लोगों के मन का कोई रिश्ता नहीं होता |सिर्फ घडी दो घडी के लिए वे रिश्ते का भ्रम डालना चाहते हैं | इसलिए लोग चुप रहते हैं ...पर जब किसी को रिश्ते से डर लगता हो .तो ख़ामोशी इस डर को बढ़ा देती है ,इसलिए उसको बोलना पड़ता है ,डर को तोडना पड़ता है ..पर कई रिश्ते ऐसे होते हैं जो न लफ़्ज़ों की पकड में आते हैं न किसी और की पकड में ...
मैंने पल भर के लिए --आसमान को मिलना था
पर घबराई हुई खड़ी थी ....
कि बादलों की भीड़ से कैसे गुजरूंगी ..
कई बादल स्याह काले थे
खुदा जाने -कब के और किन संस्कारों के
कई बादल गरजते दिखते
जैसे वे नसीब होते हैं राहगीरों के
कई बादल शुकते ,चक्कर खाते
खंडहरों के खोल से उठते ,खतरे जैसे
कई बादल उठते और गिरते थे
कुछ पूर्वजों कि फटी पत्रियों जैसे
कई बादल घिरते और घूरते दिखते
कि सारा आसमान उनकी मुट्ठी में हो
और जो कोई भी इस राह पर आये
वह जर खरीद गुलाम की तरह आये ..
मैं नहीं जानती कि क्या और किसे कहूँ
कि काया के अन्दर --एक आसमान होता है
और उसकी मोहब्बत का तकाजा ..
वह कायनाती आसमान का दीदार मांगता है
पर बादलों की भीड़ का यह जो भी फ़िक्र था
यह फ़िक्र उसका नहीं --मेरा था
उसने तो इश्क की कानी खा ली थी
और एक दरवेश की मानिंद उसने
मेरे श्वाशों कि धुनी राम ली थी
मैंने उसके पास बैठ कर धुनी की आग छेड़ी
कहा ---ये तेरी और मेरी बातें ....
पर यह बातें --बादलों का हुजूम सुनेगा
तब बता योगी ! मेरा क्या बनेगा ?
वह हंसा ---
नीली और आसमानी हंसी
कहने लगा --
ये धुंए के अम्बार होते हैं ---
घिरना जानते
गर्जना भी जानते
निगाहों की वर्जना भी जानते
पर इनके तेवर
तारों में नहीं उगते
और नीले आसमान की देही पर
इल्जाम नहीं लगते ..
मैंने फिर कहा --
कि तुम्हे सीने में लपेट कर
मैं बादलों की भीड़ से
कैसे गुजरूंगी ?
और चक्कर खाते बादलों से
कैसे रास्ता मागूंगी?
खुदा जाने --
उसने कैसी तलब पी थी
बिजली की लकीर की तरह
उसने मुझे देखा ,
कहा ---
तुम किसी से रास्ता न मांगना
और किसी भी दिवार को
हाथ न लगाना
न ही घबराना
न किसी के बहलावे में आना
बादलों की भीड़ में से
तुम पवन की तरह गुजर जाना ....
अमृता ( मैं तुम्हे फिर मिलूंगी से )
मैंने पल भर के लिए --आसमान को मिलना था
पर घबराई हुई खड़ी थी ....
कि बादलों की भीड़ से कैसे गुजरूंगी ..
कई बादल स्याह काले थे
खुदा जाने -कब के और किन संस्कारों के
कई बादल गरजते दिखते
जैसे वे नसीब होते हैं राहगीरों के
कई बादल शुकते ,चक्कर खाते
खंडहरों के खोल से उठते ,खतरे जैसे
कई बादल उठते और गिरते थे
कुछ पूर्वजों कि फटी पत्रियों जैसे
कई बादल घिरते और घूरते दिखते
कि सारा आसमान उनकी मुट्ठी में हो
और जो कोई भी इस राह पर आये
वह जर खरीद गुलाम की तरह आये ..
मैं नहीं जानती कि क्या और किसे कहूँ
कि काया के अन्दर --एक आसमान होता है
और उसकी मोहब्बत का तकाजा ..
वह कायनाती आसमान का दीदार मांगता है
पर बादलों की भीड़ का यह जो भी फ़िक्र था
यह फ़िक्र उसका नहीं --मेरा था
उसने तो इश्क की कानी खा ली थी
और एक दरवेश की मानिंद उसने
मेरे श्वाशों कि धुनी राम ली थी
मैंने उसके पास बैठ कर धुनी की आग छेड़ी
कहा ---ये तेरी और मेरी बातें ....
