तुम्हारे ग़म की डली उठा कर
जुबान पर रख ली है देखो मैंने
वह कतरा- कतरा पिघल रही है
मैं कतरा कतरा ही जी रहा हूँ
गुलजार की लिखी यह पंक्तियाँ इमरोज़ अमृता के रिश्ते को और भी पुख्ता कर देती है |इमरोज़ का कहना है इतनी बड़ी दुनिया में मेरा सिर्फ इतना योगदान है कि मैंने अपने जीवन में एक शख्स चुन लिया है जिसे मुझे खुश रखना है --अमृता को | बस अमृता को खुश रखने की कोशिश मेरी ज़िन्दगी का मकसद है | मुझमें इतनी क्षमता नहीं है कि मैं पूरी दुनिया को खुश रख सकूँ .लेकिन कम से कम एक शख्स को खुश रखने की क्षमता मुझमें जरुर है "
और यह क्षमता हर इंसान में हैकि वह अपनी ज़िन्दगी में कम से कम एक इंसान को खुश रख सके आप पूरी दुनिया की फ़िक्र मत करिए |अपनी ज़िन्दगी में सिर्फ किसी एक शख्श को चुन ले -अपनी माँ को चुन ले ,अपने पिता को चुन ले .अपने भाई या दोस्त को चुन ले या हो सके तो अपनी बीबी को ही चुन ले ..जिसे आपको खुश रखना है यही अपनी ज़िन्दगी का मकसद बना लें ..फिर न किसी मजहब की जरुरत है ,न कानून की ,न राजनीति की ..आखिर यह तीनों आपको खुश करने के वादे ही तो करते हैं ,फिर भी इंसान खुश क्यों नहीं है ?
उन्ही के लफ़्ज़ों में .....
कानून
किसी अजनबी मर्द औरत को
रिश्ता बनाने का
सिर्फ मौका देता है
रिश्ता नहीं ......
रिश्ता बने या न बने
इसकी न कानून
फ़िक्र करता है
और न जिम्मा लेता है .....
सच में इस को अपनाने में अड़चन क्या है ....? अड़चन है इंसान का अहंकार ,अपना स्वार्थ ..बहुत कम लोग इस तरह के मिलेंगे जो दूसरो की ख़ुशी में खुश होते हैं ,अधिकतर लोग तो सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए बेचैन लगेंगे ,सिर्फ अपने सुख के लिए, चाहे इसके लिए दूसरों को दुःख देना पड़े ॥
इमरोज़ का हर कर्म अपने में अनोखा है चाहे वह अमृता से प्यार करना हो चाहे पेंटिंग करना .चाहे भोजन बनाना ..वह हर जगह कुछ नया करना चाहते हैं |उनकी बनायी कला कृतियाँ हर बार अलग हैं ,उनकी नक़ल नहीं बनायी जा सकती .अब तक वह न जाने कितनी कृतियाँ बना चुके हैं पर सब एक दूसरे से अलग कहीं कोई नक़ल नहीं |उनके बनाए चित्र एक अलग से बिखरे हुए अक्षरों का एहसास करवातें हैं और उनकी तूलिका से लिखे अक्षर नृत्य करते दिखते हैं ----अक्षरों के पैर धरती पर थिरकते हुए और हाथ आकाश में लहराते गीत गाते से ....इन सब में ख़ास बात या है कि वह हर समय वर्तमान में रहते हैं ..और जो कशिश वर्तमान में रह कर जीने में है वह जल्दी कहीं देखने को नहीं मिलती फिर चाहे वह भोजन हो या ज़िन्दगी .......या अमृता से प्रेम करना
प्यार सबसे सरल
इबादत है
बहते पानी जैसी ....
ना इसको किसी शब्द की जरुरत
ना किसी जुबान की मोहताजी
ना किसी वक़्त की पाबंदी
और ना ही कोई मज़बूरी
किसी को सिर झुकाने की
प्यार से ज़िन्दगी जीते जीते
यह इबादत अपने आप
हर वक़्त होती रहती है
और --जहाँ पहुँचना है
वहां पहुँचती रहती है ....
इमरोज़ ....
जुबान पर रख ली है देखो मैंने
वह कतरा- कतरा पिघल रही है
मैं कतरा कतरा ही जी रहा हूँ
गुलजार की लिखी यह पंक्तियाँ इमरोज़ अमृता के रिश्ते को और भी पुख्ता कर देती है |इमरोज़ का कहना है इतनी बड़ी दुनिया में मेरा सिर्फ इतना योगदान है कि मैंने अपने जीवन में एक शख्स चुन लिया है जिसे मुझे खुश रखना है --अमृता को | बस अमृता को खुश रखने की कोशिश मेरी ज़िन्दगी का मकसद है | मुझमें इतनी क्षमता नहीं है कि मैं पूरी दुनिया को खुश रख सकूँ .लेकिन कम से कम एक शख्स को खुश रखने की क्षमता मुझमें जरुर है "
और यह क्षमता हर इंसान में हैकि वह अपनी ज़िन्दगी में कम से कम एक इंसान को खुश रख सके आप पूरी दुनिया की फ़िक्र मत करिए |अपनी ज़िन्दगी में सिर्फ किसी एक शख्श को चुन ले -अपनी माँ को चुन ले ,अपने पिता को चुन ले .अपने भाई या दोस्त को चुन ले या हो सके तो अपनी बीबी को ही चुन ले ..जिसे आपको खुश रखना है यही अपनी ज़िन्दगी का मकसद बना लें ..फिर न किसी मजहब की जरुरत है ,न कानून की ,न राजनीति की ..आखिर यह तीनों आपको खुश करने के वादे ही तो करते हैं ,फिर भी इंसान खुश क्यों नहीं है ?
