मैंने दोस्ती का
जराबख्तर पहन लिया है
और नंगे बदन को
अब कुछ नहीं छूता
न दुश्मन का हाथ छूता है
न मेरे दोस्त की बाहें
मैंने दोस्ती का
जराबख्तर पहन लिया है
मैं खुश हूँ
पर आप क्यों पूछते हैं
कि कुछ खुशियाँ
इतनी उदास क्यों होती है ?
अमृता ने एक जगह लिखा है कि दुनिया अदन बाग़ नहीं , पर जरखेज धरती में जहाँ कहीं भी मोहब्बत हक और सच के फूल उगते हैं वह वर्जित बाग़ करार दे दिया जाता है ...सामाजिक कानून के सामने या महजबी कानून के सामने यहाँ इसकी कोई सुनवाई नहीं होती है ..पर सच तो यह है कि ..हर काल में इसी तरह के शायर और आदिब पैदा होते हैं जो इस वर्जित बाग़ में कदम रखते हैं और उसके लिए आवाज़ उठाते हैं .चाहे कोई भी कीमत उन्हें इसको क्यों न चुकानी पड़े
इसी तरह की कड़ी में उन्होंने खलील जिब्रान का जिक्र किया ..जिसने तीन कहानियाँ लिखी .लम्बी और पूरे ब्यौरे से भरी हुई जिनके संग्रह को नाम दिया ..स्प्रिट्स रिबैलियस यह किताब न्यूयार्क में विजडम लाइब्रेरी ,ब्रांच फिलोसोफिकल लाइब्रेरी की औरछापी थी ..१९४७ में .पर यह अंग्रेजी रूप .मूल अरबी किताब का अनुवादित रूप है ..
इसमें कही गयी पहली कहानी है मैडम रोज़ हैनी ..यह एक बहुत सादा सी कहानी है कि एक जवान होती अति सुन्दर लड़की से एक अमीर आदमी विवाह कर लेता है .सोना चांदी हीरे मोती हमेशा उसके पहनने को हाजिर रहते पर कुछ बरसों बाद लड़की सब कुछ होते हुए भी दो बूंद मोहब्बत के लिए तरसती रहती है ...उसी समय एक लड़का उस की जिन्दगी में आता है जिसकी आँखों में उसके सपनों की पूर्ति की रौशनी है ....वह लड़की उस अमीर घर को छोड़ कर उस खुदाई सिफतों वाले उस व्यक्ति के साथ चली जाती है जहाँ के रास्ते कटीले है और एक गरीब सी बस्ती में उस का घर है ...
उस अमीर आदमी की जुबान जैसे कंटीली हो जाती है और उसके साथ ही पूरे गांव और कबीले की भी जुबान उस लड़की को लानतें भेजती थकती नहीं ..इस का ब्यौरा जिस कहानी कार ने दिया वह भी उसी कबीले का था .....सबब बनता है और वह उस लड़की के साथ उस सिफतों वाले मर्द को भी मिलता है और उन दोनों के चमकते चेहरे देख कर उसको गांव कबीले वालों के उफनते चेहरे याद आ जाते हैं ...
उस एक मिनट की खामोशी जैसे उस औरत और उस मर्द को दी गयी नियाज जैसी लगती और उसको लगता है कोई खुदाई चीज है जो इन दोनों को देखने से पहले उसने कभी देखी नहीं है और तब उसको वह नाजुक चीज समझ आती है की औरत ने इतनी बड़ी मुखालफत क्यों सह ली थी .सारे कानून उसके पीछे पड़े थे पर वह देख रहा था की दो तन मन से हसीन व्यक्तियों ने मिल कर कैसी एक आत्मा रच ली थी ..वे दोनों खड़े होते हैं और उनके बीच मोहब्बत का फ़रिश्ता खडा हुआ दिखता है जो दोनों के सर पर अपने पंख फैलाए दोनों को बुरी आवाजों से बचा रहा है ..दो हंसते चेहरे ,सच और हक से चमकते ..ख़ुशी का एक चश्मा उनके पैरों के पास बह रहा है वह चश्मा जो कानून की और मजहब की गलियों से सूखे हुए होंठों को अपना दामन दे रहा है
वह दोनों को सलाम वह दोनों को सलाम दुआ कर लौटता है और सोचता है दुनिया में हर चीज कुदरत के कानून में होती है ....मोहब्बत और आजादी कुदरती वसफ होते हैं पर इंसान इस अमीरी से वंचित क्यों रह जाता है ? खुदा द्वारा दी गयी रूह के लिए जमीनी कानून बनाए जाते हैं ...बहुत तंग बहुत संकरे ..वे एक दुखदायक कैदखाने की सलाखे बनाते हैं ..हारा हुआ इंसान एक गहरी कब्र खोदता है और मन की मुरादें उस में कही गहरे दबा देता है और इस तरह समाज बनता है ...और कोई एक रूह का कहा मान कर समाज के कानूनों को नजरंदाज करता है और उसके बाकी साथी उसको जलावतनी के काबिल समझ लेतें हैं
और तब एक सवाल बहुत तेजी से जहन में घूम जाता है कि क्या इंसान कभी सिर उठा कर सूरज की और देखेगा ? जहाँ उसका साया मुर्दों की बस्ती पर पड़ता नहीं दिखेगा ?
