Wednesday, October 15, 2008

नजर के आसमान से...

नजर के आसमान से
सूरज कहीं दूर चला गया
पर अब भी चाँद में .
उसकी खुशबु आ रही है ...

तेरे इश्क की एक बूंद
इस में मिल गई थी
इस लिए मैंने उम्र की
सारी कडवाहट पी ली ..

अमृता का कहना था कि दुनिया की कोई भी किताब हो हम उसके चिंतन का दो बूंद पानी जरुर उस से ले लेते हैं ..और फ़िर उसी से अपना मन मस्तक भरते चले जाते हैं .और फ़िर जब हम उस में चाँद की परछाई देखते हैं तो हमें उस पानी से मोह हो जाता है ...हम जो कुछ भी किताबों से लेते हैं वह अपना अनुभव नही होता वह सिर्फ़ सहेज लिया जाता है ....अपना अनुभव तो ख़ुद पाने से मिलता है ...इस में भी एक इबारत वह होती है जो सिर्फ़ बाहरी दुनिया की सच्चाई लिखती है ,पर एक इबारत वह होती है जो अपने अंतर्मन की होती है और वह सिर्फ़ आत्मा के कागज पर लिखी जाती है ....

इस जेहनी और रूहानी लिखने का सिलसिला बहुत लंबा होता है जो परिवार चेतना के विकास की जमीन पर बनता है ....इसी जमीन पर संस्कारों के पेड़ पनपते हैं और इसी में अंतर्मन की एक झील बहती रहती है ..पर इस के तर्क दिल के गहरे में कहीं छिपे होते हैं .जो कभी किसी की पकड़ में आते हैं ..कभी नही आते .....तब उँगलियों के पोरों से यह गांठे खोलनी होती है और यही सच्चे इश्क का तकाजा है ...और यही इस चेतन यात्रा का इश्क कहलाता है .....

अमृता की एक नज्म है जिस में इस सारे अमल को उन्होंने सुइयां चुनना कहा था ...जिसके लिए प्रतीक उन्होंने एक बहुत पुरानी कहानी से लिए थे ....इस कहानी में एक औरत सुबह की बेला में अभी बैठी ही थी कि उसका मर्द बहुत बुरी तरह से जख्मी हालात में घर आया ..किसी दुश्मन ने उसके सारे शरीर में सुइयां पीरों दी थी ....वह औरत अपने मर्द के रोम रोम में सुइयां देख कर तड़प गई ...तभी उसको एक आकाश वाणी सुनाई दी ..अगर वह सारा दिन भूखी प्यासी रह कर अपने मर्द के बदन से सुइयां चुनती रहे तो शाम के वक्त चाँद निकलते ही उसका मर्द ठीक स्वस्थ हो जायेगा ....

अब यह कहानी कब घटित हुई ...किन अर्थों में घटी .इसका कुछ पता नही है ..पर वह एक सुहागन औरत के लिए एक प्रतीक बन गई ..करवा चौथ का व्रत रखने का ..जिस में वह सूरज निकलने से पहले कुछ खा पी कर सारा दिन भूखी प्यासी रहती है उस दिन उसके लिए घर का सारा काम वर्जित होता है ..न वह चरखा कातती है ..न चक्की को हाथ लगाती है .और गहरी संध्या होने पर .चाँद को अर्ध्य दे कर पानी पीती है .और कुछ खाती है ...और यह मान लेती है कि इस तरह से उसने अपने मर्द के सारे दुःख उसके बदन से चुन लिये हैं .....

अमृता ने इस कहानी को चेतन के तौर पर इस्तेमाल किया और एक नज्म लिखी


मैं पल भर भी नही सोयी ,घड़ी भर भी नही सोयी
और रात मेरी आँख से गुजरती रही
मेरे इश्क के बदन में ,जाने कितनी सुइयां उतर गई हैं ..

कहीं उनका पार नही पड़ता
आज धरती की छाया आई थी
कुछ मुहं जुठाने को लायी थी
और व्रत के रहस्य कहती रही

तूने चरखे को नही छूना
चक्की को नही छूना
कहीं सुइयां निकालने की बारी न खो जाए


यौवन ---जो मेरे बदन पर बौर की तरह पडा है
और प्यास से बिलखने लगा
और सुइयां निकालते निकालते ,संध्या की बेला हो गई है

मैं कहाँ अर्ध्य दूँ ! कहीं कोई चाँद नही दिखता
सोचती हूँ --यह जो सुइयां निकाल दी है
शायद यही मेरी उम्र भर की कमाई है ....


अमृता की इस नज्म में इस कहानी की सुइयां --हर तरह के समाज .महजब और सियासत की और से इंसान को दी हुई फितरी ,जेहनी और गुलामी का प्रतीक हैं ..जिनसे उसने अपने आप को आजाद करना है ...