उन्ही के लफ़्ज़ों में .....
कानून
किसी अजनबी मर्द औरत को
रिश्ता बनाने का
सिर्फ मौका देता है
रिश्ता नहीं ......
रिश्ता बने या न बने
इसकी न कानून
फ़िक्र करता है
और न जिम्मा लेता है .....
सच में इस को अपनाने में अड़चन क्या है ....? अड़चन है इंसान का अहंकार ,अपना स्वार्थ ..बहुत कम लोग इस तरह के मिलेंगे जो दूसरो की ख़ुशी में खुश होते हैं ,अधिकतर लोग तो सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए बेचैन लगेंगे ,सिर्फ अपने सुख के लिए, चाहे इसके लिए दूसरों को दुःख देना पड़े ॥
इमरोज़ का हर कर्म अपने में अनोखा है चाहे वह अमृता से प्यार करना हो चाहे पेंटिंग करना .चाहे भोजन बनाना ..वह हर जगह कुछ नया करना चाहते हैं |उनकी बनायी कला कृतियाँ हर बार अलग हैं ,उनकी नक़ल नहीं बनायी जा सकती .अब तक वह न जाने कितनी कृतियाँ बना चुके हैं पर सब एक दूसरे से अलग कहीं कोई नक़ल नहीं |उनके बनाए चित्र एक अलग से बिखरे हुए अक्षरों का एहसास करवातें हैं और उनकी तूलिका से लिखे अक्षर नृत्य करते दिखते हैं ----अक्षरों के पैर धरती पर थिरकते हुए और हाथ आकाश में लहराते गीत गाते से ....इन सब में ख़ास बात या है कि वह हर समय वर्तमान में रहते हैं ..और जो कशिश वर्तमान में रह कर जीने में है वह जल्दी कहीं देखने को नहीं मिलती फिर चाहे वह भोजन हो या ज़िन्दगी .......या अमृता से प्रेम करना
प्यार सबसे सरल
इबादत है
बहते पानी जैसी ....
ना इसको किसी शब्द की जरुरत
ना किसी जुबान की मोहताजी
ना किसी वक़्त की पाबंदी
और ना ही कोई मज़बूरी
किसी को सिर झुकाने की
प्यार से ज़िन्दगी जीते जीते
यह इबादत अपने आप
हर वक़्त होती रहती है
और --जहाँ पहुँचना है
वहां पहुँचती रहती है ....
इमरोज़ ....
13 comments:
अमृता प्रीतम के उस महीन अहसासों की डोर आपने थामे रखी है ...क्या खूब !
Very touching ....Itne simple insaan hain IMROZ....aur simple hona hi sabse zyada mushkil hai
प्यार सबसे सरल
इबादत है
बहते पानी जैसी ....
ना इसको किसी शब्द की जरुरत
ना किसी जुबान की मोहताजी
ना किसी वक़्त की पाबंदी
और ना ही कोई मज़बूरी
किसी को सिर झुकाने की
यही प्यार इमरोज़ ने कर दिखया। बहुत बहुत धन्यवाद इस पोस्ट के लिये।
main bas kayal hoon..aur nishbd bhi!
ना इसको किसी शब्द की जरुरत
ना किसी जुबान की मोहताजी
ना किसी वक़्त की पाबंदी....आप यूं ही अमृता जी के बारे में कुछ नया पढ़वाती रहेंगी, और जिसके लिये हम आपका आभार व्यक्त करते रहेंगे, हमेशा की तरह सुन्दर प्रस्तुति ।
चलो उस इंसान ने कम से कम अपनी ज़िन्दगी का मक़्सद तो तय किया ..
hwa me uchhale tumne kuchh fool
vo mere aangn me aake gire
our mujhe jine ka sbb mil gya .
imrooj ke ishk ki kshish hai hi itni jbtdst ki pdhne wala shayr bn jaye .
im also a great fan of amrita pritam....
is ibaadat men main bhi shareek hun..
apni poori sajeedagi ke saath...
प्यार सबसे बड़ी पूजा है।
आज दिनांक 28 जुलाई 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में आपकी यह पोस्ट सबसे सरल इबारत शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई। स्कैनबिम्ब देखने के लिए जनसत्ता पर क्लिक कर सकते हैं। कोई कठिनाई आने पर मुझसे संपर्क कर लें।
very nice commentary. Reminds me of my days in school when we used to interpretation of Hindi poetry. Some Hindi poems have such profound meanings
very beautiful defination for love
samjhne ki baat hai sirfaur sirf gahrayi
thank's
mam
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