यह किताब थी खलील जिब्रान की ,उस वर्जित फल को तोड़ने जैसी ,जो मोहब्बत ,हक और सच का फल था ...अरबी में छपने पर .सुल्तानों .अमीरों और पादरियों ने बहुत खतरनाक कह कर बैरुत की मण्डी में सरेआम जला दी थी ...साथ ही खलील जिब्रान को गिरजे से बाहर निकाल दिया था .और उसको उसके वतन से जलावतन कर दिया था ...
सिर्फ़ दो राजवाडे थे --
एक ने मुझे और उसे
बेदखल किया था
और दूसरे को हमने त्याग दिया था
नग्न आकाश के नीचे --
मैं कितनी ही देर --
तन के मेह में भीगती रही ,
वह कितनी ही देर
तन के मेह में गलता रहा
फ़िर बरसों के मोह को
इक जहर की तरह पी कर
उसने कांपते हाथों से
मेरा हाथ पकड़ा !
चल ! क्षणों के सिर पर
एक छत डालें
वह देख ! पर --सामने ,उधर
सच और झूठ के बीच -----
कुछ जगह खाली है .....
वर्जित बाग़ की गाथा (अमृता प्रीतम ) के अंश से
जराबख्तर पहन लिया है
और नंगे बदन को
अब कुछ नहीं छूता
न दुश्मन का हाथ छूता है
न मेरे दोस्त की बाहें
मैंने दोस्ती का
जराबख्तर पहन लिया है
मैं खुश हूँ
पर आप क्यों पूछते हैं
कि कुछ खुशियाँ
इतनी उदास क्यों होती है ?
अमृता ने एक जगह लिखा है कि दुनिया अदन बाग़ नहीं , पर जरखेज धरती में जहाँ कहीं भी मोहब्बत हक और सच के फूल उगते हैं वह वर्जित बाग़ करार दे दिया जाता है ...सामाजिक कानून के सामने या महजबी कानून के सामने यहाँ इसकी कोई सुनवाई नहीं होती है ..पर सच तो यह है कि ..हर काल में इसी तरह के शायर और आदिब पैदा होते हैं जो इस वर्जित बाग़ में कदम रखते हैं और उसके लिए आवाज़ उठाते हैं .चाहे कोई भी कीमत उन्हें इसको क्यों न चुकानी पड़े
इसी तरह की कड़ी में उन्होंने खलील जिब्रान का जिक्र किया ..जिसने तीन कहानियाँ लिखी .लम्बी और पूरे ब्यौरे से भरी हुई जिनके संग्रह को नाम दिया ..स्प्रिट्स रिबैलियस यह किताब न्यूयार्क में विजडम लाइब्रेरी ,ब्रांच फिलोसोफिकल लाइब्रेरी की औरछापी थी ..१९४७ में .पर यह अंग्रेजी रूप .मूल अरबी किताब का अनुवादित रूप है ..
इसमें कही गयी पहली कहानी है मैडम रोज़ हैनी ..यह एक बहुत सादा सी कहानी है कि एक जवान होती अति सुन्दर लड़की से एक अमीर आदमी विवाह कर लेता है .सोना चांदी हीरे मोती हमेशा उसके पहनने को हाजिर रहते पर कुछ बरसों बाद लड़की सब कुछ होते हुए भी दो बूंद मोहब्बत के लिए तरसती रहती है ...उसी समय एक लड़का उस की जिन्दगी में आता है जिसकी आँखों में उसके सपनों की पूर्ति की रौशनी है ....वह लड़की उस अमीर घर को छोड़ कर उस खुदाई सिफतों वाले उस व्यक्ति के साथ चली जाती है जहाँ के रास्ते कटीले है और एक गरीब सी बस्ती में उस का घर है ...