इस पूरी कहानी में दो किरदार दीखते हैं एक मर्द और औरत ..पर ध्यान से देखे और इस चिंतन की गहराई में उतरे तो एक ही किरदार है वह है इंसान ..यह दो पहलू हर इंसान की काया में होते हैं ..मर्द की काया में मर्द उसका चेतन मन होता है और औरत अचेतन मन ..औरत की काया में औरत उसका चेतन मन और मर्द उसका अचेतन मन होता है ..सुइयां निकालना यहाँ चेतन यत्न है ...सिर्फ़ परछाइयों को पकड़ने से जीया नही जा सकता है ..अपने भीतर एक आग ,एक प्यास निरंतर जलाए रखना जरुरी है ....तभी आगे की दास्तान बनती है ....

20 comments:

शोभा said...

मर्द की काया में मर्द उसका चेतन मन होता है और औरत अचेतन मन ..औरत की काया में औरत उसका चेतन मन और मर्द उसका अचेतन मन होता है ..सुइयां निकालना यहाँ चेतन यत्न है ...सिर्फ़ परछाइयों को पकड़ने से जीया नही जा सकता है ..अपने भीतर एक आग ,एक प्यास निरंतर जलाए रखना जरुरी है ....तभी आगे की दास्तान बनती है ....

वाह! बहुत सुंदर.

फ़िरदौस ख़ान said...

तेरे इश्क की एक बूंद
इस में मिल गई थी
इस लिए मैंने उम्र की
सारी कडवाहट पी ली ..

बहुत ख़ूब...प्रेम में डूबी महिला ही यह कह सकती है...

ravindra vyas said...

मोहक, मार्मिक और सुंदर।

कुश said...

bahut hi badhiya.. amrita ko chahne walo ke liye beshkimiti saugat hai aapka blog..

bahut shukriya

डॉ .अनुराग said...

मुझे लगता है इस जिंदगी में सब किरदार ताउम्र एक से नही रहते ...चाहे वो मर्द हो या औरत ...ओर इस दुनिया के रस्मो रिवाज की खातिर अगर कोई किरदार बदलता है तो वो है औरत का....उसका एक हिस्सा जरूर उसके भीतर धड़कता रहता है

आलोक साहिल said...

बहुत ही सुंदर वर्णन.
आलोक सिंह "साहिल"

pallavi trivedi said...

अम्रता के हर अंदाज़ में झलकती है सिर्फ मोहब्बत और सच्ची मोहब्बत.....ये व्रत भी तो मोहब्बत का ही त्यौहार है , बस ये प्रश्न जेहन में रहता है की सिर्फ औरत ही क्यों?

सुशील छौक्कर said...

रंजू जी क्या कहूँ शब्द नही मिल रहे ....।

मर्द की काया में मर्द उसका चेतन मन होता है और औरत अचेतन मन ..औरत की काया में औरत उसका चेतन मन और मर्द उसका अचेतन मन होता है।

अभी भी दोनो ने एक दूसरे को सही से नही पहचाना हैं।

विनय राजपूत said...

bahut hi badiya ...aap mere blog par bhi aaeye ....svagat

अमिताभ मीत said...

तेरे इश्क की एक बूंद
इस में मिल गई थी
इस लिए मैंने उम्र की
सारी कडवाहट पी ली ..

She existed at a different plane altogether.

manvinder bhimber said...

तेरे इश्क की एक बूंद
इस में मिल गई थी
इस लिए मैंने उम्र की
सारी कडवाहट पी ली ..
बहुत ही सुंदर वर्णन.

पारुल "पुखराज" said...

और रात मेरी आँख से गुजरती रही......यौवन ---जो मेरे बदन पर बौर की तरह पडा है
और प्यास से बिलखने लगा..........मैं कहाँ अर्ध्य दूँ ! कहीं कोई चाँद नही दिखता..in baaton pe koi kya kahegaa...bas padhna hai..thx di.

Sajeev said...

very beautiful, i dont know i just loved this blog, very well mentained , great job ranjana ji

अजित वडनेरकर said...

हर बार की तरह बेहद खूबसूरत ...

Abhishek Ojha said...

आपकी अमृता वाली पोस्ट पढने के बाद कहने को कुछ बचता ही नहीं !

रंजना said...

चिंतन की गहराई में उतरे तो एक ही किरदार है वह है इंसान ..यह दो पहलू हर इंसान की काया में होते हैं ..मर्द की काया में मर्द उसका चेतन मन होता है और औरत अचेतन मन ..औरत की काया में औरत उसका चेतन मन और मर्द उसका अचेतन मन होता है ..सुइयां निकालना यहाँ चेतन यत्न है ...सिर्फ़ परछाइयों को पकड़ने से जीया नही जा सकता है ..अपने भीतर एक आग ,एक प्यास निरंतर जलाए रखना जरुरी है ....तभी आगे की दास्तान बनती है ....


अब इसके आगे कुछ कहना कठिन है.....लाजवाब..

Manish Kumar said...

elk baar phir bahut sundar vishleshan...

जितेन्द़ भगत said...

हमेशा की तरह लाजवाब। यह भी खास है-
मैं कहाँ अर्ध्य दूँ ! कहीं कोई चाँद नही दिखता
सोचती हूँ --यह जो सुइयां निकाल दी है
शायद यही मेरी उम्र भर की कमाई है ....

BrijmohanShrivastava said...

दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ "" कृपा बनाए रखें /

betuki@bloger.com said...

बहुत सुन्दर।