन कर बिछे हों .निकट आना होता है उन्हें ....
यह सच ही है जो कोई प्रेम को जी लेता है ,उस में देवत्व प्रगट हो जाता है ..फिर दसों दिशाएँ मुस्करा उठती हैं ...हम सब भी आपस में प्रेम करतीं है ,तभी हम मिलती हैं ..इंसान के भीतर ...और जन्म देती है ग्यारहवीं दिशा को .......प्रेम में डूबी हम जहाँ मिलती है वही" परम प्रेम "घटित होता है ..और वहीँ "परमात्मा का वास ......"
जब यह प्रेम ,इंसान और इंसान के बीच जन्मता है तो बाँध लेता है ..और जब इंसान और कायनात के बीच फैलता है तो मुक्त कर देता है .प्रेम ही बंधन ...प्रेम ही मुक्ति ...
कोई कोई दिल न जाने मोहब्बत की कैसी भूख ले कर इस दुनिया में आता है ,जिसने अपनी कल्पना की पहचान तो कर ली .एक परछाई की तरह .लेकिन रास्ता चलते हुए उसने वह परछाई कभी देखी नहीं ...उस दिल ने वह पग -डंडियाँ खोज ली जिन पर वह सहज चल सकता है ,लेकिन वह राह खोज लेना उसके बस में नहीं है वह उसकी कल्पित मोहब्बत की राह है ..मोह की कला ,किसी किसी के अक्षरों की इतनी प्यारी पगडंडियाँ होती है जो किताबों से उठ कर कई बार इंसान के पैरों के आगे बिछ जाती है ..
मैंने तो कहा था --
तू साथ चलती रहे
और मैं कभी न थकूं !
मैंने यह कब कहा था --
कि अपनी राह के आगे कोई घर न हो
पैरों तले भटकन का लम्बा सफ़र बिछ जाए
एक बोसे के चोर बनने की खातिर
बेगानी ओट से पनाह मांगे !
मैंने तो कहा था ---
आ मोहब्बत का हासिल हो जाएँ
मैं यह कब कहा था
कि इश्क को हादसे से पहले
हादसा मान लें
मनफी होने के संशय में
बरसों पहले उदास हो जाएँ
जिन सपनों के बीज करवट बदलते हैं
उन्हें ठहरी हवा में भी न बो सकें !
मैंने तो यह कहा था ..
हुस्न एक बुझ रहा दीया है
आ बुझने से पहले
मेह की तरह बरस जाए
मैंने यह कब कहा था
कि बूंद सा गर्म राख पर गिरें
सुर -सुर करते खत्म हो जाये
साबित होने के दंभ में
खंडहर से खड़े दिखे !
तो कुछ इस तरह
जैसे इश्क मेंह है
और तुम्हे भीगने का डर है !"
हर अतीत एक वो डायरी का पुराना पन्ना है ....जिस को हर दिल अजीज यदा कदा पलटता है और उदास हो जाता है .कई बार उस से कुछ लफ्ज़ छिटक कर यूँ बिखर जाते हैं ...कोई नाम उन में चमक जाता है ,पर कोई विशेष नाम नहीं ,क्यों कि मोहबत का कोई एक नाम नहीं होता ,उसके कई नाम होते हैं ....
वैसे तो अमृता का दूसरा मतलब ही मोहब्बत है ,पर उनके कुछ लिखे कुछ पन्ने जो मोहब्बत को एक नए अंदाज़ से ब्यान करते हैं ...उनको यहाँ कुछ बताने की कोशिश की है .. ....काया विज्ञान कहता है :यह काया पंचतत्वों से मिल कर बनी है --पृथ्वी ,जल ,वायु ,अग्नि ,और आकाश ...
लेकिन इन पांच तत्वों के बीच इतना गहन आकर्षण क्यों है कि इन्हें मिलना पड़ा ?
कितने तो भिन्न है यह ,कितने विपरीत ....