उस अमीर आदमी की जुबान जैसे कंटीली हो जाती है और उसके साथ ही पूरे गांव और कबीले की भी जुबान उस लड़की को लानतें भेजती थकती नहीं ..इस का ब्यौरा जिस कहानी कार ने दिया वह भी उसी कबीले का था .....सबब बनता है और वह उस लड़की के साथ उस सिफतों वाले मर्द को भी मिलता है और उन दोनों के चमकते चेहरे देख कर उसको गांव कबीले वालों के उफनते चेहरे याद आ जाते हैं ...
उस एक मिनट की खामोशी जैसे उस औरत और उस मर्द को दी गयी नियाज जैसी लगती और उसको लगता है कोई खुदाई चीज है जो इन दोनों को देखने से पहले उसने कभी देखी नहीं है और तब उसको वह नाजुक चीज समझ आती है की औरत ने इतनी बड़ी मुखालफत क्यों सह ली थी .सारे कानून उसके पीछे पड़े थे पर वह देख रहा था की दो तन मन से हसीन व्यक्तियों ने मिल कर कैसी एक आत्मा रच ली थी ..वे दोनों खड़े होते हैं और उनके बीच मोहब्बत का फ़रिश्ता खडा हुआ दिखता है जो दोनों के सर पर अपने पंख फैलाए दोनों को बुरी आवाजों से बचा रहा है ..दो हंसते चेहरे ,सच और हक से चमकते ..ख़ुशी का एक चश्मा उनके पैरों के पास बह रहा है वह चश्मा जो कानून की और मजहब की गलियों से सूखे हुए होंठों को अपना दामन दे रहा है
वह दोनों को सलाम वह दोनों को सलाम दुआ कर लौटता है और सोचता है दुनिया में हर चीज कुदरत के कानून में होती है ....मोहब्बत और आजादी कुदरती वसफ होते हैं पर इंसान इस अमीरी से वंचित क्यों रह जाता है ? खुदा द्वारा दी गयी रूह के लिए जमीनी कानून बनाए जाते हैं ...बहुत तंग बहुत संकरे ..वे एक दुखदायक कैदखाने की सलाखे बनाते हैं ..हारा हुआ इंसान एक गहरी कब्र खोदता है और मन की मुरादें उस में कही गहरे दबा देता है और इस तरह समाज बनता है ...और कोई एक रूह का कहा मान कर समाज के कानूनों को नजरंदाज करता है और उसके बाकी साथी उसको जलावतनी के काबिल समझ लेतें हैं
और तब एक सवाल बहुत तेजी से जहन में घूम जाता है कि क्या इंसान कभी सिर उठा कर सूरज की और देखेगा ? जहाँ उसका साया मुर्दों की बस्ती पर पड़ता नहीं दिखेगा ?
यह किताब थी खलील जिब्रान की ,उस वर्जित फल को तोड़ने जैसी ,जो मोहब्बत ,हक और सच का फल था ...अरबी में छपने पर .सुल्तानों .अमीरों और पादरियों ने बहुत खतरनाक कह कर बैरुत की मण्डी में सरेआम जला दी थी ...साथ ही खलील जिब्रान को गिरजे से बाहर निकाल दिया था .और उसको उसके वतन से जलावतन कर दिया था ...
सिर्फ़ दो राजवाडे थे --
एक ने मुझे और उसे
बेदखल किया था
और दूसरे को हमने त्याग दिया था
नग्न आकाश के नीचे --
मैं कितनी ही देर --
तन के मेह में भीगती रही ,
वह कितनी ही देर
तन के मेह में गलता रहा
फ़िर बरसों के मोह को
इक जहर की तरह पी कर
उसने कांपते हाथों से
मेरा हाथ पकड़ा !
चल ! क्षणों के सिर पर
एक छत डालें
वह देख ! पर --सामने ,उधर
सच और झूठ के बीच -----
कुछ जगह खाली है .....
वर्जित बाग़ की गाथा (अमृता प्रीतम ) के अंश से