अमृता जब छोटी-सी थी, तब सांझ घिरने लगती, तो वह खिड़की के पास खड़ी-कांपते
होठों से कई बार कहती-अमृता ! मेरे पास आओ।
शायद इसलिए कि खिड़की में से जो आसमान सामने दिखाई देता, देखती कि कितने ही पंछी उड़ते हुए कहीं जा रहे होते...ज़रूर घरों को-अपने-अपने घोंसलों को लौट रहे होते होंगे...और उनके होठों से बार-बार निकलता-अमृता, मेरे पास आओ ! लगता, मन का पंछी जो उड़ता-उड़ता जाने कहां खो गया है, अब सांझ पड़े उसे लौटना चाहिए...अपने घर-अपने घोसले में मेरे पास... अमृता के शब्दों में "वहीं खिड़की में खड़े-खड़े तब एक नज़्म कही थी-कागज़ पर भी उतार ली होगी, पर वह कागज़ जाने कहां खो गया, याद नहीं आता...लेकिन उसकी एक पंक्ति जो मेरे ओठों पर जम-सी गई थी-वह आज भी मेरी याद में है। वह थी-‘सांझ घिरने लगी, सब पंछी घरों को लौटने लगे, मन रे ! तू भी लौट कर उड़ जा ! कभी यह सब याद आता है-तो सोचती हूं-इतनी छोटी थी, लेकिन यह कैसे हुआ-कि मुझे अपने अंदर एक अमृता वह लगती-जो एक पंछी की तरह कहीं आसमान में भटक रही होती और एक अमृता वह जो शांत वहीं खड़ी रहती थी और कहती थी-अमृता ! मेरे पास आओ !
अब कह सकती हूं-ज़िंदगी के आने वाले कई ऐसे वक़्तों का वह एक संकेत था-कि एक अमृता जब दुनिया वालों के हाथों परेशान होगी, उस समय उसे अपने पास बुलाकर गले से लगाने वाली भी एक अमृता होगी-जो कहती होगी-अमृता, मेरे पास आओ !"
शायद इसलिए कि खिड़की में से जो आसमान सामने दिखाई देता, देखती कि कितने ही पंछी उड़ते हुए कहीं जा रहे होते...ज़रूर घरों को-अपने-अपने घोंसलों को लौट रहे होते होंगे...और उनके होठों से बार-बार निकलता-अमृता, मेरे पास आओ ! लगता, मन का पंछी जो उड़ता-उड़ता जाने कहां खो गया है, अब सांझ पड़े उसे लौटना चाहिए...अपने घर-अपने घोसले में मेरे पास... अमृता के शब्दों में "वहीं खिड़की में खड़े-खड़े तब एक नज़्म कही थी-कागज़ पर भी उतार ली होगी, पर वह कागज़ जाने कहां खो गया, याद नहीं आता...लेकिन उसकी एक पंक्ति जो मेरे ओठों पर जम-सी गई थी-वह आज भी मेरी याद में है। वह थी-‘सांझ घिरने लगी, सब पंछी घरों को लौटने लगे, मन रे ! तू भी लौट कर उड़ जा ! कभी यह सब याद आता है-तो सोचती हूं-इतनी छोटी थी, लेकिन यह कैसे हुआ-कि मुझे अपने अंदर एक अमृता वह लगती-जो एक पंछी की तरह कहीं आसमान में भटक रही होती और एक अमृता वह जो शांत वहीं खड़ी रहती थी और कहती थी-अमृता ! मेरे पास आओ !
अब कह सकती हूं-ज़िंदगी के आने वाले कई ऐसे वक़्तों का वह एक संकेत था-कि एक अमृता जब दुनिया वालों के हाथों परेशान होगी, उस समय उसे अपने पास बुलाकर गले से लगाने वाली भी एक अमृता होगी-जो कहती होगी-अमृता, मेरे पास आओ !"
4 comments:
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति।
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति।
बहुत अच्छा!!
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Bahut hi jabrdast h
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