एक बरस में सूरज के हिसाब से बारह महीने होते हैं,
लेकिन चन्द्रमा के हिसाब से तेरह महीने होते हैं।
सूरज बाह्यमुखी शक्ति का प्रतीक है
और चन्द्रमा अन्तर्मुखी शक्ति का।
सूर्य शक्ति मर्द शक्ति गिनी जाती है
और चन्द्र शक्ति स्त्री शक्ति।
दोनों शक्तियाँ स्थूल शक्ति और सूक्ष्म शक्ति की प्रतीक हैं
अन्तर की सूक्ष्म चेतना, जाने कितने जन्मों से,
इंसान के भीतर पड़ी पनपती रहती है।
यह अपने करम से भी बनती-बिगड़ती है
और पिता-पितामह के करमों से भी।
हमारे अपने देश में, कई जातियों में
एक बड़ी रहस्यमय बात कही जाती है,
हर बच्चे के जन्म के समय,
कि बिध माता, तुम रूठकर आना और मानकर जाना।
इसका अर्थ यह लिया जाता है कि बिध माता,
किस्मत को बनाने वाली शक्ति, जब अपने प्रिय
से रूठकर आती है, तो बहुत देर बच्चे के पास बैठती है
और आराम से उसकी किस्मत की लकीरें बनाती है...
मैं समझती हूँ कि बिध माता की यह गाथा
बहुत गहरे अर्थों में है कि वह जब किस्मत
की लकीरें बनाने लगे तो साइकिक शक्ति को न भूल जाए,
पश्चिम की गाथा में जो तेरहवीं थाली परसने का इशारा है,
ठीक वही पूरब की गाथा में साइकिक शक्तियों
से न रूठने का संकेत है।...........
मर्द ने अपनी पहचान मैं लफ़्ज़ में पानी होती है, औरत ने मेरी लफ़्ज़ में...
‘मैं’ शब्द में ‘स्वयं’ का दीदार होता है, और ‘मेरा’ शब्द ‘प्यार’ के धागों में लिपटा हुआ होता है...
लेकिन अंतर मन की यात्रा रुक जाए तो मैं लफ़्ज़ महज अहंकार हो जाता है और मेरा लफ़्ज़ उदासीनता। उस समय स्त्री वस्तु हो जाती है, और पुरुष वस्तु का मालिक।
मालिक होना उदासीनता नहीं जानता, लेकिन मलकियत उसकी वेदना जानती है।
रजनीश जी के लफ़्ज़ों में ‘‘वेदना का अनुवाद दुनिया की किसी भाषा में नहीं हो सकता। इसका एक अर्थ ‘पीड़ा’ होता है, पर दूसरा अर्थ ‘ज्ञान’ होता है। यह मूल धातु ‘वेद’ से बना है, जिस से विद्वान बनता है—ज्ञान को जानने वाला। वेदना का अर्थ हो जाता है —जो दुख के ज्ञान को जानता है।’’ सो इस वेदना के पहलू से कुछ उन गीतों को देखना होगा, जो धरती की और मन की मिट्टी से पनपते हैं।
लोकगीत बहुत व्यापक दुख से जन्म लेता है, वह उस हकीकत की ज़मीन पर पैर रखता है, जो बहुत व्यापक रूप में एक हकीकत बन चुकी होती है।
इसी तरह कहावतें भी ऐसे संस्कारों से बनती हैं, जि पर्त दर पर्त बहुत कुछ अपने में लपेट कर रखती हैं। जैसे कभी बंगाल में कहावत थी—‘‘जो औरत पढ़ना लिखना सीखती है, वह दूसरे जन्म में वेश्या होकर जन्म लेती है।
हमारे देश की अलग-अलग भाषाओं के होठों पर ऐसी कितनी कहावतें और गीत सुलगते हैं। आम स्त्री की हालत का अनुमान कुछ उन्हीं से लगाना होगा... अमृता के लिखे शब्द उनकी लिखी पुस्तकों से ....
लेकिन चन्द्रमा के हिसाब से तेरह महीने होते हैं।
सूरज बाह्यमुखी शक्ति का प्रतीक है
और चन्द्रमा अन्तर्मुखी शक्ति का।
सूर्य शक्ति मर्द शक्ति गिनी जाती है
और चन्द्र शक्ति स्त्री शक्ति।
दोनों शक्तियाँ स्थूल शक्ति और सूक्ष्म शक्ति की प्रतीक हैं
अन्तर की सूक्ष्म चेतना, जाने कितने जन्मों से,
इंसान के भीतर पड़ी पनपती रहती है।
यह अपने करम से भी बनती-बिगड़ती है
और पिता-पितामह के करमों से भी।
हमारे अपने देश में, कई जातियों में
एक बड़ी रहस्यमय बात कही जाती है,
हर बच्चे के जन्म के समय,
कि बिध माता, तुम रूठकर आना और मानकर जाना।
इसका अर्थ यह लिया जाता है कि बिध माता,
किस्मत को बनाने वाली शक्ति, जब अपने प्रिय
से रूठकर आती है, तो बहुत देर बच्चे के पास बैठती है
और आराम से उसकी किस्मत की लकीरें बनाती है...