पर यह बातें --बादलों का हुजूम सुनेगा
तब बता योगी ! मेरा क्या बनेगा ?
वह हंसा ---
नीली और आसमानी हंसी
कहने लगा --
ये धुंए के अम्बार होते हैं ---
घिरना जानते
गर्जना भी जानते
निगाहों की वर्जना भी जानते
पर इनके तेवर
तारों में नहीं उगते
और नीले आसमान की देही पर
इल्जाम नहीं लगते ..
मैंने फिर कहा --
कि तुम्हे सीने में लपेट कर
मैं बादलों की भीड़ से
कैसे गुजरूंगी ?
और चक्कर खाते बादलों से
कैसे रास्ता मागूंगी?
खुदा जाने --
उसने कैसी तलब पी थी
बिजली की लकीर की तरह
उसने मुझे देखा ,
कहा ---
तुम किसी से रास्ता न मांगना
और किसी भी दिवार को
हाथ न लगाना
न ही घबराना
न किसी के बहलावे में आना
बादलों की भीड़ में से
तुम पवन की तरह गुजर जाना ....
अमृता ( मैं तुम्हे फिर मिलूंगी से )
19 comments:
बहुत सुन्दर कविता... विशेष कर यह लाइने
मैं नहीं जानती कि क्या और किसे कहूँ
कि काया के अन्दर --एक आसमान होता है
और उसकी मोहब्बत का तकाजा ..
वह कायनाती आसमान का दीदार मांगता है
...Amrita Pritam ki kitab abhi jaroor khridunga...
बहुत सुंदर पोस्ट, शुभकामनाएं.
रामराम.
अमृता की बात ही कुछ और थी. बहुत कल लोग इतना pure लिखते हैं.
तुम किसी से रास्ता न मांगना
और किसी भी दिवार को
हाथ न लगाना
न ही घबराना
न किसी के बहलावे में आना
बादलों की भीड़ में से
तुम पवन की तरह गुजर जाना ....
यह लाइनें अमृता जी की शैली को बेबाकी से बयाँ कर रही हैं.
आभार इस प्रस्तुति का...बहुत सुन्दर!!
तुम किसी से रास्ता मत माँगना ....पवन की तरह हो कर निकल जाना ....अमृता ने बिलकुल ऐसा ही किया ...
प्रस्तुति का आभार ...
natmastak hun.... inke aage...
arsh
kya kahun...........nishabd ho gayi hun.........behad gahanta samete huye hai..........padhwane ka shukriya.
bahut dino baad aayi aapke blog par.....Nazm "Bemisaal".....aapke blog par amrita ji ke baare mein kafikuch jaanney ko milta hai...kafikuch bacha hai padhne ke liye.... ek request hai aapse....pls Amrita ji ki punjabi kavitayein aur nazm bhi post karein aur .....punjabi mein hi...saath mein hindi or eng translation dengi to wo bhi chalega :-)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति धन्यवाद आगे का इन्तज़ार बडी बेसब्री से
बहुत सुंदर पोस्ट, शुभकामनाएं
बहुत उम्दा रचना
बहुत बहुत शुक्रिया
मैं नहीं जानती कि क्या और किसे कहूँ
कि काया के अन्दर --एक आसमान होता है
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, हमेशा की तरह ।
baat agar unki kalam ki hai
to shbdon se pare hai..
aur main soch mein hu ki kya kehuin.
खुदा जाने --
उसने कैसी तलब पी थी
बिजली की लकीर की तरह
उसने मुझे देखा ,
कहा ---
तुम किसी से रास्ता न मांगना
और किसी भी दिवार को
हाथ न लगाना
न ही घबराना
न किसी के बहलावे में आना
बादलों की भीड़ में से
तुम पवन की तरह गुजर जाना ....
वाह! उत्साह जगाती कविता.
आपकी पोस्ट यहाँ भी है……नयी-पुरानी हलचल
http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
एक बेहतरीन कविता.
सादर
खूबसूरत रचना पढवाने का आभार
मैं नहीं जानती कि क्या और किसे कहूँ
कि काया के अन्दर --एक आसमान होता है
और उसकी मोहब्बत का तकाजा ..
वह कायनाती आसमान का दीदार मांगता है
सुन्दर अभिव्यक्ति् धन्यवाद
Post a Comment