कहाँ ठहरा हुआ सा पृथ्वी तत्व ,
तरंगित होता जल तत्व
दहकता हुआ अग्नि तत्व
प्रवाह मान वायु तत्व
और कहाँ अगोचर होता आकाश तत्व ,
कोई भी तो मेल नहीं दिखता आपस में
यह कैसे मिल बैठे ..? कौन सा स्वर सध गया इनके मध्य ..? निश्चित ही इन्हें जोड़ने वाला ,मिलाने वाला कोई छठा तत्व भी होना चाहिए ...अभी यह प्रश्न सपन्दित हुआ ही था कि दसों दिशाएँ मिल कर
गुनगुनाई ..प्रेम ..वह छठा तत्व है प्रेम ....यह सभी तत्व प्रेम में है एक दूसरे के साथ ,इस लिए ही इनका मिलन होता है ..यह छठा तत्व जिनके मध्य जन्म लेता है .वे मिलते ही हैं फिर ,उन्हें मिलना ही होता है ,मिलन उनकी नियति हो जाती है !मिलन घटता ही है ..कहीं पर भी ..किसी भी समय ...इस मिलन के लिए स्थान अर्थ खो देता है ..और काल भी ..स्थान और काल की सीमायें तोड़ कर भी मिलना होता है ....फिर किसी भी सृष्टि में चाहे ,किसी भी पृथ्वी पर चाहे ....फिर पैरों के नीचे कल्प दूरी बन कर बिछे हों .निकट आना होता है उन्हें ....
यह सच ही है जो कोई प्रेम को जी लेता है ,उस में देवत्व प्रगट हो जाता है ..फिर दसों दिशाएँ मुस्करा उठती हैं ...हम सब भी आपस में प्रेम करतीं है ,तभी हम मिलती हैं ..इंसान के भीतर ...और जन्म देती है ग्यारहवीं दिशा को .......प्रेम में डूबी हम जहाँ मिलती है वही" परम प्रेम "घटित होता है ..और वहीँ "परमात्मा का वास ......"
जब यह प्रेम ,इंसान और इंसान के बीच जन्मता है तो बाँध लेता है ..और जब इंसान और कायनात के बीच फैलता है तो मुक्त कर देता है .प्रेम ही बंधन ...प्रेम ही मुक्ति ...
कोई कोई दिल न जाने मोहब्बत की कैसी भूख ले कर इस दुनिया में आता है ,जिसने अपनी कल्पना की पहचान तो कर ली .एक परछाई की तरह .लेकिन रास्ता चलते हुए उसने वह परछाई कभी देखी नहीं ...उस दिल ने वह पग -डंडियाँ खोज ली जिन पर वह सहज चल सकता है ,लेकिन वह राह खोज लेना उसके बस में नहीं है वह उसकी कल्पित मोहब्बत की राह है ..मोह की कला ,किसी किसी के अक्षरों की इतनी प्यारी पगडंडियाँ होती है जो किताबों से उठ कर कई बार इंसान के पैरों के आगे बिछ जाती है ..
मैंने तो कहा था --
तू साथ चलती रहे
और मैं कभी न थकूं !
मैंने यह कब कहा था --
कि अपनी राह के आगे कोई घर न हो
पैरों तले भटकन का लम्बा सफ़र बिछ जाए
एक बोसे के चोर बनने की खातिर
बेगानी ओट से पनाह मांगे !
मैंने तो कहा था ---
आ मोहब्बत का हासिल हो जाएँ
मैं यह कब कहा था
कि इश्क को हादसे से पहले
हादसा मान लें
मनफी होने के संशय में
बरसों पहले उदास हो जाएँ
जिन सपनों के बीज करवट बदलते हैं
उन्हें ठहरी हवा में भी न बो सकें !
मैंने तो यह कहा था ..
हुस्न एक बुझ रहा दीया है
आ बुझने से पहले
मेह की तरह बरस जाए
मैंने यह कब कहा था
कि बूंद सा गर्म राख पर गिरें
सुर -सुर करते खत्म हो जाये
साबित होने के दंभ में
खंडहर से खड़े दिखे !