मैं समझती हूँ कि बिध माता की यह गाथा
बहुत गहरे अर्थों में है कि वह जब किस्मत
की लकीरें बनाने लगे तो साइकिक शक्ति को न भूल जाए,
पश्चिम की गाथा में जो तेरहवीं थाली परसने का इशारा है,
ठीक वही पूरब की गाथा में साइकिक शक्तियों
से न रूठने का संकेत है।...........
मर्द ने अपनी पहचान मैं लफ़्ज़ में पानी होती है, औरत ने मेरी लफ़्ज़ में...
‘मैं’ शब्द में ‘स्वयं’ का दीदार होता है, और ‘मेरा’ शब्द ‘प्यार’ के धागों में लिपटा हुआ होता है...
लेकिन अंतर मन की यात्रा रुक जाए तो मैं लफ़्ज़ महज अहंकार हो जाता है और मेरा लफ़्ज़ उदासीनता। उस समय स्त्री वस्तु हो जाती है, और पुरुष वस्तु का मालिक।
मालिक होना उदासीनता नहीं जानता, लेकिन मलकियत उसकी वेदना जानती है।
रजनीश जी के लफ़्ज़ों में ‘‘वेदना का अनुवाद दुनिया की किसी भाषा में नहीं हो सकता। इसका एक अर्थ ‘पीड़ा’ होता है, पर दूसरा अर्थ ‘ज्ञान’ होता है। यह मूल धातु ‘वेद’ से बना है, जिस से विद्वान बनता है—ज्ञान को जानने वाला। वेदना का अर्थ हो जाता है —जो दुख के ज्ञान को जानता है।’’ सो इस वेदना के पहलू से कुछ उन गीतों को देखना होगा, जो धरती की और मन की मिट्टी से पनपते हैं।
लोकगीत बहुत व्यापक दुख से जन्म लेता है, वह उस हकीकत की ज़मीन पर पैर रखता है, जो बहुत व्यापक रूप में एक हकीकत बन चुकी होती है।
इसी तरह कहावतें भी ऐसे संस्कारों से बनती हैं, जि पर्त दर पर्त बहुत कुछ अपने में लपेट कर रखती हैं। जैसे कभी बंगाल में कहावत थी—‘‘जो औरत पढ़ना लिखना सीखती है, वह दूसरे जन्म में वेश्या होकर जन्म लेती है।
हमारे देश की अलग-अलग भाषाओं के होठों पर ऐसी कितनी कहावतें और गीत सुलगते हैं। आम स्त्री की हालत का अनुमान कुछ उन्हीं से लगाना होगा... अमृता के लिखे शब्द उनकी लिखी पुस्तकों से ....
11 comments:
गहन भावपूर्ण ... अंतर्मन की यात्रा ....
शुभकामनायें ...
ठीक बात है। लोकगीत स्त्री जीवन का एक विराट दस्तावेज हैं।
bhavpurn aalekh
गहन
गहन भावों का संगम है यह प्रस्तुति ... आपका आभार ।
wahh...kya density hai baato me...:)
सुन्दर प्रस्तुति
कमाल कि पेशकारी !
मर्द ने अपनी पहचान मैं लफ़्ज़ में पानी होती है, औरत ने मेरी लफ़्ज़ में...
‘मैं’ शब्द में ‘स्वयं’ का दीदार होता है, और ‘मेरा’ शब्द ‘प्यार’ के धागों में लिपटा हुआ होता है...
लेकिन अंतर मन की यात्रा रुक जाए तो मैं लफ़्ज़ महज अहंकार हो जाता है और मेरा लफ़्ज़ उदासीनता।
अमृता प्रीतम जी के लेखन में हमेशा दूसरी दुनिया की आवाज़ गूंजती थी।
आपके समर्पण को साधुवाद!
मर्द ने अपनी पहचान मैं लफ़्ज़ में पानी होती है, औरत ने मेरी लफ़्ज़ में...
‘मैं’ शब्द में ‘स्वयं’ का दीदार होता है, और ‘मेरा’ शब्द ‘प्यार’ के धागों में लिपटा हुआ होता है
बहुत सुन्दर व्याख्या. बढ़िया प्रस्तुतिकरण,
पढ़कर साफ़ ज़ाहिर होता है वे कितनी वेल रेड थीं ...आम ब्लॉग लेखिकाओं की तरह नहीं जिनका वैश्विक साहित्य का अध्ययन तो जीरो है मगर यहाँ काव्य लेखन में जुटी हैं .....
आपने साझा किया आभार
Post a Comment