23 comments:
जब यह प्रेम ,इंसान और इंसान के बीच जन्मता है तो बाँध लेता है ..और जब इंसान और कायनात के बीच फैलता है तो मुक्त कर देता है .प्रेम ही बंधन ...प्रेम ही मुक्ति ...
achchi lagi aapki abhivyakti
"इन पांच तत्वों के बीच इतना गहन आकर्षण क्यों है कि इन्हें मिलाना पड़ा ?"
यूनिक प्रश्न और ऐसा ही इसका उत्तर भी !
बहुत ही रोचक. आभार
mujhe bahut pasand aayi ye post
अतीत की डायरी का पुराना पन्ना बेहद अच्छा लगा . बधाई प्रस्तुति के लिए.
sundar..aur kya kahein
सुन्दर सशक्त प्रस्तुति के ल्ये धन्यवाद्
बहुत ही सशक्त और सुंदर .
मैंने यह कब कहा था --
कि अपनी राह के आगे कोई घर न हो
पैरों तले भटकन का लम्बा सफ़र बिछ जाए
एक बोसे के चोर बनने की खातिर
बेगानी ओट से पनाह मांगे !
Bahut hi achhi post...
तूने इश्क भी किया
तो कुछ इस तरह
जैसे इश्क मेंह है
और तुम्हे भीगने का डर है....boht hi khubsurat....mohabbat ke sach me boht se naam hai..
हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब पोस्ट. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
तूने इश्क भी किया
तो कुछ इस तरह
जैसे इश्क मेंह है
और तुम्हे भीगने का डर
बहुत ही रोचक
amrita preetam ki shyeri me waqai gazab ka akarshan hai
kabhi mere blog par aayen
मैंने तो यह कहा था ..
हुस्न एक बुझ रहा दीया है
आ बुझने से पहले
मेह की तरह बरस जाए
मैंने यह कब कहा था
कि बूंद सा गर्म राख पर गिरें
सुर -सुर करते खत्म हो जाये
साबित होने के दंभ में
खंडहर से खड़े दिखे !
इन लाइनों ने प्रेम को उन ऊँचाइयों में ला दिया है जहां से आगे कोई और जगह हो ही नहीं सकती...........प्रेम जीवन है प्रेम मृत्यु है......... प्रेम अमर है............... अमृता जी के लिखे और आपके लिखे में पार्क करना बहुत मुश्किल है ....बहुत ही लाजवाब पोस्ट ........
कुछ लोग है जो इश्क को . एक मकाम पे ले जाते है ......इश्क कि उम्र इन दिनों ज्यादा नहीं रहती
मैने तो कहा था,
तू साथ चलती रहे,
और मैं कभी न थकूं ।
बहुत ही रोचक प्रस्तुति जिसके लिये आपको आभार ।
हमेशा की तरह खुबसूरत ......नतमस्तक हूँ
प्रेम की अपनी अलग बोली, अलग भाषा है !
"तूने इश्क भी किया
तो कुछ इस तरह
जैसे इश्क मेंह है
और तुम्हे भीगने का डर है !"
दिल को छूते शब्द ....
प्रेम ही बंधन ...प्रेम ही मुक्ति ...
insaani hado ko khatma kar deti huee jaan padati hai.prem jismo me bandhana nahi balki ruho me bandhana hai.
asal pyaar ek khoobsoorat itefaak hai jo jeevan me ek baar hi hotaa hai.amritaa ko jo preetam banaa de woh dildaar ek hi hotaa hai.
jhallevichar.blogspot.com
मैंने तो यह कहा था ..
हुस्न एक बुझ रहा दीया है
आ बुझने से पहले
मेह की तरह बरस जाए
मैंने यह कब कहा था
कि बूंद सा गर्म राख पर गिरें
सुर -सुर करते खत्म हो जाये
साबित होने के दंभ में
खंडहर से खड़े दिखे !
आह....!
न जाने किस पाक रूह का समावेश था इस औरत में .....!
गज़ब का लेखन.....!
और आप आभार किन शब्दों में करूँ .......!?!
,क्यों कि मोहबत का कोई एक नाम नहीं होता ,उसके कई नाम होते हैं .......तुम्हे किसी और ब्लॉग पर देखा और तुम्हारे पास चली आई ...बस पढ़ कर अच्छा लगा ...
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